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रोटी के लिए जद्दोजहद करते खाना पहुंचाने वाले हाथ

नई श्रम सुधार संहिता के दायरे में गिग वर्कर्स को लाए जाने और उन्हें सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्रदान करने के बावजूद फुड डिलीवरी कर्मचारियों का शोषण बदस्तूर है, खासकर महामारी के बाद से। समृद्धि साकुनिया लिखती हैं कि संहिता को अब तक लागू नहीं किए जाने से इन कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय लगता है। 
रोटी के लिए जद्दोजहद करते खाना पहुंचाने वाले हाथ

श्रम सुधारों की शुरुआत करने के अपने सबसे बड़े प्रयासों में एक में संसद ने मजदूरी संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, पेशेगत सुरक्षा संहिता, स्वास्थ्य एवं काम की परिस्थितियों संबंधी संहिता एवं सामाजिक सुरक्षा की संहिता (सीएसएस) को पारित कर दिया है। 

लोकसभा ने देश के गिग वर्कर्स (ये स्वतंत्र रूप से ठेके पर, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए, ठेका फर्म में काम करने वाले या कॉल पर काम के लिए उपलब्ध कर्मचारी और अस्थायी कर्मचारी हैं।) को श्रम सुधार के दायरे में लाने और उन्हें कुछ मायनों में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के प्रयास में 23 सितम्बर 2020 को सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक पारित किया था। 

हालांकि सरकार ने अभी तक विधेयक को अधिसूचित नहीं किया है और इसके बारे में राज्यों को कोई दिशा-निर्देश भी नहीं दिया है। संहिता के नियमों के लिए बनाए गए मसौदे में  दिव्यांगता के दायरे समेत, दुर्घटना-बीमा, स्वास्थ्य एवं मातृत्व लाभों, और सामाजिक सुरक्षा कोष में कंपनियों के योगदान को भी शामिल किया गया है।  

चूंकि श्रम को संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है, इसलिए केंद्र और राज्य, दोनों सरकारें ही श्रम संबंधी कानून बना सकती हैं। राज्य सरकारें कर्मचारियों की भविष्य निधियों, रोजगार दुर्घटना लाभों,  उनके रहने के लिए आवास, उनके बच्चों के लिए शैक्षणिक योजनाएं और वृद्ध जनों की सहायता के लिए ओल्ड एज होम के बारे में भी कानून बना सकती हैं और उन्हें अधिसूचित कर सकती हैं। 

संहिता को पढ़ने के बाद, यह तो बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि बिल में ओवरलैप है क्योंकि इसमें गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सटीक तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है। ऐसा मालूम होता है कि सरकार ने मौजूदा मसले पर खूब सोच-विचार किए बिना और इस पर बाजार के धुरंधरों से पर्याप्त चर्चा किए बिना ही बिल को हड़बड़ी में पेश कर दिया है।

ऐप आधारित गिग वर्कर्स ने इस बिल की कुछ धाराओं का विरोध करते हुए श्रम मंत्रालय को एक लिखित प्रतिवेदन दिया था, जिसमें बिल को लेकर अपनी चिंताएं जताई थी और यह उम्मीद की थी कि सरकार इसमें अनुकूल बदलाव करेगी। ऐप आधारित इन कामगारों ने अपने प्रतिवेदन में बिल की खामियों को उजागर किया था, जैसे कि कामगारों की उम्र को लेकर, जिसके तहत वे सामाजिक सुरक्षा के लाभों का उपभोग कर सकते हैं। 

इसके अलावा,  मसौदे में उल्लिखित धारा 114(7)(ii) सरकार को अपने विशेषाधिकार रखने की इजाजत देती है, जिसके तहत वह प्लेटफार्म वर्कर्स के सामाजिक सुरक्षा कोष में सेवा समूह केंद्र (अग्रगेटर) को योगदान करने से छूट दे सकती है। फेडरेशन इस नियम को लेकर अपनी चिंताएं जताता रहा है और इस संदर्भ में प्रावधान स्पष्ट करने की मांग करता रहा है जिससे कि सेवा समूह केंद्र को श्रमिकों के प्रति अपने दायित्व से पल्ला झाड़ने से रोका जा सके। 

