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दुनिया भर की: ट्विटर पर साफ़गोई बरतने का दबाव डालना ज़रूरी

हैरत है कि ट्विटर के पूर्व सुरक्षा प्रमुख पीटर ज़ाटको द्वारा भारत सरकार पर लगाए गए आरोपों पर देश में कोई हलचल नहीं है, न ही भारत सरकार ने अब तक आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है।
दुनिया भर की: ट्विटर पर साफ़गोई बरतने का दबाव डालना ज़रूरी

यह हैरानी की बात है कि दुनियाभर में पत्रकारों और एक्टिविस्टों के सबसे पसंदीदा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर के पूर्व सुरक्षा प्रमुख पीटर ज़ाटको द्वारा भारत सरकार पर लगाए गए आरोपों ने उतनी हलचल नहीं मचाई जितनी उनसे मचनी चाहिए थी।

दरअसल पीटर के आरोप सिर्फ कोई भारत को लेकर नहीं हैं, वे मोटे तौर पर ट्विटर की कार्यप्रणाली को लेकर हैं, उसमें भी खास तौर पर उसके सुरक्षा तंत्र को लेकर। इसी सिलसिले में उनके आरोपों में से एक यह भी था कि भारत सरकार ने ट्विटर को इस बात के लिए मजबूर किया था कि वह कुछ व्यक्तियों (सरकारी एजेंटों) को अपने यहां काम पर रखे, जो वहां रहकर लोगों के डाटा पर निगरानी रख सकें। इसे सहज भाषा में कहा जाए तो वह यह निगरानी रख सकें कि कौन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहा है और वहां क्या-क्या कर रहा है।

इन आरोपों के सामने आने के ठीक एक हफ्ते बाद भी अभी तक भारत सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लोगों की निजता का सरकार कितना सम्मान करती है, यह हम पेगासस प्रकरण में देख ही चुके हैं। पिछले दिनों सामने आया आईआरसीटीसी का मसला भी इसी नजरिये को रेखांकित करता है। भारतीय रेलवे की रेल टिकट बुकिंग एजेंसी आईआरसीटीसी भी आखिरकार भारत सरकार का ही एक उपक्रम है। उसने तो लोगों का तमाम डाटा बेचने के लिए टेंडर तक बुला लिए थे। वह तो हो-हल्ला हुआ तो उसे टेंडर प्रक्रिया रद्द करनी पड़ी।

इसलिए सरकार के जेहन में लोगों की निजता की कोई चिंता होगी, इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए। उससे सफाई देने की अपेक्षा करना फिज़ूल है। हां, भारत में ट्विटर के प्रतिनिधियों ने बेशक संसद की सूचना व प्रौद्योगिकी से संबद्ध स्थायी समिति के सामने जाकर इन आरोपों के बारे में यह कहा कि भारत सरकार ने कभी किसी एजेंट को नौकरी देने के लिए उनसे संपर्क नहीं किया। लेकिन फिर ट्विटर की यह सफाई तो पीटर के आरोपों पर अमेरिका में दी गई आधिकारिक सफाई के ही अनुरूप है, और जाहिर है कि वह होगी भी।

अब यह बात भी सही है कि पीटर ने फिलहाल अपने आरोपों को लेकर कोई दस्तावेजी साक्ष्य या गवाह पेश नहीं किए हैं, लेकिन केवल इससे उनके आरोप हलके नहीं हो जाते। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि पीटर ज़ाटको ने अपने आरोप अमेरिकी सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (हमारे यहां के सेबी की तरह की अमेरिकी संस्था) और अमेरिकी सरकार के न्याय विभाग को भेजे हैं। वहीं से हुए इस ‘डिसक्लोज़र’ के लीक के आधार पर अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने सबसे पहले इसकी खबर पिछले हफ्ते छापी थी। हालांकि बताया यह भी जाता है कि ज़ाटको ने तमाम घटनाओं के विवरण और दस्तावेज के बारे में एक अलग डिसक्लोज़र अमेरिकी न्याय विभाग के राष्ट्रीय सुरक्षा डिवीजन के भीतर काउंटरइंटेलीजेंस व एक्सपोर्ट्स कंट्रोल और इंटेलीजेंस पर सीनेट की प्रवर समिति को भी भेजा है।

ज़ाटको के आरोप केवल भारत को लेकर नहीं हैं। उनके अनुसार नाइजीरिया व रूस भी भारत की ही तरह पूर्णकालिक एजेंट ट्विटर के भीतर घुसाने में कामयाब हो गए थे। कुछ जिक्र चीन को लेकर भी किया गया है। नाइजीरिया ने तो 2021 में ट्विटर पर पाबंदी लगा दी थी। ज़ाटको ने इस सिलसिले में यह आरोप लगाया था कि ट्विटर ने अपनी पारदर्शिता रिपोर्टों में यह तो बताया कि भारत सरकार से उसे डाटा की जानकारी देने के अनुरोध (निर्देश) कितनी बार मिले, लेकिन उसने अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने वालों को यह कभी जाहिर नहीं किया कि कंपनी की कार्यकारी टीम यह मानती व जानती है कि ये सरकारें कंपनी की तनख्वाहों पर अपने एजेंटों को भीतर बैठाने में कामयाब हो गई हैं। जानते-बूझते इन सरकारी एजेंटों को कंपनी की प्रणाली व लोगों के डाटा तक सीधी व अनियंत्रित पहुंच देकर ट्विटर ने लोगों के प्रति अपनी घोषित प्रतिबद्धता का उल्लंघन किया है।

