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मॉस्को ने म्यांमार के साथ संबंधों को दी प्राथमिकता 

रूस के विदेश मंत्री लावरोव की म्यांमार यात्रा से इस बात के स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि मॉस्को हिंद महासागर की समुद्री गलियारों में अमेरिका के हावी होने के लिए उसके द्वारा "ब्लॉक" बनाने के प्रयासों को पीछे धकेल देगा।
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रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव (बाएं) ने राज्य प्रशासनिक परिषद के अध्यक्ष और म्यांमार की अनंतिम सरकार के प्रधानमंत्री, मिन आंग हलिंग, नायपीडॉ से 3 अगस्त, 2022 को मुलाकात की।

3 अगस्त को रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की म्यांमार यात्रा से साफ संकेत मिल रहे हैं कि यह संबंध एक रणनीतिक स्वरूप ग्रहण करने वाला है। विदेश मंत्रालय ने 2 अगस्त को एक प्रेस विज्ञप्ति में इस बात पर प्रकाश डाला कि यह संबंध "एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विदेश नीति की प्राथमिकताओं में एक खास कदम है, जो शांति, स्थिरता और सतत विकास सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण कारक होगा।"

विदेश मंत्रालय ने कहा कि "आधिकारिक स्तर पर म्यांमार ने साझेदार होने के नाते यूक्रेन में रूस के विशेष सैन्य अभियान के ढांचे में रूस के कार्यों के कारणों और वैधता के बारे में अपनी समझ व्यक्त की है। नेपीडॉ पश्चिमी रूस विरोधी प्रतिबंधों की वैधता को मान्यता नहीं देता है।

“संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर, रूस फरवरी 2021 से ही देश में आपातकाल की स्थिति के संबंध में म्यांमार की स्थिति की संतुलित और गैर-राजनीतिक चर्चा सुनिश्चित करने के लिए एक समझ का अनुसरण कर रहा है, और वह रचनात्मक खोज की वकालत करता है। उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किए बिना, अंतर्राष्ट्रीय सहायता के रूप में ऐसा किया जा रहा है। हम ईएईयू और एससीओ सहित यूरेशिया में एकीकरण संघों और बहुपक्षीय सहयोग के तंत्र के साथ तालमेल में नेपीडॉ की सहायता कर रहे हैं।

वास्तव में, लावरोव ने नोम पेन्ह में आसियान-रूस विदेश मंत्रियों की बैठक से पहले ही म्यांमार के साथ अपनी वार्ता तय कर ली थी। राज्य प्रशासनिक परिषद के अध्यक्ष, अनंतिम सरकार के प्रधानमंत्री, मिन आंग हलिंग के साथ लावरोव की बातचीत के बाद 3 अगस्त को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि उन्होंने "भू-राजनीतिक स्थिति पर गहन चर्चा की है  जो कि सामूहिक पश्चिम द्वारा रूस और म्यांमार दोनों के खिलाफ अभूतपूर्व प्रतिबंध अभियान की पृष्ठभूमि में खिलाफ उभरी है। उन्होंने (यानि मिन आंग हलिंग ने) एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को मजबूत करने के लिए समन्वित काम करने की आवश्यकता की पुष्टि की है…”

हिंद महासागर क्षेत्र में ईरान के बाद म्यांमार दूसरा देश बन गया है जिसने रूस के सामने  स्पष्ट समर्थन पाने की आवाज उठाई है। माना जा रहा है कि नई सरकार बनने के बाद लावरोव अब कोलंबो भी जा सकते हैं। 

रूस और श्रीलंका की कलर क्रांति

यह आकलन करना मुश्किल है कि 9 जुलाई को श्रीलंका में हुई तबाही का श्रीलंकाई सरकार के प्रतिनिधिमंडल का अगले दिन (जुलाई 10-16 के लिए निर्धारित) मॉस्को में विभिन्न रूसी नेताओं के साथ संकट से निपटने के लिए महत्वपूर्ण वार्ता करने के लिए आने वाली यात्रा से कोई लेना-देना था या नहीं ताकि रूस की मदद के संबंध में 10-16 जुलाई को आर्थिक मंत्रालय आदि से बात की जा सके। लेकिन यह एक उचित धारणा बनी हुई है।

श्रीलंकाई स्थिति के संबंध में 11 जुलाई को रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की टिप्पणी में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है, "विशेष रूप से, अशांति शुरू होने से एक दिन पहले, कुछ पश्चिमी राजनयिक मिशन प्रमुखों ने खुले तौर पर स्थानीय पुलिस से "शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन" में बाधा नहीं डालने का आग्रह किया था। 

