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यूपी: चार दिन से लापता रेप पीड़िता का शव नहर में मिला, शक के घेरे में दुष्कर्म आरोपी

बाराबंकी में नाबालिग़ रेप पीड़िता का शव एक नहर में मिला है। परिजनों का आरोप है कि ज़मानत मिलने के बाद से आरोपी केस वापस लेने का दबाव पीड़िता पर बना रहा था। ऐसे में सवाल उठता है कि बलात्कार मामले में दोषियों-अपराधियों की रिहाई कितनी खतरनाक है?
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Image courtesy : The Week

आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर गुजरात की बीजेेपी सरकार ने बिलक़़ीस बानो के गैंगरेप के दोषियों को आज़ाद कर दिया। ये आज़ादी कितनी ख़तरनाक हो सकती है, इसका अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है। क्योंकि अक्सर बलात्कारियों की ज़मानत और रिहाई पीड़िताओं पर भारी पड़ती नज़र आती है। उत्तर प्रदेश के उन्नाव से लेकर मध्य प्रदेश के जबलपुर तक की घटना इसकी गवाह है। ताज़ा मामला यूपी के बाराबंकी का है, जहां नाबालिग़ रेप पीड़िता का शव एक नहर में मिला है। परिजनों का आरोप है कि ज़मानत मिलने के बाद से आरोपी केस वापस लेने का दबाव पीड़िता पर बना रहा था।

बता दें कि ये मामला सीतापुर के सकरन थाना इलाक़े का है। नाबालिग़ पीड़िता 18 अगस्त से लापता थी। इसे लेकर परिवारवालों ने पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवाई थी, जिसके बाद 21 अगस्त को नाबालिग़ की लाश बाराबंकी की एक नहर से मिली। फिलहाल मामले में पुलिस के हाथ खाली हैं और जांच चल रही है।

क्या है पूरा मामला?

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़ पुलिस को शक है कि पीड़िता ने आत्महत्या की है और उसका शव सीतापुर से बहकर बाराबंकी पहुंचा होगा। बाराबंकी पुलिस के अनुसार, परिजन लड़की की तलाश करते हुए सीतापुर से बाराबंकी पहुंचे। वहां काजी बहटा गांव में एक लड़की की लाश मिलने की ख़बर उन्हें मिली। इसके बाद परिवार ने पुलिस को घटना की सूचना दी। लड़की के पिता ने कपड़ों के आधार पर शव की पहचान की।

उधर, मृत पीड़िता के पिता का कहना है कि नाबालिग़ 18 अगस्त से लापता थी। वो घर से ये बताकर निकली थी कि वकील से अपने रेप मामले की चर्चा करने के लिए जा रही है। लेकिन उसके बाद लौटी नहीं। इसके बाद परिवार वालों ने रिपोर्ट दर्ज करवाई। 21 अगस्त को नाबालिग़ की लाश एक नहर से मिली। जिसके बाद पुलिस ने केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

रेप पीड़िता का केस क्या है?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ सीतापुर के एक गांव की लड़की ने 31 जनवरी, 2022 को अपने पड़ोस के गांव में रहने वाले धीरज शुक्ला पर शादी का झांसा देकर रेप करने का आरोप लगाया था। पीड़िता ने तीन और लोगों पर जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया था। इस मामले में आरोपी धीरज शुक्ला को गिरफ्तार भी किया गया था। लेकिन जून में उसे ज़मानत पर रिहा कर दिया गया। जब 18 अगस्त को लड़की देर शाम तक घर नहीं लौटी तो परिवारवालों ने उसे तलाशना शुरू किया। परिवार को शक था कि पीड़िता के ग़ायब होने में धीरज शुक्ला और उसके दोस्तों का हाथ है। परिवार ने बेटी की जान पर ख़तरे की आशंका जताते हुए पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवाई। परिवार का कहना है कि आरोपी युवक लड़की और उसके परिवार पर केस वापस लेने का दबाव बना रहा था।

