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उत्तर प्रदेश: महामारी की तरह फैल रहा डेंगू, दम तोड़ रहे लोग; अस्पताल बेहाल

पूर्वांचल में डेंगू ने अब महामारी का रूप ले लिया है। डबल इंजन की सरकार इस बीमारी से निपटने में पूरी तरह फेल हो गई है। इससे बचाव के जितने भी उपाय हैं, उसमें कोई भी बिंदु पर मुकम्मल इंतजाम नहीं हो रहा है। चाहे वह डेंगू मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव का मामला हो या फिर अस्पतालों में पीड़ित व्यक्तियों के इलाज का। सरकारी अस्पतालों में घोर अव्यवस्था है। डेंगू से इलाज के इंतजाम हवा-हवाई हैं। मौतें लगातार हो रही है, उसे छिपाया जा रहा है।
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उत्तर प्रदेश के अस्पतालों में डेंगू के बढ़ते मामलों को लेकर अफ़रातफ़री का मौहाल है। पूर्वांचल का जौनपुर और बनारस इस बीमारी से बुरी तरह प्रभावित है। डॉक्टरों के निजी क्लिनिकों में मरीजों का तांता लगा हुआ है। हर कोई बुखार, पेट में तेज दर्द, सिर और जोड़ों में दर्द के अलावा जी मिचलाने की शिकायत कर रहा है। यह सब डेंगू संक्रमण के आम लक्षण हैं। डेंगू मच्छर काटने से होने वाला एक बुखार है। इसका संक्रमण एक इंसान से दूसरे इंसान में नहीं होता है।

वाराणसी के पांडेयपुर स्थित जिला अस्पताल में भर्ती इसीपुर (बड़ागांव) के 25 वर्षीय आनंद का प्लेटलेट्स 35 हजार पर पहुंच गया है। आनंद कहते हैं, "पहले एक प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराया। हालत नहीं सुधरी तो सरकारी अस्पताल में भर्ती हुआ। इलाज के नाम पर यहां हमें सिर्फ पारासिटामोल (बुखार की एक दवा) दिया जा रहा है। 28 अक्टूबर से हम जिला अस्पताल में भर्ती हैं। सिर्फ एक मर्तबा डाक्टर देखकर जाते हैं। फिर 24 घंटे बाद ही उनके दर्शन होते हैं। मेरा दम घुट रहा है। सांस फूल रही है और उल्टियां भी हो रही है। डाक्टर ने सीबीसी और लीवर जांच बाहर से कराने के लिए पर्चा बनाया है।"

पांडेयपुर जिला अस्पताल में ही 29 अक्टूबर की शाम से भर्ती अनिल कुमार तिवारी और पंचकोसी रोड इलाके के टंडिया की नौरंगी देवी की शिकायत है कि डेंगू मरीजों के इलाज में डाक्टर तनिक भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। रात में स्थिति गंभीर होने पर इलाज करने के लिए कोई डाक्टर मौजूद नहीं रहता। यदा-कदा नर्से दिख जाती हैं, लेकिन मरीजों के प्रति उनका रवैया उदासीन होता है।

डेंगू के बेतहाशा बढ़ते मरीजों के हिसाब से यह साल यूपी का सबसे ख़राब साल माना जा रहा है। यूपी सरकार के पास डेंगू से बीमार होने और इस बीमारी से मरने वालों का कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं है। मीडिया में जो रपटें छप रही हैं उससे पता चलता है कि स्वास्थ्य महकमा मरीजों की जितनी तादाद गिना रहा है, असल संख्या उससे पचास-साठ गुना ज्यादा है।