"हम मानते हैं कि श्रीलंका में घटनाक्रम उनका आंतरिक मामला है और उस देश में राजनीतिक प्रक्रिया, जिसे हम मित्रवत मानते हैं, उसके संविधान और प्रभावी कानूनों के अनुसार आगे विकसित होगी। हम उम्मीद करते हैं कि नई सरकार बनेगी और हम इसमें सहयोग करने को तैयार हैं। हमें विश्वास है कि स्थिति बहुत पहले सामान्य हो जाएगी और श्रीलंका के नए अधिकारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में संकट से निपटने के लिए आवश्यक उपाय करेंगे।

दरअसल, तत्कालीन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भी राजनीतिक उथल-पुथल की अभूतपूर्व प्रकृति के बारे में एक विशेष साक्षात्कार में तास को बताया - कि "द्वीप राष्ट्र के राजनेताओं को अभी तक इस सदी में या पिछली शताब्दी में इसी तरह के संकट को झेलने का अवसर नहीं मिला है।"

ऐसा लगता है कि मॉस्को ने अनुमान लगाया था कि श्रीलंका में अमेरिका समर्थित अशांति एक शासन परिवर्तन उत्पन्न करने में विफल होगी जो "सामूहिक पश्चिम" चाहता था। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने पर विक्रमसिंघे को अपने बधाई संदेश में कहा, "मैं अपने लोगों के लाभ और हित में विभिन्न क्षेत्रों में रचनात्मक द्विपक्षीय सहयोग और विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य के प्रमुख के रूप में आपकी गतिविधियों पर भरोसा कर रहा हूं ताकि क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा को मजबूत किया जा सके।"

हिंद महासागर के नक्शे पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि ईरान, म्यांमार और श्रीलंका के साथ संबंध रूस के लिए इतने महत्वपूर्ण क्यों हो गए हैं। ये म्यांमार, श्रीलंका और म्यांमार में बंदरगाह क्षेत्र में प्रभावी रूसी नौसैनिक उपस्थिति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। रूस के संशोधित नौसेना सिद्धांत में रणनीतिक मजबूरी बढ़ती दिखाई दे रही है, जिस रणनीतिक को पुतिन ने 30 जुलाई को घोषित किया था, जो "दुनिया में भू-राजनीतिक और सैन्य-रणनीतिक स्थिति में परिवर्तन" को दर्शाता है।

रूस और दुनिया के महासागर

56-पृष्ठ के दस्तावेज़ (रूसी में) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि रूस के राष्ट्रीय हित "एक महान नौसैनिक शक्ति के रूप में पूरे विश्व के महासागरों और कैस्पियन सागर तक फैले हुए हैं"। यह विदेशों तक नौसैनिक पुन: आपूर्ति बिंदुओं और ठिकानों की कमी को स्वीकार करता है, जो रूसी नौसेना की ओपरेशनल सीमा के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण हैं, जबकि इस बात पर प्रकाश डालते हुए कहा कि "विश्व महासागरों में अमेरिका के रणनीतिक क्रम" से "चुनौतियां और खतरे" उभरे हैं।"

हालांकि, सिद्धांत लाल सागर में ऐसी सुविधा के निर्माण की कल्पना करना है। इसके अलावा, इसमें "आर्कटिक के विकास के लिए उपयुक्त जहाजों" के साथ-साथ "नौसेना के लिए आधुनिक विमान वाहक" सहित "बड़ी क्षमता वाले जहाजों" के निर्माण के लिए रूस के सुदूर पूर्व में एक नई जहाज निर्माण सुविधा बनाने की योजना भी शामिल है। वर्तमान में, रूस के पास केवल एक विमान-वाहक नौसेना पोत, एडमिरल कुज़नेत्सोव क्रूजर है, जो कमीशन से बाहर हो गया है और उसकी मरम्मत की जा रही है।

इस बीच, अमेरिका हिंद महासागर के राष्ट्रों के साथ मिलकर, एक समुद्री सहयोग ग्रिड को लगातार मजबूत कर रहा है। हाल ही में, वाशिंगटन ने सरल रूब्रिक I2U2 (इज़राइल-भारत, यूएस-यूएई) के तहत एक पश्चिम एशियाई क्वाड की शुरुवात की है। जिसकी पहली बैठक में राष्ट्रपति बाइडेन ने हिस्सा लिया था।  

