Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

डिजिटल दुष्कर्म की घटनाएं आख़िर रिपोर्ट क्यों नहीं होती?

निर्भया कांड के बाद पहली बार यौन उत्पीड़न के इस पहलू को बलात्कार की नई परिभाषा में शामिल किया गया, वहीं पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत भी 'पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' के दायरे में इसे रखा गया है।
digital rape
image credit- India times

बीते कुछ समय से डिजिटल दुष्कर्म लगातार मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है। एक ओर 80 वर्षीय स्केच आर्टिस्ट से लेकर पांच साल की बच्ची के पिता तक इस मामले में आरोपी हैं तो वहीं ज्यादातर नाबालिग इस अपराध का शिकार हुई हैं। निर्भया कांड के बाद पहली बार यौन उत्पीड़न के इस पहलू को साल 2013 में आपराधिक कानून संशोधन के माध्यम से बलात्कार की नई परिभाषा में शामिल किया गया था, जबकि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस यानी पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत भी इसे 'पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्टके दायरे में रखा गया है।

बता दें कि डिजिटल रेप साइबर क्राइम या इंटरनेट से जुडा कोई मामला नहीं है। ये दो शब्द डिजिट और रेप को जोड़कर बना हैजिसका अंग्रेजी में मतलब है उंगलीअंगूठा या पैर की उंगली से दुष्कर्म की घटना को अंजाम देना। अगर सरल भाषा में समझे तोयदि कोई व्यक्ति महिला की अनुमति के बिना अपनी उंगलियांअंगूठा या कोई और चीज उसके प्राइवेट पार्ट्स में डालता है तो उसे डिजिटल रेप कहा जाता है। डिजिटल रेप से जुड़ी घटनाओं में ज्यादातर महिला के प्राइवेट पार्ट में फिंगर्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसे निर्भया अधिनियम के तहत बलात्कार माना गयाजिसमें दुष्कर्म को सिर्फ संभोग तक ही सीमित न रखकरइसके दायरे को बढ़ाया गया।

ओरल सेक्स भी बलात्कार

नई परिभाषा के अनुसार महिला की इजाजत या सहमति के बगैर उसके शरीर में अपने शरीर का कोई भी अंग डालना बलात्कार है। साथ ही महिला के निजी अंगों को पेनेट्रेशन के मकसद से नुकसान पहुंचाना और ओरल सेक्स भी बलात्कार की श्रेणी में आता है। डिजिटल रेप का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को आईपीसी की धारा 376 के अनुसार, 5 साल की सजा हो सकती है। कुछ मामलों में सजा 10 साल या आजीवन कारावास तक की भी हो सकती है।

कानून के जानकारों के अनुसार पॉक्सो कानून में यौन शोषण की परिभाषा विस्तृत है। इसमें शारीरिक संपर्क शामिल हो भी सकता है और नहीं भी लेकिन जो एक महत्वपूर्ण बात है वो यौन मकसद है। यह कानून अंग विशेषों को अलग से रेखांकित करते हुए उसे टच करने या टच करवाने की बात को स्पष्ट करने के बाद उसी वाक्‍य में आगे कहता है, “Any other act with sexual intent” यानी यौन मंशा के साथ किया गया और कोई भी कामसेक्सुअल असॉल्ट माना जाएगा। इसी के तहत डिजिटल रेप के मामले को भी देखा जाता है।

यौन मकसद से टच जिसमें पेनिट्रेशन शामिल न होवो भी सेक्सुअल असॉल्ट है

वकील आर्शी जैन के मुताबिक साल 2012 में पारित किया गया पॉक्सो क़ानून नाबालिगों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा के अपराधों की परिभाषान्यायिक प्रक्रिया और दंड तय करता है। इस कानून के अधिनियम 7 के मुताबिक कोई भी व्यक्ति जो किसी यौन मकसद से किसी बच्चे का वज़ाइनापेनिसएनस और ब्रेस्ट टच करेया फिर उस बच्चे से अपना या किसी दूसरे व्यक्ति का वज़ाइनापेनिसएनस और ब्रेस्ट टच करवाएया फिर यौन मकसद से कोई ऐसा फिजिकल कॉन्टेक्ट करेजिसमें पेनिट्रेशन शामिल न होसेक्सुअल असॉल्ट कहलाएगा।