बनारस के जिला अस्पताल ही नहीं, कबीरचौरा के मंडलीय अस्पताल में भी डेंगू के संभावित मरीजों की लंबी कतारें लग रही हैं। समूचे पूर्वांचल में डॉक्टरों के निजी क्लिनिकों में लोगों का तांता लग रहा है। हर कोई उल्टी, शरीर में दर्द, जी मिचलाना, सिर दर्द और बुखार की शिकायत कर रहा है। पूर्वांचल में डेंगू के तेजी से पांव पसारने की एक बड़ी वजह है पिछाड़ की बारिश और बाढ़। तंग गलियों के नाले खुले हुए हैं और खाली प्लाटों में अब तक पानी जमा है जो डेंगू के मच्छरों के पनपने के लिए माकूल हैं। इसने डेंगू और मलेरिया के मामलों को बढ़ा दिया है।

बनारस में गंगा, वरुणा और असी नदियों के किनारे बसे मुहल्लों में डेंगू का ख़तरा सबसे ज्यादा है। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में इलाज उपलब्ध है, लेकिन कोरोना के संकटकाल में पूर्वांचल के लोगों ने सरकारी अस्पतालों का जो हाल देखा है उससे उनका भरोसा उठ गया है। इसीलिए ज्यादातर लोग निजी अस्पतालों में इलाज करवाना बेहतर समझ रहे हैं। कांग्रेस के जिला महासचिव अजय का कहना है, "डेंगू के बढ़ते हुए मामलों की वजह से सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों पर बहुत दबाव है। उन पर कैसे विश्वास किया जा सकता है? वे जरूर लापरवाही बरतेंगे। हालांकि निजी अस्पतालों में भी यह स्थिति बनी हुई है, लेकिन थोड़ी बेहतर है।"

बनारस में पहली बार 29 पुलिसकर्मी डेंगू के जद में आए हैं। खास बात यह है कि डेंगू पीड़ितों में युवाओं की तादाद ज्यादा है। मलेरिया विभाग रोकथाम के बजाय बीमार मरीजों और इससे मरने वाले लोगों की आंकड़ों को छिपने में अपनी सारी ताकत झोक रहा है। इस महकमें के आंकड़ों पर भरोसा करें तो 30 अक्टूबर 2022 तक बनारस में सिर्फ 229 दर्ज किए गए, जिनमें 122 युवा और 67 किशोर थे। प्रौढ़ और बुजुर्ग मरीजों की तादाद सिर्फ 40 रही।

ये आंकड़े सिर्फ सरकारी अस्पतालों की लैबों के हैं। जिला मलेरिया अधिकारी डॉ एससी पांडेय के मुताबिक, "साल 2018 में डेंगू के 650, 2019 में 525, 2020 (कोविडकाल), 2021 में 350 केस दर्ज किए गए थे। इस साल आंकड़ा सबसे कम है। डेंगू और मलेरिया की रोकथाम के लिए व्यापक तौर पर अभियान चलाया जा रहा है। चिन्हित इलाकों में डेंगू लार्वा की पहचान कर नष्ट करने का काम किया जा रहा है। स्थिति कंट्रोल में है।"

एक दैनिक अखबार के लिए मेडिकल बीट पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार पीके मौर्य बताते हैं, "बनारस के ज्यादातर प्राइवेट अस्पताल डेंगू के मरीजों से खचाखच भरे पड़े हैं। इन अस्पतालों में डेंगू मरीजों की भीड़ और लहुराबीर स्थित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के रक्त वितरण केंद्र के आगे प्लेटलेट्स लेने के लिए रोजाना लग रही सैकड़ों की भीड़ देखकर कई भी कह सकता है कि मलेरिया विभाग के आकड़े झूठे हैं। यह गुमनाम महकमा मक्कार है और उसके आंकड़े पूरी तरह फर्जी हैं। कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल के ब्लडबैंक की स्थिति बेहद खराब है। यहां मरीजों को प्लेटलेट्स नहीं मिल पा रहा है। सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था का आलम यह है कि डेंगू मरीजों को नर्सों के भरोसे छोड़ दिया गया है। सरकारी अस्पतालों के डेंगू वार्डों में भर्ती ज्यादातर मरीजों की शिकायत है डाक्टरों और दूसरे चिकित्साकर्मियों का रवैया भी डेंगू मरीजों के प्रति अच्छा नहीं है। इससे सरकार की इमेज पर बट्टा लग रहा है।"

