हमें कोरोना ने नहीं, हमारे नेतृत्व ने हराया है!
आख़िर, दुनिया के तमाम महामारी विशेषज्ञों की भारत को लेकर की गई सबसे बदतरीन आशंकाएं और भविष्यवाणी अंततः सही साबित हुई!
भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा कोरोना हॉटस्पॉट है।
भारत नए कोरोना मामलों के लिहाज़ से अमेरिका को भी पीछे छोड़कर नंबर 1 पर पहुंच गया है। कुल संख्या तो 18 लाख के पार पंहुँच ही चुकी है, देश के गृहमंत्री, 2 राज्यों के मुख्यमंत्री, एक राज्यपाल, अनेक मंत्री, नौकरशाह इस समय पॉज़िटिव हैं। उत्तर प्रदेश में एक काबीना मंत्री की, बिहार के CPI राज्यसचिव, एक MLC की दुःखद मौत हो चुकी है।
जहां दुनिया के सारे देशों में महामारी उतार पर है, वहीं भारत में इसका कोई आदि अंत ही नहीं दिख रहा, पीक (Peak) का कुछ पता नहीं!
1 अरब 30 करोड़ भारतवासी आज असहाय, मौत और ख़ौफ़ के साये में जीने को मजबूर हैं।
आख़िर, इस भयावह स्थिति हमारे देश में ही क्यों आयी, इसके लिए जिम्मेदार कौन है ?
क्या जनता ???
पर, प्रधानमंत्री ने और उनके गृहमंत्री ने स्वयं देश की जनता की बारंबार तारीफ की है कि अकथनीय यातनाएं सहकर भी जनता ने वह सब किया, जो प्रधानमंत्री ने कहा, ताली-थाली बजाने से लेकर दुनिया के सबसे कठोर और लंबे लॉकडाउन का पालन करने तक !
हर देशभक्त, हर देशवासी यह चाहता था कि मोदी जी यह लड़ाई जीतें !
क्योंकि राजनेता मोदी हारते हैं तो भले कोई दल हारता है, कोई जीतता है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जब हारते हैं तो यह देश हारता है, इस देश की 130 करोड़ जनता हारती है !
पर, अफ़सोस यह हो न सका।
आज जब प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि,
"सही समय पर लिए गए सही फैसलों (right decisions taken at right time ) के कारण भारत दूसरे देशों की तुलना में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बहुत अच्छी स्थिति में है।"....."हमने कोरोना के खिलाफ लड़ाई को जनान्दोलन में बदल दिया।"...."हमने महामारी से लड़ने के लिए अपने Health इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विस्तार किया है।"
तो उनके ये शब्द खोखले और कोरी लफ़्फ़ाज़ी लगते हैं !
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से जिन 38 हजार से ऊपर देशवासियों की जान चली गयी-इस महामारी को फैलने से रोक पाने में विफलता के कारण-उन भाई-बहनों के लिए, उनके परिजनों के लिए ये शब्द कोई सांत्वना नहीं, वरन जले पर नमक छिड़कने जैसे हैं!
दूसरे देशों से बार बार तुलना का सन्दर्भ अगर हमारी विराट जनसंख्या है तो चीन की जनसंख्या तो हमसे भी ज्यादा है, वहां आबादी के अनुपात में क्यों मामले और मौतें हमारी तुलना में बेहद कम रहीं?
उसने कैसे 1 लाख से कम मामलों और 5 हजार से कम मौतों में ही महामारी पर प्रभावी नियंत्रण पा लिया और वुहान से बाहर फैलने नहीं दिया??
अगर तुलना का सन्दर्भ हमारी आर्थिक कमजोरी के कारण स्वस्थ्य-व्यवस्था का पिछड़ापन है,
तो आज भी वह हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता क्यों नहीं बन सका? सरकारों को गिराना/ बनाना, जनता के जीवन की कीमत पर येनकेन प्रकारेण चुनाव कराना आदि प्राथमिक क्यों बना हुआ है?
मंदिर निर्माण का धार्मिक कार्य धार्मिक लोग करेंगे, वह हमारे राजनैतिक नेतृत्व, प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता का कार्यभार क्यों बना हुआ है?
महामारी जब देश के अंदर विदेशों से तेजी से प्रवेश कर रही थी तब समय रहते हवाई अड्डों पर उस पर रोक के प्रभावी कदम क्यों नहीं उठाए गए, प्राथमिकता नमस्ते ट्रम्प का आयोजन क्यों बना हुआ था, वह भी उस अमेरिका से जहां बीमारी तेजी से फैल रही थी, सैकड़ों का काफिला यहां बुलाकर और लाखों की भीड़ जुटाकर?
देश में पहला मामला आने के बाद लगभग 2 महीने इसे फैलने से रोकने के लिए, लॉकडाउन के लिए इंतज़ार क्यों किया गया?
लॉकडाउन जब किया गया तो बिना किसी सुचिंतित योजना के, इस तरह कि न सिर्फ करोड़ों प्रवासी अकथनीय यातना के शिकार हुए, वरन बाद में जब भोजन और आजीविका के अभाव में उन्हें घरों को लौटने के लिए मजबूर किया गया, तो भगदड़ मच गई, लॉकडाउन की धज्जियां उड़ती रहीं और वह गाँवों-कस्बों तक फैल गया जहां स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह ध्वस्त हैं।
वहां, देश के उन सर्वाधिक पिछड़े इलाकों में वह दिन दूना रात चौगुना रफ्तार से बढ़ रहा है और कहर बरपा कर रहा है, जहां किसी अभागे-यूपी, बिहार, उड़ीसा, बंगाल,असम, आंध्रा वाले को मेदांता, नानावटी, अपोलो, AIIMS में इलाज का विशेषाधिकार मिलने वाला नहीं है!
मोदी जी क्या 6 महीने का समय इतना कम होता है?
यदि आपके नेतृत्व में पूरे देश में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार को सर्वोच्च और एकमेव प्राथमिकता बनाया गया होता, और सारे सरकारी संसाधन, PM केयर फंड, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मिली मदद सबको इसके लिए झोंक दिया गया होता, तो आज हम इतने ख़ौफ़नाक मंज़र से रुबरू न होते, इतने असहाय न होते!
मगर, वह हो न सका क्योंकि आपकी प्रथमिकताएँ कल भी अलग थीं, आज भी अलग हैं!
मोदी जी,
इन विराट विफलताओं, इन Acts of omission and commission के लिए इतिहास कभी आपको माफ़ नहीं करेगा, इस देश की अभागी जनता कभी इनको भूल नहीं पाएगी।
अफ़सोस डॉ. विनोद पॉल जैसे विशेषज्ञ जिनकी खुद की साख (Integrity) संदिग्ध है, कोरोना को नियंत्रित करने में आपकी तारीफों के पुल बांधकर आपकी साख बचा नहीं पाएंगे! (ये वही डॉ. विनोद पॉल हैं, NITI आयोग के सदस्य और अमित शाह जी के गृहमंत्रालय की High Power Committee के चेयरमैन, जिन्होंने अप्रैल में भविष्यवाणी की थी कि 15 मई को देश में कोरोना के मामले शून्य हो जाएंगे!)
(लेखक इलाहाबाद छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।