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हरियाणा : कथित तौर पर कॉर्पोरेट को लाभ पहुंचाने के लिए भूमि अधिग्रहण नियमों में ढील देने को तैयार सरकार

आलोचकों का कहना है कि यह विधेयक, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की सहमति का इंतज़ार है, सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन और बहु-फसली भूमि के अधिग्रहण के मानदंडों में ढील देने वाला है।
Haryana Land Reforms

नई दिल्ली: हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने विपक्षी कांग्रेस पार्टी के कड़े प्रतिरोध के बावजूद, राज्य में भूमि अधिग्रहण नियमों को 'कमजोर' करने के उद्देश्य से एक विधेयक पारित किया है, जो कथित तौर पर कॉर्पोरेट क्षेत्र को लाभ पहुंचाएगा। भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन (हरियाणा संशोधन) विधेयक 2021, उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार विधेयक, जिसे 24 अगस्त को हरियाणा विधानसभा द्वारा पारित किया गया था, अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के लिए लंबित पड़ा है।

हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस विधायकों के सदन से वाकआउट करने के बीच विधेयक को पारित कर दिया गया, जिन्होंने आरोप लगाया कि अधिनियम के प्रावधान भूमि मालिकों और खेत श्रमिकों के हितों के लिए हानिकारक हैं। कांग्रेस ने विधेयक को एक अधिनियम में अंतिम रूप देने से पहले विधानसभा की एक प्रवर समिति द्वारा जांच की मांग की है।

साथ ही, सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि विधेयक भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के प्रावधानों को पूरी तरह से खत्म कर देता है - जिसे एलएआरआर अधिनियम के रूप में जाना जाता है - जिसे कांग्रेस की केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा अधिनियमित किया गया था- जो भूमि के जबरन अधिग्रहण के खिलाफ दशकों से फैले कई जन संघर्षों का नतीजा था।

"यह बिल उन सभी उसी उद्देश्यों को विफल करता नज़र आता होता है जिसके आधार पर 2013 में एलएआरआर अधिनियम तैयार और पारित किया गया था। यह कई परियोजनाओं के मामले में अनिवार्य सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन की जरूरत को नकारता है जो एक जनविरोधी उपाय है। भूमि अधिग्रहण से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन करने के प्रावधान को एक लंबे और निरंतर संघर्ष के बाद अधिनियम में शामिल किया गया था। बहुफसली भूमि के अधिग्रहण पर लगाए गए प्रतिबंधों में ढील देने से बड़े पैमाने पर ग्रामीण बेरोजगारी बढ़ेगी और इससे भोजन की कमी होने की भी संभावना है। बहु-फसली भूमि के अधिग्रहण से बचना एक ऐसी व्यवस्था है जो देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के मामले में एलएआरआर अधिनियम को लागू करने के समय रखी गई थी, “एनजीओ समता के कार्यकारी निदेशक और खानों, खनिजों पोर पीपल के अध्यक्ष रेबप्रगदा रवि, जो खनन से प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों का गठबंधन है, ने इस उक्त बातें इस रिपोर्टर को बताई हैं। 

विधेयक को 'असंवैधानिक' भी कहा गया है, क्योंकि यह मूल अधिनियम के प्रावधानों को ओवरराइड करता है। विधेयक के माध्यम से, हरियाणा सरकार ने एलएआरआर अधिनियम, 2013 में निहित प्रावधान को कई परियोजनाओं के सामाजिक प्रभाव को अनिवार्य रूप से निर्धारित करने के उस मामले में छूट दी है, जो पता लगाता है कि भूमि अधिग्रहण को  मंजूरी देने से पहले, क्या यह वास्तव में सार्वजनिक उद्देश्य के लिए है?

राज्य सरकार ने "बहु-फसली भूमि" के अधिग्रहण को यथासंभव बनाने के लिए मूल अधिनियम में मौजूद प्रावधान के महत्व को भी नकारने का प्रस्ताव रखा है। उपरोक्त प्रावधान एलएआरआर अधिनियम, 2013 के क्रमशः अध्याय II और III में निहित हैं।

एलएआरआर अधिनियम, 2013 का अध्याय II सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन की दो-चरणीय प्रक्रिया प्रदान करता है। पहला कदम, किसी विशेष परियोजना के सामाजिक प्रभाव को निर्धारित करने की प्रारंभिक जांच से है और यह आकलन करना है कि क्या यह वास्तव में सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि ली जा रही है। इस कदम में परियोजना प्रभावित परिवारों और व्यक्तियों की सार्वजनिक सुनवाई और विभिन्न मंचों और प्लेटफार्मों पर सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन तैयार होने के बाद उसका प्रकाशन शामिल भी है।

दूसरे चरण में सरकार द्वारा नियुक्त स्वतंत्र, बहु-विषयक विशेषज्ञ समूह के माध्यम से सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन भी शामिल है। इसके बाद भूमि अधिग्रहण के लिए अंतिम सिफारिश विशेषज्ञ समूह की राय के अधीन होती है कि क्या परियोजना वास्तव में किसी सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति करेगी और क्या परियोजना के संभावित लाभ इसकी सामाजिक लागत और प्रतिकूल सामाजिक प्रभावों से अधिक होंगे।

एलएआरआर अधिनियम, 2013 का अध्याय III भूमि अधिग्रहण करते समय देश की खाद्य सुरक्षा से संबंधित है। यह अध्याय एक नियम निर्धारित करता है कि सिंचित बहु-फसली भूमि का अधिग्रहण केवल "असाधारण परिस्थितियों में, एक अंतिम उपाय के रूप में" किया जाना है। इसके अलावा, जहां कहीं भी सिंचित बहुफसली भूमि का अधिग्रहण किया जाता है, एक समान भूमि का पार्सल अनिवार्य रूप से कृषि के अंतर्गत लाया जाना शामिल है। वैकल्पिक रूप से, अधिग्रहित बहुफसली भूमि के मूल्य के बराबर राशि को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि गतिविधियों के उपयोग के लिए संबंधित राज्य सरकार के पास जमा करना होगा।

विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, विभिन्न क्षेत्रों में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं- परिवहन, ऊर्जा, पानी और स्वच्छता, संचार, और सामाजिक और वाणिज्यिक बुनियादी ढांचे - को अध्याय II और III के दायरे से छूट दी जाएगी। इसमें सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड में शुरू की गई परियोजनाएं शामिल हैं जहां भूमि का स्वामित्व सरकार के पास बना रहता है।

"राष्ट्रीय सुरक्षा या भारत की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण" मानी जाने वाली परियोजनाओं को उपरोक्त अध्यायों के दायरे से छूट दी जाएगी, जिसमें "रक्षा उत्पादन" का शामिल हैं, एक ऐसा क्षेत्र जिसे नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है। "औद्योगिक गलियारों" में सड़क या रेलवे लाइन के दोनों ओर 2 किलोमीटर तक की भूमि का अधिग्रहण को भी इन अध्यायों के अनुसार छूट मिलेगी।

किफायती आवास प्रोजेक्ट्स और गरीबों के आवास के लिए बनी परियोजनाओं को छूट दी जाएगी। परियोजना-विस्थापित परिवारों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपना आश्रय खो चुके परिवारों के पुनर्वास के लिए बनी आवासीय परियोजनाओं को भी छूट दी जाएगी। बिल के अनुसार, भूमि का अधिग्रहण-यहां तक कि बहु-फसली भूमि-मेट्रो और रैपिड रेल परियोजनाओं के लिए बिना किसी सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन के दी जा सकती हैं।

कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि पीपीपी मोड में शुरू की गई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को छूट कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए भूमि अधिग्रहण की कठोरता को कमजोर करने और निजी उद्योगों को पिछले दरवाजे के माध्यम से आसानी से भूमि अधिग्रहण करने की अनुमति देने के समान है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और तोशाम विधानसभा क्षेत्र से विधायक किरण चौधरी ने मुर्मू को पत्र लिखकर विधेयक पर हस्ताक्षर न करने और इसे वर्तमान स्वरूप में विधानसभा में वापस करने का आग्रह किया है।

रिपोर्ट के अनुसार, चौधरी ने लिखा है, "इस प्रस्तावित संशोधन का एकमात्र उद्देश्य बड़े कॉरपोरेट खिलाड़ियों द्वारा अधिग्रहण के लिए हरी-भरी और प्रमुख कृषि भूमि को खुला छोड़ना लगता है।"

विधेयक हरियाणा सरकार को "सार्वजनिक हित" के आधार पर उपरोक्त छूट की अनुमति देने का अधिकार देता है, एक शब्द जो न तो विधेयक में परिभाषित है और न ही मूल अधिनियम में निहित है। 

