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मेडिकल कचरा : तेजस्वी यादव की पहल सराहनीय, लेकिन....

बिहार के स्वास्थ्य मंत्री को इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि बिहार के हजारों अस्पताल ऐसे हैं, जो रोजाना 34 हजार किलो मेडिकल कचरा पैदा करते हैं।
bio medical waste

इसी महीने बिहार के मुजफ्फरपुर में 200 से अधिक निजी अस्पतालों को सिविल सर्जन ऑफिस से नोटिस भेजा गया। वजह थी मेडिकल कचरा उठाव की व्यवस्था न होना, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जारी प्रमाणपत्र का न होना और खुले में खतरनाक मेडिकल कचरा जलाना। और ठीक 2 दिन पहले बिहार के उप मुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव ने सभी जिला अस्पतालों को सात दिनों के भीतर जैविक कचरा प्रबंधन की व्यवस्था सुनिश्चित करने का आदेश दिया। जाहिर है, मेडिकल कचरा बिहार समेत देश भरा के लिए एक बहुत ही गंभीर खतरा है लेकिन दुखद रूप से इस पर मीडिया या राजनीति में उतनी बात नहीं होती। लेकिन, तेजस्वी यादव का यह ताजा निर्देश एक नई उम्मीद की किरण बन कर उभरा है। लेकिन, इसके साथ ही बिहार के स्वास्थ्य मंत्री को इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि बिहार के हजारों अस्पताल ऐसे हैं, जो रोजाना 34 हजार किलो मेडिकल कचरा पैदा करते है (बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आकडे के अनुसार)। इसलिए, सिर्फ जिला अस्पतालों तक इस आदेश को समेत कर रखना मेडिकल कचरे को ख़त्म करने की दिशा में कारगर कदम नहीं साबित हो सकेगा। इसके लिए, तेजस्वी यादव को उन निजी अस्पतालों तक भी अपनी नजर दौडानी होगी, जिनके पास मेडिकल कचरा के सही निपटान समेत उचित उठाव आदि की व्यवस्था नहीं है। 

बिहार के 5,000 डिफाल्टर अस्पताल 

बायो-मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट नियम, 2016 कहता है कि अस्पतालों, नर्सिंग होम, पैथोलॉजिकल लैब, क्लीनिक, डिस्पेंसरी, ब्लड बैंक आदि को नियम 10 के तहत बोर्ड द्वारा अधिकार पत्र (ऑथराइजेशन) और सहमति (कंसेंट) लेना आवश्यक है। दुखद रूप से बिहार के सभी जिलों में संचालित लगभग 5,000 ऐसे अस्पताल हैं, जिन्हें बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने डिफॉलटर्स माना है। इसका अर्थ यह हुआ कि इनके पास प्रदूषण बोर्ड का अधिकार पत्र और सहमति नहीं है। इन्हीं अस्पतालों से बिहार में रोजाना 34 हजार किलो से भी अधिक मेडिकल कचरा निकलता है, जिसका उचित तरीके से निपटना न होना बिहार के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर सकता है। गौरतलब है कि वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार, अस्पतालों से निकलने वाला 15 फीसदी कचरा हानिकारक होता है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार खुले में बायोमेडिकल कचरा जलाने से कुछ परिस्थितियों में हानिकारक गैस भी निकलती हैं और बायो मेडिकल कचरे को गड्ढे में डालने से भूमिगत जल प्रदूषित हो सकता है। गौरतलब है कि 2010 में असुरक्षित सुई के कारण 33,800 नए एचआईवी संक्रमण के मामले आए थे जबकि हेपेटाइटिस बी के 17 लाख और हेपेटाइटिस सी के तीन लाख 15 हजार मामले आए थे।  

हजारों अस्पताल और सिर्फ 4 शहरों में कचरा निपटान सुविधा 

बिहार की आबादी करीब 14 करोड़ है। तकरीबन 40 शहर है। इन शहरों में हजारों अस्पताल है। लेकिन यहाँ से निकालने वाले हजारों किलो मेडिकल कचरा के सही निपटान के लिए पूरे बिहार में मात्र चार शहरों पटनामुजफ्फरपुरगया और भागलपुर में ही मेडिकल कचरे के उचित निपटान की व्यवस्था है। छपरा के रिटायर्ड विंग कमांडर डॉक्टर बीएनपी सिंह वेटरंस फोरम फॉर ट्रांसपैरेंसी इन पब्लिक लाइफ नाम की संस्था चलाते हैं। उन्होंने 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल में एक याचिका डाली थी, जिसमें बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी एक पक्ष बनाया गया था। इस याचिका पर एनजीटी ने मार्च, 2019 में कहा था की “बायो-मेडिकल वेस्ट नियम के उल्लंघन से नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गंभीर असर को देखते हुए कड़ी कार्रवाई किए जाने की जरूरत है। साथ ही उल्लंघन करने वालों से मुआवजा राशि वसूली जाए ताकि उल्लंघन करना मुनाफे का सौदा न बन सके। यह मानना होगा कि प्राधिकरण (प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) को उल्लंघन का पता है, फिर भी किसी उल्लंघनकर्ता के खिलाफ कार्रवाई होती नहीं दिख रही है।” विंग कमांडर डॉक्टर सिंह ने बताया, “नवंबर, 2021 में मैंने एक पत्र लिख कर बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एनजीटी का आदेश लागू कराने के लिए कहा था, लेकिन, अब तक कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने डॉक्टर सिंह की याचिका पर आदेश दिया था कि बायो-मेडिकल वेस्ट रूल का पालन न करने वाले अस्पतालों को बंद किया जाए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अकेले पटना में 4290 अस्पताल हैं, जिनमे से 326 इन नियमों का पालन नहीं करते। हालांकि, बाकी के अस्पताल इन नियमों का कितना पालन करते है, यह आसानी से समझा जा सकता है। 

मेडिकल कचरे से बिहार बदहाल 

भारत सरकार की केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 48।5 हजार किलो बायो-मेडिकल कचरे का निपटान बिना उपचार (ट्रीटमेंट) के कर दिया जाता है। बिहार में भी रोजाना पैदा होने वाले 34 हजार किलो कचरा में से तीन-चौथाई (76%) से अधिक कचरे का निपटान नहीं किया जाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि बिहार में बायो-मेडिकल वेस्ट निपटान की जमीनी हकीकत क्या है। जब प्रदूषण और पर्यावरण को ले कर दुनिया भर में चिंता जताई जा रही हो, तब बिहार जैसे राज्य में हजार से ज्यादा अस्पतालोंनर्सिंग होमपैथोलॉजिकल लैबक्लीनिकडिस्पेंसरीब्लड बैंक द्वारा बायो-मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट नियम, 2016 का उल्लंघन एक गंभीर मुद्दा है। जाहिर है, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव ने जब जिला अस्पतालों को जैविक कचरे के निपटान के आदेश दिए, तब उन्हें बिहार की इस तस्वीर को भी अपने आदेश में शामिल करने की जरूरत है। यानी, उन्हें अपने आदेश के दायरे को सरकारी अस्पतालों से बढ़ा कर निजी अस्पतालों तक ले जाने की जरूरत है। 

 

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