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आज 24 जून : जवानों के लिए किसानों का राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस 

विनाशकारी अग्निपथ योजना के खिलाफ देशभक्त किसानों और जवानों की एकता हमारे लोकतन्त्र के लिए शुभ है।
kisan andolan
फाइल फोटो।

संयुक्त किसान मोर्चा ने आज 24 जून को अग्निपथ योजना के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध का आह्वान किया है। किसानों ने इसे " राष्ट्रविरोधी, सेना विरोधी, किसान-विरोधी" करार दिया है।

देश के लोकतांत्रिक इतिहास में यह पहली बार है कि नौजवानों की लड़ाई के समर्थन में किसान इस तरह योजनाबद्ध ढंग से सड़क पर उतर रहे हैं। यह मोदी सरकार के जनविरोधी शासन के विरुद्ध किसान और जवान एकता के नए अध्याय की शुरुआत हो रही है।

इसके तहत पंजाब की 22 किसान यूनियनों ने आज संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले पूरे पंजाब में विरोध में उतरने का एलान किया है।  ठीक इसी तरह हरियाणा-राजस्थान-पश्चिम उत्तर प्रदेश-हिमाचल-उत्तराखंड समेत UP, बिहार व अन्य राज्यों में जगह-जगह प्रतिवाद कार्यक्रम हो रहे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत पहले दिन से ही नौजवानों के जुलूसों का नेतृत्व करते देखे जा रहे हैं। योगेन्द्र यादव, डॉ0 दर्शन पाल, गुरुनाम चढूनी, हन्नान मौला, राजाराम सिंह तथा  किसान आंदोलन के तमाम प्रमुख नेता लगातार अपने संदेशों के माध्यम से मोर्चा खोले हुए हैं।

इस अवसर पर किसान देश के मुखिया और भारत की सेना के सर्वोच्च कमांडर महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर  अग्निपथ योजना से देश, जवान और किसान के भविष्य के साथ होने वाले खिलवाड़ को रोकने की अपील करेंगे।

राष्ट्रपति को सम्बोधित उनके ज्ञापन में कहा गया है, " सेना में भर्ती के आकांक्षी युवाओं और देश के किसान परिवारों के लिए यह योजना बहुत बड़ा धोखा है  :

a) जिन युवकों की भर्ती प्रक्रिया 2020-21 में शुरू हो चुकी थी उसको बीच में रोकना उनके सपनों के साथ खिलवाड़ है।

b) सेना में भर्ती की संख्या को घटाना, सेवाकाल को घटाकर 4 साल करना और पेंशन समाप्त करना उन सब युवाओं और परिवारों के साथ अन्याय है जिन्होंने फौज को देशसेवा के साथ कैरियर के रूप में देखा है। किसान परिवारों के लिए फौज की नौकरी मान सम्मान के साथ आर्थिक खुशहाली से भी जुड़ी रही है।

c) चार साल की सेवा के बाद तीन-चौथाई अग्नि वीरों को सड़क पर खड़ा कर देना युवाओं के साथ भारी अन्याय है। हकीकत यह है कि सरकार अब तक 15 से 18 साल सेवा करने वाले अधिकांश पूर्व सैनिकों के लिए भी पुनर्वास की संतोषजनक व्यवस्था नहीं कर पाई है। वह अग्नि वीरो के रोजगार की क्या व्यवस्था करेगी ? "

इस नई योजना के तहत अब तक चले आ रहे रेजीमेंट आधारित क्षेत्र-समुदाय कोटा की जगह सभी भर्तियां "ऑल इंडिया, ऑल क्लास" के आधार पर होंगी। जाति-समुदाय-क्षेत्र आधारित रेजिमेंट सिस्टम की जगह यह बेशक आदर्श स्थिति है। पर जानकारों का मानना है कि इतना बड़ा बदलाव सैन्य-विशेषज्ञों तथा सारे stake-holders को involve किए बिना अचानक करना counter-productive साबित हो सकता है।

SKM का मानना है कि रेजिमेंट की सामाजिक बुनावट को रातों-रात बदलने से सेना के मनोबल पर बुरा असर पड़ेगा। 

SKM के ज्ञापन में कहा गया है, " रेजीमेंट के सामाजिक चरित्र की जगह "ऑल क्लास ऑल इंडिया" भर्ती करने से उन क्षेत्रों और समुदायों को भारी झटका लगेगा जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी सेना के जरिए देश की सेवा की है। इनमे पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वी राजस्थान जैसे इलाके शामिल है। "

किसान नेता डॉ0 दर्शन पाल ने खुलकर यह आशंका जताई है कि देश में चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन के मुख्य इलाके के जवानों की संख्या घटाई जा रही है, दरअसल उस समय किसान-आंदोलन का सरकार दमन नहीं कर पाई थी क्योंकि यह खतरा था कि सैन्य-बलों में भारी संख्या में मौजूद इस इलाके के नौजवान विरोध में खड़े हो सकते थे। उन्होंने आरोप लगाया कि इस नई व्यवस्था के माध्यम से इस खास इलाके के  सिख जाट व अन्य किसानों और उनके बेटों को मोदी सरकार की ओर से यह punishment दिया जा रहा है।

