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वन संरक्षण क़ानून में संशोधनों को रद्द करने की मांग को लेकर आदिवासियों ने मार्च निकाला

अन्य मांगों के अलावा, आदिवासी चाहते हैं कि राज्य सरकार पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम या पेसा के तहत नियमों को वापस ले।
Forest Conservation Act
प्रतीकात्मक तस्वीर। फ़ोटो साभार : scroll

केंद्र द्वारा हाल ही लाये गए वन संरक्षण नियमों को वापस लेने और राज्य में 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ के हजारों आदिवासियों ने रविवार को रायपुर में पैदल मार्च निकाला।

अन्य मांगों के अलावा, आदिवासी चाहते हैं कि राज्य सरकार पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम या पेसा के तहत नियमों को वापस ले।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए) के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि राज्य के विभिन्न हिस्सों से, मुख्य रूप से बस्तर और सरगुजा संभागों और राजनांदगांव जिले के आदिवासी सुबह राज्य की राजधानी पहुंचे। इन लोगों ने महात्मा गांधी की जयंती पर यहां गोंडवाना भवन में ‘ग्राम सभा का महासम्मेलन’ आयोजित किया।

उनका नेतृत्व विभिन्न आदिवासी संगठनों ने किया।

शुक्ला ने कहा कि आदिवासियों ने ‘जल, जंगल और जमीन’ से संबंधित कई मुद्दों पर चर्चा की।

ग्राम स्वराज रैली गोंडवाना भवन से सात किमी की दूरी पर आजाद चौक तक निकाली गई, जिसके बाद राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन यहां एक अधिकारी को सौंपा गया।

राजनांदगांव जिले के एक आदिवासी नेता सुरजू टेकम ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा बनाए गए पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम के तहत हाल ही में बनाए गए नियमों और केंद्र द्वारा इस वर्ष जून में वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 में किए गए संशोधन के विरोध में लगभग 5,000 लोगों ने रैली में हिस्सा लिया।

टेकम ने कहा कि राज्य सरकार ने पेसा नियमों के तहत ग्राम सभाओं के बजाय कलेक्टरों को सभी अधिकार दे दिए हैं जो अधिनियम की भावना को कमजोर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसी तरह, केंद्र के नए वन संरक्षण नियमों ने वन क्षेत्रों में गतिविधियों को अनुमति देने के प्रावधानों में संशोधन किया, जो ग्राम सभा के अधिकारों को प्रभावित करेगा।

ज्ञापन में राज्य सरकार से पेसा नियमों को वापस लेने और संविधान एवं पेसा अधिनियम के अनुसार नए नियम बनाने की मांग की गई है। उन्होंने केंद्र द्वारा वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 में किए गए संशोधन को रद्द करने की भी मांग की।

जब वन अधिकार कानून, 2006 के अंतर्गत आदिवसियों से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य था तब तो लोगों की अनुमति वास्तविक और प्रभावी तरीके से हमेशा नहीं ली जा रही थी। अब जब यह नियम अनुमति लेने की जरूरत को ही समाप्त कर दे रहा है तब आदिवासियों के जंगल पर अधिकार, उनकी जंगल आधारित जिंदगी और जंगलों का क्या होगा? यह भी विडंबना ही है कि इसका नाम वन संरक्षण नियम, 2022 रखा गया है जबकि स्पष्ट दिख रहा है कि इससे वनों की कटाई में तेजी आएगी।

आदिवासियों ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने पहले अनुसूचित जनजातियों के लिए 32 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था, लेकिन हाल ही में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले के बाद इसे दरकिनार कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इसलिए, राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक पहल करनी चाहिए कि राज्य में आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण मिले।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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