पवन यह भी बताते हैं, "बनारस में डेंगू के सर्वाधिक रोगी पहड़िया, अशोक विहार कालोनी, पंचकोसी रोड, आशापुर, सानारथ, सोना तालाब, नई बस्ती, हुकुलगंज समेत वरुणा नदी के किनारे बसे सभी गांवों में हैं। बरेका के पश्चिमी छोर पर बसे गांवों में डेंगू का जबर्दस्त प्रकोप है। अबकी अक्टूबर में बारिश जारी रहने से डेंगू के लारवा फैलते चले गए। हर किसी का आरोप है कि सरकारी विभागों ने डेंगू मच्छर को पनपने से रोकने वाले छिड़कावों को बंद कर दिया है। नतीजा, एक-एक करके हर परिवार, हर शख़्स इसकी चपेट में आ रहा है। प्रशासन को चाहिए कि वह गंभीरता दिखाए, क्योंकि बनारस पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है।"

"सही इलाज और जागरूकता न होने के कारण बहुत लोगों की जान को खतरा बढ़ता जा रहा है। डेंगू से हो रही मौतों के चलते डबल इंजन की सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं। डीएम-कमिश्नर को चाहिए कि वो डेंगू को लेकर गंभीरता दिखाए। इस संक्रमण को रोकने के लिए अभी भी एंटी लारवा का छिड़काव समय समय पर नहीं किया जा रहा है और न ही इसकी जागरूकता को लेकर स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोई ठोस कदम उठाया जा रहा है।" 

जौनपुर में हालात विस्फोटक

जौनपुर में डेंगू की बीमारी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जौनपुर में लगभग 170 डेंगू के एक्टिव केस हैं। डेंगू संक्रमण के मामले में यह जनपद यूपी में अव्वल है। यहां डेंगू से मौतें तो कई लोगों की हुई है, लेकिन उनमें चार अधिकारी हैं। जौनपुर में खाद्य एवं रसद विभाग में तैनात सप्लाई इंस्पेक्टर दिनेश कुमार पथिक और केराकत तहसील में तैनात कानूनगो चंद्रप्रकाश सिंह (55) डेंगू से कुछ रोज पहले मौत हुई थी। मिरसादपुर गांव निवासी 35 वर्षीय आनंद मिश्र ने चार दिन पूर्व बुखार से पीड़ित होने पर जांच कराई तो रिपोर्ट डेंगू पॉजिटिव आई। प्लेटलेट्स कम होने पर स्वजन उपचार के लिए ईशा अस्पताल ले गए। जहां दो दिनों तक उपचार होने के बाद भी आराम नहीं मिला तो भाई आशीष मिश्र को बनारस के एक निजी अस्पताल में ले जाया गया। तब तक उनकी हालत बिगड़ चुकी थी। बाद में आनंद की मौत हो गई। 17 अक्टूबर की रात 55 साल के राजेश श्रीवास्तव की मौत डेंगू से हुई,  वहीं रासमंडल के आदित्य उपाध्याय, चौकियां के गोलू श्रीवास्तव और खरका तिराहे के पारस मौर्य की जिंदगी डेंगू निगल गया।

जौनपुर में कांग्रेस के जिला महासचिव अजय सोनकर के परिवार में आठ लोग डेंगू की चपेट में हैं, जिनमें दो लोगों का इलाज बीएचयू में चल रहा है। डेंगू पीड़ितों में रमेश सोनकर, सरस्वती सोनकर, अनीता सोनकर, काजल सोनकर, प्रमोद सोनकर, सुनील सोनकर, अभि सोनकर, सुधा सोनकर हैं। ये सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं। जौनपुर के ही एक कारोबारी का कहना है, "यहां कई ऐसे परिवार हैं जहां कई सदस्य एक साथ बीमार हैं। कोई ऐसा नहीं है जो दुकान चलाए।"

