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ऑनलाइन वोटिंग से भारत का लोकतंत्र होगा कमज़ोर

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कोविड-19 की आड़ में ऑनलाइन वोटिंग कराने की सुशील मोदी की क़वायद, उनकी पार्टी भाजपा और उसके सहयोगी, जद(यू) को फ़ायदा पहुंचाने का एक षड्यंत्र है। 
ऑनलाइन वोटिंग

बिहार के उपमुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने हाल ही में भारत के चुनाव आयोग (ECI) से ऑनलाइन वोटिंग की सिफ़ारिश की है कम से कम बिहार विधानसभा चुनावों के लिए मतदान में, जहाँ 29 नवंबर से पहले मतदान पूरा होना है और नए सदन का संवैधानिक रूप से गठन भी होना है। भाजपा नेता यह कवायद चुनावी प्रणाली के साथ छेड़छाड़ करने और समाज के हाशिये पर पड़े लोगों को को मताधिकार से वंचित करने की गहरी साजिश का हिस्सा है।

कोविड-19 महामारी के कारण लोग जिन गंभीर कठिनाइयों को झेल रहे हैं, ऐसे समय में लोकतंत्र को और अधिक समावेशी बनाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो लोग वायरस के प्रकोप का खामियाजा भुगत रहे हैं, वे चुनाव में मुखरता से हिस्सा ले। अगर ईसीआई इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है तो इससे भारत में लोकतंत्र कमजोर होगा और राज्य में भाजपा और उसके सहयोगी, जनता दल यूनाइटेड को इसका अतिरिक्त लाभ मिलेगा।

मोदी के हवाले से यह कहा गया है कि "एक बात तो निश्चित है कि कोविड-19 महामारी के चलते चुनाव पारंपरिक तरीके से नहीं हो सकते हैं।" हालांकि चुनाव प्रचार की प्रकृति के बारे में यह सच हो सकता है, क्योंकि बड़ी जनसभाओं का आयोजन कम से कम इस समय में तो इतिहास की बात होंगी, मोदी ऐसे कहते वक़्त चुनाव प्रचार, मतदान और पार्टी कैडर के साथ बातचीत का घालमेल करते दिखाई दे रहे हैं।

भाजपा नेता ने यह भी कहा कि: "मतदाताओं के साथ अब बातचीत ज्यादातर डिजिटल माध्यम से होगी। आज, बिहार के हर घर में एक टेलीविजन सेट है और राज्य के सभी गांवों में 18-20 घंटे बिजली रहती है। उदाहरण के तौर पर, हम अपने कार्यकर्ताओं के साथ हर रोज़ दो घंटे ऑडियो और वीडियो सत्र में बातचीत कर रहे हैं।" इसी प्रकार, अगला चुनाव भी डिजिटल चुनाव होगा जिसमें डिजिटल प्रचार होगा। "

सुशील मोदी स्पष्ट रूप से ऑनलाइन वोटिंग की वकालत इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इससे उनकी पार्टी को अधिक कुशल पार्टी संरचना (जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नेटवर्क के साथ मिलकर काम करती है) के कारण लाभ होगा। यहां तक कि उन्होंने अपने बयान के साथ एक ट्वीट भी किया है।

हालांकि, भाजपा के 40 वें स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पार्टी सदस्यों और कैडर के साथ 6 अप्रैल की तथाकथित बातचीत, और आरएसएस सरसंघचालक, मोहन भागवत की 26 अप्रैल की बातचीत जिन्होंने इसे ऑनलाइन 'बौद्धिक' के नाम संबोधित किया था - ये मुख्य रूप से डिजिटल अभियान के अभ्यास का हिस्सा हैं।

सरकार के भीतर भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करना एक आदर्श बात बन गई है और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी चुनाव प्रचार के लिए इलेक्ट्रॉनिक साधनों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। नरेंद्र मोदी ने दूरस्थ स्थानों के लिए तय स्टूडियो से भाषण देने के लिए होलोग्राम तकनीक का इस्तेमाल किया है। लेकिन यहां यह संभव नहीं होगा, क्योंकि इसके लिए लोगों की एक बड़ी सभा की जरूरत होगी। इस प्रकार पूरा का पूरा जोर टीवी और मोबाइल हैंडसेट के जरिए संदेश देने पर होगा।

लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय नागरिक सार्वजनिक नेटवर्क डायरेक्ट-रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम के लिए तैयार हैं, जहां व्यक्तिगत मतदाताओं द्वारा इंटरनेट पर या टेलीफोनी के माध्यम से वोट डाला जा सकता है। भारत मोबाइल फोन और मोबाइल इंटरनेट डेटा का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता होने का दावा तो कर सकता है, लेकिन अधिकांश लोग अपने इन उपकरणों का उपयोग शुद्ध टेलीफोनी या मनोरंजन के साधनों जैसे चुटकुले सुनने या वीडियो साझा करने के लिए करते हैं।

एक सार्वजनिक नेटवर्क पर मतदान की समय से पहले शुरुवात या तो बड़ी संख्या में मतदाताओं को मताधिकार से बाहर कर देगी या उन्हें वोट डालने के लिए दूसरों पर निर्भर बना देगा। अधिकांश भारतीयों की मोबाइल हैंडसेट के उपयोग करने की क्षमता के नाम पर फोन कॉल, संदेश और वीडियो देखने तक सीमित है। घर लौटने के लिए ऑनलाइन पंजीकरण करने की कोशिश कर रहे प्रवासियों के सामने आ रही समस्याएं लोगों में इस प्रौद्योगिकी की समझ की कमी की ओर इशारा करती हैं। इसमें ओर भी समस्या है जैसे कि हर भारतीय, विशेष रूप से महिलाओं और समाज के वंचित तबकों के पास या तो फोन नहीं है या वे बुनियादी कीपैड मोबाइल का उपयोग करते हैं जो इंटरनेट से नहीं जुड़े हैं।

लेकिन, अगर लोगों को अपने उपकरणों के माध्यम से वोट देने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है, तो ऐसे कई उदाहरण सामने आ सकते हैं जब प्रौद्योगिकी की समझ की कमी वाले व्यक्ति की राजनीतिक पसंद कुछ हो और उसके लिए मत डालने वाले समझ अलग हो। इसका परिणाम या तो परिवार में या फिर समुदाय में कलह भी हो सकता है। क्योंकि समाज के भीतर इस तबके में शक्ति संतुलन उन लोगों के पक्ष में झुका हुआ है जो अपेक्षाकृत तकनीक-प्रेमी हैं, यह फैसला शायद चुनावी भावना को सही ढंग से प्रदर्शित नहीं कर पाएगा।

ऑनलाइन वोटिंग में भाग लेना ऐसा होगा जैसे कि किसी व्यक्ति को ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) तक पहुंचाने और उस व्यक्ति को 'सही' बटन दबाने में मदद करने के समान है ऐसा कर हम फिर से पेपर बैलट के दिनों की तरफ लौट जाएंगे, जब गांव के गुंडे अक्सर गरीबों की तरफ से खुद ही वोट डाल देते थे।

सुशील मोदी ने कहा कि "कई देशों ने ऑनलाइन माध्यम से चुनाव कराए हैं। इस प्रकार, यदि चुनाव आयोग यहां भी इस तरह की व्यवस्था विकसित करता है, तो मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर जाने की जरूरत नहीं होगी और वे घर बैठे अपने मताधिकार का प्रयोग कर पाएंगे।" यह कथन बहुत ही अपर्याप्त जानकारी से ग्रस्त है और यह इस गलत धारणा को आगे बढ़ाता है कि दक्षिण कोरिया ने अप्रैल में ऑनलाइन प्रौद्योगिकी का उपयोग करके अप्रैल में अपने हालिया राष्ट्रीय संसदीय चुनावों का आयोजन किया था।