संहिता में गिग वर्कर्स को “परम्परागत नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों” के दायरे से बाहर कमाने वाले एक कर्मचारी के रूप में परिभाषित करने और उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ मुहैया कराए जाने के बावजूद जोमैटो एवं स्विगी जैसे ऑनलाइन फुड प्लेटफार्मस के कर्मचारियों के हालात नहीं बदले हैं। इसके अलावा, संहिता, नियोक्ता को यह छूट भी देती है कि वह कर्मचारियों को जब जी चाहे काम पर रखे और जब मन करे उन्हें निकाल बाहर करे। 

चूंकि संहिताओं पर अभी तक अमल नहीं किया गया है, लिहाजा महामारी में बुरी तरह बर्बाद हो चुके रेस्टोरेंट के कारोबार में कर्मचारियों का शोषण बढ़ गया है। इसके अलावा, डिलीवरी एक्जक्यूटिव फुड डिलीवर करने वाली कंपनियों के मानदेय के मानकों में किए गए फेर-बदल का भी बुरा असर पड़ा है। 

फूड डिलीवरी बिजनेस में सबसे बड़े कारोबारी, जिन्होंने छोटी-छोटी कंपनियों पर कब्जा कर लिया और बाजार को समाहित कर लिया है, वे अपने कर्मचारियों को बहुत कम भुगतान कर रहे हैं। फूड डिलीवर कर्मचारियों की औसत मासिक आमदनी 20-22 हजार रुपये से घटकर महज 10,000 रुपये मासिक हो गई है।   इस उद्योग में रोजगार की अल्प सुरक्षा और काम छूटने की ऊंची दर के चलते, इन कर्मचारियों को अपना भविष्य घुप्प अंधकारमय लगता है।

स्विगी में काम करने वाले एक डिलीवरी एक्जीक्यूटिव ने कुछ दिन पहले ट्वीट कर बताया कि प्रति डिलीवरी वह कितना अर्जित करता है और उसे अपने जीवन निर्वाह के लिए ग्राहकों से अनुरोध करना पड़ा था।  उसका टि्वटर हैंडल @SwiggyDEHyd अब मिटा दिया गया है। जोमैटो से जुड़े एक डिलीवरी एग्जीक्यूटिव ने  उसके समर्थन में ट्वीट किया जिसमें उसने बताया कि दूरदराज के इलाकों में डिलीवरी करने के बावजूद  वह कितना कम कमा पाता है।  

टि्वटर प्रोफाइल और उस पर किए गए ट्वीट की तरफ स्विगी के उपभोक्ताओं का बरबस ध्यान गया। तब इन ग्राहकों ने कंपनी से कहा कि वे अपने कर्मचारियों का वेतन भुगतान बेहतर करें। इसके कुछ दिन पहले, आरजे सायेमा (RJ Sayema) ने  स्विगी और जोमैटो से अपनी नीतियों को बदलने तथा कर्मचारियों को बेहतर भुगतान करने की मांग के साथ अपने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया था। 

एक दूसरे टि्वटर हैंडल DeliveryBhoy के मालिक जिन्होंने खराब कार्य संस्कृति के चलते स्विगी को छोड़ दिया था, वे फूड डिलीवरी एग्जीक्यूटिव के अल्प वेतन और उनके शोषण का मुद्दा उठाते हुए लगातार ट्वीट कर रहे हैं।

इस लेखक ने फूड डिलीवरी करने वाले उन कुछेक युवाओं से बातचीत की, जो न्यूनतम वेतन और खराब कार्य संस्कृति के बारे में ट्वीट करते रहे हैं. 

