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अवध: इस बार भाजपा के लिए अच्छे नहीं संकेत

दरअसल चौथे-पांचवे चरण का कुरुक्षेत्र अवध अपने विशिष्ट इतिहास और सामाजिक-आर्थिक संरचना के कारण दक्षिणपंथी ताकतों के लिए सबसे उर्वर क्षेत्र रहा है। लेकिन इसकी सामाजिक-राजनीतिक संरचना और समीकरणों में बदलाव आया है। इस बार अवध से जो संकेत निकल रहे हैं वे भाजपा के लिए बेहद निराशाजनक हैं।
Awadh
तस्वीर यूपी के निर्वाचन अधिकारी के ट्विटर हैंडल से साभार

उत्तर प्रदेश में आज हो रहा चौथे चरण का मतदान भाजपा के लिए इस चुनाव में वापसी की आखिरी उम्मीद है। यह भाजपा के लिए Do or die जैसा है। यहां लखीमपुर से लखनऊ, उन्नाव तक किसानों के स्वाभिमान, कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली, बेटियों के सम्मान, युवाओं के रोजगार, दलितों-अल्पसंख्यकों के दमन का मुद्दा छाया है।

दरअसल चौथे-पांचवे चरण का कुरुक्षेत्र अवध अपने विशिष्ट इतिहास और सामाजिक-आर्थिक संरचना के कारण दक्षिणपंथी ताकतों के लिए सबसे उर्वर क्षेत्र रहा है। कुछ pockets को छोड़ दिया जाय तो पूर्वांचल से भिन्न यहां सोशलिस्ट-कम्युनिस्ट आंदोलन भी कभी  जमीन नहीं बना पाया, न ही यहां पिछड़ों-दलितों का वैसा उभार या जागृति हुई। इसीलिए यह एक समय कांग्रेस का गढ़ था और फिर जनसंघ से होते हुए भाजपा का  मजबूत क्षेत्र बनता गया।

लेकिन इसकी सामाजिक-राजनीतिक संरचना और  समीकरणों में बदलाव आया है। इस बार अवध से जो संकेत निकल रहे हैं वे भाजपा के लिए बेहद निराशाजनक हैं।

इसका इससे बड़ा सुबूत क्या हो सकता है कि हत्या-आरोपी  मंत्रीपुत्र की जमानत के बाद किसानों के आक्रोश से डरे पार्टी रणनीतिकारों को लखीमपुर में प्रधानमंत्री मोदी की रैली कैंसिल करनी पड़ी, कल बाराबंकी में छुट्टा जानवरों से आजिज आ चुके किसानों ने योगी की रैली में सांड़ों का झुंड हांक दिया, उधर गोंडा में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को सेना में भर्ती की मांग करते बेरोजगार नौजवानों के जबरदस्त हंगामे और विरोध का सामना करना पड़ा। इससे पहले अवध से लगे कानपुर शहर में अमित शाह और स्मृति ईरानी को भीड़ न होने की वजह से अपना रोड शो बीच में ही रोकना पड़ा।

आज चौथे राउंड में 9 जिलों की जिन 59 सीटों पर मतदान हो रहा है, उनमें राजधानी लखनऊ सरकारी कर्मचारियों का सबसे बड़ा हब है। यहां अखिलेश यादव द्वारा पुरानी पेंशन योजना (OPS ) की बहाली को लेकर की गई घोषणा से कर्मचारियों में उत्साह है। सरकारी कर्मचारियों के बीच बढ़ते भाजपा विरोधी रुझान के कारण पोस्टल बैलट में  धांधली की सम्भावना पर भी रोक लगने के संकेत हैं। इसके अतिरिक्त अल्पसंख्यकों की भारी आबादी वाला लखनऊ CAA-NRC आंदोलन के दौरान लोकतन्त्र पर योगी राज के बर्बरतम हमले का भी साक्षी रहा है। आज चुनाव पर इसका सीधा असर दिखेगा।

