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मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

गांव वालों का कहना है कि एग्रो प्रोडक्ट कंपनी में निर्मित होने वाले खाद्य और एसिड की गैस के फैलाव से लोगों को श्वास, पथरी, लकवा, हदयघात, आंखोें में जलन जैसी कई स्वास्थ्य संबंधी गंभीर बीमारियां हो रही है और गांव का जनजीवन चौपट हो रहा है।
madhya bharat

मध्यप्रदेश का सागर जिसे आजादी के प्रकल्प में पंडित जवाहरलाल नेहरू (प्रथम प्रधानमंत्री) ने प्रदेश का ‘‘स्विट्जरलैंड‘‘ कहा था। सागर की वाहवाही का यह लफ़्ज़ लोगों को तब सुनने मिला, जब 1952 में मप्र के पहले विश्वविद्यालय डॉ हरीसिंह गौर में जवाहरलाल नेहरू पुस्तकालय का अनावरण करनेे खुद-ब-खुद जवाहरलाल नेहरू आए। उस जमाने में सागर का प्रमुख उद्योग बीड़़ी उद्योग था। जो काफ़ी फल-फूल रहा था। इस बीड़़ी उद्योग पर सागर के मजदूर वर्ग से लेकर बडे़-बडे़ रईस घराने आलंबित थे। क्योंकि सागर में बीढ़ी उद्योग के अलावा ऐसा कोई उद्योग न था और न है। जो यहां की आवाम को रोजीरोटी चलाने के लिए ढंग का रोजगार दे सके। लेकिन आज के वक्त बीड़ी उद्योग की हालत इतनी किरकिरा हो चुकी है कि बीड़ी मजदूरों का पेट भरना भी दुश्वार हो गया है।

ऐसे में इस वक्त सागर में कुछ छुट-पुट कंपनियां है। जिनमें मजदूरों को कुछ ही दिन काम मिलता है। इन्हीं कंपनियों में से एक कंपनी है ‘‘मध्य भारत एग्रो प्रोडक्ट लिमिटेड‘‘। जो सागर से 25 किमीं दूर छतरपुर जिला मार्ग पर सौरई गांव के समीप स्थित है। जिसका कार्य खाद्य और एसिड का निर्माण करना है। यह कंपनी मूल रूप से वर्ष 1997 में निजी क्षेत्रीय इकाई के रूप में सामने आयी। जो राजस्थान की है। कंपनी को आईएसओ (इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर स्टैंडर्डाइजेशन) से मान्यता प्राप्त है। वर्ष 2004 से मध्य भारत कंपनी ओस्तवाल ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के प्रबंधन में है। जिसके अंतर्गत अंदाजे से 1000 हजार कर्मचारी और मजदूर कार्यरत् है। जिनमें यूपी, बिहार और राजस्थान के भी हैं। क्योंकि कंपनी लोकल के कर्मचारी और मजदूर बहुत कम ही लेती हैं।

मध्य भारत एग्रो प्रोडक्ट लिमिटेड कंपनी

वर्ष 2020-21 के मुताबिक कंपनी का राजस्व सालाना 186 करोड़ रुपये से अधिक है। जिससे यह कहा जा सकता है कि मध्य भारत एग्रो प्रोडक्ट लिमिटेड कंपनी विकास के चरमोत्कर्ष पर है। लेकिन आरोप है कि कंपनी की चिमनियों से निकलने वाला धुआँ और एसिड भरी गैस कंपनी के इर्द-गिर्द मौजूद कई गांव का अस्तित्व तबाह कर रही है। जिनमें सौरई (आबादी करीब 4500)और डिलाखेड़ी (आबादी लगभग 5000) जैसे अन्य गांव भी शामिल है। कंपनी इन गांव को कितना प्रभावित कर रही है, यह जानने के लिए हमने सबसे पहले सौरई गांव का दौरा किया।