जौनपुर में डेंगू का कहर इतना तेज है कि बदलापुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डाक्टर संजय दुबे भी डेंगू की चपेट में आ गए। पुलिस इंस्पेक्टर वीरेंद्र तिवारी, सब इंस्पेक्टर सरिता यादव और कांस्टेबल उदयराज सहित 19 पुलिसकर्मी डेंगू से पीड़ित हैं। बदलापुर इलाके के राजबहादुर, पुरानी बाजार के अफसर व पिंटू, भलुआहीं की रेनू जायसवाल, तनिष्का सिंह, कृष्णकांत जायसवाल, फिरोजपुर के डा. प्रकाश शुक्ल, दुधौड़ा के संदीप निगम, नेवादा मुखलिसपुर की शालिनी सिंह, विजयशंकर व रिया निगम, ऊदपुर गेल्हवा प्रवीण यादव, जीतेश चौधरी, सरोखनपुर गंगाप्रसाद, विकास शर्मा, उमाकांत सरोज, बरौली की शैलजा सिंह समेत तमाम लोग डेंगू की चपेट में हैं। इन सभी का उपचार कई अस्पतालों में चल रहा है।

मिर्ज़ापुर में 12 मौतें

कोरोना के बाद यूपी की राजधानी लखनऊ में भी डेंगू ने हर आदमी को दशहत में डाल दिया है। मामले इतने आ रहे हैं कि इसने कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। सरकारी आकंड़ों की माने तो महज सिर्फ दिन के भीतर राजधानी लखनऊ में ड़ेंगू के 134 मरीज रिपोर्ट हुए हैं। डेंगू मरीजों की तादाद एक हजार से ऊपर पहुंच गई है। मरीजों में प्लेटलेट्स के अलावा ब्लड प्रेशर में भी तेजी से गिरावट देखी जा रही हैं। विभागीय अफसर बताते हैं कि मौसम की अनुकूलता, सॉलिड वेस्ट का ठीक ढंग से निस्तारण न होना डेंगू का सबसे बड़ा कारण है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मिर्जापुर में डेंगू से अब तक 12 लोगों की मौत हो चुकी है। यहां डेंगू मरीजों की संख्या 200 से पार पहुंच गई है। जान गंवाने वालों में सरकारी महिला अस्पताल में संविदा पर तैनात स्टाफ नर्स साक्षी सिंह शामिल हैं। यहां प्लेटलेट्स की कमी के चलते मौतों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। बनारस मंडल के गाजीपुर जिले में डेंगू पीड़ित मरीजों की तादाद 75 के करीब पहुंच गई है। हालांकि गैर-सरकारी आंकड़े दो सौ से ज्यादा बताए जा रहे हैं। जिला अस्पताल में प्लेटलेट्स और प्लाज्मा चढ़ाए जाने की सुविधा नहीं होने के बाद मरीजों को इलाज के लिए बनारस भेजना पड़ रहा है। वहीं सोनभद्र में भी डेंगू बहुत तेजी के साथ पैर पसार रहा हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार जिले के तीन गावों में आधा दर्जन  नए मरीज मिले हैं। सोनभद्र में अब तक डेंगू के कुल मामलों की संख्या 150 हो गई हैं।

बलिया में डेंगू का रिकार्ड टूटने के आसार हैं। इस साल अब तक 111 रोगी मिल चुके हैं जिनमें दर्जनों का उपचार चल रहा है। साल 2019 में यहां सर्वाधिक 121 रोगी मिले थे। आजमगढ़ भी डेंगू पीड़ितों की तादाद बढ़ती जा रही है। प्रयागराज में हालात बेकाबू हो गया है। यहां डेंगू मरीजों की तादाद एक हजार के ऊपर पहुंच गई है। लखनऊ में हाल भी बुरा है। गाजियाबाद में मरीजों का आंकड़ा साढ़े पांच सौ से ऊपर जा रहा है, जबकि अयोध्या में चार सौ के आसपास। उधर, मुरादाबाद डेंगू मरीजों की तादाद 900 को पार कर चुकी है। डेंगू के मच्छरों ने झांसी में भी धावा बोल दिया है। यहां अब तक डेंगू के 51 मरीज झांसी में सामने आ चुके हैं। सीतापुर और बाराबंकी में दर्जनों मरीजों की शिनाख्त हुई है।

