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मास्टरस्ट्रोक: 56 खाली पन्नों की 1200 शब्दों में समीक्षा 

समकालीन भारत अदृश्य स्याही से अपनी असफल कहानियों को लिख रहा है। उन खाली पन्नों को गौर से देखेंगे तो आपको इसके असली मायने समझ में आ जायेंगे। 
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कोविड-19 महामारी की क्रूर दूसरी लहर के दौरान हंसी का एक दुर्लभ क्षण amazon.com पर अब एक प्रसिद्ध ई-पुस्तक  “मास्टरस्ट्रोक: 420 सीक्रेट्स जिससे प्रधानमंत्री ने भारत में रोजगार पैदा किया (MASTERSTROKE: 420 secrets that helped PM in India’s employment growth)" में नजर आया। इसे 23 मई को लांच किया गया था, और दो दिन बाद ही इसे वापस ले लिया गया था। 56 रूपये मूल्य की इस पुस्तक में कुल 56 पृष्ठ थे, जो बिल्कुल खाली थे। मास्टरस्ट्रोक ने अपने दो दिनों की छोटे जीवनकाल में अपनी ओर अभूतपूर्व ध्यान खींचने में सफलता पाई, सोशल मीडिया में इसकी धूम मच गई और लोगों ने जमकर ठहाके लगाये। हम लेखक के आभारी हैं, जिन्होंने बेरोजगार भक्त नाम से अपना छद्मनाम रखा, जिसने निश्चित तौर पर इन निराशाजनक दिनों में मनोरंजन का इंजेक्शन लगाने का काम किया।  

इस सबके बावजूद हमारी कृतज्ञता हमें यह पूछने से नहीं रोक सकती कि: लेखक ने एक व्यंग्यात्मक ई-बुक प्रकाशित करने के लिए एक छद्म नाम का विकल्प क्यों चुना? क्या उन्होंने खुद – इतना तो तय है कि इसके लेखक एक पुरुष हैं —या ई-कॉमर्स साइट ने प्रधानमंत्री के खिलाफ खाली फायरिंग करने के नतीजों से घबराकर इस किताब को वापस ले लिया? इससे राष्ट्र के सेन्स ऑफ़ ह्यूमर, भारत में अभिव्यक्ति की आजादी की स्थिति, और इसके प्रकाशन जगत के स्वास्थ्य के बारे में क्या पता चलता है?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए जरूरी है कि विदेशों में प्रकाशन के मानदंडों को लेकर एक लघु सर्वेक्षण कर लिया जाए। मास्टरस्ट्रोक “खाली” या “रिक्त” किताबों की शैली से सम्बद्ध है, जो पाठकों को बताता है कि इस शीर्षक का उत्तर है “कुछ नहीं”।

इस शैली के बारे में कहा जाता है कि यह 1880 में अपने अस्तित्व में आई थी, जब यूनाइटेड किंगडम में उस साल के आम चुनावों के दौरान एक 32-पन्नों के खाली पर्चे “अर्ल ऑफ़ डलकेथ की राजनीतिक उपलब्धियां (Political achievement of the Earl of Dalkeith)” को प्रकाशित किया गया था। असल में अर्ल, विलियम मोंटगू डगलस स्कॉट थे, जो पूर्व प्रधानमंत्री विलियम ग्लैडस्टोन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे। अर्ल यह मुकाबला 211 मतों के अंतर से हार गये थे।

हाल के वर्षों के दौरान, खाली पुस्तकों पर जोर 2011 में शेरिडन सिमोव की तरफ से आया, जब उन्होंने “सेक्स के सिवाय हर आदमी क्या सोचता है (What every man think about apart from sex)” किताब को प्रकाशित किया। 4.69 पाउंड्स की कीमत वाली इस किताब के सभी 200 सारे पन्ने खाली थे। इस किताब ने विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच में धूम मचा कर रख दी, जो अक्सर इसका इस्तेमाल लेक्चर के दौरान नोट्स लेने के लिए करने लगे थे। उनके उत्साह ने इस पुस्तक को अमेज़न की बेस्टसेलर सूची में 44वें स्थान पर पहुंचा दिया था। आप यकीन करें चाहे न करें, लेकिन एक स्पेनिश प्रकाशन कंपनी ने उनकी इस किताब का अनुवाद करने का फैसला किया, और इसके लांच के लिए उन्हें मेड्रिड ले जाया गया, और बदले में अच्छी-खासी रॉयल्टी का भुगतान तक किया। कुछ लोगों के विचार में सिमोव भाग्यशाली थे क्योंकि “महिलाओं के बारे में पुरुषों को सब कुछ पता है” भी एक खाली किताब थी, जिसने बिना कोई हलचल मचाये अमेज़न में कई वर्षों तक अपने स्थान को कायम रखा।