कंपनी से परेशान डिलाखेड़ी गांव के कुछ निवासी 

तब वहां की अवाम से हमें यह मालूम चला कि गांव में कंपनी की वजह से लोगों का जीना मुहाल हो गया है। इस गांव के एक किसान इमरत का कहना है कि कंपनी से निकलने वाली एसिड की गैस से हमारी 12 एकड़ जमीन बंजर हो चुकी है। कुछ साल पहले हम इस जमीन से 1 लाख रुपए से ज्यादा की फ़सल उगाते थे, पर अब हमारी एक मौसम में लगने वाली 30 हजार रुपए की लागत भी नहीं निकलती है।

फिर हमने इमरत से जब यह सवाल पूछा कि आपके जैसे और कितने लोगों की फ़सल को नुकसान होता है और क्या कंपनी इसका मुआवज़ा नहीं देती? तब इस संबंध में इमरत कुछ बोलते है कि, उनकी पत्नी कहती है कि अजी! चुप रहिए। सबकी समस्या को अपने गले क्यों ले रहे है। हमें बच्चे भी पालने है। आज की कंपनियों को सरकार तगड़ी सहायता करती है। इन कंपनियों के खिलाफ़ बड़े से बड़े सूरमा नहीं बोलते, जो बोलता है, उस पर कंपनियां सरकारी मदद से लाठियां बजा देतीं है। लेकिन पत्नी के वचन सुनकर भी, इमरत चुप नहीं रहते। वह कहते हैं कि गांव में कंपनी के निकट कुछ और किसानों की भी खेती है। जो चौपट हो चुकी है। आगे इमरत कहते है कि हमने मुआवज़े की मांग को लेकर एसडीएम और विधायक तरुवर सिंह लोधी को दो मर्तबा ज्ञापन के जरिए दरख़्वास्त की है कि हमारी फसल की भरपाई या तो कंपनी करे या फिर सरकार करे। लेकिन फसल की भरपाई के लिए सरकार ने अब तक कोई फ़रमान जारी नहीं किया।    

गांव में जैसे ही हम भीतर की ओर घुसे, तब हमारी भेंट कुछ बडे़-बूडों से हुई। जिनसे जब हमने यह जानना चाहा कि कंपनी में बनने वाली एसिड की गैस के फैलाव से लोग-बाग किस तरह परेशान हैं? तब वहां उपस्थित 12 वीं पास योगेन्द्र बताते हैं कि कंपनी में बनने वाली एसिड की गैस के फैलाव से हवा-पानी बहुत दूषित हो चुका है। जिससे सांस लेने पर दिमाग खराब हो जाता है और पानी पीने पर पेट। इसके उपरांत योगेन्द्र कहते हैं कि कंपनी में पानी स्टोर करने के लिए कुछ तालाब बने हैं। जिनका पानी एसिड भरा रहता है। जो तालाब फुल होने पर कभी-कभार झलककर बाहर आ जाता है। जिसे मवेशी पी लेते हैं। जिससे करीब 10 प्रतिशत मवेशी मर जाते है। आगे वह कहते हैं कि हम ख़ौफ़ के मारे ऐसे किसी मामले के बारे में कंपनी के अधिकारियों से तूं-तड़ाक नहीं कर सकते। वरना वह मारपीट करते हैं। और इस मामले में बडे़ से बडे़ पुलिस अफ़सर तक हस्तक्षेप नहीं कर सकते।

सिंधी कहते है कि कंपनी में बनने वाली एसिड की गैस की दुर्गंध का इतना फैलाव है कि आपको इसका अंदाजा छतरपुर जाने वाले मार्ग पर 5 मिनट खड़े होने से हो जायेगा। और तेज हवा चलने पर यह दुर्गंध बंडा तहसील तक पहुंच जाती है। आगे सिंधी ज़िक्र करते हैं कि पहले कंपनी के आसपास बने घरों में कुछ लोग रहते थे, पर कंपनी से निकलने वाली गैस और धुंए से वे लोग इतने परेशान हो गये कि उन्हें अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा। जिससे उनके घरों पर अब ताले लटके हैं। और वे लोग अन्य जगहों पर रहने को विवश हैं।

