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गुजरात : किसानों ने किया बुलेट ट्रेन योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

महाराष्ट्र के पालघर के किसानों के बाद अब सूरत के किसान भी इस परियोजना के विरोध में खुले तौर पर आ गए हैं।
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image courtesy:DNA India.com

हर दिन गुज़रने के साथ ये बात स्पष्ठ होती जा रही है कि प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी बुलेट ट्रेन योजना को लेकर गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों  में असंतोष बढ़ता जा रहा है। महाराष्ट्र के पालघर के किसानों के बाद अब सूरत के किसान भी इस परियोजना के विरोध में खुले तौर पर आ गए हैं। सोमवार को गुजरात के सूरत ज़िले से करीब 200 किसान इस परियोजना का विरोध करने राज्य की राजधानी में आये और कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। हाल ही में सरकार ने ज़मीन अधिग्रहण से सम्बंधित एक निर्देश जारी किया सूरत ज़िले के 15 गाँव से आये ये किसान इसी का विरोध कर रहे थेI गाँववालों के मुताबिक इलाके के 21 गाँवों की 110 हैक्टेयर ज़मीन ली जाने की योजना है और वे इसी का विरोध कर रहे हैं।  किसानों ने सरकारी फ़रमान के 14 मुद्दों पर एतराज़ जताया। 
 
किसान नेताओं ने बताया कि गाँवों के लोगों से उनकी ज़मीन लेने के लिए कोई इजाज़त नहीं ली गयी और न ही उनके साथ बैठकर मुआवज़े की कोई रकम तय की गयी। उन्होंने कहा कि कानूनी तौर पर स्थानीय लोगों के साथ बैठकर मुआवज़े की रकम ज़मीन के बाज़ार मूल्य के हिसाब से दी जानी चाहिए। इसके आलावा  किसान नेता जयेश पटेल ने ये दावा भी किया कि नोटिफिकेशन देने से पहले अनिवार्य पर्यावरण प्रभाव आंकलन और सामाजिक प्रभाव आंकलन भी नहीं किया गया है। 
 
गौरतलब है कि 9 अप्रैल को गाँधीनगर में The National High Speed Rail Corporation (NHSRC), जिसे इस योजना का ज़िम्मा दिया गया है, ने किसानों  के साथ इस मुद्दे पर बात करने के लिए एक मीटिंग रखी थी।  लेकिन किसानों का कहना  है कि इस मीटिंग की सूचना उन्हें नहीं दी गयी थी और जब उनमें  ये कुछ  लोग वहाँ पहुँचे तो उनसे मुआवज़े की बात की गयी थी और वह भी बाज़ार मूल्य से बहुत काम था।  गुजरात के भूमि अधिग्रहण कानून पर  बात करते हुए किसान नेता जयेश पटेल ने कहा कि, “2016 में गुजरात सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में कुछ बदलाव किये और वह एक नया एक्ट लाई जिसमें ज़मीन लेने के लिए किसानों की मर्ज़ी की ज़रुरत नहीं होगी और ज़मीन को ज़बरदस्ती लिया जा सकता हैI इसके उलट महाराष्ट्र में किसानों की मर्ज़ी होने पर ही ऐसा किया जा सकता हैI एक ही परियोजना के लिए दोनों राज्यों की सरकारें भूमि अधिग्रहण अलग-अलग कानूनों के हिसाब से कर रही हैंI सरकार द्वारा किसानों की रोज़ी छीन ली जाएगीI राज्य सरकार ने वलसाड और नवसरी के गाँवों में ज़मीन नापना शुरू कर दिया है किसान इसका विरोध कर रहे हैंI”
 
यही वजह है कि  भूमि अधिग्रहण के इस मामले में किसानों की दलील है कि क्योंकि बुलेट ट्रेन का रूट गुजरात, दादर और नगर हवेली से महाराष्ट्र तक का होगा इसीलिए यहाँ गुजरात का भूमि अधिग्रहण कानून लागू नहीं होगा बल्कि केंद्र का भूमि अधिग्रहण 2013 कानून लागू होगा। उनका ये भी आरोप है कि उनकी उपजाऊ ज़मीन का अधिग्रहण करने की कोशिश की जा रही है जो  खाद्य सुरक्षा अधिनियम का उल्लंघन  है।
 
इस परियोजना के लिए गुजरात,  दादर और नागर हवेली और महाराष्ट्र  से कुल 1400 हैक्टेयर ज़मीन  की ज़रुरत पड़ेगी।  जिसमें  से गुजरात से 850 हैक्टेयर ज़मीन और महाराष्ट्र  से 353 हैक्टेयर  ज़मीन  ली जाएगी। न्यूज़क्लिक ने इस परियोजना के शुरू होने पर एक विश्लेषण किया था, जिसमें बताया गया था कि ये देश के लिए एक आर्थिक विपदा हो सकती हैI मुंबई से अहमदाबाद HRS परियोजना की कुल कीमत 1.1 लाख़ करोड़ हैI इसमें से जापान 50 सालों के लिए 0.5% की ब्याज दर पर 88,000 करोड़ का ऋण देगा और इसका भुगतान ज़रुरत पड़ने पर 15 साल बाद शुरू होगाI प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये गए दावे कि ये परियोजना मुफ्त है पर विशेषज्ञों ने कहा है कि 20 सालों के दौरान भुगतान की कीमत बढ़कर 1.5 लाख करोड़ हो जाएगी I रिपोर्ट में ये भी लिखा था कि ये परियोजना बहुत ही ज़्यादा महँगी होगी, इसकी तुलना यूरोप से करने करें तो प्रति किलोमीटर की कीमत 27 मिलियन डॉलर होगी, जो यूरोपीय कीमत के तो बराबर है लेकिन चीन की प्रति किलोमीटर कीमत से ज़्यादा है I     
 
गुजरात के किसानों के आलावा इस परियोजना  का महाराष्ट्र के किसान भी विरोध कर रहे हैं।  17 मई  को महाराष्ट्र  के ठाणे और पालघर ज़िलों  के विभिन्न  गाँवों 1000 आदिवासी किसान मुंबई के आज़ाद  मैदान  में उनकी ज़मीन  ज़बरदस्ती लिए जाने के खिलाफ इक्कठा हुए।  उनका आरोप है कि नवंबर में महाराष्ट्र  के राज्यपाल ने एक नोटिफिकेशन जारी किया जिसमें ये कहा गया था कि अब आदिवासी इलाकों में लोगों की ज़मीन लेने  के लिए ग्राम सभा की अनुमति नहीं चाहिए होगी।  आदिवासियों का आरोप है कि  ये Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act (PESA), 1996 को कमज़ोर करके उनकी ज़मीन ली जाने की साज़िश है। इसी के बाद से ज़मीन  पर कब्ज़े  की प्रक्रिया शुरू की गयी थी।
 

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