ज़ाहिर है शक की सुई इस मामले में बलात्कार आरोपियों पर ही घूम रही है क्योंकि हाल ही में एमपी के जबलपुर से ऐसा ही ख़तरनाक मामला सामने आया था, जहां एक रेप के आरोपी ने ज़मानत पर रिहा होने के दो दिन बाद अपने दोस्त के साथ मिलकर फिर से पीड़िता के साथ कथित तौर पर रेप किया था और रेप का वीडियो वायरल करने की धमकी देकर पीड़िता को केस वापस लेने की बात कही थी।

उदाहरण कई हैं लेकिन सबक शायद कम। तभी तो बिलक़ीस के अपराधियों को सरेआम मिठाई खिलाकर स्वागत किया गया और उन्हें इस कुकर्म के बाद भी संस्कारी बताया जा रहा है। ये न्याय की धज्जियां उड़ाने जैसा है। बलात्कार के आरोपियों या अपराधियों को छोड़ने के मामले में जो सबसे चिंता की बात है वो ये है कि इससे संदेश यह जा रहा है कि कोई महिला कितनी भी लड़ाई लड़कर अपने लिए न्याय पा ले लेकिन उसको मिलने वाला न्याय स्थायी नहीं बल्कि अस्थायी है। संदेश यह जा रहा है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों को लेकर देश लापरवाह है।

फ़ास्ट ट्रैक अदालतों के बावजूद रेप मामलों में लंबी है क़ानूनी लड़ाई

एक ओर महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध सुनामी की तरह बढ़ रहे हैं और तो वहीं उन्हें न्याय देने के लिए भारत में पर्याप्त सोच और अवसंरचना ही उपलब्ध नहीं है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया यानी पीएफएचआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बलात्कार से संबंधित अपराध दर पिछले दो दशकों में 70% बढ़ गई है। जहां 2001 में यह प्रति 1,00,000 महिलाओं में 11.6 थी वहीं यह बढ़कर 2018 में 19.8 हो गई। अपराध बढ़ रहे हैं लेकिन देश में हर 10 लाख लोगों के लिए जजों की संख्या मात्र 15 है।

साल 2016 में पार्टनर्स फॉर लॉ इन डेवलपमेंट द्वारा नई दिल्ली में किए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि फ़ास्ट ट्रैक होने के बावजूद बलात्कार के प्रति मामले में औसतन 8.5 महीने का समय लिया जा रहा है अर्थात अनुशंसित अवधि से चार गुना अधिक। ऊपर से एनसीआरबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि बलात्कार के मामलों का बैकलॉग बहुत बड़ा है। महिलाओं के ख़िलाफ़ किए गए लगभग 89.6% मामले अभी भी लंबित ही हैं। इन लंबित मामलों के पूरा होने तक कई महिलाएं इस दुनिया में ही नहीं रहेंगी। ऐसे में बलात्कार के मामलों में लापरवाही निश्चित ही गंभीर मामला है। हालांकि इसमें उत्तर प्रदेश कहीं आगे ही नज़र आता है। यहां पीड़ित को प्रताड़ित करने के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। वैसे भी महिला सुरक्षा के मामले में योगी सरकार प्रदेश में विफल ही नज़र आती है।

यूपी में अपराध का बढ़ता ग्राफ़

मालूम हो कि 2022 की यूपी विधानसभा चुनाव की रैलियों में सीएम योगी के साथ-साथ पीएम नरेंद्र मोदी भी महिला सुरक्षा के कसीदे पढ़ते नज़र आ रहे थे। हालांकि सरकारी संस्था राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक़ साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट हुए, जो कुल शिकायतों का आधा से ज़्यादा का आंकड़ा है। आयोग की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 30 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए। जिसमें सबसे अधिक 15,828 शिकायत यूपी से थीं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो महिलाओं के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा क्राइम में भी उत्तर प्रदेश टॉप पर है। यहां साल 2020 में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराध के 49,385 मामले दर्ज कराये गये थे।

बलात्कार के मामले में भी उत्तर प्रदेश पूरे देश में दूसरे स्थान पर है। यानी राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश ही वो राज्य है जहां महिलाएं सबसे अधिक बलात्कार का शिकार हो रही हैं। साल 2020 में देश भर में बलात्कार के कुल 28046 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में कुल 2,769 मामले दर्ज हुए।

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