सिंधी इसके पश्चात बताते है कि गांव में कुओं और नल के पानी में एसिड मिला आ रहा है। जिससे पानी नीला हो गया है। और पानी से गटर और एसिड जैसी बदबू आती है। जिसे पीने से यहां के कुछ लोग पथरी और सुगर जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं। इसके आगे सुन्दर बोल पड़ते है कि सुगर से पीड़ित एक व्यक्ति मेरे घर में भी है।

फिर पुनः सिंधी फिर बोल पड़ते है। वह कहते हैं कि कंपनी से निकलने वाली हानिकारक गैस से गांव में बहुत से लोगों की आंखें भी खराब हो चुकी है। जिसका एक उदाहरण मैं भी हूं। मुझे आखों से दिखाई नहीं देता है। जिनके इलाज पर मैं 40 हजार रुपए खर्च कर चुका हूं। पर आंखें अभी तक ठीक नहीं हुयी।

आगे मनिराम बताते है कि कंपनी से निकलने वाली एसिड की गैस से आंखो में जलन होती है। सांस लेने में तक़लीफ़ होती है। यहां तक की कुछ लोग तो श्वास की बीमारी से भी पीड़ित है। और कुछ हदयघात से।

कंपनी से निकलने वाली  गैस के प्रभाव सूख चुका महुआ का पेड़ 

फिर जब हमने यह प्रश्न पूछने के लिए मुंह खोला कि कंपनी के नकारात्मक प्रभाव से आप लोग इतनी सारी मुसीबतें, कैसे झेल रहे है, क्या इन मुसीबतों को कंपनी के अधिकारी और सरकार के सामने नहीं रखते? तब राजीव बताते है कि हमने कंपनी के बड़े अधिकारी कहे जाने वाले जीएम साहब के सामने यह स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं रखी थी। तब जीएम साहब ने कहा था कि हम कंपनी की चिमनियों को ऊंचा करवा देगें, ताकि कंपनी से निकलने वाली एसिड की गैस और धुआं गांव के पास न रहे। आगे जीएम साहब ने कहा था कि जिनकी आंखों की रोशनी चली गयी, सांस की बीमारी है या कंपनी के प्रभाव से अन्य बीमारियां हैं। उनके इलाज के लिए एक अच्छा अस्पताल खोलेेगें। और उसमें बाहर से अच्छे डॉक्टर लायेगें। जो सबका अच्छा इलाज करेगें। लेकिन न तो गांव में अभी तक अस्पताल खुला है। न डॉक्टर आये हैं। वहीं कंपनी की चिमनियां भी ज्यों की त्यों हैं। उन्हें भी ऊंचा नहीं किया गया।

आगे सुन्दर बताते हैं कि कंपनी के कहर को रोकने के लिए सौरई और इससे सटे गांव डिलाखेरी की एक साल पहले सामूहिक पंचायत भी लगाई गयी। लेकिन यह पंचायत कोई समाधान नहीं निकाल सकी। इसके बाद सुन्दर कहते हैं कि कंपनी और गांव का जायज़ा लेने कलेक्टर महोदय भी आ चुके हैं। मगर उन्होनें भी कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। फिर इसके आगे योगेन्द्र आरोप लगाते हुए कहते हैं कि गांव के दो साख-धाक रखने वाले व्यक्ति रणवे और नन्नेभाई कंपनी से परेशान गांव वालों की आवाज उठाने के बजाए कंपनी से रिश्वत लेकर चुप्पी साध लेते है। उनका कहना यह भी था कि कंपनी के अंदर और बाहर रिश्वतखोरी भी जमकर हो रही है।

