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गलती लखनऊ नगर निगम की, ठीकरा मीट कारबारियों पर

यह केवल बूचड़खाने के मालिक की जीविका का ही सवाल नहीं है।
गलती लखनऊ नगर निगम की, ठीकरा मीट कारबारियों पर

आखिरकार बूचड़खाना चलाने वाले और मीट कारोबारी अपना कारोबार ही तो कर रहे हैं। अपना कारोबार करना संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत मिला मौलिक अधिकार है, जो संविधान ने भारत के नागरिकों को दिया है। यह केवल बूचड़खाने के मालिक की जीविका का ही सवाल नहीं है। मालिक के अलावा भी बूचड़खानों में काम करने वाले लोग होते हैं। बूचड़खानों के बंद होने से वे लोग बेरोजगार हो सकते हैं। इन दुकानों को लाइसेंस इस शर्त पर दी जाती है कि वे शहर को लगातार मीट की सप्लाई करेंगे। लिहाजा मीट दुकानों को बंद करना ठीक नहीं होगा। देश में बड़ी तादाद में लोग मांसाहारी हैं। उन्हें शाकाहारी बनने के बाध्य नहीं किया जा सकता। कोई क्या खाता है, वह इसका निहायत ही निजी मामला है। वह उसकी प्राइवेसी के अधिकार का एक हिस्सा है। संविधान के अनुच्छेद 21 में यह दर्ज है।

मिर्जापुर मोती कुरैश जमात ( 2008 एआईआर एससीडब्ल्यू 2117) के मामले में सुप्रीम कोर्ट

लखनऊ नगर निगम और दूसरे स्थानीय प्राधिकरणों के जिद्दी और दुराग्रही रवैये की वजह से 400 मीट दुकानदारों, बूचड़खानों और उनके कर्मचारियों के सामने जीविका का संकट पैदा हो गया। इस तथ्य के बावजूद कि इन दुकानों के मालिक  लगातार न सिर्फ अपने लाइसेंस के नवीकरण के लिए आवेदन करते रहे हैं बल्कि मशीनी बूचड़खानों की जरूरत पर भी जोर देते रहे हैं, इन दुकानों को बंद करने की कोशिश की जा रही है।

यह मामला ज्यादा गंभीर इसलिए है कि इसमें यूपी की निर्वाचित सरकार मनमाने तरीके से एकतरफा कार्रवाई कर रही है। उसे नियमों की कोई परवाह नहीं है। पुलिस के लोग बगैर किसी पड़ताल के मीट की दुकानों पर छापे मार रहे हैं। लगभग 90 फीसदी मीट दुकानें मुस्लिम कुरैश समुदाय के हैं। जिन मीट दुकानों के खिलाफ इस तरह की हिंसक और मनमानी कार्रवाई की जा रही है उन्हें नोटिस भी नहीं दिया जा रहा है।

28 मार्च को सबरंगइंडिया एडवोकेट गिरीश चंद्र की इस मामले में दाखिल की गई याचिका पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी। इसमें हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने प्रशासन से गंभीर सवाल पूछे थे।

सबरंगइंडिया के पास  इसकी एक प्रति है। उसे यहां पढ़ा जा सकता है। 27 मार्च को इस मामले में सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने जिला प्रशासन से पूछा था कि वह यह बताए कि लाइसेंसों का नवीकरण क्यों नहीं कर रहा है। इसके अलावा राज्य सरकार से मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का निर्देश कोर्ट के सामने पेश करने को कहा गया।

सबरंगइंडिया के पास यह विश्वस्त जानकारी है कि सीएम की ओर से ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है। मीट दुकानों को बंद करने के मामले में लखनऊ प्रशासन जिस मनमाने ढंग से काम कर रहा था उस पर कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई है। अवैध बूचड़खानों को बंद करने के अभियान की आड़ में प्रशासन मनमाने ढंग से मीट दुकानें बंद करने में लग गया था। लखनऊ नगर निगम से पूछा गया था कि वे लाइसेंसों का नवीकरण क्यों नहीं कर रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 3 अप्रैल को होगी।

चंद्रा के मुताबिक , गरीब मीट कारोबारियों को सरकार और शहर प्रशासन के खराब गवर्नेंस की वजह से भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी अधिसूचना में साफ कहा है कि नगर निगम को यूपी के सभी 300 से अधिक बूचड़खानों को लाइसेंस देना होगा। लेकिन निगम इनके लाइसेंस रीन्यू करने में नाकाम रहा है। उन्होंने न सिर्फ लाइसेंस ही रीन्यू नहीं किए बल्कि 2015 में खुद 412 मीट दुकानदारों की तरफ से एक याचिका दायर की थी। मकसद था कि बूचड़खानों के लाइसेंसों के नवीकरण का। लेकिन आज तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

याचिका में भारतीय संविधान की ओर से दिए गए संरक्षण के तहत कारोबार करने के अधिकार की पैरवी की गई है। कुरैशी समुदाय के 200 परिवार पिछले 250 साल से मीट कारोबार में है और लखनऊ की 15 लाख की आबादी को सेवाएं दे रहे हैं।