इटावा में विचित्र बुखार

इटावा जनपद के जसवंतनगर प्रखंड के परसौवा गांव एक विचित्र बुखार की चपेट में है। यहां 80 फ़ीसदी परिवार इसकी जद में है, जिनमें तीन लोगों की मौतें सिर्फ 24 घंटे में हो गईं। कुछ ग्रामीण डेंगू से भी पीड़ित हैं। स्वास्थ्य महकमा बेखबर है। परसौवा गांव की आबादी करीब 4500 है। ग्राम प्रधान धर्मेंद्र कहते हैं, "बड़ी संख्या में लोगों को अबूझ बुखार ने घेर रखा है। इस बुखार में प्लेटलेट्स बहुत कम हो जाती हैं, लेकिन जांच में डेंगू की पुष्टि नही हो रही है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी गीताराम कहते हैं, "इटावा में 35 केस डेंगू के हैं, पर किसी की मौत नहीं हुई है। जिन तीन लोगों की मौत हुई है वह बुखार से नहीं हुई है। मरीजों का लगातार इलाज चल रहा है।"

सुल्तानपुर जिले में मुशीर अहमद (34) नामक सिपाई की डेंगू से मौत हो गई और 34 अन्य का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है। इस जिले में डेंगू से मरने वालों की 10 हो गई है। लखीमपुर खीरी जिले में भी डेंगू के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां डेंगू के मरीजों की संख्या अब 32 हो गई है। इसके अलावा चिल्ड्रेन वार्ड में भर्ती दो बच्चे-अनन्या राज और पतरासी के शिवम में स्क्रब टाइफस की पुष्टि हुई है।

पीलीभीत इन दिनों में संदिग्ध बुखार की चपेट में है। यहां की नौगांवा पकड़िया नगर पंचायत में ये बुखार अब तक सात लोगों की जान ले चुका है और करीब 300 घरों में सैकड़ों लोग बुखार से तप रहे हैं। नौगांवा पकड़िया की रहने वाली खुलासो देवी (45) फूलचंद्र (55), सुरेश प्रजापति (40), देवांश मिश्रा (15), योगेंद्र उर्फ पप्पू (50), अनिकेश(30) की संदिग्ध बुखार से मौत हो चुकी है। जबकि फरहान बी (47) को बुखार आने पर बरेली ले जाया गया था, जहां उनकी मौत हो गई। फरहान बी में आंशिक डेंगू की पुष्टि हुई है।

प्लाजमा की जगह मौसंबी का जूस

यूपी में डेंगू पीड़ितों की तादात बढ़ने की वजह से प्लेटलेट्स का संकट पैदा हो गया है। सोशल मीडिया पर ब्लड डोनेट करने के लिए इश्तेहार डाले जा रहे हैं। अभी हाल में प्रयागराज के एक निज़ी अस्पताल में डेंगू मरीज़ को प्लाज़्मा की जगह कथित तौर पर मौसंबी का जूस चढ़ाने की बात सामने आई है। यहां ग्लोबल हॉस्पिटल एंड ट्रॉमा सेंटर में प्रदीप कुमार को 17 अक्टूबर को ग्लोबल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उनका डेंगू का इलाज किया जा रहा था। लेकिन, उनकी दो दिन बाद मौत हो गई।