डिलिवरी ब्वॉय ( Delivery Bhoy)

इस ट्विटर हैंडल के मालिक, जिन्होंने स्विगी में “पीठ तोड़ देने वाले काम के हालात एवं कृतघ्न ग्राहकों ’’ से आजिज हो कर मई में स्विगी छोड़ दिया था और जोमैटो ज्वाइन कर लिया था, उन्होंने कहा,“ इस कंपनी में काम की परिस्थितियां अकल्पनीय रूप से अमानवीय हैं।  मैं नहीं जानता कि किस तरह यह मानवाधिकार संगठन की जांच से अब तक बची हुई है।” 

इस कर्मचारी ने इन डिलीवर ब्वॉय के बुनियादी मानवाधिकारों के बारे में लोगों को और फूड डिलीवरी कंपनियों को अवगत कराने के लिए हाल ही में ट्विटर पर विज्ञापन देना शुरू किया है। हालांकि जोमैटो की नीति के मुताबिक, डिलीवरी ब्वॉय मीडिया से बातचीत नहीं कर सकते।

“स्विग्गी ने अपने डिलीवरी कर्मचारियों को धोखा देने के लिए एक नया तरीका इजाद किया है। इसके अनुसार, अगर कोई कंपनी का डिलिवरी ब्वॉय निश्चित रकम तक उपार्जित नहीं कर पाता है तो उन्हें रोजाना के कारोबार पर दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि (इंसेंटिव) नहीं मिलेगी। मेरे जोन में 375 रुपये की आमदनी पर 100 रुपये और 650 रुपये की कमाई करने पर 200 रुपये प्रोत्साहन बतौर दिया जाता है,” उसी कर्मचारी ने बताया।

स्विगी के इस पुराने कर्मचारी के मुताबिक, जोमैटो के पास एक “जटिल” प्रणाली है, जो तय करती है कि फूड को किस प्रकार तेजी के साथ उनके ग्राहकों तक डिलीवर किया जा सकता है।  उन्होंने बताया,“ एक बार मिठाई की शौकिन एक उम्रदराज महिला ग्राहक ने मुझे फोन किया, जब मैं उनको डिलीवर किए जाने वाला भोजन को एक जगह इकट्ठा कर ही रहा था। उस महिला ने कहा, ‘बेटा, जरा धीरे-धीरे बाइक चलाते हुए आना।’मेरा तो मन हुआ कि फटाक से कह दूं कि यह मेरे वश का नहीं है। लेकिन उनके मुलायम लहजे ने मुझे पिघला दिया। फिर मैंने जवाब दिया,‘हां आंटी, मैं धीरे-धीरे बाइक चलाऊंगा।’” 

उन्होंने जोमैटो के ग्राहकों के साथ हुए अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि डिलीवरी करने वाले लड़कों के साथ पूर्वाग्रह तो स्पष्ट दिखता है। “आप इतनी अच्छी इंग्लिश कैसे बोल पाते हैं? आप वैसे तो नहीं लगते...वे इस वाक्य को कभी पूरा नहीं करते।  मैं ग्राहकों के इन सवालों को और उनकी प्रतिक्रियाओं को सुनते-सुनते थक गया हूं।”

स्विगी ने जवाब दिया आरोपों का

कर्मचारियों के खुद के शोषण के बारे में ट्विटर पर लगातार टिप्पणियां आने के  बाद, हजारों लोगों ने स्विगी से इस बारे में कैफियत तलब की और कर्मचारियों को बेहतर भुगतान करने की मांग की।

स्विगी ने एक वक्तव्य जारी कर कहा,“ दुर्भाग्य से सोशल मीडिया पर शेयर किए जाने वाले भुगतान के ब्योरे चुनिंदा हैं और इनमें भुगतान के बड़े हिस्से, जैसे इंसेटिव को शामिल नहीं किया गया है। जबकि किसी खास डिलीवरी का भुगतान उसके गंतव्य स्थान, समय एवं अन्य कारकों पर निर्भर करता है, पर हैदराबाद में पिछले महीने हमारा औसत भुगतान हरेक ऑर्डर पर 65 रुपये होता था। हालांकि इसी में बेहतर प्रदर्शन करने वाला कर्मचारी 100 रुपये भी कमा लेता था।”

स्विगी ने दावा किया कि ऊपर दी संख्या उस राशि की है जो ग्राहकों द्वारा डिलीवरी करने गए गए व्यक्ति को ग्राहकों द्वारा दी जाती है। यह पूरी की पूरी सीधे डिलीवरी पार्टनर को मिलती है।