कानून का पालन करने वाले नागरिकों की तरह उन्होंने इस प्रक्रिया के तहत लाइसेंस नवीकरण का आवेदन दिया था। वर्ष 1959 से उन्होंने लगातार लाइसेंस नवीकरण के लिए आवेदन डाला है। वे सालाना  लाइसेंस फीस जमा कर रहे हैं। साल, 1959 से ही उन्होंने लाइसेंस के लिए मान्य शुल्क देते आए हैं और इसके नवीकरण के लिए लगातार आवेदन करते आए हैं। ये लाइसेंस 31 मार्च 2015 तक प्रभावी रहे। इसके बाद नगर निगम के दफ्तर में लाइसेंस नवीकरण के लिए लगातार कई आवेदन के बावजूद फरवरी के आखिरी सप्ताह और मार्च के पहले हफ्ते के बीच 1000 रुपये जमा करने के बावजूद लाइसेंस रीन्यू नहीं किए गए। याचिका देने वालों ने मैकेनाइज्ड और मॉडर्न स्लॉटरहाउस को समर्थन किया ताकि उनकी जीविका को संरक्षण मिलता रहे।

मॉर्डन स्लॉटरहाउस बनाने के लिए पांच हेक्टेयर की जमीन निर्धारित होने के बावजूद लखनऊ नगर निगम इस परियोजना को आगे बढ़ाने के प्रति गंभीर नहीं है। इस स्कीम का पूरा बजट 52 करोड़ रुपये था। लेकिन सरकार ने इसे आवंटित नहीं किया। इसके बाद इसने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में इसे बनवाने का वादा किया। लेकिन 2013 में सरकार ने यह योजना छोड़ दी।
 
मीट और चमड़े के इस कारोबार का अगर मशीनीकरण और आधुनिकीकरण नहीं हो सका है (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून और अदालतों के फैसलों के मुताबिक) इसके लिए पूरी तरह लखनऊ नगर निगम दोषी है।

याचिकादाताओं का कहना है कि अगर स्लॉटरहाउसों का आधुनिकीकरण नहीं हुआ है तो इसके लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। आधुनिकीकरण न होने का ठीकरा मीट कारोबारियों पर नहीं फोड़ा जा सकता। निगम के ढीले रवैये के वो जिम्मेदार नहीं हैं। इस मामले में दस लोग जिम्मेदार हैं। इन नामों में शामिल हैं- शहाबुद्दीन, रहनुमा, शाहदीन, हसन अहमद।

याचिका में मीट कारोबारियों ने आरोप लगाया है कि लखनऊ नगर निगम लाइसेंस नवीकरण के मामले को छह साल तक लटकाता रहा। याचिका में साफ कहा गया है कि इसके लिए मीट कारोबारियों को  दोषी नहीं ठहराया जा सकता। मीट कारोबारी तो आधुनिकीकरण योजना का हिस्सा बनना चाहते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
साल 1700 से जब से लखनऊ अवध के नवाब के संरक्षण में आबाद हुआ। उस समय अलग-अलग पेशे के लोगों के लिए अलग-अलग मोहल्ले बसाए गए। याह्यागंज बरतन बेचने वालों के लिए, गहनों का कारोबार करने वालों को लिए जौहरी टोला, मिट्टी के बरतन बनाने वालों के लिए कहार टोला बना। इसी तरह मीट, मछली और अंडों का काराबोर करने वाले लोगों के लिए मोहल्ला बिल्लौचपुरा बना। जहां कुरैशी समुदाय के 200 लोग इनका कारोबार करते थे। करीब 100 दुकानें बकरे, भैंस और मुर्गे का मांस बेचती थीं। जैसे-जैसे शहर बढ़ता गया तो अलग-अलग हिस्सों में 400 और मांस की दुकानें खुल गईं। 1857 में ब्रिटिश सरकार की ओर से अवध के नवाब को गद्दी से उतारने के बाद स्थानीय स्वशासन लखनऊ के बाहरी इलाके मोती झील में खाली जगह पर जानवरों के काटने की व्यवस्था की गई। यह जगह आबादी से दूर थी। इसके कुछ वक्त बाद वहां एक स्लॉटर हाउस बनाया गया। इसका प्रशासन स्थानीय स्वशासी सरकार के हाथ में था।

1959 में नगर निगम एक्ट बनने के बाद इस कानून की धारा 426 के मुताबिक उपयुक्त लाइसेंस देकर मीट के मांस की बिक्री का नियमन किया गया। धारा 426 में कहा गया है- जहां मुर्गे-मुर्गियां, बकरे, भैंसे और सूअर काटे और बेचे जाएंगे उन्हें मीट दुकान कहा जाएगा। और जहां इन जानवरों को सिर्फ काटा जाएगा उन्हें स्लॉटर हाउस कहा जाएगा। मीट दुकानें खोलने और चलाने और स्लॉटर हाउस के लिए अलग-अलग लाइसेंस की जरूरत होगी। सेक्शन 426  तहत कोई भी व्यक्ति नगर आयुक्त की अनुमति के बगैर किसी जानवर का मीट नहीं बेचेगा और न ही यहां किसी उत्पाद को खुला छोड़ेगा। इसका उल्लंघन करने वालों को नगर पालिका के अफसर या कर्मचारी यहां से हटा देंगे।

इसलिए 1959 से ही नगर निगम ने इसके लिए लाइसेंस बांटने शुरू किए। यह लाइसेंस एक साल के लिए मान्य होता है। इसके बाद शुल्क चुका कर लाइसेंस रीन्यू कराया जा सकता है। बहरहाल, प्रशासन से मिल कर इस मामले को सुलझाने के लिए कुरैशी समुदाय के लोगों ने कुरैश वेलफेयर फाउंडेशन के नाम से एक फाउंडेशन बनाया है।

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