2012 में सिमोव की किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया, जब उन्होंने एक और खाली किताब “फिफ्टी शेड्स ऑफ़ ग्रे”, जिसमें उनके द्वारा ईएल जेम्स के कामुक उपन्यास, ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ़ ग्रे’ की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश की गई थी । सिमोव की पुस्तक का प्रत्येक पन्ना 200वें पृष्ठ तक जाते-जाते उत्तरोतर गहरा भूरा होता चला गया। ईएल जेम्स के प्रकाशक रैंडम हाउस ने सिमोव द्वारा जानबूझकर ग्रे को गलत वर्तनी के साथ छापने पर नाखुश होते हुए उनके खिलाफ क़ानूनी नोटिस भिजवा दिया। इस बात परवाह किये बिना कि उसके द्वारा सिमोव की गैर-रिक्त पुस्तक “आइडियाज मैन” भी प्रकाशित की गई थी। सिमोव को आख़िरकार अपने फिफ्टी शेड्स वाले संस्करण की लुगदी बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

सिमोव की 2011 की सफलता ने एक अमेरिकी नागरिक, जिमी मोंक्रिएफ़ को एक 200 पन्नों की खाली किताब “एव्रीथिंग ओबामा नो अबाउट द इकॉनमी (Everything Obama know about the Economy)” के स्वयं-प्रकाशन के लिए प्रेरित कर दिया। शुरू-शुरू में तो मोंक्रिएफ़ ने एव्रीथिंग ओबामा की 100 प्रतियों को ही तैयार करवाया था, लेकिन जल्द ही तेजी से हो रही बिक्री के चलते उन्हें इसकी और प्रतियाँ तैयार करनी पड़ीं। अमेज़न पर इसकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गई थी कि सिगार की दुकानों तक में मोंक्रिएफ़ का स्टॉक मौजूद रहा करता था।

2016 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में डोनाल्ड ट्रम्प के आगमन ने रिक्त-पुस्तक की शैली को भरने में वास्तविक उछाल देने का काम किया। सबसे पहले प्रकाशित करने वालों में एक ऑरेगोन की पूर्व प्रथम महिला सिल्विया हेस थीं, जिन्होंने नवंबर 2016 में डॉ. ऐन एलीस्टीयम के छद्म नाम से “सरप्राइज़िंग रीजन टू बिलीव ट्रम्प विल बी ए (बिगली) ग्रेट प्रेसिडेंट (“Surprising Reasons to Believe Trump will be a (Bigly) Great President) प्रकाशित की थी। उनकी किताब में मौजूद सभी 150 पृष्ठ खाली थे, और यह अमेज़न पर 10$ में उपलब्ध थी; जबकि इसके ई-संस्करण की कीमत मात्र 3$ रखी गई थी। 

रिपब्लिकन अपने जवाबी हमले के साथ काफी तेज साबित हुए, जिसे पत्रकार माइकल जे नोल्स के “डेमोक्रेट्स के पक्ष में वोट करने की वजहें: एक व्यापक वृहद मार्गदर्शिका (Reasons to Vote for Democrats: A Comprehensive Guide) द्वारा दिया गया। फरवरी 2017 में प्रकाशित नोल्स की किताब के सभी 260 पन्ने खाली थे, जिसकी कीमत 9.9$ रखी गई थी, और इसके आवरण पृष्ठ पर एक गधे को सितारों और धारियों के साथ पेंट किया गया था। कुछ ही दिनों में यह किताब अमेज़न की बेस्टसेलर सूची में पहले स्थान पर काबिज हो गई, जिसमें ट्रम्प का योगदान कम नहीं रहा, जो तब तक पहले से ही राष्ट्रपति बन चुके थे, ने एक ट्वीट “हो! हो! हो! के साथ इसका समर्थन किया था।”

जल्द ही डेमोक्रेट्स ने प्रतिउत्तर में चार डेली की 130 पन्नों वाली “रिपब्लिकन के पक्ष में वोट करने की वजहें: एक चित्ताकर्षक व्याख्या (Reasons to vote for Republicans: A Captivating Interpretation) शीर्षक के तहत एक पुस्तिका छपवा दी। अमेज़न पर 6.95$ की कीमत पर उपलब्ध, इसके मुखपृष्ठ पर सितारों और धारियों से रंगा एक हाथी था। लेकिन यह किताब नोल्स की बिक्री को पछाड़ने में विफल रही, इसकी वजह शायद यह रही कि ट्रम्प की चुनावी जीत के चलते डेमोक्रेट्स बुरी तरह से हताश थे। 

उपरोक्त सर्वेक्षण से पता चलता है कि अमेज़न ब्लेंक किताबों को छापने से नहीं हिचकिचाता, यहाँ तक कि उन किताबों को भी, जो नेताओं और राजनीतिक दलों पर कटाक्ष करते हैं - या कामुक हैं। ना ही रिक्त पुस्तकों के लेखक अपने नामों का इस्तेमाल करने में कतराते हैं। यहाँ तक कि जो छद्मनाम के विकल्प को चुनते हैं, वे भी अपनी पहचान को बाहर आने देने को वरीयता देते हैं, जैसा कि हेस ने किया था।