आर्शी न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि डिजिटल रेप के ज्यादातर मामलों में नाबालिग बच्चियां शिकार हो रही हैंक्योंकि लोग अक्सर उन्हें पुचकारने या खिलाने के बहाने लिंग के बजाय केवल उंगलियों का इस्तेमाल कर बड़ी आसानी से उनका फायदा उठा लेते हैं। अब वो ज्यादा समझदार नहीं होतीं और घरवालों को कुछ ठीक से बता नहीं पातीं ये तो ये कारण हैइसके अलावा कई मामलों में घरवालों को भी इसके बारे में जागरूकता की कमी होती हैउन्हें समझ ही नहीं आता की बच्चे के साथ हुआ क्या है या जो हुआ है वो एक तरह से बलात्कार का मामला है।

बच्चों के मानसिक अवस्था और ज़िंदगी पर पड़ने वाले असर

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो या एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार देशभर में पॉक्सो एक्ट के तहत 47,221 मामले रिपोर्ट हुए थे जिसमें सबसे ज्यादा 6898 मामले उत्तर प्रदेश राज्य में साल 2020 में दर्ज किए गए थे। इसके बाद महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश तीसरे नंबर पर था। अब डिजिटल रेप के बढ़ते मामलों के बीच ये सवाल भी उठ रहे हैं कि ऐसी किसी घटना से एक बच्चे की मानसिक अवस्था और ज़िंदगी पर पड़ने वाले असर के बारे में भी सोचा जाना चाहिए।

मनोचिकित्सक मनिला गोयल इस संबंध में कहती हैं कि बच्चे लंबे समय तक इस प्रताड़ना का असर झेलते हैं। कई बार उनके मन-मस्तिष्क पर इसका इतना गहरा असर होता है कि वो बड़े होने के बाद भी अपने पार्टनर के साथ सहज नहीं हो पाते। कई बार वो अंदर से इतना डर जाते हैं कि महज उस बात की कल्पना भर से कांप उठते हैं।

मनिला न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहती हैं, “बच्चों का मन बहुत कोमल होता है और दिमाग किसी भी बात को बहुत जल्दी अपने अंदर बैठा लेता है। और यही एक बड़ा कारण है कि बच्चे बचपन में अपने साथ हुआ कोई भी हादसा जल्दी भूलते नहीं। कई बार वे ताउम्र परेशान रहते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि बच्चों को अच्छे टच और बुरे टच के बारे में बताया जाएउनके साथ खुलकर बातें की जाए और ज्यादा से ज्यादा उनके स्वभाव में बदलाव को नोटिस किया जाए।"

बलात्कार के क़ानून और डिजिटल बलात्कार

मीडिया जानकारी के मुताबिक डिजिटल रेप के 70 फीसदी मामले किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा अंजाम दिए जाते हैंजो पीड़िता का करीबी होता है। हालांकि डिजिटल रेप के बहुत कम अपराध दर्ज किए जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकांश लोग बलात्कार के कानूनों और डिजिटल बलात्कार शब्द के बारे में नहीं जानते हैं। निर्भया कांड की प्रतिक्रिया में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन महिला-सुरक्षा के पक्ष में एक क़ानूनी और सामाजिक माहौल तैयार करने में भले ही सफल रहे लेकिन इस आंदोलन के बाद भी महिलाओं और पीड़िताओं का इंसाफ के लिए लंबा इंतज़ार अभी तक खत्म नहीं हुआ। आज भी की मामलों में पुलिस से लेकर कोर्ट तक का निराशाजनक रवैया देखने को मिलता है। और ये तब है जब महिलाएं हिम्मत कर के मामले रिपोर्ट करने को आगे बढ़ती हैंहालांकि एक सच्चाई ये भी है कि अधिकतर मामले समाज और लाज के डर से थाने तक पहुंचते ही नहीं हैं।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest