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न नकबा कभी ख़त्म हुआ, न फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध

फिलिस्तीनियों ने इजरायल द्वारा अपने ही देश से विस्थापित किए जाने, बेदखल किए जाने और भगा दिए जाने की उसकी लगातार कोशिशों का विरोध जारी रखा है।
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हजारों की तादाद में फिलिस्तीनी नागरिक इजरायल के बलात कब्जे वाले वेस्ट बैंक के केंद्र में स्थित रामल्ला शहर में 1948 में हुए नकबा (अपनी जमीन से बेदखली के रूप में आई तबाही) की 74 वीं वर्षगांठ मनाते हैं। फोटो: मोहम्मद अबू जैद

इससे कुछ दिन पहले ही, जब फिलिस्तीनी अपने पूर्वजों की भूमि से बलात खदेड़े जाने, जिसे वहां नकबा या तबाही के रूप में जाना जाता है, उसकी 74वीं वर्षगांठ की तैयारी में जुटे थे, तभी एक महत्त्वपूर्ण घटना हुई। इजरायली सुप्रीम कोर्ट ने दक्षिणी वेस्ट बैंक में उनके कब्जे वाली जमीन की बाबत मासाफर यट्टा के निवासियों की ओर से 23 वर्ष पहले दायर एक याचिका को खारिज कर दिया और इजरायल की सेना को उस जगह बने सैकड़ों घरों को ध्वस्त करने की इजाजत दे दी। अदालत ने कहा कि वे "फायरिंग रेंज" में आते हैं। यह घटना इजरायल की तरफ से फिलिस्तीनी जमीन को ज्यादा से ज्यादा हथियाने और फिलिस्तीनियों को अपने ही वतन में शरणार्थी रहने पर मजबूर करने की एक प्रणालीगत नीति का हिस्सा है। यह हर रोज का नकबा भी, फिलिस्तीनियों को अपनी आजादी की खातिर, अपनी जमीन पर फिर से कब्जा पाने के लिए और वतन वापसी के खुद के अधिकार को लेकर लड़ने का उनका मनोबल तोड़ने में फेल हो जाता है।

1948 में जब जबरन विस्थापन, जातीय संहार और फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ हिंसा की अकेली सबसे बड़ी घटना हुई, तब से ही हजारों और फिलिस्तीनियों ने यहूदी की औपनिवेशिक बस्ती बसाने की परियोजना की हिंसा का मुकाबला करना जारी रखा है। हालांकि उसकी इस प्रोजेक्ट से फिलिस्तीनी जमीन का नक्शा लगातार सिकुड़ रहा है, जबकि इजरायली राजसत्ता इजरायल के गैरकानूनी बस्तियों के विस्तार और फिलिस्तीनियों के विस्थापन के पक्ष में शासन करना जारी रखे हुई है।

फिलिस्तीन की एक राजनीतिक कार्यकर्ता अरवा अबू हैशश ने पीपुल्स डिस्पैच को बताया, “हम मानते हैं कि 1948 से शुरू हुआ नकबा आज तक जारी है, वह एक सतत प्रक्रिया है, और इसकी कई अभिव्यक्तियां हैं (जैसे कि फिलिस्तीनियों का विस्थापन, उनकी हत्या, उनकी गिरफ्तारी, बलात उनकी भूमि हड़पना, पानी की चोरी.. और इसी तरह की कई और वारदातें)। इजरायल का कब्जा फिलिस्तीनी लोगों को एक व्यवस्थित आधार पर और रोजमर्रे के स्तर पर विस्थापित कर रहा है और उनकी हत्याएं कर रहा है।”

हैशश ने जोर देकर कहा, “मासाफर यट्टा तो सिर्फ एक उदाहरण है कि हम आज उस विस्थापन की याद के साथ जी रहे हैं जिसके तहत फिलिस्तीनियों को लगातार निशाना बनाया जाता रहा है। शेख जाराह ऐसा ही एक और उदाहरण है, जहां दर्जनों परिवार हरदम इस खौफ में जीते हैं कि कब उन्हें अपने घर से बेदखल कर दिया जाए।"

