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ई-श्रम पोर्टल में ‘गड़बड़ियों’ से असंगठित क्षेत्र के कामगारों के रजिस्ट्रेशन-प्रक्रिया पर असर
ट्रेड यूनियनों का कहना है कि इस पोर्टल की “बड़ी तादाद में ट्रैफिक को संभालने” की क्षमता नहीं है और इसमें कुछ पेशागत श्रेणियांमसलन ‘घरेलू-आधारित’ और ‘गिग एवं प्लेटफार्म’ कामगारों का उल्लेख भी नदारद हैं।
रौनक छाबड़ा
22 Sep 2021
Janpahal
जनपहल द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक रजिस्ट्रेशन शिविर। चित्र सौजन्य-विशेष प्रबंधन 

नई दिल्ली: अनौपचारिक श्रम बल के लिए अति विलंबित राष्ट्रीय डेटाबेस की शुरुआत के तीन हफ्ते से अधिक समय हो गया है तो केंद्र अपने इस पंजीकरण पोर्टल-ई-श्रम की तरफ कामगारों के "काफी ध्यान" दिए जाने को लेकर अपनी पीठ थपथपा रहा है। हालांकि, ट्रेड यूनियनों एवं कामगारों के समूहों का कहना है कि असंगठित क्षेत्र के कामगारों को पोर्टल में रुकावट और उसकी धीमी रफ्तार की गड़बड़ियों के साथ-साथ अनेक अन्य परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं।

केंद्रीय श्रम मंत्रालय की तरफ से रविवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार नेशनल डेटाबेस ऑफ अनऑर्गनाइज्ड वर्कर्स (एनडीडब्ल्यूयू) को 26 अगस्त के दिन आरंभ किए जाने के बाद से ई-श्रम पोर्टल पर एक करोड़ से अधिक कामगार अपना पंजीकरण करा चुके हैं।

मंत्रालय का कहना है कि इनमें से 43 फीसदी महिला कामगार हैं और 57 फीसदी पुरुष हैं। अब तक के पंजीकरण में बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कामगार तादाद में सबसे अधिक हैं। 

हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा रविवार को जारी किए गए आंकड़ों में उन कठिनाइयों का कोई उल्लेख नहीं है, जो ट्रेड यूनियनें एव कामगारों के समूह झेल रहे हैं। ये समूह अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों, खास कर अप्रवासी कामगारों को ई-श्रम पोर्टल में उनके पंजीकरण के काम में मदद कर रहे हैं। 

इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी बाधा “भारी ट्रैफिक को संभालने” में डिजिटल पोर्टल की तकनीकी सीमा है। फिर पोर्टल में कुछ निश्चित व्यावसायिक कोटियों, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है, ‘घरों में काम करने वाले’ एवं ‘गिग तथा प्लेटफार्म कामगारों’ की श्रेणियों का उल्लेख नहीं किया गया है। 

र्मेंद्र कुमार, जो दिल्ली स्थित गैर सरकारी संगठन जनपहल से संबद्ध हैं,  कहते हैं, “जो कामगारों के पंजीकरण में सहयोग कर रहा है“पंजीकरण अभियान का पहला हफ्ता तो ‘लगभग बरबाद’ चला गया क्योंकि पोर्टल का सर्वर “पूरे सप्ताह में अधिकतर समय तो ठप ही पड़ा रहा।”

कुमार ने न्यूजक्लिक से कहा, “दूसरे हफ्ते के बाद ही चीजें सुधरनी शुरू हुईं और इसके अंत तक साधारण सेवा केंद्रों (सीसीएस) के कामगारों के पंजीकरण के लिए बायोमीट्रिक फिंगरप्रिंट स्कैनर के साथ बेहतर इंतजाम किया गया।” 

कामगार खुद का पंजीकरण कराने के लिए ई-श्रम के मोबाइल फोन एप्लीकेशन या वेबसाइट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। वे सीएससी, राज्य सेवा केंद्र, श्रम सुविधा केंद्रों, देश भर में फैले डाक विभाग के डिजिटल सेवा केंद्रों के चुनिंदा डाकघरों में भी अपना पंजीकरण करा सकते हैं। 

जनपहल ने अन्य जगहों में राष्ट्रीय राजधानी में 180 स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया है जिन्हें वे ‘श्रम सेना’ कहते हैं। ये शहर के विभिन्न हिस्सों में शिविर लगा कर उन कामगारों को पंजीकरण में सहायता दे रही है, जिन्हें इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी नहीं है और जिनके पास स्मार्टफोन नहीं हैं।