पश्चिम उत्तर प्रदेश के साथ UP के जिस तराई इलाके में किसान-आंदोलन का सर्वाधिक असर था और जहाँ किसानों को गृहराज्यमंत्री के बेटे द्वारा गाड़ी से रौंदने का मुद्दा मोदी-योगी राज द्वारा किसानों के सबसे क्रूर दमन का प्रतीक बन गया, उस पीलीभीत लखीमपुर सीतापुर पट्टी में भी आज मतदान हो रहा है। इस इलाके में आंदोलन के सबसे मजबूत स्तम्भ रहे सिख किसानों की भी अच्छी आबादी है। पार्टी के अंदर से बगावत का झंडा बुलंद किये वरुण-मेनका की नाराजगी का भी खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ेगा।

आज ही उन्नाव में भी मतदान हो रहा है जो   बलात्कार के आरोपी भाजपा विधायक को सत्ता के खुले संरक्षण और पीड़िता के परिवार की मुकम्मल तबाही के कारण सुर्खियों में रहा तथा भाजपा राज में " बेटी बचाओ " के नारे के पाखंड का प्रतीक बन गया।

हरदोई, रायबरेली, फतेहपुर से लेकर बांदा तक का इलाका, जहाँ आज मतदान हो रहा है, मूलतः किसान बेल्ट है। जाहिर है भाजपा की किसान-विरोधी नीतियों, छुट्टा जानवरों से किसानों की तबाही का मुद्दा मतदान में छाया रहेगा। आवारा जानवरों से भाजपा की चुनावी सम्भावनाओं को हो रहे भारी नुकसान को भांपते हुए स्वयं मोदी ने अब इसे address करना शुरू किया है। लेकिन अब यह too liitle, too late वाली स्थिति है।

अवध में बड़ी आबादी वाले पासी दलित समुदाय के बड़े हिस्से का इस बार भाजपा से अलगाव और गठबंधन के प्रति झुकाव दिख रहा है। पिछले दिनों भाजपा के ताकतवर पासी नेता केन्द्रीय मंत्री कौशल किशोर की विधायक पत्नी को मलिहाबाद विधानसभा के अपने गढ़ में लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। पासी समुदाय के इस बदले रुझान का पूरे अवध क्षेत्र में चुनाव पर बड़ा असर पड़ने वाला है।

अवध में बाजी पलट देने के लिए पूरा संघ ब्रिगेड बेहद आक्रामक रणनीति के साथ उतर पड़ा है, जिसकी कमान स्वयं प्रधानमंत्री संभाले हुए हैं।

दरअसल, चुनाव के शुरुआती 2 चरणों में गठबंधन से बुरी तरह पिछड़ने के बाद भाजपा की पुरजोर कोशिश थी कि 20 फरवरी को सम्पन्न हुए तीसरे चरण के मतदान में वह उसकी भरपायी कर ले लेकिन मतदान के बाद यह साफ हो गया कि वह इसमें कामयाब नहीं हो पाई।

कुछ क्षेत्रों में लोध समुदाय के अपने परम्परागत सामाजिक आधार के ठोस समर्थन और बुंदेलखंड व कानपुर शहर में अच्छी टक्कर के बावजूद भाजपा तीसरे चक्र में कोई बढ़त लेने में कामयाब नहीं हो पाई।

Potato लैंड में सपा के मजबूत सामाजिक आधार की फिर से कायम हुई एकजुटता और उत्साह तथा महान दल आदि के समर्थन से शाक्य व अन्य पिछड़े समुदायों के किसानों के एक हिस्से के साथ आने के कारण anti-incumbency की लहर पर सवार विपक्षी गठबंधन ने भाजपा के बढ़त लेने के मंसूबे पर पानी फेर दिया।

पहले 2 चरणों के बाद लगा था कि तीखी साम्प्रदायिक बयानबाजी से अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करा पाने में नाकाम भाजपा,  उसकी वजह से हो रहे counter-polarisation को रोकने के लिए अपनी रणनीति में कुछ adjustment कर रही है और थोड़ा पीछे हटते हुए एक संतुलन बनाने का प्रयास कर रही है।