जोमैटो  का जवाब

लीफलेट ने इस मामले को जानने के लिए जोमैटो के मार्केटिंग हेड से संपर्क किया।  उसके सीईओ दीपिंदर गोयल ने कहा, “हमने काम की परिस्थितियों में सुधार लाने के लिए कई पहलें की हैं, जैसे कि कर्मचारियों के भुगतान के ढांचे में सुधार किया है, नगदी की सीमा को बढ़ाया है और उन्हें बीमा के बेहतर लाभ दिए हैं।” 

Swiggy DEHyd

स्विगी ने कहा कि महामारी ने गिग वर्कर्स पर कड़ी चोट की है। “ कोविड-19  के पहले हमारा भुगतान का ढांचा बढ़िया था। स्विगी 10 किलोमीटर दूरी के फुड आर्डर की डिलीवरी पर 130 रुपये का भुगतान करती थी। जितनी दूर तक हम फूड डिलीवर करते थे, उनकी भुगतान दर भी ऊंची होती थी। हमें प्रति आर्डर कम से कम 35 रुपये मिलते थे, साप्ताहिक और मासिक प्रोत्साहन राशि के अलावा।”

कोविड-19 बाद, स्विगी ने अपना भुगतान घटा दिया। उन्होंने कहा, “हमारा भुगतान कम हो गया। साप्ताहिक और महीने पर दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि में कटौती कर दी गई है। अब हमें 1 किलोमीटर पर मात्र 6 रुपये और 10 किलोमीटर की दूरी पर 60 रुपये मिलते हैं। एक आर्डर पर न्यूनतम भुगतान भी 20 रुपये हो गया है।” 

यह पूछने पर कि स्विगी ने उनकी शिकायत पर क्या जवाब दिया, उन्होंने कहा कि कंपनी ने उन्हें झूठा करार दिया। “अधिकतर डिलीवरी एक्जक्यूटिव ट्वीटर हैंडल करना नहीं जानते तो कुछ इस डर से कम्पनी के विरुद्ध नहीं बोलते कि कहीं उनकी नौकरी न चली जाए, जो समझने में आने वाली बात है।” 

डिलीवरी एग्जीक्यूटिव के पास शिकायत करने का कोई विकल्प नहीं होता, यहां तक कि टिप्स के गंव जाने की शिकायत का भी विकल्प नहीं होता। एक बार एक कस्टमर ने 30 रुपये का टिप दिया, लेकिन मेरे अकाउंट में वह नहीं दिखा। जब मैंने इसकी रिपोर्ट करने की कोशिश की, तो वहां कोई ऑप्शन ही नहीं था।  यहां तक कि हम मिसिंग टिप्स के बारे में भी कोई शिकायत नहीं कर सकते।” 

स्विगी के गौर करने के लिए कहते हुए एक डिलीवरी एग्जीक्यूटिव ने ट्वीट किया था: “मैं यही कह सकता हूं कि हम में से अधिकतर स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर इसी पेशे में आए  हुए हैं। हम मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में, प्रदूषित वातावरण में, दुर्घटना के जोखिम उठा कर और पीठ में दर्द होने के बावजूद काम करते हैं। हम सभी बेहतर भुगतान चाहते हैं। प्रतिकिलोमीटर 8 रुपये और प्रति ऑर्डर 35 रुपये के हिसाब से।”

“स्विगी हमें डिलीवरी पार्टनर कहता है-यही वजह है कि हमें न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती,हमारा पीएफ नहीं कटता,  ईएसआई के और अन्य लाभ हमें नहीं मिलते। हमारा जीवन तभी बदलेगा, जब वे हमारे साथ अपने कर्मचारी के रूप में व्यवहार करेंगे।  हम  स्विगी की निगाहों में  हम केवल आईडी हैं, मनुष्य नहीं”  डिलीवरी एग्जीक्यूटिव ने आगे कहा। 

“स्विगी के वक्तव्य के अनुसार, अगर हमें अच्छा इंसेंटिव मिलता है, तब तो हमें हर महीने  अपने घर लगभग 39,000 रुपये ले जाना चाहिए।  लेकिन हमारी  मासिक आमदनी 15,000 से लेकर 17,000 तक ही है, जिसमें पेट्रोल और बाइक के रखरखाव पर हर महीने 8,000 रुपये खर्च हो जाता है।  सब काट कर मेरे पास केवल 9,000 रुपये ही बचते हैं।”