यद्द्पि सार्वजनिक नेटवर्क डायरेक्ट-रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का उपयोग कुछ देशों में स्थानीय या प्रांतीय स्तरों पर किया है, इनमें एस्टोनिया एकमात्र देश है जो मतदाताओं को राष्ट्रीय चुनावों के लिए घर बैठे मतदान करने का विकल्प प्रदान करता है। लेकिन यह उस देश के कॉम्पैक्ट आकार के कारण है – यहाँ लगभग 13.3 लाख की आबादी है- और तकनीकी प्रगति भी इसकी एक मुख्य वजह है।

15 अप्रैल को दक्षिण कोरिया में हुए नेशनल असेंबली के चुनावों में, मतदाताओं के बीच सामाजिक दूरी बनाए रखने ताकि वे एक-दूसरे के संपर्क में ना आए, उनको खास तौर पर दस्ताने पहनाने की व्यवस्था की गई थी। इसके अतिरिक्त, मतदाताओं को फेस मास्क पहनने के लिए निर्देशित किया गया था, उनके शारीरिक तापमान की जाँच की गई थी, उनके हाथों को कीटाणुरहित किया गया और एक मतदाता से दूसरे मतदाता को एक मीटर की दूरी पर खड़ा किया गया था। आइसोलेशन में रह रहे लगभग 50,000 लोगों को भी मतदान करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन ऐसा शाम को किया गया जब सामान्य मतदान समाप्त हो गया था, और बशर्ते उनमें कोविड-19 के कोई लक्षण न हों।

लगभग 26 प्रतिशत मतदाता अपने वोट पहले ही डाल चुके थे, या फिर डाक द्वारा या विशेष संगरोधक बूथों के माध्यम से जिसमें यह सुनिश्चित किया गया कि सभी मतदाता अपने मताअधिकार का प्रयोग कर सकें। दक्षिण कोरिया संयोग से पेपर बैलट का उपयोग करता है। दक्षिण कोरिया में कुल 44 मिलियन मतदाता हैं, जबकि बिहार में लगभग 72 मिलियन मतदाताओं का इलेक्टोरल कॉलेज है। कोरिया में 1992 के बाद से हाल ही में हुए चुनाव में 66.2 प्रतिशत का उच्च स्तरीय मतदान हुआ है। 

दक्षिण कोरिया में मतदान के बाद, ईसीआई ने कहा था कि वह उस देश में इस्तेमाल किए गए उपायों का अध्ययन कर रहा है। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा कि यदि संकट जारी रहा तो "मौजूदा प्रक्रियाओं में कुछ संशोधनों की आवश्यकता हो सकती है।"

दक्षिण कोरिया में की गई व्यवस्था को पूरे देश में उल्लेखनीय रूप से किया जा सकता हैं। इसके लिए, अधिक कर्मचारियों की आवश्यकता हो सकती है और मतदान को अधिक चरणों में करने की भी आवश्यकता होगी। हालाँकि, मुख्य निर्णय न मिटने वाली स्याही के उपयोग के बारे में लेना होगा। लवासा ने कहा कि इसके बारे में निर्णय स्वास्थ्य विशेषज्ञों और हितधारकों से परामर्श लेने के बाद लिया जाएगा, इसका एक संभावित तरीका डिस्पोजेबल स्वैब या गीले टिसु (miniature wipes) का उपयोग हो सकता है।

इसके अतिरिक्त मुद्दा यह है जिस पर ईसीआई को विचार करना होगा। बड़ी संख्या में ऐसे प्रवासी हैं जो अपने गांवों में लौट आए हैं, वे बिहार में पंजीकृत मतदाता नहीं भी हो सकते हैं क्योंकि वे उन राज्यों के अर्ध-स्थायी निवासी बन गए हैं जहां वे काम करते थे। ईसीआई को तत्काल आधार पर चुनावी सूची को अपडेट करने का काम करना होगा, तब जब लॉकडाउन या फिर लोगों के आवागमन पर प्रतिबंध हटा लिया जाता है।

हर क़दम पर, ईसीआई को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय लोकतंत्र अधिक प्रतिनिधिकारी बने, लोगों की हिस्सेदारी उसमें कम न हो। इसके विपरीत दिए गए किसी भी  सुझाव को तुरंत ख़ारिज कर देना चाहिए।

लेखक दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में यह लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

In India, Online Voting Will Further Weaken Democracy

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