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26 जनवरी को बड़ी महापंचायत की तैयारी, जींद मे लगने जा रहा है किसानों का बड़ा जमावड़ा !

एकबार फिर किसान देशव्यापी आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। इसकी पहल के तौर पर 26 जनवरी को जींद मे उत्तर भारत के किसानों का जमावड़ा लगने जा रहा है। इस महापंचायत मे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल और उत्तराखंड के किसानों के जुटने की उम्मीद है। जबकि बाकी अन्य राज्यों के किसान अपने-अपने जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन करेंगें और ट्रैकटर मार्च निकलेंगे।
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फाइल फ़ोटो। PTI

हमनें दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के दौरान देखा है कि कैसे देशभर मे खासकर उत्तर भारत में बड़ी-बड़ी किसान महापंचायतें हुईं। इस पंचायत में आने वाले लोग पूरी गंभीरता से किसान नेताओं को सुनते थे। यहां आने वाले लोग पूरी तरह से जानते थे कि ये पंचायत क्यों की जा रही है। इन पंचायतों को सर्वजातीय बनाया गया था। इसने किसानों के आंदोलन को गाँव-गाँव तक ले जाने में मदद की और दिल्ली की सीमाओं पर मोर्चे को मजबूत किया। दिल्ली की सीमाओं से किसान आंदोलन की वापसी के बाद किसानों का शायद ये सबसे बड़ा जमावड़ा होने वाला है।

पहले की पंचायतों की तरह ही 26 जनवरी की किसान महापंचायत में हज़ारों-हज़ार लोगों का हुजूम आने की उम्मीद जताई जा रही है। इसकी तैयारी भी पूरे जोर-शोर से जारी है। हमनें भी किसान नेताओं से बात करके इस महापंचायत की तैयारी और देश के किसानों के लिए इसके महत्व को समझने का प्रयास किया।

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) जिसके नेतृत्व में ही दिल्ली की सीमाओं पर किसानों ने एक साल से अधिक समय तक संघर्ष किया और अंत मे सरकार को इनके आगे झुकना पड़ा था, इनके नेता और भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के महासचिव युद्धवीर सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, ‘‘गणतंत्र दिवस मनाने और आधिकारिक सरकारी कार्यक्रमों को बाधित किए बिना राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद ट्रैक्टर रैलियां निकाली जाएंगी और जिला मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।’’

सिंह ने आगे कहा, “26 जनवरी हमारा गणतंत्र दिवस है और हम उस दिन गणतंत्र के मूल उद्देश्यों को बचाने के लिए इकठ्ठा होंगे। इसके साथ ही हम सरकार द्वारा देश के मेहनतकश किसानों की एकता को तोड़ने संबंधी भाजपा सरकार की ‘‘साज़िश का पर्दाफाश’’ करेंगे। सरकार ने 26 जनवरी 2021 को किसानों को बदनाम करने की एक बड़ी साज़िश रची थी लेकिन किसानों की एकता ने उसे कामयाब नहीं होने दिया था।”

आपको बता दें 26 जनवरी 2021 को किसानों ने दिल्ली सीमाओं पर चल रहे अपने मोर्चों से दिल्ली के अंदर तक ट्रैक्टर मार्च निकालने का ऐलान किया था परंतु इस दौरान कुछ किसान ट्रैक्टर लेकर लालकिले तक पहुँच गए थे और किले के ऊपर एक धार्मिक चिन्ह वाला झण्डा फहरा दिया था। इस दौरान वहाँ हिंसा भी हुई जिसमें कई पुलिस कर्मी भी ज़ख्मी हुए जबकि एक किसान की मौत भी हो गई थी। और बड़ी संख्या में किसानों को भी चोट आई थी। हालांकि हिंसा के दो साल बीत जाने के बाद भी आजतक इस घटना के पीछे साज़िशकर्ता कौन था इसपर सरकार पक्के तौर पर कुछ कह नहीं सकी है। जबकि किसान इस घटना के लिए सरकार को ज़िम्मेदार बताते हैं और कहते हैं कि सरकार ने देश के किसान और उनके आंदोलन को बदनाम करने के लिए ये साज़िश रची थी।

हरियाणा, जहां ये किसान महापंचायत होनी है, वहां के बड़े किसान नेता इंद्रजीत जो एसकेएम से जुड़े हैं और अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि, "इस महापंचायत के लिए पूरे राज्य में युद्धस्तर पर तैयारियां चल रही हैं। जिला और ब्लॉक लेवल पर लोगों को इकट्ठा किया जा रहा है।"

आगे वे कहते हैं, "इस महापंचायत का उद्देश्य दिल्ली मे बैठी सरकार को अपने किए गए वादे याद दिलाना है। सरकार ने हमें लिखित वादा किया था लेकिन आजतक कोई वादा पूरा नहीं हुआ है। आज भी हम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), किसानों की संपूर्ण कर्जमुक्ति और बिजली संशोधन विधेयक 2020 की वापसी जैसे मुद्दों को लेकर लड़ने को मजबूर हैं। इन्ही मांगों को लेकर एकबार फिर से संयुक्त मोर्चे के आह्वान पर किसान एकजुट हो रहे हैं।"