फिर हमनें सौरई गांव के माईबाप  कहे जाने वाले सचिव संजय यादव से मध्य भारत कंपनी के कहर को लेकर बातचीत की। सचिव साहब से जब हमने यह सवाल पूछा कि गाँव वालों का कहना है कि मध्य भारत कंपनी की एसिड भरी गैस गांव का अस्तित्व खत्म करने पर तुली है, इस संबंध में आप का क्या विचार है? तब सचिव साहब कहते हैं कि गांव वाले एकदम सही बात कह रहे हैं। सच में कंपनी की एसिड भरी गैसे यहाँ के आसपास का हवा-पानी प्रदूषित कर चुकी है। जिससे लोगों का शारीरिक संतुलन बिगड़ गया है। और जीना दूभर हो गया है। फिर जब हमने यह सवाल किया कि कंपनी ने जो तबाही मचा रखी है इसको लेकर आपने क्या किया है? तब सचिव साहब का जवाब आता है कि कंपनी के कहर को रोकने के लिए अभी तक हम कुछ नहीं कर पाए हैं। तब फिर हमने पूछा आप क्यों कुछ नहीं कर पाए? तब सचिव साहब कि तरफ से प्रतिक्रिया आयी कि, गांव वालों ने इस कंपनी के कहर को लेकर एकजुटता से कोई कदम नहीं उठाया। जिससे कोई प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में हम भी कुछ नहीं कर सके। हालांकि आगे सचिव संजय कहते हैं कि कंपनी के कहर को रोकने के लिए गांव वालों ने कुछ समय पहले हड़ताल  की थी। मगर कंपनी को इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ा।

फिर इसके बाद हम सौरई गांव के पथरीले रास्तों से होकर जा पहुंचे डिलाखेरी गांव। तब वहां हमें एक खेत के करीब आपस में बतयाती कुछ महिलाएं मिली। जिनसे हमने यह पूछा कि कंपनी से गांव को कितना फायदा और नुकसान है? तब वहां मौजूद रजनी बताती है कि कंपनी से फायदा सिर्फ यही है कि हमारे गांव डिलाखेड़ी और पास के मौनपुर, फतेहपुर जैसे अन्य गांव से कंपनी रोजाना कई टैंकर पानी खरीदती है। और अंदाजे से एक टैंकर (1 हजार लीटर पानी) का 500 रुपये देती है। आगे फूला कहती हैं कि गांव में कुछ लोगों के कुओं में पानी है। जिसे वह कंपनी को बेचते हैं, तो उन्हें रोजगार तो मिला है। मगर जिस तरह कंपनी गांव का पानी चूसकर खुद की प्यास बुझा रही है। उससे लगता है हम प्यासे मर जाएंगे। वह कहती है कि गांव में पानी की किल्लत मची है। और पानी के लिए मारामारी भी होती है।

कंपनी का प्रकोप झेलती कुछ महिलाओं की फोटो 

आगे केसर कंपनी की वजह से जो क्षति हो रही है। उसका अंदाज-ए-बयां करते हुए कहती हैं कि कंपनी में बनने वाली एसिड की वजह से फैली गंदी गैस इस कदर प्रभाव छोड़ रही है कि गांव के बहुत से महुआ, आम, अमरूद, जामुन, जैसे अन्य पेड़ पहले सूख गए है। फिर जमीन से उखड़ गए है। इस बीच वहीं उपस्थित वीरेन बोल पड़ते है। वह कहते है कि मेरे 6 आम के पेड़ जड़ से उखड़ गए है। तब हमने पूछा कि कंपनी ने क्या इन पेड़ों का हर्ज़ाना दिया है? तब वीरेन कहते हैं कि मेरे तो केवल 6 पेड़ उखड़े है। मगर कंपनी के पास की पेड़ों से घिरी बग़िया के तो सारे पेड़ कंपनी के कहर से धाराशाही हो गए। कंपनी इतने सारे पेड़ों का हर्ज़ाना नहीं दे सकी, तो मेरे इन 6 पेड़ों का हर्ज़ाना क्या खाक देगी। आगे वह कहते हैं कि कंपनी के कहर से कुछ नीम और बबूल जैसे पेड़ अभी भी बचे हुए हैं।

इसके आगे सुलेखा बताती है कि कंपनी की हानिकारक गैस के प्रभाव से पेड़ों पर लगे आम, पपीते, अमरूद जैसे अन्य फलों की शक्ल काली पड़ गयी है। और इनका आकार छोटा होता जा रहा है। आगे मुंह में तम्बाकू चबाते हुए, रीता कहती है कि कम्पनी की गैस इतनी बदबूदार है कि घर के आंगन में बैठकर खाना खाते है, तो उल्टियां होने लगती हैं।