परिवार वालों का दावा है कि अस्पताल ने मरीज़ को प्लाज़्मा की जगह ड्रिप के ज़रिए मौसंबी का जूस चढ़ा दिया जिसके चलते उनकी मौत हो गई। इसका एक वीडियो भी सामने आया है जिसमें एक शख़्स बता रहा है कि ख़ून के पैकेट के अंदर मौसंबी का जूस है। वो प्रशासन पर सवाल उठा रहा है।

प्रदीप के परिजनों का आरोप है कि प्लेटलेट्स की जगह मौसंबी का जूस चढ़ा दिया गया। प्लाज़्मा का रंग भी गाढ़ा पीला होता है और मौसंबी के जूस का रंग भी लगभग वैसा ही होता है। इस मामले की जांच हो रही है और यह पता लगाया जा रहा है कि प्लाज़्मा की बोतल में जूस था या नहीं? अगर था तो इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हुई है?

आईजी राकेश सिंह ने कहा है, ''डेंगू के मरीज़ों को नकली प्लाज़्मा देने की रिपोर्ट्स की जांच के लिए जांच टीम गठित की गई है। कुछ संदिग्धों को हिरासत में भी लिया गया है। अभी ये स्पष्ट नहीं हुआ है कि ये मौसंबी का जूस था या नहीं। कुछ दिनों पहले ही एक नकली ब्लड बैंक भी पकड़ा गया है।'' एसआरएन अस्पताल का इस मामले में कोई बयान नहीं आया है।

डेंगू के साथ फाइलेरिया का हमला

यूपी के मिर्जापुर जिले में डेंगू बुखार के हमले के बीच फाइलेरिया की बीमारी ने भी दस्तक दे दी है। ग्रामीण इलाकों में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। यहां ‘हाथी पांव’  (फाइलेरिया) के लक्षण वाले 157 मामले दर्ज किए गए हैं। फाइलेरिया भी डेंगू और मलेरिया की तरह मच्छरों के काटने से ही फैलती है। इस बीमारी में भी शुरुआत में बुखार और शरीर में दर्द होता है। इसके बाद पैर में सूजन शुरू होती है। यह सूजन लगातार बढ़ती जाती है।

फाइलेरिया बीमारी मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होती है। शुरुआत में बीमारी के लक्षण दिखने पर मरीज यदि समय से इलाज कराता है, तो वह कुछ ही साल के अंदर फाइलेरिया जैसी घातक बीमारी से आजादी पा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग जागरूकता की कमी के वजह से इस बीमारी को हल्के में ले लेते हैं। फिलहाल मिर्जापुर जिले में सबसे अधिक 46 फाइलेरिया के मरीज पड़री ब्लॉक में मिले हैं।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मिर्जापुर के विजयपुर ब्लॉक में 8, चील्ह ब्लॉक में 28, हालिया ब्लॉक में 22, पड़री ब्लॉक में 46, चुनार ब्लॉक में 14, राजगढ़ ब्लॉक में 19 और सिटी ब्लॉक में 10 मामले फाइलेरिया के सामने आए हैं। इसके अलावा गुरसंडी ब्लॉक में एक, लालगंज में तीन,  पटेहरा में एक, कछवा में एक, सीखड़ में तीन और जमालपुर ब्लॉक में एक फाइलेरिया का मामला सामने आया है। ये वो ब्लॉक हैं जहां फाइलेरिया बीमारी का पॉजिटिविटी रेट तय मानकों के ऊपर है।

जिला मलेरिया अधिकारी संजय द्विवेदी कहते हैं, "किसी के भी रक्त में माइक्रो फाइलेरिया उपस्थित रहेगा, उसको भविष्य में फाइलेरिया होने की प्रबल संभावना रहती है। यदि मरीज तीन साल तक नियमित इलाज कराता है तो वह इस गंभीर बीमारी से निजात पा सकता है।"

क्यों बेकाबू हो रहा डेंगू?