नीयर ईस्ट (यूएनआरडब्ल्यूए) में फिलिस्तीन शरणार्थियों के बारे में संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी के जनवरी 2020 के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में अकेले अरब में ही 6,293,390 फिलिस्तीनी शरण लिए हुए हैं, जिनमें कब्जे वाले गाजा और वेस्ट बैंक में रहने वाले शरणार्थी भी शामिल हैं। दस लाख से अधिक ऐसे शरणार्थी हैं, जो पश्चिम एशिया में यूएनआरडब्ल्यूए के साथ पंजीकृत नहीं हैं। नकबा के समय, कम से कम 700,000 फिलिस्तीनियों को उन जगहों पर अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जो अब इजरायल के अंदर आते हैं।

इस साल 11 मई को, नेफ्टाली बेनेट सरकार ने कब्जे वाले वेस्ट बैंक में बसावट के लिए 4,000 से अधिक नए घरों का निर्माण करने का एक नया फरमान जारी किया है। पिछले साल अक्टूबर में 3,000 और बस्तियों को मंजूरी दी गई थी।

कब्जे वाले पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में 250 से अधिक अवैध इजरायली बस्तियां पहले से ही हैं, जहां लगभग 750,000 लोग अवैध रूप से रहते हैं। कब्जे वाले वेस्ट बैंक के सी क्षेत्र के लगभग आधे हिस्से या कहें कि इसके कुल रकबे के 18 फीसद भाग को इजरायली सेना का "फायरिंग जोन" घोषित कर दिया गया है।

फिलिस्तीनी पीपुल्स पार्टी के महासचिव बासम अल-सलही ने पीपुल्स डिस्पैच को बताया, उनके पूरे सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने के बावजूद, “फिलिस्तीनी लोगों ने इस नकबा के दुष्प्रभाव से खुद को उबारा है तथा अपने को पुनर्संगठित किया है। उन्होंने एक कब्जाए लोगों के रूप में अपने राष्ट्रीय आंदोलन तथा पुनर्जागरण को फिर से शुरू किया। उन्होंने आगे कहा कि फिलिस्तीन लोग “अभी भी आत्मनिर्णय, राज्य, फिलिस्तीन को वापस करने के अपने वैध अधिकारों के लिए तथा फिलिस्तीन में औपनिवेशिक रंगभेद परियोजना के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।”

अरवा अबू हैशश ने कहा, “फिलिस्तीनियों को पता है कि इजरायल के कब्जे के तहत रहने का मतलब उन्हें किसी भी समय विस्थापित कर दिए जाने तथा हत्या कर दिए जाने एवं हिंसा के खतरे के तहत रहना है।” इसलिए उनके पास विरोध करते रहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। इसलिए वे विरोध करते रहे हैं।

पिछले दो वर्षों से फिलिस्तीनियों ने हर अवसर पर कब्जे की ताकतों का विरोध किया है, चाहे वह अल-अक्सा पर उनके पर बार-बार किए जाने वाले हमले का विरोध हो, गाजा पर आक्रमण या जेनिन के फिलिस्तीनियों के गांवों और कब्जे वाले पश्चिमी तट के अन्य स्थानों पर किए गए हमले हों।

फिलिस्तीनी पत्रकार शिरीन अबू अक्लेह की क्रूर हत्या और उनकी मय्यत पर गमजदा होने वालों पर हिंसक हमलों के साथ, एक बार फिर दुनिया ने यहूदी परियोजना और इजरायल की हिंसा अपनी आंखों से देखी है। इजरायल जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और वैश्विक उत्तर के अन्य देशों से वित्तीय मदद और राजनीतिक समर्थन का उपभोग कर रहा है, परंतु दुनिया के अधिक से अधिक लोग फिलिस्तीन के साथ एकजुटता में खड़े हैं और इजरायल की दमनात्मक कार्रवाइयों को जायज मानने से इनकार कर रहे हैं।

साभार: पीपल्स डिस्पैच 

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