इसके बाद जब हमने छवरानी से कंपनी का ज़िक्र किया तो वह कहती है कि कंपनी ने 4 मजदूरों की जीवनलीला समाप्त कर दी है। जिनमें एक बिहार का भी था। इसके आगे संगीता बोलती है कि कंपनी कुछ लोगों को विकलांग भी बना चुकी है। जिनमें सुजान, प्रहलाद, बबलू जैस अन्य नाम शामिल हैं।

मध्य भारत एग्रो प्रोडक्ट लिमिटेड कंपनी का बोर्ड 

फिर इसके बाद हम डिलाखेरी गांव से थोड़ी दूर दिखती मध्य भारत एग्रो प्रोडक्ट लिमिटेड कंपनी के नज़दीक जाने लगे। जैसे ही हम कंपनी के समीप पहुंचे, तो हमने देखा वहां बहुत धूल उड़ रही है। धूल में घुसते हुए, हम आगे बड़े तो कंपनी के गेट के करीब जा पहुंचे। जैसे ही कंपनी के अंदर गये। तब पता चला कि कंपनी के प्रमुख अधिकारी कहे जाने वाले जीएम साहब, नदारद है। फिर हमने कंपनी के गेट के पास मौजूद एक कर्मचारी से यह कहा कि जीएम साहब कब आएंगे। हमें उनसे कंपनी के संबंध में कुछ बात करनी है। तब वह कर्मचारी कहते है कि हमें नहीं पता की जीएम साहब कब आएंगे।

इसके बाद हमने कंपनी के कुछ और अधिकृत अधिकारियों की ओर रुख़ किया। जिनसे हमने कंपनी को लेकर यह सवाल पूछा कि कंपनी में खाद्य और एसिड बनाने की वह कौन सी प्रक्रिया है जिससे खाद्य और एसिड की गैस विभिन्न गांव तक जा पहुंची है और गांव का जनजीवन चौपट कर रही है, जिससे आने वाली पीढ़ी के नेस्तनाबूद होने की भी संभावना है? तब इस सवाल के जवाब में इन अधिकारियों ने अपने होंठ बंद कर लिए। आगे हमने इन अधिकारियों से यह कहा कि हम कंपनी के अंदर और बाहर पैसे के लेन-देन या रिश्वतखोरी को लेकर बात नहीं करेंगे, हम बस कंपनी के वज़ह से जो पर्यावरणीय स्थिति और जनजीवन प्रभावित हो रहा है इस को लेकर बात करना चाहते हैं। तब भी इन अधिकारियों ने बात करने से मना कर दिया। ऐसे में कंपनी की वजह से जो पर्यावरण और जनजीवन को क्षति पहुंच रही है, इस विषय पर हमारी कंपनी के इन अधिकृत अधिकारियों से बात नहीं हो सकी।

इसके बाद हमनें कंपनी की पंजीकृत वेबसाइट पर कंपनी के नाम एक सूचना दर्ज़ की। जिसमें हमनें लिखा कि कंपनी की कार्य प्रणाली से जो गावों पर प्रभाव पड़ रहा है, इसको लेकर हम कंपनी से बात करना चाहते हैं। तब कंपनी की तरफ से कोई प्रतिपुष्टि नहीं आयी।