लेकिन तीसरे चरण की नाउम्मीदी के बाद  भाजपा का शीर्ष नेतृत्व घूम फिर कर पुनः बेहद आक्रामक ध्रुवीकरण की रणनीति पर उतर आया है जिसका नेतृत्व स्वयं मोदी जी कर रहे हैं।

विपक्ष को आतंकवाद से जोड़ने की प्रधानमंत्री की बयानबाजी लोकतन्त्र के लिए अशुभ संकेत

20 फरवरी को, ठीक उस समय जब तीसरे चरण का मतदान चल रहा था, प्रधानमंत्री ने हरदोई की रैली में सपा के चुनाव-चिह्न साइकिल को आतंकवादियों से जोड़ते हुए जिस तरह की बेहद आपत्तिजनक बयानबाजी की उसने पिछले चुनाव के उनके श्मशान-कब्रिस्तान वाले बयान की याद ताज़ा कर दी।

ऐन चुनावों के बीच जिस तरह 14 साल पुराने मामले का फैसला आया और उसमें रेकॉर्ड संख्या में (कुल 38 ) लोगों को फाँसी की सजा का ऐलान हुआ, उसे भी लेकर लोगों के मन में गहरा शक है कि यह महज संयोग था या सुचिंतित प्रयोग! बहरहाल, प्रधानमंत्री द्वारा उसका इस्तेमाल आतंकवाद की विभीषिका की याद को ताजा करने, उसे कुचलने में अपने को योद्धा के रूप में पेश करने और मुख्य विपक्षी दल सपा के चुनाव चिह्न साइकिल से इसे जोड़ कर विपक्ष के demonisation की यह पराकाष्ठा है। अपने शातिर अंदाज़ में उन्होंने कहा, "साइकिल पर बम रखे हुए थे...मैं हैरान हूं यह साइकिल को ही उन्होंने क्यों पसंद किया !" (उनसे clue लेते हुए कल योगी ने नया नारा गढ़ दिया "आतंकवादियों का हाथ सपा के साथ" )

राजनीतिक विपक्ष को आतंकवाद से identify करने का यह खतरनाक खेल

संसद में हाल ही में मुख्य विपक्षी दल को  टुकड़े-टुकड़े गैंग बता कर बदनाम करने के  प्रधानमंत्री के अभियान का ही जारी रूप है। देश के अंदर प्रतिरोध-विरोध-असहमति की लड़ाकू आवाजों के दमन से आगे बढ़ते हुए अब संसदीय विपक्ष को भी देशद्रोही और आतंकवादी बताकर बदनाम करने के नैरेटिव के हमारे लोकतन्त्र के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक निहितार्थ हैं। अगर यह महज चुनावी जुमला नहीं है, तो इसकी तार्किक परिणति तो ऐसे विपक्ष को कुचलने के लिए  नंगी तानाशाही ही हो सकती है।

उत्तर प्रदेश चुनावों में ध्रुवीकरण की यह आखिरी extreme कोशिश प्रधानमंत्री का utter desperation दिखा रही है और आने वाले दिनों में- 2022 से 24 तक- आसन्न हार की संभावना के सम्मुख उनके खतरनाक इरादों का संकेत है।

फिलहाल तो उन्होंने साइकिल जो आम आदमी की सवारी है, उसे आतंकवाद से जोड़कर सेल्फ-गोल ही कर लिया है।

आज का मतदान इस बात को साबित करेगा कि UP में इस समय डबल-इंजन सरकार की डबल एन्टी-इंकम्बेंसी के खिलाफ बदलाव की undercurrent है। इसकी तीव्रता कम ज्यादा हो सकती है, लेकिन कोई इलाका या तबका इससे अछूता नहीं है। यह भी साफ है कि बदलाव की यह बयार केवल योगी के खिलाफ नहीं वरन मोदी के भी विरुद्ध है। मोदी का " चुनाव-जिताऊ " जादू भी अब बेअसर हो चुका है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

ये भी देखें: यूपी चुनाव: भाजपा का कोई मुद्दा नहीं चल रहा!

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