दिल्ली जोर देकर कह रही है कि I2U2 क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी का एक मंच है, लेकिन पश्चिमी रणनीतिकार स्पष्ट रूप से अर्थशास्त्र के पीछे की भू-राजनीति पर चर्चा कर रहे हैं। मिडिल ईस्ट फोरम में मिशेल गुरफिंकियल ने वॉल स्ट्रीट जर्नल में लिखा, "बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने I2U2 की तुलना चार देशों के बीच सुरक्षा संवाद, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के अपरिपक्व इंडो-पैसिफिक गठबंधन से की है। अमेरिका, भारतीय और अमीराती मीडिया सभी इसे 2019 अब्राहम समझौते के विस्तार के रूप में देखते हैं।”

वास्तव में, लंबा दृष्टिकोण और भी अधिक प्रासंगिक है क्योंकि I2U2, क्वाड और अब्राहम समझौते से परे, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा में कई समान विकासों पर विचार करता है – जिसमें यूक्रेन संघर्ष, नाटो विस्तार, पूर्वी भूमध्य सुरक्षा गठबंधन (फ्रांस, इटली, ग्रीस, साइप्रस, इज़राइल और मिस्र); नेगेव शिखर सम्मेलन वास्तुकला (इज़राइल, मोरक्को, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन); औकस (ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन के बीच फिर से पैदा हुआ एंग्लो-पैसिफिक रक्षा समुदाय); अमेरिका-ताइवान संबंधों का उन्नयन; जापान का सैन्यीकरण (कठोर इतिहास पर काबू पाते हुए), आदि शामिल है।

भू-राजनीतिक गर्माहट 

उपरोक्त पृष्ठभूमि में, अमेरिका के नेतृत्व वाली सुरक्षा गठबंधन प्रणाली की ओर भारत का झुकाव एक विरोधाभास है। भारत का रणनीतिक फोकस चीन है लेकिन अमेरिका के मामले में रूस और ईरान भी शामिल हैं। भारत इजरायल के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को प्राथमिकता देता है- हाल ही में एक भारतीय कंपनी को हाइफा बंदरगाह (जहां अमेरिका का छठा फ्लीट अक्सर आता जाता है) का प्रबंधन दे दिया गया है। वहीं, इजराइल और अमेरिका की नफ़रत ईरान के प्रति है, जो भारत के प्रति मित्रवत है।

दूसरी ओर ईरान रूस और चीन के साथ अपने संबंध मजबूत कर रहा है। शायद, संयुक्त अरब अमीरात और भारत दोनों छोर पर खेल रहे हैं। लेकिन ये ऐसे निज़ाम भी हैं जिनमें रणनीतिक संस्कृति का अभाव है और वे वाशिंगटन के एजेंडे से जुड़े सनकीपन के शिकार हैं।

स्पष्ट रूप से, लेवेंट और मलक्का जलडमरूमध्य के बीच की भूमि में हाल के वर्षों में अमेरिका की विश्वसनीयता में विश्वास आम तौर पर कम हो गया है। ईरान, रूस और चीन का मुकाबला करने के लिए पश्चिम एशियाई सैन्य गठबंधन को बढ़ावा देने के लिए जेद्दा में बाइडेन की दखल का कोई समर्थक नहीं है। 

रूसी कूटनीति को इन परतों में खोजना होगा। हिंद महासागर क्षेत्र में महान खेल व्यापक रूप से खुल गया है। लावरोव की म्यांमार यात्रा से संकेत मिल रहे हैं कि मॉस्को हिंद महासागर की समुद्री गलियों पर अमरीका के हावी होने के लिए "ब्लॉक" बनाने के लिए उसके प्रयासों को पीछे धकेल देगा। म्यांमार में बंदरगाहों तक पहुंच रूसी उपस्थिति के लिए एक गेम चेंजर हो सकती है।

दिलचस्प बात यह है कि मिन आंग ह्लाइंग ने लावरोव से शिकायत की कि रूसी अधिकारी "शायद ही कभी" म्यांमार आते हैं! लावरोव ने इसमें सुधार करने का वादा किया है। मॉस्को उस वादे को पूरा करने का इरादा रखता है, क्योंकि म्यांमार के साथ रूस का सहयोग पंख फैला सकता है – जिसमें ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश, व्यापार, परमाणु सहयोग, सैन्य-तकनीकी सहयोग, अंतरिक्ष, शिक्षा, आदि मुद्दे इसमें शामिल होंगे।

सीधी उड़ानें शुरू की जा रही हैं। मीर भुगतान कार्ड म्यांमार में स्वीकार किए जाते हैं, जो स्थानीय मुद्राओं में निपटान के लिए भी जरूरी है। मॉस्को ने दक्षिण पूर्व एशिया में रूसी रूढ़िवादी चर्च के पितृसत्तात्मक एक्ज़र्खट का एक इलाक़ा - और एक टैम्पल - यांगून में स्थापित करने की योजना बनाई है।

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-
Moscow Prioritises Ties With Myanmar

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