चौधरी ने अपने पत्र में आगे उल्लेख किया है कि, “हरियाणा विधानसभा के अगस्त 2021 सत्र की एक छोटी अवधि में विधेयक को जल्दबाजी में पेश किया गया और पारित किया है, हमारे मुखर विरोध और वॉकआउट की अनदेखी की गई; निश्चित रूप से किसी भी सार्थक चर्चा को दबा दिया गया और उचित विचार-विमर्श को टाल दिया गया।” 

हरियाणा सरकार ने विधेयक में एक प्रावधान डाला है, जो कांग्रेस पार्टी के अनुसार, भूमि अधिग्रहण से पहले सभी हितधारकों की पूर्व सहमति हासील करने के लिए मूल अधिनियम में निहित उचित प्रक्रिया को छोड़ने की अनुमति देगा। यह प्रावधान (बिल में नंबर 4) एक जिला कलेक्टर को यह घोषित करने की अनुमति देता है कि "भूमि में रुचि रखने वाले सभी व्यक्ति उनके सामने पेश हुए" और उनकी "स्वतंत्र इच्छा और सहमति" से, बिना कोई जांच किए भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही पूरी हो गई है। कांग्रेस ने इस प्रावधान को "कठोर" और "प्राकृतिक न्याय और निष्पक्ष खेल के सिद्धांतों" के विपरीत करार दिया है क्योंकि यह एक जिला कलेक्टर को मौके का दौरा या जांच किए बिना अधिग्रहण की घोषणा करने की अनुमति देता है।

विधेयक, मूल अधिनियम के उस प्रावधान को भी कमजोर बनाता है जिसके तहत चल संपत्तियों, घरों और इमारतों से बाहर स्थानांतरित करने के लिए कम से कम 48 घंटे की अनुमति दी जाती है - यहां तक कि निजी स्वामित्व वाले घरों को भी - जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों के लिए या प्राकृतिक आपदा के मामलों में तत्काल लेने की जरूरत होती है। 

इसके अलावा, एक अन्य प्रावधान (बिल में नंबर 5) हरियाणा सरकार को मुआवजे के साथ-साथ पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए परियोजना जिसमें प्रभावित परिवारों को भुगतान की जाने वाली राशि को सीमित करने का अधिकार देता है। पुनर्वास और पुनर्स्थापन राशि, जो एकमुश्त भुगतान की जाएगी, अधिग्रहित की जाने वाली भूमि के विरुद्ध अंतिम रूप दी गई क्षतिपूर्ति राशि को 50 प्रतिशत तक सीमित किया जा सकता है। यह प्रावधान तब लागू होता है जब राज्य सरकार इसके उपयोग के लिए 200 एकड़ से कम की भूमि का अधिग्रहण करती है।

अगस्त 2021 में हरियाणा सरकार ने जिस गजट अधिसूचना के माध्यम से संशोधन विधेयक प्रकाशित किया था, उसमें भूमि अधिग्रहण के नियमों में प्रस्तावित परिवर्तन का कोई औचित्य नहीं दिया गया था, जैसा कि मूल अधिनियम में निहित है। संपर्क करने पर, हरियाणा के वित्तीय आयुक्त (राजस्व) वरिंदर सिंह कुंडू ने गजट अधिसूचना पर कोई बयान जारी करने से खुद को यह कहते हुए अलग कर लिया कि वह लगभग एक सप्ताह पहले ही विभाग में शामिल हुए थे।

हालांकि, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार इन बदलावों का मजबूती से समर्थन कर रही है। 24 अगस्त को विधानसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान, जननायक जनता पार्टी के हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, जो राज्य के राजस्व विभाग के प्रभारी भी हैं, ने दावा किया कि संशोधन सार्वजनिक परियोजनाओं को गति देगा क्योंकि भूमि अधिग्रहण परेशानी मुक्त होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश भर के 16 राज्यों ने अपनी, संबंधित, स्थानीय परिस्थितियों का पालन करते हुए पहले ही एलएआरआर अधिनियम में संशोधन किया गया है।

राज्य सरकार का मानना है कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को सरल बनाकर विकास परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए संशोधन किए गए हैं। हालांकि, विपक्षी कांग्रेस और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं ने इस पर गंभीर चिंता जताई है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Haryana Set to Dilute Land Acquisition Rules Allegedly to Benefit Corporates

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