कुमार कहते हैं, “किन्हीं-किन्हीं दिन हमने एक कैंप में लगभग 100 कामगारों का पंजीकरण कराया है, लेकिन दूसरे दिन एक भी कामगार का पंजीकरण नहीं हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है इस पोर्टल को बड़ी तादाद में ट्रैफिक को संभालने के लिए सही तरीके से नहीं बनाया गया है।।”

कुछ ऐसी ही चिंता लता की हैं, जो दिल्ली की स्वरोजगार महिला संघ (सेवा) से संबद्ध हैं। महिला ट्रेड यूनिन के एक हिस्से के रूप में सेवा, पूरे शहर में स्थापित अपने नौ ‘सेवा शक्ति केंद्रों’ पर असंगठित क्षेत्र के कामगारों के पंजीकरण में सहायता देती है। 

लता न्यूजक्लिक से कहती हैं कि अगर यह पोर्टल सुचारु रूप से चले तो पंजीकरण की प्रक्रिया में 10-15 मिनट से अधिक का समय नहीं लगता है। दिक्कत तब होती है, जब पोर्टल ठीक से काम नहीं करता है, “और ऐसा ज्यादातर किसी भी दिन होता है।” उन्होंने कहा कि “यह बहुत परेशान करने वाला है, खास कर असंगठित कामगारों के लिए क्योंकि उन्हें दूसरी बार पंजीकरण के प्रयास तक इंतजार करने के लिए मनाना काफी कठिन होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें मजदूरी के कुछ हिस्से का नुकसान उठाना होता है।”

सेवा का फिलहाल ध्यान राष्ट्रीय राजधानी में घरेलू कामगारों, फेरीवालों और घर-आधारित कामगारों का असंगठित क्षेत्र के कामगारों के डेटाबेस में नाम दर्ज कराने पर है। 

महिलाओं की यूनियन की दूसरी समस्या यह कि पोर्टल में किसी व्यावसायिक कोटि का उल्लेख न होना है, जैसे कि घर-आधारित कामगार, जिसके तहत ई-श्रम पोर्टल में पंजीकरण कराया जा सकता है।

लता कहती हैं, “हां, पोर्टल में कुछ विशेष श्रेणियां दी गई हैं, जैसे ‘दर्जी’ या ‘कशीदाकारों’ एवं अन्यों पेशों की, लेकिन कुल मिला कर इस रूप में डेटाबेस घर-आधारित कामगारों, जो विविध तरीके के पेशे में हैं, उनके बड़े हिस्से को अपने दायरे से बाहर कर दिया गया है।”

तेलंगाना से मिलों दूर बैठे शेख सलाऊद्दीन को भी पंजीकरण प्रक्रिया के बारे में शिकायत थी। उनके अनुसार, एनडीडब्ल्यूयू के मौजूदा मॉड्यूल में ‘गिग या प्लेटफार्म वर्कर्स’ को शामिल नहीं किया गया है। ऑटोमोबाइल एवं परिवहन भाग के केवल ‘मोटरसाइकिल चालक’ या ‘कार, टैक्सी एवं वैन चालकों’ की श्रेणियां दी गई हैं। 

इंडियन फेडरेशन ऑफ एप्प-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (आइएफएटी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कहना है, “इस तरीके से गिग एवं प्लेटफार्म वर्कर्स का पंजीकरण गिग अर्थव्यवस्था में मौजूदा श्रम प्रबंधन की शिकायतों को छिपा देगा। यह मामला उनके कामों की पहचान के साथ जुड़ा है।” वे यह भी कहते हैं कि इस मसले को उन्होंने हालिया आयोजित सार्वजनिक वेबिनार के दौरान श्रम मंत्रालय के अधिकारियों के समक्ष रखा था। 

अधिकतर ट्रेड यूनियनों एवं संगठनों की दूसरी चिंता इस पंजीकरण से आधार से अनिवार्यतः लिंक किए जाने की। जनपहल के कुमार कहते हैं,“अधिकतर कामगारों के मोबाइल फोन नम्बरों से उनके आधार नहीं जुड़े हैं, इसलिए उनके आधार प्रमाणित नहीं हो पा रहे हैं।” 

कुमार कहते हैं, “हालांकि ऐसे मामलों में कामगार सीएससी जा सकते हैं, जहां उपलब्ध बायोमीट्रिक फिंगरप्रिंट स्कैनर से अपनी प्रामाणिकता पूरी कर सकते हैं, लेकिन वह केवल हमारे जैसे श्रमिकों के निकायों को अधिक से अधिक श्रमिकों को पंजीकृत कराने के काम को सीमित करता है।”

