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झारखंड: याद किये गए फ़ादर स्टैन स्वामी, हिरासत में मौत के जिम्मेवारों को सज़ा की उठी मांग

5 जुलाई को फ़ादर स्टैन स्वामी के प्रथम शहादत दिवस को झारखंड प्रदेश की संघर्षशील ताकतों ने शोक को संकल्प में बदल देने के आह्वान के साथ मनाया।
Father Stan
फ़ादर स्टैन स्वामी की मौत के ज़िम्मेदार लोगों की गिरफ़्तारी की माँग

मेरी जानकारी और याद में यह शायद पहला मौक़ा था जब भारत के किसी हाई कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष, यानी सरकार की ओर से अदालत को यह बताया गया कि जिस अभियुक्त की ज़मानत अर्जी पर विचार होना है, उसकी जेल में ही मौत हो चुकी है।

ऐसा भी शायद पहली बार ही हुआ हो कि एक अभियुक्त जिस पर राजद्रोह का आरोप था, की मौत की ख़बर सुनने पर हाईकोर्ट के माननीय जज ने दुःख जताने के साथ ही उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त की हो। साथ ही यह भी कहा हो कि उनकी इस दुखद मौत के लिए कहीं न कहीं हम सब जवाबदेह हैं। वह अभियुक्त स्टैन स्वामी थे।

उक्त महत्वपूर्ण कथन इस 5 जुलाई की सुबह रांची के वरिष्ठ एक्टिविस्ट पत्रकार श्रीनिवास जी द्वारा सबके ध्यानार्थ लिखकर प्रेषित किया गया।

जो यह दर्शाने के लिए काफी है कि न सिर्फ झारखंड प्रदेश बल्कि देश कई इलाकों के इंसाफ़ व लोकतंत्र पसंद नागरिक समाज में जन अधिकारों के योद्धा स्टैन स्वामी की सत्ता नियोजित मौत का सवाल आज भी पूरी मजबूती से क़ायम है। साथ ही मौजूदा सत्ता-शासन के दिनों दिन बढ़ते जा रहे दमनकारी चरित्र और न्याय तंत्र पर अपना दबदबा बढ़ाने के रवैये के खिलाफ विरोध की उठती आवाजों के बढ़ने का भी संकेत है।

इस बार 5 जुलाई का दिन झारखंड प्रदेश की लोकतंत्र पसंद अवाम के साथ साथ जन अधिकारों के लिए लड़ने वाली सभी ताक़तों के लिए गहरे अवसाद और काफी क्षोभ भरा दिवस के रूप में रहा। क्योंकि महज एक वर्ष पूर्व राज्य की जिन सड़कों पर कभी ‘स्टैन स्वामी को रिहा करो’ के नारे लगाए जाते थे आज उन्हीं सड़कों पर ‘स्टैन स्वामी के हत्यारों को सजा दो’ जैसे नारे लग रहे थे। स्टैन स्वामी अब सदेह कभी नहीं नज़र आयेंगे को मानना, उन सबों को काफी खल रहा था जिनके साथ पिछले कई दशकों से स्टैन स्वामी लगातार ज़मीनी संघर्ष में सक्रीय रहे।   

5 जुलाई को फ़ादर स्टैन स्वामी के प्रथम शहादत दिवस को झारखंड प्रदेश की संघर्षशील ताकतों ने शोक को संकल्प में बदल देने के आह्वान के साथ मनाया। जिसके माध्यम से स्टैन स्वामी को राज्य दमन का शिकार बनाने वाली मोदी सरकार द्वारा तीस्ता शीतलवाड़ व मो.जुबैर समेत जेलों में बंद किये सभी मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं, जन अधिकारों के कार्यकर्त्ताओं तथा विचाराधीन कैदियों को अविलंब रिहा करने की पुरजोर मांग उठायी गयी।

शहादत दिवस का केंद्रीय आयोजन हुआ ‘फ़ादर स्टैन स्वामी न्याय मोर्चा’ के बैनर तले निकाला गया, राजभवन विरोध मार्च के रूप में। झारखंड प्रदेश के सभी वामपंथी दलों और सामाजिक जन संगठनों के इस साझा मंच द्वारा आयोजित यह मार्च रांची स्थित ऐतिहासिक शहीद चौक से निकाला गया जो राजभवन जा कर ‘स्टैन स्वामी शहादत-संकल्प सभा’ में तब्दील हो गया। इस मार्च में काफी संख्या में नागरिक समाज के प्रतिनिधि, सोशल एक्टिविष्ट तथा राजनितिक कार्यकर्ता शामिल हुए।