डेंगू एडीज इजिप्टी (मादा मच्छर) के काटने से फैलता है। यह एक वायरल बुखार है। यह स्थिति तब बनती है जब घरों में या आसपास एक ही स्थान पर बहुत दिनों से पानी जमा हो। जैसे कूलर, वॉश एरिया, सिंक, गमलों आदि में भी कई बार पानी जमा रहता है जो डेंगू का कारक बनता है। यूपी में डेंगू की बीमारी नई नहीं है। हर साल लाखों लोग इससे बीमार होते हैं और सैकड़ों की जान जाती है। फिलहाल डेंगू का कोई इलाज नहीं है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, डेंगू के लिए अब तक कोई एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है। साथ ही बीमारी में वैक्सीन का इस्तेमाल भी सीमित है। डेंगू पर कई सालों से रिसर्च जारी है, लेकिन अभी तक कोई कारगर इलाज विकसित नहीं हो पाया है। योगी सरकार अखबारों में इश्तिहार छपवा रही है, "डेंगू और तेज़ बुखार होने पर घबराने की जरूरत नहीं है।" यूपी सरकार जिस तरह से इस संकट से निपट रही है, उसे लेकर उसकी खूब आलोचना हो रही है।

काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, "सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, समूचे यूपी में स्थिति नियंत्रण से बाहर है, मगर सरकार का कहना है कि सरकारी अस्पताल डेंगू, चिकनगुनिया, और मलेरिया से निपटने में पूरी तरह से सक्षम हैं। डेंगू से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग की तैयारी फुस्स हो गई है। नतीजा, पूर्वांचल में डेंगू ने अब महामारी का रूप ले लिया है। डबल इंजन की सरकार इस बीमारी से निपटने में पूरी तरह फेल हो गई है। इससे बचाव के जितने भी उपाय हैं, उसमें कोई भी बिंदु पर मुकम्मल इंतजाम नहीं हो रहा है। चाहे वह डेंगू मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव का मामला हो या फिर अस्पतालों में पीड़ित व्यक्तियों के इलाज का।"

"सरकारी अस्पतालों में घोर अव्यवस्था है। डेंगू से इलाज के इंतजाम हवा-हवाई हैं। मौतें लगातार हो रही है, उसे छिपाया जा रहा है। प्लेटलेट्स की कौन कहें, जांच किटों का टोटा है। यह ऐसी बीमारी है जो पिछले कई सालों से जारी है। अभी भी सरकार सबक नहीं ले रही है। साफ-सफाई का हल्ला तो बहुत है, लेकिन जमीन पर उसका कहीं अता-पता नहीं है।"

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप यह भी कहते हैं, "एक दौर था जब मलेरिया उन्मूलन के लिए तत्कालीन विभाग ने अलग से विभाग बना दिया था और वो लगातार काम करता था। दशकों तक प्रयास के बाद कुछ हद तक मलेरिया पर काबू पाया जा सका। इसी बीच डेंगू के मच्छरों की फौज खड़ी तो उससे मुकाबला करने के लिए सरकार के पास न कोई नीति है, न नीयत। इस सरकार की नीयत एन-केन-प्रकारेण सिर्फ सत्ता में बने रहने तक सीमित है।"

"डबल इंजन सरकार की दिलचस्पी सिर्फ सच लिखने और सच बोलने वालों को प्रताड़ित करने तक सीमित है। उसे लोगों के मरने-जीने से कोई मतलब ही नहीं रह गया है। समूचे देश ने देखा है कि कोरोना के संकटकाल में अनगिनत मौतें हुईं। कप़ड़ों से ज्यादा कफन बिके और सरकार लोगों से ताली-थाली बजवाती रही। बाद में सफेद झूठ बोल गए कि आक्सीजन की कमी के चलते कोरोना से पीड़ित किसी व्यक्ति की मौत हुई ही नहीं। कुछ इसी तरह का खेल डेंगू के मामले में चल रहा है।"

(सभी चित्र वाराणसी के कबीरचौरा स्थित मंडलीय चिकित्सालय और पांडेयपुर जिला अस्पताल के डेंगू वार्ड के हैं।)

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