इंद्रजीत कहते हैं, "हरियाणा मे सिर्फ किसान सभा ही 25 हज़ार लोगों को एकत्र कर पंचायत मे लाएगी। जबकि बाकी किसान संगठन भी किसानों को एकजुट करने मे लगे हैं। इसके साथ ही हमनें 50 हज़ार किसानों के लिए चाय और खाने की व्यवस्था की है। इसके लिए आसपास के गाँव के किसान लगे हुए हैं जबकि पंजाब के हमारे किसान कई सारे मोबाइल लंगर की भी व्यवस्था करने वाले हैं।"

हमनें उनसे पूछा कि किसान आंदोलन की वापसी के बाद संगठनों में मतभेद दिखे थे क्या उसका असर इस महापंचायत पर होगा? इस पर इंद्रजीत ने कहा, "पंजाब के कुछ किसान संगठनों में कुछ मतभेद तो हुए थे लेकिन चुनाव के बाद अधिकतर लोग वापस मोर्चे से जुड़ गए हैं। हालांकि इस तरह के बड़े आंदोलन में किसान संगठन और उसके नेता से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण किसान होते हैं और किसान, सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ लामबंद हैं।

पंजाब के बड़े किसान नेता और संयुक्त किसान मोर्चा के बड़े स्तंभ जोगिंदर सिंह उगराहां और उनका किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन उगराहां इस महापंचायत को सफल करने के लिए राज्यभर में किसानों को इकठ्ठा कर रहा है और ब्लॉक व जिला स्तर पर किसानों के सम्मलेन भी कर रहा है।

इस तरह का एक सम्मेलन पटियाला में 19 जनवरी के दिन किया गया जिसमें उनकी राज्य कमेटी के नेता जगतार सिंह कालाझार ने कहा कि पटियाला जिले की हर संगठनात्मक इकाई, सक्रिय गांवों में कम से कम एक बस और एक से अधिक बस भरने की तैयारी कर रही है। महिला बहनों मे अलग ही उत्साह दिखा रहा है।

एक अन्य किसान नेता सुखमिंदर सिंह बारां व वरिष्ठ उपाध्यक्ष जगदीप सिंह चन्ना ने कहा कि किसान विरोधी कानूनों को निरस्त कराने की ऐतिहासिक जीत के बाद अब इस देशव्यापी आंदोलन में किसानों के जीवन सुधारने से जुड़ीं महत्वपूर्ण मांगों को लागू करवाने की लड़ाई है। एक या दो नहीं बल्कि सभी 23 फसलों पर लाभकारी एमएसपी और कानूनी खरीद की गारंटी की मांग के साथ-साथ, लखमीरपुर खेरी हत्याकांड के संबंध में पूर्ण न्याय दिलाना, बिजली बिल 2021 रद्द करवाना, किसानों और मजदूरों के सर पर कर्ज खत्म कराना, 60 वर्ष से ऊपर के किसानों सहित महिलाओं को वृद्धा पेंशन, फसल बर्बाद होने पर फसल बीमा योजना के तहत पूर्ण मुआवज़ा, दिल्ली आंदोलन में दर्ज सभी पुलिस केस वापस और आंदोलन में शहीद हुए सभी किसान मज़दूर के वारिसों को उचित मुआवज़ा, हर एक मृत किसान के परिवार को स्थायी नौकरी आदि मांगें शामिल है।

पहाड़ी राज्य हिमाचल से भी इस महापंचायत में किसानों के शामिल होने की उम्मीद है। हिमाचल किसान सभा के अध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि अभी मौसम प्रतिकूल है और राज्य मे बर्फबारी हो रही है जिस वजह से कई इलाकों में रास्ते बंद हो जाते हैं। इसलिए यहां से सांकेतिक रूप से लगभग 100 किसानों का एक जत्था जींद किसान महापंचायत मे शामिल होगा।

तंवर आगे कहते हैं, "हमारे राज्य मे किसान को केवल गेहूं और धान पर एमएसपी मिलती है जोकि हमारी कृषि उपज का छोटा हिस्सा है। हालांकि उसके लिए भी उचित मंडी नहीं होने की वजह से सभी किसानों को एमएसपी का लाभ भी नहीं मिलता है। हमारे राज्य में किसान बड़ी संख्या मे सेब और सब्जियों का उत्पादन करते हैं। वो आगे बताते हैं कि राज्य मे लगभग 20 लाख टन सब्जी का उत्पादन होता था जबकि 6 लाख टन सेब का उत्पादन होता था लेकिन सरकारों की किसान विरोधी नीति के कारण किसानों को उचित दाम नहीं मिलता है। हम कई सालों से सरकार से जम्मू कश्मीर की तर्ज पर सेब के दामों की घोषणा करने की मांग कर रहे हैं लेकिन आजतक ये मांगें अनसुनी हैं। इन्ही सवालों को लेकर किसान आंदोलित हैं। इस महापंचायत से देश में भविष्य में बड़े किसान आंदोलन की रूपरेखा का भी ऐलान होगा।”

वहीं राजस्थान के किसान संगठन जींद महापंचायत में शामिल नहीं होंगे लेकिन जैसा कि पहले से तय है, राज्य के कई जिलों मे ट्रैक्टर मार्च और जिला मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन किए जायेंगें। 

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