प्रोटेस्ट की धार को कुंद करने के लिए सरकार की ओर से stick and carrot policy अख्तियार की जा रही है। पहले तो age relaxation जैसे संशोधन पेश कर युवाओं को लुभाने की कोशिश की गई। फिर तमाम कारपोरेट घरानों व सरकारी विभागों की ओर से अग्निवीरों को सेना से निकलने के बाद रोजगार देने के प्रलोभनों की झड़ी लग गयी। एक कारपोरेट के ऐसे ही एक वायदे पर लोगों के इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला कि अब तक उन्होंने कितने पूर्व सैनिकों को अपने यहां रोजगार दिया। हकीकत यह है कि पूर्व सैनिकों के बेहद छोटे हिस्से को ही सेवानिवृत्ति के बाद रोजगार मिलता है। 2019 के आंकड़े के अनुसार पुनः रोजगार पाए Ex-Servicemen की संख्या UP में 1.8%, बिहार में 0.01%, पंजाब में 1.8%, हरियाणा में 1.8%, राजस्थान में 2.6% थी।  फिर सेना से निकाले गए अग्निवीरों को कहां से रोजगार मिल जाएगा ? सच यह है कि यह आंदोलन तोड़ने के लिए उछाले गए एक और जुमले से अधिक कुछ नहीं है।

अब भारी विरोध और 2024 के चुनाव पर सम्भावित असर के मद्देनजर मोदी सरकार के शातिर रणनीतिकारों द्वारा इसे ' पायलट प्रोजेक्ट ' का ट्विस्ट देने की कोशिश हो रही है। लेकिन समूचे सन्दर्भ और घोषणाओं से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि सरकार का इरादा इसे full-fledged लागू करने की ओर बढ़ना है। यह भी अब साफ होता जा रहा है कि   सेना में reform से इसका कोई लेना देना नहीं है, बल्कि इसके पीछे मूल प्रेरणा सैनिकों की संख्या घटाना तथा उनकी पेंशन व अन्य सामाजिक सुरक्षा के मदों में होने वाले खर्च से बचना है। क्योंकि सरकार की माली हालत  इतनी खस्ताहाल हो चुकी है कि  अब वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मद में होने वाले इस खर्च को भी वहन नहीं कर पा रही है।

इस योजना की घोषणा से गहरे shock और depression का शिकार हुए युवाओं के प्रति, जिनमें से कुछ ने चरम हताशा की स्थिति में आत्महत्या भी कर लिया, सहानुभूति प्रकट करने और मलहम लगाने की बजाय सरकार उन्हें धमकाने और नौकरी से वंचित करने की निंदनीय हरकत पर उतर आई है। जाहिर है यह उनके विरोध के लोकतांत्रिक अधिकार का हनन है।

किसान मोर्चे के ज्ञापन में कहा गया है, " किसी भर्ती के लिए आवेदकों से ऐसा हलफनामा लेने की शर्त न रखी जाए जो उन्हें लोकतांत्रिक प्रदर्शन के अधिकार से वंचित करती हो। अग्निपथ विरोधी प्रदर्शनों में शामिल युवाओं के खिलाफ दर्ज सभी झूठे मुकदमे वापस लिए जाएं, गिरफ्तार युवाओं को रिहा किया जाय और आंदोलनकारियों को नौकरी से वंचित करने जैसी शर्तें हटाई जाए। "

अग्निपथ योजना के खिलाफ देश में चौतरफा प्रोटेस्ट जारी है। वामपंथी पार्टियां, कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल, राष्ट्रीय जनता दल आदि इसके विरोध में सक्रिय हैं।20 जून को कई इलाकों में भारत बंद का व्यापक असर रहा। 22 जून को बिहार में महागठबंधन के विधायकों व कार्यकर्ताओं ने विधानसभा से राजभवन तक विशाल मार्च निकाला।  तमाम लोकतान्त्रिक जन संगठन देश के कोने कोने में छात्र-युवाओं के समर्थन में अपने अपने बैनर से विरोध में उतर रहे हैं।

यह पहले के रोजगार या नौकरियों सम्बन्धी छात्र-युवा आंदोलनों से बिल्कुल अलग मंजर है। पहले जहां अन्य संगठन अथवा दल अधिक से अधिक नैतिक समर्थन और बयान तक सीमित रहते थे। वहीं इस बार सब इसे अपनी लड़ाई, अपना मुद्दा मानकर सक्रिय हैं।

आवश्यकता इस बात की है कि एक कॉमन प्लेटफार्म पर सारी ताकतें एक साथ आएं और इसे रोजगार के सवाल पर एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन में तब्दील कर दें। 

आज की सच्चाई यह है कि छात्र-युवाओं का किसानों जैसा कोई संयुक्त प्लेटफार्म अस्तित्व में नहीं है। उन्हें संयुक्त किसान मोर्चा के पैटर्न पर ऐसा वृहत्तर प्लेटफार्म बनाने की ओर बढ़ना चाहिए।

इस दृष्टि से किसान नेताओं की भूमिका इस समय बेहद अहम है। किसान नेताओं ने अग्निपथ योजना के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद से आज जो शुरुआत की है, आशा की जानी चाहिए कि 3 जुलाई को संयुक्त किसान मोर्चा की  गाज़ियाबाद में होने जा रही अहम बैठक से वह किसानों और जवानों की संयुक्त लड़ाई के रूप में और आगे बढ़ेगी।

केवल एक व्यापक आधार वाला धारावाहिक जनान्दोलन ( sustained mass movement ) ही जिससे 2024 की संभावनाओं पर असर पड़ने लगे, मोदी सरकार को इस योजना को वापस लेने के लिए बाध्य कर सकता है, ठीक वैसे ही जैसे पिछले विधानसभा चुनावों के पहले कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए वह मजबूर हुई थी।

मोदी सरकार के एक और विनाशकारी कदम के खिलाफ देशभक्त किसानों और जवानों की यह अभूतपूर्व बॉन्डिंग तथा मोर्चेबन्दी हमारे लोकतन्त्र की उम्मीद है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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