ट्विटर ने अपनी आधिकारिक सफाई में कहा है कि ज़ाटको एक चिढ़े हुए पूर्व कर्मचारी हैं और लिहाजा वह झूठे दावे कर रहे हैं। ट्विटर का कहना है कि अप्रभावी नेतृत्व और खराब प्रदर्शन के कारण कंपनी ने जनवरी 2022 में ज़ाटको को हटा दिया था। कंपनी प्रवक्ता का कहना था कि ट्विटर और उसकी प्राइवेसी व डाटा सुरक्षा नीतियों के बारे में ज़ाटको ने जो कुछ भी कहा है, वह असंगत है, उसमें गलतियां हैं और महत्वपूर्ण संदर्भों का अभाव है।

लेकिन यह स्पष्ट है कि ट्विटर कटघरे में है और उसकी सफाई को ज़ाटको के आरोपों के बरक्स ही तौला जाएगा। भारतीय संसदीय स्थायी समिति के सामने भी ट्विटर के भारतीय प्रतिनिधियों की सफाई ज्यादा प्रभावी नहीं रही और सूत्रों के अनुसार उससे कई जवाब लिखित में देने को कहा गया है।

खास बात यह भी है कि पीटर ज़ाटको जो अपने हैकर हैंडल ‘मज़’ के नाम से पहचाने जाने जाते हैं, कोई आम कर्मचारी नहीं हैं जो नौकरी जाने की खीझ में अपनी कंपनी पर आरोप लगा रहा हो (जैसा कि ट्विटर जाहिर करने की कोशिश कर रही है)। वह जाने माने साइबर-सुरक्षा एक्सपर्ट हैं, आज के नहीं बल्कि 1990 के दशक के दौर से। वह अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च एजेंसी व गूगल में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं। नवंबर 2020 में ट्विटर के मुखिया जैक डोर्सी उन्हें साइबर सुरक्षा व प्राइवेसी को मजबूत करने के लिए ट्विटर में लेकर आए थे। वहां उन्होंने 14 महीने काम किया, जनवरी 2022 में निकाले जाने तक। इस दौरान पिछले साल जैक डोर्सी ने ट्विटर छोड़ दिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की कमान भारतीय मूल के पराग अग्रवाल के हाथों में आ गई।

मज़ का कहना था कि अपने काम के दौरान उन्होंने पाया कि ट्विटर को अपनी सुरक्षा खामियों को दूर करने के लिए बहुत कुछ करना है। उन्हें कई गंभीर किस्म की चूकों का पता चला लेकिन बाहरी दुनिया, उपभोक्ताओं, निवेशकों के सामने ट्विटर के आला लोग एक दूसरी ही किस्म की तस्वीर पेश करते रहे- एक मायने में सबको धोखा देते रहे।

ट्विटर बाकी तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से अलग है और खास तौर पर खबरों, जानकारियों को तुरंत पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण जरिया है जिस पर लोगों को काफी भरोसा रहा है। ट्विटर इस लिहाज से भी लोगों की पसंद रहा है कि वह इस्तेमाल करने वालों को अपनी पहचान सार्वजनिक न करने की भी गुंजाइश देता रहा है। कई लोगों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा के लिहाज से यह जरूरी रहा है। यही वजह है कि यहां कई अनाम व पैरोडी अकाउंट भरपूर मात्रा में है, पसंद भी किए जाते हैं। लेकिन इसी के चक्कर में ट्विटर का तंत्र असली अकाउंट व मशीनी अकाउंट (बॉट) के बीच भेद करना भूल जाता है।

ट्विटर सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का भी सबसे बड़ा गढ़ है। ट्रोलिंग कभी इतनी ज्यादा, वीभत्स व हिंसक भी रही है कि लोगों ने ट्विटर का इस्तेमाल तक करना बंद कर दिया है। एक बड़ी नाजुक सी दीवार अभिव्यक्ति की आजादी और ट्विटर के जहरीले इस्तेमाल के बीच रही है और हाल के सालों में तमाम देशों में यह दीवार खिसकती, दरकती और गिरती रही है। भारत में पत्रकारों, खास तौर पर महिला पत्रकारों व एक्टिविस्टों को धमकियां देने, सांप्रदायिक दंगों को हवा देने और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने में भी ट्विटर का काफी इस्तेमाल हुआ है। ट्विटर का सुरक्षा तंत्र इसी में सबसे मजबूत होना चाहिए था लेकिन नहीं हो सका है।

मज़ इन सारी खामियों की ओर इशारा अपने डिसक्लोजर में करते हैं। ट्विटर के कुल स्टाफ में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है जिनकी पहुंच संवेदनशील डाटा तक है और इस स्थिति में उसकी डाटा नियंत्रण प्रणाली, सॉफ्टवेयर सुरक्षा को जितना मजबूत होना चाहिए था, वह नहीं हो सका है। ऐसे में ट्विटर के लिए निरंतर खतरा बाहर से और भीतर से, दोनों ही है। भारत जैसे देश में मौजूदा निजाम के तहत काम करना कितने दबाव झेलने वाला है, यह तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पिछले कुछ सालों से देखते-सहते आ रहे हैं।

भारत सरकार से इस सिलसिले में किसी जवाब की अपेक्षा रखना बेमानी है, लेकिन ट्विटर को तो थोड़ी साफ़गोई बरतने के लिए मजबूर करना ज़रूरी हो गया है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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