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कश्मीर में बर्बाद होता सेब

राज्य पर सरकार द्वारा थोपी गई गंभीर नाकाबंदी ने उद्योग को बीमार कर दिया है और उसी के समांतर चल रहे नागरिक बंद ने भी पीक सीज़न के व्यापार को क़रीब-क़रीब ठप्प सा कर दिया है।
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राजनीतिक संकट के बीच फँसा और भारी बर्फ़बारी से तबाह यह वर्ष कश्मीर में सेब व्यापारियों के लिए एक के बाद एक आपदाएँ ला रहा है, और उनके लिए ’विनाशकारी’ साबित हो रहा है।

शोपियां जोकि सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ा है और कश्मीर में सबसे बढ़िया किस्म के सेब की पैदावार करता है, इस साल व्यापारी और सेब की उपज पैदा करने वाले अपनी उपज को बेचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पारंपरिक सेब मंडी तीन महीने से भी अधिक समय से बंद पड़ी है क्योंकि उग्रवादियों ने व्यापारियों और उत्पादकों को इस साल की फसल की कटाई न करने की धमकी दी हुई थी।

उग्रवादियों की तरफ से यह धमकी तब आई जब अनुच्छेद 370 को खत्म करने और जम्मू-कश्मीर को दो संघ शासित प्रदेशों में तब्दील करने के मद्देनजर पूरे कश्मीर में 5 अगस्त को बंद का आह्वान किया गया था। सरकार द्वारा गंभीर नाकाबंदी के कारण उद्योग में गिरावट आई है और समानांतर नागरिक बंद ने भी पीक सीजन के दौरान व्यापार को नुकसान पहुंचाया है।

सरकार और उग्रवादियों की डिक्री ने लगभग एक महीने तक सेब की फसल में देरी कर दी।

इस बीच, सरकार ने क्षेत्र के सेब उत्पादकों को राहत देने के लिए एक उपाय के रूप में "बाज़ार हस्तक्षेप योजना" (एमआईएस) को पेश किया है। शोपियां में, चूंकि मुख्य मंडी बंद है, तो अगलार में एक अन्य  मंडी को खोल दिया है जहां सरकार सीधे उत्पादकों से सेब की खेप ख़रीद रही है।

अगलार मंडी को कई पुलिस कर्मियों और सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी में चलाया जा रहा है। शोपियां ज़िले में सेब के व्यापारियों पर सबसे ज़्यादा हमले किए गए थे और सभी ग़ैर-स्थानीय मज़दूरों और परिवहन कंपनियों को क्षेत्र में उनके काम को रोकने के लिए मजबूर कर दिया था। कई स्थानीय सेब व्यापारियों के अनुसार इस सब के चलते उन्हें व्यापार में भारी नुक़सान हुआ है। 

एक सेब व्यापारी, अब्दुल राशिद ने बताया की "एक बॉक्स के लिए परिवहन शुल्क पिछले साल के शुल्कों की तुलना में लगभग 100 रुपये अधिक हो गया है।"

बागवानी विभाग के एरिया मार्केटिंग ऑफ़िसर इनायतउल्लाह के अनुसार, कृषि और बागवानी विभाग के लगभग 40 अधिकारी इस वक़्त अगलार मंडी में काम कर रहे हैं। उन्हें क्षेत्र में 2,000 से अधिक पंजीकृत सेब उत्पादकों का निपटान करना है।

इनायतउल्लाह साहब ने कहा, "हमने अब तक 2.5 लाख सेब बॉक्सों का अधिग्रहण किया है। इसके लिए उचित दस्तावेज़ीकरण ज़रूरी है और हम वैसे भी सीधे उत्पादकों से ही ख़रीद रहे हैं।“

हालांकि, अगलार मंडी में भी पिछले दो हफ्तों से सभी नई खेपों को हाल-फ़िलहाल रोक दिया गया है।

एक स्थानीय फल उत्पादक ने शिकायत करते हुए कहा, “यह सामान्य समय से काफ़ी अधिक समय ले रहा है। हम एक हफ़्ते से इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन सूची में मेरा नाम अभी भी काफ़ी पीछे है।”

कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया, “शोपियां के उत्पादन को संभालने के लिए यह एक छोटा फल बाज़ार है, यही कारण है कि खेपों को रोक दिया गया है। नए माल को लाने के लिए या मेनटेन  करने के लिए कोई जगह नहीं है।“

कई लोगों का मानना है कि एमआईएस के माध्यम से बिक्री करना काफ़ी “थकाऊ” है लेकिन संकट के मद्देनज़र वे ठीक-ठाक मूल्य के साथ कम से कम थोड़ी राहत पाने में सक्षम हैं।

हालांकि यह राहत काफ़ी नहीं है। कई उत्पादकों के लिए सिर्फ़ इस साल की फसल ही एकमात्र समस्या नहीं है।

नवंबर की शुरुआत में हुई बर्फ़बारी ने पूरे कश्मीर में क़हर बरपा दिया था, कई सेब के बाग़ पूरी तरह से नष्ट हो गए थे, कुछ गंभीर रूप से और कई आंशिक रूप से तबाह हुए थे।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 8,000 करोड़ का सेब उद्योग कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता रहा है और बर्फ़बारी से 35 प्रतिशत पेड़ प्रभावित हुए हैं।

बाग़वानी विभाग के निदेशक, एजाज़ भट के अनुसार, "यह आंकलन अंदाज़े पर आधारित है।"

श्रीनगर से एक फल उत्पादक मोहम्मद सुल्तान, जो 100 से अधिक कनाल भूमि का मालिक है, ने कहा कि यह वर्ष "सबसे ख़राब" रहा है।

मोहम्मद सुल्तान कहते हैं, "बर्फ़ से होने वाली तबाही बड़े पैमाने पर हुई है और लगभग आधे पेड़ गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं।" उनके जैसे उत्पादकों के नुकसान करोड़ों में हैं।

शोपियां में एक अन्य उत्पादक ने दावा किया कि 30 कनाल भूमि में उसके सारे पेड़ पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं, पेड़ की शाखाओं को बर्फ़ के भारी वज़न के नीचे गिरा दिया था। उन्होंने कहा, "इस तरह के विनाश से उबरने में एक दशक से अधिक समय लगेगा।"

आधिकारिक अनुमान के अनुसार, कश्मीर में लगभग 2,13,000 हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जाता   रहा है, जिस पर लगभग 5.85 करोड़ पेड़ हैं। लगभग 4.56 करोड़ पेड़ पर फल लगते हैं और 1.29 करोड़ ग़ैर-फल वाले पेड़ हैं। सेब उद्योग, जो जम्मू-कश्मीर की कुल जीडीपी का लगभग 8 प्रतिशत है, वह 8.73 करोड़ मानव-दिवस का काम प्रदान करता है।

अपर्याप्त कोल्ड-स्टोरेज के कारण 2.30 लाख मीट्रिक टन की कमी है, वर्तमान में कोल्ड-स्टोरेज केवल एक लाख मीट्रिक टन ही रखने में सक्षम है जबकि मात्र 7,0000 मीट्रिक टन के लिए सुविधा तैयार करना पाइपलाइन में बंद है।

एमआईएस के तहत, सरकार ने अब तक 6 लाख सेब बॉक्स ख़रीदे हैं, जिनका वज़न लगभग 8,500 मीट्रिक टन है और इसकी क़ीमत लगभग 40 करोड़ रुपये है। हालाँकि, ख़रीद की तारीख़ को सरकार ने 15 फ़रवरी, 2020 तक यानी दो महीनों के लिए बढ़ा दिया है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Fall of Apple in Kashmir

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