“ जब मैंने स्विगी के साथ काम शुरू किया था, हमें प्रति किलोमीटर 5 रुपये की दर से भुगतान किया जाता था।”  मनीष  (नाम बदला हुआ) ने कहा, जिसे कंपनी की तरफ से कभी प्रोत्साहन राशि नहीं दी गई।  उन्होंने कहा, “ कभी कभार,  हमें रेस्टोरेंट में 45 से 50 मिनट तक इंतजार करना पड़ता है और हमें महज 21 मिले हैं।”

कभी-कभी, ग्राहक हमसे उन स्थानों से भी दूर डिलीवर करने के लिए कहते हैं, जिसे उन्होंने ऐप में मेंशन नहीं किया होता है। मनीष, जिसके पास अपने ऐसे ग्राहकों के निर्देश के पालन करने के सिवा कोई विकल्प नहीं होता,  उसने इस बारे में स्विगी से कई बार शिकायतें की हैं। 

हालांकि इन सबके बावजूद, मनीष अभी भी आशान्वित हैं- “ मेरी इच्छा है कि कंपनी हमें इंसेंटिव दे और लंबी दूरी से वापसी के मामले में बोनस का सही तरीके से भुगतान करे।  हमें इस बात के लिए शिक्षित करें कि हम किसी मामले में रिपोर्टिंग कैसे करें, और फिर कर्मचारी सहायता केंद्र का भी गठन करे।”

संजय कुमार (37) परिवार में इकलौता कमाने वाले हैं  और वे स्विगी के साथ पिछले 4 सालों से जुड़े हैं,  उनका भी यही अनुभव है: “ शुरुआत में,  मैं 20,000 से 25,000 रुपये प्रति महीने कमा रहा था।  लेकिन हरेक साल यह रकम घटती जा रही है।”

कुमार ने कहा कि एक डिलीवरी  कर्मचारी को प्रतिदिन 300 से  400 रुपये कमाने के लिए रोजाना कम से कम 12 घंटे खटना पड़ता है। “फ्यूल और बाइक के रखरखाव पर होने वाले खर्चे को काटने के बाद हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा।”

जोमैटो के एक कर्मचारी सुमन ने कहा कि,  डिलीवरी ब्वॉय के भुगतान  या किलोमीटर की दर से भुगतान की राशि महामारी के पहले से ही कम थी, उसमें अब और कटौती हो गई है। “ तीन किलोमीटर की डिलीवरी करने पर 15 रुपये थमा देना एक क्रूर मजाक है। और फिर उन 3 किलोमीटर की वापसी की दूरी का क्या होगा? जोमैटो उसके लिए कोई भुगतान नहीं करता,”सुमन ने कहा।

“धीरे-धीरे जोमैटो ने सब कुछ में कटौती कर दी है-रेट कार्ड से लेकर इंसेंटिव के भुगतान तक- जबकि पेट्रोल की कीमतें और अन्य लागतें आसमान छू रही हैं। प्रति आर्डर न्यूनतम भुगतान  15 रुपये के बजाए 30 से 35 रूपया होना चाहिए। मुझे तो जैसे ही कोई नौकरी मिलेगी, मैं यह काम छोड़,” सुमन ने कहा, जो “ अपने (कमरे के) किराए का भुगतान तक नहीं कर सकता।”.

इन डिलीवरी कर्मचारियों ने लीफलेट बताया कि यह कोई पहली बार नहीं है कि जब वे लोग अपने सरोकारों को लेकर आवाज उठाने की कोशिश कर रहे हैं।  चेन्नई में  स्विगी और जोमैटो के गिग वर्कर्स ने 35 प्रति आर्डर भुगतान की मांग को लेकर 2020 के अगस्त में हड़ताल कर दी थी। 

(समृद्धि साकुनिया ओडिशा में रहने वाली एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक मामलों पर लिखती हैं। लेख में दिए गए कुछ नामों को उनकी सुरक्षा के ख्याल से बदल दिया गया है।  आलेख में व्यक्त विचार साकुनिया के निजी हैं।)

मूल रूप से लीफलेट में प्रकाशित। 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 

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