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आनंद तेलतुंबड़े की 31 महीने की क़ैद के बाद रिहाई

रिहाई के बाद तेलतुंबड़े ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “मैं 31 महीने के बाद हुए रिहाई से खुश हूं। लेकिन मामले को जिस तरह मुझ पर डाला गया वह दुर्भाग्य की बात है।”
Anand Teltumbde
फ़ोटो साभार: ट्विटर

दलित विद्वान आनंद तेलतुंबड़े को जेल से आज रिहा कर दिया गया। वह तलोजा जेल में बंद थे। वह दोपहर क़रीब 1.15 बजे में जेल से बाहर आए। उन्होंने अप्रैल 2020 में एनआईए के सामने सरेंडर किया था। रिहाई के बाद तेलतुंबड़े ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “मैं 31 महीने के बाद हुए रिहाई से खुश हूं। लेकिन मामले को जिस तरह मुझ पर डाला गया वह दुर्भाग्य की बात है।”

ज्ञात हो कि कि सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध के मामले में विद्वान व सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबडे को मिली ज़मानत के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की याचिका शुक्रवार को ख़ारिज कर दी थी।

बता दें कि मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा था कि वह तेलतुंबडे को ज़मानत देने से संबंधित बंबई उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगी।

अदालत ने कहा था कि उच्च न्यायालय की टिप्पणियों को ट्रायल में निर्णायक या अंतिम निष्कर्ष नहीं माना जा सकता है।

ध्यान रहे कि एनआईए ने आरोप लगाया था कि तेलतुंबडे के संबंध एक प्रतिबंधित संगठन के साथ थे जिसमें उन्होंने एक सक्रिय भूमिका निभाई और उसके लिए उन्होंने फंड इकट्ठे किए थे।

इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने एजेंसी से तेलतुंबडे की भूमिका पर सवाल किया। सीजेआई ने कहा, "आईआईटी मद्रास के कार्यक्रम में आपने आरोप लगाया कि वह दलितों को लामबंद कर रहे हैं। क्या दलित लामबंदी या दलितों के लिए कार्यक्रम आयोजन करना प्रतिबंधित गतिविधि के लिए एक प्रारंभिक कार्य है?

उच्च न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लेते हुए 18 नवंबर को तेलतुंबडे की ज़मानत अर्जी मंज़ूर कर ली थी कि प्रथम दृष्टया तेलतुंबडे के ख़िलाफ़ एकमात्र मामला एक आतंकवादी समूह के साथ कथित संबंध और उसे दिए गए समर्थन से संबंधित है, जिसके लिए अधिकतम 10 साल जेल की सजा है।

उच्च न्यायालय ने, हालांकि, एक सप्ताह के लिए अपने ज़मानत आदेश पर रोक लगा दी थी, ताकि मामले की जांच कर रही एजेंसी एनआईए उच्चतम न्यायालय का रुख कर सके।

तेलतुंबडे (73) इस मामले में गिरफ़्तार कुल 16 आरोपियों में तीसरे आरोपी हैं, जिन्हें ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया है।

कवि वरवर राव वर्तमान में स्वास्थ्य कारणों से ज़मानत पर बाहर हैं, जबकि वकील सुधा भारद्वाज नियमित ज़मानत पर बाहर हैं।

इससे पहले बीते शनिवार को इसी मामले में गौतम नवलखा कोर्ट के आदेश के बाद जेल से बाहर आ गए। उन्हें शनिवार शाम को नवी मुंबई की तलोजा जेल से रिहा किया गया था। अब वह एक महीने तक नज़रबंद रहेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने एक महीने के लिए नवलखा को तलोजा जेल से निकालकर नवी मुंबई में हाउस अरेस्ट के आदेश दिए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा पर कुछ शर्ते भी लगाईं थीं और कहा था कि हाउस अरेस्ट के दौरान किसी तरह का कोई संचार उपकरण यानी कोई लैपटॉप, मोबाइल, कंप्यूटर आदि कुछ नहीं होगा।

इस दौरान वो किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। वे न ही मीडिया से बात करेंगे, साथ ही मामले से जुड़े लोगों और गवाहों से भी बात नहीं करेंगे।

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