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गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों में डिटेंशन सेंटर के लिए मैनुअल जारी किया

इस मैनुअल में कई विशेषताएं शामिल हैं जिसे असम के डिटेंशन सेंटर की स्थिति को लेकर याचिका दाखिल करने के बाद असम की राज्य सरकार ने शामिल किया था।
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रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय ने जनवरी में कार्यान्वयन और अनुपालन के लिए सभी राज्य सरकारों को ‘2019 मॉडल डिटेंशन मैनुअल’ जारी किया। हालांकि न्यूज़क्लिक इस मैनुअल की कॉपी को हासिल नहीं कर पाया है लेकिन मीडिया रिपोर्टों और लोकसभा में अतारांकित प्रश्न के उत्तर के आधार पर ऐसा लगता है कि इस मैनुअल में कई विशेषताएं शामिल हैं जिसे असम के डिटेंशन सेंटर की स्थिति के ख़िलाफ याचिका दाखिल करने के बाद असम की राज्य सरकार ने शामिल किया था। इससे जो समझा जा सकता है वह ये कि ये मॉडल डिटेंशन सेंटर अदालतों में गंभीर चुनौती से बचना चाहता है।

गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी द्वारा इस विषय पर दिए गए उत्तर के अनुसार, "अन्य विषयों के अलावा द मॉडल डिटेंशन सेंटर जनरेटर, पीने के पानी, स्वच्छता, बिस्तरों के साथ स्थान, रनिंग वाटर के सुविधा वाला उचित टायलेट व बाथरुम, कम्युनिकेशन और चिकित्सा सुविधाओं, रसोई और मनोरंजन की सुविधाओं के प्रावधान सहित मानवीय गरिमा के साथ जीवन के मानक को कायम रखने के लिए डिटेंशन सेंटर में सुविधाएं मुहैया कराने का आदेश देता है।"

ये कथन असम में डिटेंशन सेंटर के संबंध में याचिका को लेकर हुई कार्रवाई के कुछ रिकॉर्ड के समान लगता है जो चौंकाने वाला नहीं होना चाहिए। 20 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया जिसके एक हिस्से में केंद्र सरकार को एक डिटेंशन मैनुअल तैयार करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कहा गया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मैनुअल तैयार करने के लिए तीन महीने की मोहलत और देने का अनुरोध किया था जिसे बेंच ने खारिज कर दिया। यह मैनुअल जनवरी में राज्य सरकारों को भेजा गया था जो दर्शाता है कि केंद्र सरकार को वैसे भी तीन महीने लगे। यह कैसी विडंबना है कि असम में अनिश्चितकालीन हिरासत के खिलाफ एक याचिका ने पूरे भारत में डिटेंशन की प्रक्रिया को आसान बनाने वाले दस्तावेज को जन्म दिया है।

इसी प्रश्न के एक भाग के रूप में गृह राज्य मंत्री ने यह भी कहा कि 25 जून, 2016 तक असम में छह हिरासत केंद्रों में कुल 1,133 व्यक्ति थे। इनमें से 769 लोगों को एक साल से अधिक और 335 लोगों को तीन साल से अधिक समय के लिए हिरासत में लिया गया था।

इकोनॉमिक टाइम्स ने लिखा है कि इन राज्यों को डिटेंशन सेंटर स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार से विशेष अनुमति की आवश्यकता नहीं है। हालांकि जो चीज स्पष्ट नहीं है वह ये कि क्या डिटेंशन सेंटर को अनिवार्य रूप से स्थापित करना है या नहीं इसका मैनुअल में स्पष्ट उल्लेख नहीं है। फॉरेनर्स एक्ट, 1946 की धारा 3 (2) (ई) के अनुसार, केंद्र सरकार भारत में विदेशियों की आवाजाही को पूरी तरह से नियंत्रित कर सकती है। ऐसा लगता है कि ये शक्ति अब केंद्र सरकार और राज्यों के बीच साझा की जा रही है।

असम के डिटेंशन सेंटर से गायब हुई एक अन्य चीज यह है कि मैनुअल नए डिटेंशन सेंटर को जेलों में स्थापित करने की अनुमति नहीं देता है। यह असम के डिटेंशन सेंटर की सबसे बड़ी आलोचना की तरह है। इसके अलावा बंदियों को कांसुलर की व्यवस्था होगी और परिवारों से अलग नहीं किया जाएगा। उनका डिटेंशऩ तब तक होगा जब तक कि उन्हें कानूनन निर्वासित नहीं किया जा सकता। हालांकि इस प्रक्रिया में कितना समय लगेगा यह स्पष्ट नहीं है। इसका तात्पर्य यह है कि डिटेंशन सेंटर की स्थापना डिटेंशन के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में एक कदम है। विदेशियों से संबंधित कानूनों को लेकर भविष्य में संशोधन हो सकते हैं या नहीं इसका अभी इंतजार करना होगा। हालांकि असम में डिटेंशन सेंटर और फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल का अनुभव इस संबंध में किसी को बहुत उम्मीद नहीं देता है।

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