इसलिए यह चिंताजनक है कि अमेज़न या बेरोजगार भक्त या उन दोनों ने ही मात्र दो दिनों में ही मास्टरस्ट्रोक को बंद करने का फैसला किया। इसकी वजह शायद यह हो सकती है कि दो दिनों में मास्टरस्ट्रोक ने जिस प्रकार से लोगों का ध्यान आकर्षित किया था, उसने उन्हें विचलित कर दिया था। गुमनामी और चुप्पी यक़ीनन किसी भारतीय के लिए राज्य सत्ता और ट्रोल्स से बचाव का सबसे बेहतर विकल्प है। यह भी संभव है कि लेखक और ई-कॉमर्स दिग्गज ने यह देखकर अपना आपा खो दिया हो, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से खाली पन्नों या रिक्त स्थानों ने भारत में एक नया ही अर्थ ग्रहण कर लिया है।

मेरे कम से कम चार मित्रों ने यह बताने के लिए फोन किया कि मास्टरस्ट्रोक में खाली पृष्ठों ने उन्हें अदृश्य स्याही की जादुई वैज्ञानिक प्रयोग की याद ताजा करा दी, जिसे उन्हें उनके स्कूल के दिनों में सिखाया गया था। इस प्रयोग में निम्नलिखित चरण शामिल थे-- नींबू की एक या दो रत्ती रस लें, इसमें ब्रश को डुबोएं, एक कोरे कागज पर एक संदेश लिखें और इसे सूखने के लिए छोड़ दें। आप पायेंगे कि पन्ना पूरी तरह से खाली हो गया है। फिर कागज को एक जलते बिजली के बल्ब के सामने रखें, या इसके उपर इस्तरी कर दें। चमत्कार! संदेश दोबारा से नजर आने लगता है। (इस प्रयोग को इस वीडियो में देखा जा सकता है।)

विज्ञान के प्रयोग का उनका स्मरण हमारे समाज में व्याप्त व्यामोह की गवाही देता है। इसे समझा जा सकता है— समकालीन रानजीति पर अधिकांश समाचार पत्रों और पुस्तकों की अंतर्वस्तु में ऐसा कुछ भी नहीं है जो छुपाने लायक हो। यदि मास्टरस्ट्रोक को वापस नहीं लिया जाता तो इस बात की काफी संभावना है कि इसकी लोकप्रियता को देखकर शायद लोगों को भरोसा हो जाता कि इसके 56 खाली पन्नों में अदृश्य स्याही से जरूर 420 रहस्य लिखे गए होंगे!

भारत में खाली पन्नों या रिक्त स्थान आपातकाल के दौरान प्रतिरोध को प्रतीक बन गए थे, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 25-26 जून की मध्यरात्रि में देशप्र थोपा था। इंडियन एक्सप्रेस ने अपने 28 जून 1975 के संपादकीय को खाली फ्रेम से मढ़ा था; जबकि यही काम हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने 26 जून के संपादकीय में किया था। एचटी ने अपने संपादक, बीजी वर्गीज को इस प्रकार की हिम्मत दिखाने के लिए बर्खास्त कर दिया था। राजमोहन गाँधी ने जिस "द स्पंकी हिम्मत मैगजीन (The Spunky Himmat Magazine)" का संपादन किया था, उसके दो लगातार अंकों में संपादकीय की जगह रिक्त रखी गई थी। 

जिस प्रकार से कोरी किताबें अपने शीर्षकों की प्रतिक्रिया में “कुछ नहीं” कहती हैं, उसी प्रकार समाचार पत्रों में रिक्त स्थान शोक में, मौन में, अभिव्यक्ति की आजादी में आई गिरावट को बयां करते आये हैं। यह परंपरा आज भी जारी है। 2017 में, त्रिपुरा में अखबारों ने सेना के एक अधिकारी द्वारा पत्रकार सुदीप दत्ता भौमिक की हत्या के जवाब में अपने संपादकीय पृष्ठों को खाली जाने दिया था। 2019 में जम्मू-कश्मीर में समाचारपत्रों ने सरकार द्वारा अचानक से विज्ञापन देने से इंकार करने के फैसले के विरोधस्वरुप अख़बारों के मुखपृष्ठ को कोरा ही जाने दिया था।

इस बात से समझ सकते हैं कि बेरोजगार भक्त ने मास्टरस्ट्रोक में 420 (रहस्यों) और 56 (पन्नों) जैसी संख्याओं के जरिये जिस बात की ओर इशारा किया है, उसके बारे में पाठक जानते हैं। भारत में रिक्त पुस्तकों की शैली को अपने दम पर लाने के प्रयास के लिए उनकी निश्चित तौर पर सराहना की जानी चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके इस प्रयास से प्रकाशन जगत को जोक बुक्स और “एग्जाम वारियर्स” जैसी पुस्तक, जिसे प्रधानमंत्री द्वारा कलमबद्ध किया गया है, जो एसएआरएस-सीओवी-2 की विषाक्तता, वह वायरस जिसकी वजह से कोविड-19 का कहर बरपा हुआ है, की तुलना में मुख्यमंत्रियों और विपक्ष के नेताओं से भिडंत करने में कहीं अधिक दक्षता हासिल है, से परे हटकर हास्य एवं बोलने की आजादी के बारे में सोचने के लिए प्रेरित होंगे। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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