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इंदौर : मोतियाबिंद के ऑपरेशन में 11 मरीजों ने आंखें गंवाई

इंदौर आई हॉस्पिटल में अमानक (Sub-Standard) दवाइयां एवं अव्यवस्था के शिकार हो गए मोतियाबिंद के मरीज। इसी अस्पताल में 2010 में ऑपरेशन करवाने वाले 18 मरीजों की आंखों की रोशनी चली गई थी।
Indore Eye Hospital

मध्यप्रदेश के इंदौर आई हॉस्पिटल में आयोजित एक शिविर में मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाने वाले 11 मरीजों की रोशनी चली जाने का मामला सामने आया है। मामला 8 अगस्त का है, लेकिन यह तब सामने आया, जब मरीज के परिजनों को लगने लगा कि डॉक्टरों के आश्वासन के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है एवं मामला गंभीर है। फिर वे हंगामा करने लगे। इस मामले का खुलासा होते ही स्वास्थ्य विभाग सहित पूरा प्रशासनिक अमला सकते में आ गया। अस्पताल का ऑपरेशन थियेटर सील कर दिया गया है। मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस घटना पर दुःख जताया है। मरीजों को 50 हजार रुपए मुआवजा देने एवं मुफ्त में बेहतर इलाज उपलब्ध कराने की घोषणा हो चुकी है। इस मामले में ज्यादा दुःख की बात यह है कि इसी अस्पताल में 2010 में मोतियाबिंद के ऑपरेशन करवाने वाले 18 मरीजों की रोशनी चली गई थी। यह अस्पताल ट्रस्ट के माध्यम से चलाया जाता है । 

8 अगस्त को मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए अस्पताल में एक शिविर लगाया गया था। ऑपरेशन के बाद जब अगले दिन मरीजों के आंख में दवाइयां डाली गई, तो आंख की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगी। दवाई के डालने के बाद ही मरीजों ने शिकायत की थी कि उन्हें सबकुछ सफेद दिख रहा है, कुछ ने काला-काला दिखाई देने की बात की। डॉक्टरों को लगा कि शायद यह सामान्य इंफेक्शन है और सबकुछ ठीक हो जाएगा। मरीजों ने भी भरोसा किया कि सब ठीक हो जाएगा। लेकिन धीरे-धीरे मरीजों को दिखना बंद हो गया। शुरुआती जांच के आधार पर डॉक्टर कह रहे हैं कि संभवतः ऑपरेशन के बाद जो दवा मरीजों के आंखों में डाली गई थी, उससे उनको इंफेक्शन हो गया है।
दिसंबर 2010 में भी इस अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया गया था, जिसमें 18 लोगों की रोशनी चली गई थी। 2011 से इस अस्पताल को मोतियाबिंद ऑपरेशन के शिविर के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। बाद में धीरे-धीरे प्रतिबंधों को शिथिल कर दिया गया। 

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2015 में बड़वानी जिला अस्पताल में हुए ऑपरेशन के बाद आंख गवांने वाली बुजुर्ग महिला।

इस क्षेत्र में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद आंख गंवाने की एक और बड़ी घटना नवंबर 2015 में हुई थी। तब बड़वानी जिले के जिला अस्पताल में लायंस क्लब और जिला अस्पताल द्वारा आयोजित शिविर में मोतियाबिंद के हुए ऑपरेशन में 86 में से 66 मरीजों की आंख की रोशनी चले जाने की भयावह घटना हुई थी। उस घटना में संक्रमण वाले मरीजों की जांच एम्स, दिल्ली के डॉक्टरों की टीम ने की थी और उसमें भी पाया था कि ऑपरेशन के दौरान इस्तेमाल किए गए आई वॉश फ्ल्यूड में गड़बड़ी थी। घटना में अपनी आंख गवां देने वाले मरीजों को 2 लाख रुपये मुआवजा दिया गया था और आजीवन 5 हजार रुपए मासिक का पेंशन देने की घोषणा हुई थी। 

प्रदेश में जन स्वास्थ्य अभियान लंबे समय से स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार, अमानक (Sub-Standard) दवाइयों की खरीदी और लापरवाही को लेकर आवाज उठा रहा है। ऐसी घटनाओं की जांच में भी अभियान ने पाया है कि अमानक दवाइयां एवं लापरवाही से ऐसी घटनाएं होती है। जब घटनाएं होती है, तो सरकार की सक्रियता दिखती है, लेकिन बाद में इस पर कोई कार्रवाई नहीं होती। प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग में अमानक दवाइयों की खरीदी का मुद्दा मध्यप्रदेश मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन ने भी उठाया था। 

इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार चिन्मय मिश्र का कहना है, ‘‘यह घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। अक्सर शिविरों में गरीब परिवार के लोग आते हैं। ग्रामीण इलाकों में बेहतर नियमित स्वास्थ्य सुविधाओं का लंबे समय से अभाव है। ऐसे में जब भी शिविर में ऑपरेशन किए जाते हैं, उनमें से अधिकांश शिविरों में प्रोटोकॉल का उल्लंघन होता है। चूंकि मरीज गरीब परिवार के होते हैं, इसलिए ऑपरेशन के बाद मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है या फिर मामला सामने आने पर उस समय त्वरित कार्रवाई की जाती है, लेकिन इसे लेकर कोई व्यापक रणनीति बनाने की पहल नहीं की जाती। आंख गवांने वाले अक्सर ये मरीज परिवार का भरण-पोषण करने वाले होते हैं, ऐसी घटना के बाद उनके परिवार पर आर्थिक संकट गहरा जाता है। वैसे बड़वानी की घटना के बाद तत्कालीन सरकार ने आंख गवांने वाले मरीजों को आजीवन 5 हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन देने की बात की थी, जो उन परिवारों के लिए मरहम की तरह है, लेकिन फिर ऐसी घटना न हो, इसके लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए, जो दिखाई नहीं देता।’’ 

अपने गृह जिले में घटित इस घटना के बाद स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस मामले की जांच के लिए 7 सदस्यीय समिति की घोषणा भी की गई है। मरीजों के आंख की रोशनी वापस आए, इसके लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों की मदद ली जाएगी।

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