संकल्प सभा को चर्चित आंदोलनकारी दयामनी बारला समेत सभी वाम दलों के नेताओं ने संबोधित किया। सभा द्वारा राज्यपाल को ज्ञापन सौपते हुए ये मांग की गयी कि- स्टैन स्वामी कि हिरासत में हुई मौत के जिम्मेदारों को चिन्हित कर ज़ल्द सजा दी जाए, जेलों में बंद तीस्ता शीतलवाड़ एवं मो. जुबैर समेत सभी नागरिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अविलंब रिहा किया जाए, जेलों में बंद सभी विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जाए तथा लोकतांत्रिक-नागरिक अधिकारों पर हमले बंद हो। 

इसी दिन मनरेसा हाउस सभागार में स्टैन स्वामी द्वारा लिखे गए चर्चित आलेखों की संग्रहित पुस्तिका झारखंड की आवाज़ स्टैन स्वामी’ का भी लोकार्पण किया गया।

इसके पूर्व स्टैन स्वामी जी कि स्मृति में शुरू की गयी व्याख्यान माला श्रृंखला के तहत 1 जुलाई को पीयूसीएल रांची इकाई द्वारा जेवियर संस्थान सभागार में मानवाधिकारों पर बढ़ते हमलों पर केन्द्रित विमर्श-व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

व्याख्यान माला का उद्घाटन करते हुए देश के जाने माने संविधान विशेषज्ञ तथा नेल्सार हैदराबाद के कुलपति फैज़ान मुस्तफा ने कहा कि मानव अधिकार के रक्षकों की जरूरत हर काल व समय में रही है, साथ ही हर काल व समय में उन्होंने दमन झेला है। राज्य के आंखों की किरकिरी साबित होते रहे हैं। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि वे राज्य के मनमानी व कानून के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने का प्रयास करते हैं। मानव अधिकार का स्रोत संविधान व कानून न होकर उनका मानव होना ही पर्याप्त होता है मानव अधिकार रक्षक दूसरों के अधिकार के लिए लड़ते हैं।

मानव अधिकार रक्षकों की लड़ाई किसी सरकार या राजनीतिक दल से नहीं होकर राज्य से होती है क्योंकि राज्य ही मानव अधिकार हनन का कार्य भारी पैमाने पर करता है यही कारण है कि सरकार किसी की हो, मानवाधिकार रक्षकों की लड़ाई जारी रहती है। राज्य स्थापना के समय जरूर सोचा गया था कि वह आम आदमी के अधिकारों की रक्षा करेगा लेकिन ऐसा होता नहीं। मानव अधिकार कानून के शासन की मांग करते हैं जो सत्ता को पसंद नहीं होता। 

मानव अधिकार का हनन राज्य सरकार करती है क्योंकि उसके पास कानून बनाने, कार्यान्वयन करने और लागू करने के असीमित अधिकार होते हैं। उसके पास पुलिस व न्यायालय की व्यवस्था होती है। स्वतंत्रता,समता न्याय, बंधुत्व के बिना लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती। मौलिक अधिकारों का हनन न किया जा सकता है ना ही कोई उसे आत्मसमर्पण कर सकता है। मानव अधिकार रक्षकों को दूसरे के अधिकार के लिए तैयार रहना होगा जैसा कि फादर स्टैन ने किया था। दूसरे राज्य से आकर जहां की भाषा नहीं समझते थे और ना ही परिचित थे, लेकिन उनके दुख दर्द उन्हें उनके प्रति उनके समर्पण ने उन्हें रहने को बाध्य किया।

अपने संबोधन के दौरान स्टैन स्वामी के संघर्षशील व्यक्तित्व को नमन करते हुए यह भी कहा कि मैंने तो आज तक किसी प्रोटेस्ट या आन्दोलन में हिस्सा भी नहीं लिया। इस लिहाज से मानवाधिकार पर खासकर स्टैन स्वामी जैसे असाधारण व्यक्तित्व से जुड़े कार्यक्रम में बोलने के लिए खुद को सही पात्र नहीं मानता।

कार्यक्रम को स्टैन स्वामी के साथ जन अधिकार के विभिन्न मुद्दों पर विचार विमर्श में सक्रिय रहने वाले वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रो। रमेश शरण ने भी स्टैन स्वामी के संघर्षों को रेखांकित किया।

प्रदेश के अन्य कई स्थानों पर भी ‘स्टैन स्वामी शहादत दिवस’ कार्यक्रम आयोजित कर उनकी सत्ता नियोजित ह्त्या के जिम्मेवारों को सजा देने तथा नागरिक व मानवाधिकारों पर बढ़ते हमलों के खिलाफ संघर्ष करने का संकल्प लिया गया।

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