आइएफएटी के अध्यक्ष सलाऊद्दीन ने भी ई-श्रम पोर्टल के साथ कामगारों के डेटा की सुरक्षा का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि इसकी सुरक्षा के बारे में श्रम मंत्रालय की तरफ से अभी तक कोई आश्वासन नहीं दिया गया है। इस मसले को अन्य श्रम विशेषज्ञों ने भी उठाया है। 

श्रम मंत्रालय की रविवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया गया है कि ई-श्रम पोर्टल में पंजीकृत हुए कामगारों में अधिकतर खेती एवं निर्माण क्षेत्र के हैं। 

अखिल भारतीय कृषि कामगार संघ (एआइएडब्ल्यूयू) ने कहा कि सरकार के अपने आंकड़े दिखाते हैं कि पूरे देश में खेतिहर कामगारों ने पंजीकरण प्रक्रिया का “स्वागत” किया है, लेकिन केवल डेटाबेस बनाना ही काफी नहीं है। 

सिंह कहते हैं, “खेतिहर कामगारों की सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए अवश्य ही एक ठोस प्रस्ताव होना चाहिए। इसकी गैरहाजिरी में, डेटाबेस का अपने आप में बहुत ही कम उपयोग है।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) से संबद्ध राजधानी भवन निर्माण कामगार संघ के सिद्धेश्वर शुक्ला ने सोमवार को न्यूजक्लिक से कहा कि ई-श्रम पोर्टल में कामगारों के पंजीकरण कराने का काम राजधानी में यूनियन के 20 कैंपों में चलाया जा रहा है। निर्माण कार्यों में लगे कामगारों की यूनियन सीटू से संबंधित अन्य निकायों से तालमेल कर विभिन्न क्षेत्रों के असंगठित कामगारों के पंजीकरण के लिए 25 से 35 और कैंप शुरू करने की योजना बना रही है। 

शुक्ला ने आगे कहा, “हालांकि यह देखना महत्त्वपूर्ण है कि सरकार इस डेटा के साथ आगे क्या करती है।” उनसे यूनियन की मांग के बारे में पूछे जाने पर शुक्ला ने कहा कि समय की मांग है कि कल्याण बोर्ड से असंगठित कामगार क्षेत्रों की स्कीम के तहत निर्माण क्षेत्र के कामगारों को जो कुछ अभी मिलता है उन “लाभों को बढ़ा कर 16 कर दिया जाए। इनमें अन्य लाभों के अलावा, चिकित्सा सहायता एवं मातृत्व अवकाश प्रदान करना भी शामिल हैं।

शुक्ला कहते हैं, “हम केंद्र सरकार से उसकी पेंशन स्कीमों (जैसे, प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना) में अपनी हिस्सेदारी और बढ़ाने की भी मांग कर रहे हैं, लेकिन कामगारों के भुगतान के बिना ही। दिहाड़ी मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने के लिए एक अर्ध-न्यायिक निकाय भी अवश्य होना चाहिए।” ये सारे प्रयास सामूहिक रूप से असंगठित कामगारों की सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के समग्र दृष्टिकोण की तरफ ले जाएंगे।” 

नरेन्द्र मोदी सरकार दावा करती है कि राष्ट्रीय डेटाबेस का इस्तेमाल असंगठित क्षेत्रों की असंख्य सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं में किया जाएगा। इसी लाइन में, श्रम मंत्रालय ने इस साल के अंत तक पूरे देश में असंगठित 380 मिलियन कामगारों के पंजीकरण का लक्ष्य रखा है-यद्पि उसने यह काम सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जुलाई में हड़ाकाए जाने के बाद ही शुरू किया गया है। न्यायालय ने प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण के लिए उक्त पोर्टल को चालू करने में सरकार के टालमटोल को "अक्षम्य उदासीनता" करार दिया था। 

हालांकि, अभी तक कामगारों के लिए इस तरह के प्रोत्साहन अधिक नहीं हैं। पंजीकरण के साथ ही, ई-श्रम कार्ड भी कामगारों को दिए जा रहे हैं, जिसमें 12 अंकों का एक नम्बर है। यह नम्बर पोर्टल के साथ पंजीकृत हुए हरेक कामगार को आकस्मिक बीमा योजना के तहत मिलेगा। इसके अंतर्गत 1 लाख रुपये उनके आंशिक अपंगता होने पर एवं 2 लाख रुपये पूर्ण अपंगता होने या उनकी मृत्यु की स्थिति में दिया जाएगा।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

https://www.newsclick.in/glitches-e-SHRAM-portal-mar-process-registration-informal-workers

e-SHRAM
Ministry of Labour and Employment
Informal sector workers
trade unions

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