हालांकि आगे कंपनी के अंदर के सूरत-ए-हाल पर कुछ मजदूरों ने हमसे नाम न बताने की शर्त पर बात की। क्योंकि मजदूरों को इस बात का डर है कि यदि रिपोर्ट में उनका नाम ज़ाहिर किया जायेगा, तो कंपनी उन्हें काम से बेदख़ल कर देगी। इस स्थति में एक मजदूर बताते है कि कंपनी कें अंदर ऐसे भी एसिड प्लांट हैं जिनके पास 5 मिनट भी कोई नया मजदूर खड़ा हो जाए, तो उसको ठसका लगने लगेगा, सर्दी हो जायेगी और उल्टियां होने लगेगीं। और ऐसे में किसी-किसी की तो बहुत तबियत खराब हो जाती है। जैसे एक बार एक मजदूर का सीना खराब हो गया था, तो उसे 1 लाख 50 हजार रुपए लगे थे, तब थोड़ा ठीक हुआ था। लेकिन पूरा अभी भी ठीक नहीं हुआ। वहीं इसके इलाज के लिए कंपनी ने कोई खास मदद नहीं की थी। एक दूसरे मजदूर बताते हैं कि कंपनी में खाद्य और एसिड बनाने के लिए पत्थर को पीसकर, गन्ना की छिकली को सड़ा कर, गंदे और रासयनिक पदार्थों को मिलाकर इस्तेमाल में लाया जाता है। जिनके बारे में मजदूरों को कुछ नहीं बताया जाता। इसके बाद एक मजदूर खुद की हथेली पर दूसरे हाथ से तम्बाकू मलते हुए, बोल पड़ते हैं कि कंपनी मजदूरों से  बहुत मेहनती काम करवाती है, जबकि दैनिक मजदूरी 250-300 देती है। आगे वह कहते है कि कंपनी में पत्थरों को पीस कर बनायी गयी धूल, फ्लाई ऐश (राख जैसी) और एसिड की गैस इतनी नुक़सानदेह है कि बहुत से मजदूर कंपनी में 3-4 माह ही टिक पातेहैं। और जो कंपनी में ज्यादा समय तक काम करता है, उसके हाथ-पैर काम करना बंद कर देते हैं। यानी पैरालीसिस जैसी स्थिति बन जाती है। फिर इन मजदूरों की यह दास्तां सुनकर हमने सवाल किया कि, क्या आप लोगों को कंपनी में होने वाली शारीरिक समस्याओं के लिए कोई स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवायी जातीं हैं?

तब मजदूर नहीं में उत्तर देते हुए कहते हैं कि कंपनी को हमारी स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या पड़ी है। वह तो अपना मुनाफ़ा देख रही है। मजदूर मरे या जिये उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। आगे मजदूरों से हमने यह पूछा कि आप कंपनी में इतनी समस्याएं क्यों झेल रहे हैं, कोई दूसरा काम या अन्य कंपनी में काम क्यों नहीं करते? तब मजदूरों का जवाब आता है कि इतनी भयंकर बेरोजगारी में हमें कौन देगा काम? हम दूसरे शहरों के लिए काम की तलाश में जाते हैं, मगर 2-3 माह भटककर वापिस आ जाते हैं। ऐसे में हमारे पास यही उपाय है कि इसी कंपनी के लिए जिये और इसी के लिए मरे। 

विचारणीय है कि ‘‘मध्य भारत एग्रो प्रोडक्ट लिमिटेड‘‘ कंपनी पर कुछ लोगों का रोजगार भले टिका है। लेकिन वास्तव में कंपनी बहुत से गांव को प्रभावित कर रही है। गांव वालों के मुताबिक कंपनी का सागर जिले में 99 वें साल का एग्रीमेन्ट है। ऐसे में यदि कंपनी इतने साल यहां टिकती है, तो कंपनी तो रहेगी। पर इर्दगिर्द के गांव समूल नष्ट हो जायेगें। यह भी ध्यातव्य है कि कंपनी राजस्थान जैसे राज्य से आकर यहां (सागर) में अपनी जडे़ मजबूत कर चुकी है। और यहां के संसाधनों का उपयोग कर रही हैं। लेकिन कंपनी में निर्माण होने वाले खाद्य और एसिड को कंपनी सागर जिले या उसके आस-पास नहीं पहुंचा रही, बल्कि छत्तीसगढ और उड़ीसा जैसे राज्यों को भेज रही है।

कंपनी इस बारे में अगर कोई आधिकारिक बयान देती है तो ख़बर को अपडेट किया जाएगा।  

(सतीश भारतीय एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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