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उपचुनाव: तीन लोकसभा और सात विधानसभा सीटों पर कितने प्रतिशत मतदान? कौन मारेगा बाज़ी...

देश के दो राज्यों की तीन लोकसभा और चार राज्यों की सात विधान सीटों पर मतदान हुए, इनमें आज़मगढ़ और रामपुर सीट पर कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
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पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को भारी जीत मिली थी। हालांकि समाजवादी पार्टी ने साल 2017 से कुछ बेहतर प्रदर्शन ज़रूर किया। इन चुनावों में वरिष्ठ नेता आज़म खान रामपुर सीट से तो पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे अखिलेश यादव को करहल सीट से विधायक चुना गया था। हालांकि अखिलेश आज़मगढ़ से और आज़म खान रामपुर लोकसभा सीट से पहले ही सांसद थे। लेकिन दोनों ने विधायक बने रहने का फैसला किया और संसदीय पद से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद प्रदेश की दोनों सीटें खाली हो गई थीं।

इन्ही दोनों सीटों पर 23 जून यानी गुरुवार उपचुनाव हुए। हालांकि बात चाहे आज़मगढ़ की हो या रामपुर की अखिलेश यादव विधानसभा चुनावों की तरह प्रचार नहीं किया, जिसके मायने ये समझे जा सकते हैं, कि आज़मगढ़ हमेशा से यादवों का, या यूं कहें सपाईयों का किला रहा है, ऐसे में उन्हें जीत की ज्यादा उम्मीद है, आज़मगढ़ लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी की ओर से काफी मंथन के बाद धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया गया था, जिसके बारे में कहा गया कि एक तो वो यादव परिवार से आते हैं दूसरा उन्हें संसद का अनुभव भी है। लेकिव धर्मेंद्र यादव के लिए आज़मगढ़ सीट जीतना इतना आसान इसलिए नहीं होगा कि क्योंकि यहां से भाजपा ने अपने नेता और भोजपुरी सुपरस्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ पर दांव खेला है, जो उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से लगातार प्रचार भी कर रहे हैं, सिर्फ निरहुआ ही नहीं भाजपा के अन्य बड़े नेताओं ने भी आज़मगढ़ में जीत के लिए धुंआधार प्रचार किया है। जिसमें ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तीन सभाएं कर निरहुआ के लिए वोट मांग चुके हैं। ऐसे में वो धर्मेंद्र यादव को कड़ी टक्कर दे सकते हैं, इसके इन दोनों के लिए गले की फांस साबित हो सकते हैं बसपा के प्रत्याशी गुडडू जमाली। गुडडू शाह जमाली पूरे प्रचार के दौरान खुद को ‘आजमगढ़ का बेटा’ बताते हुए वोट मांग रहे थे। राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के समर्थन के बाद से बसपा प्रत्याशी का मनोबल काफी ऊंचा हो गया है। आपको बता दें कि आजमगढ़ में उलेमा काउंसिल की पकड़ अच्छी है। इन्ही की बदौलत 2017 में बसपा यहां से चार सीटें जीतने में कामयाब रही थी।

आज़मगढ़ के लिए शायद हमें ज्यादा जाति समीकरण के लिए बात करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि पिछले कई सालों से यहां यादवों का ही वर्चस्व ही रहा है, साल 2019 के चुनावों में भी अखिलेश यादव रिकॉर्ड वोटों से जीते थे। और बीते विधानसभा चुनावों में भी सपा का प्रदर्शन अच्छा रहा था। आजमगढ़ लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें आती हैंगोपालपुरसगड़ीमुबारकपुरआजमगढ़ और मेहनगर। पांचों विधानसभा सीटों पर सपा को करीब 4 लाख 36 हजार वोट मिले थेजबकि भाजपा के उम्मीदवारों को 3 लाख 30 हजार के करीब वोट मिल पाए थे। हालांकि वोटों की तुलना की जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों को ही विधानसभा में कम वोट मिले थे। सपा को करीब 2 लाख वोट कम मिले तो वहीं भाजपा को 30 हजार वोटों का नुकसान हुआ।

अब बात रामपुर लोकसभा सीट की... आजमगढ़ की तरह रामपुर भी सपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट है। और यहां पर अखिलेश से ज्यादा 27 महीने बाद जेल से छूटे आजम खान की प्रतिष्ठा दांव पर है। रामपुर से कभी आजम खां के करीबी रहे घनश्याम लोधी को भाजपा ने टिकट दिया है। वह 2022 के विधानसभा चुनाव से पहलेसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। वहींसपा ने आजम के दूसरे करीबी आसिम रजा का मैदान में उतारा है। जबकि बसपा ने रामपुर उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है। वहीं कांग्रेस ने उप चुनाव में कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है।

रामपुर लोकसभा में भी पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में पांच में से तीन सीटें सपा ने तो दो सीटें भाजपा ने जीतीं थी। इस सीट पर आजम खां का इतना प्रभाव है कि वह जेल में रहते हुए विधान सभा चुनाव जीत गए थे। जबकि 2019 में उन्होंने भाजपा से चुनाव लड़ी जया प्रदा को हराया था। जिनके साथ उनकी राजनीतिक दुश्मनी हमेशा से चर्चा में रही है। रामपुर में 55 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। ऐसे में अगर पुरान रिकॉर्ड देखा जाय तो यहां पर सपा और कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। हालांकि 19911998 और 2014 में भाजपा भी यहां जीत चुकी है। जहां तक आजम खां की बात है तो यहां से वह 10 बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं।

पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए, यहां आम आदमी पार्टी ने जमीन से जुड़े सरपंच गुरमेल सिंह को संगरूर लोकसभा उपचुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) की ओर से सिमरनजीत सिंह मान मैदान में उतरे हैं। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री मान के हाथों धुरी से विधानसभा चुनाव हार चुके दलवीर सिंह गोल्डी को फिर से एक मौका और दिया है। शिरोमणि अकाली दल (बादल) ने कमलदीप कौर राजोआना को चुनाव मैदान में उतारा है। आपको बता दें कि कमलदीप कौर पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की बहन हैं। जबकि भाजपा ने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर पार्टी में आए केवल सिंह ढिल्लों को अपना उम्मीदवार बनाया है।

आपको बता दें कि लोकसभा उपचुनाव में भगवंत मान की प्रतिष्ठा दाव पर लगी हुई है। यह सीट यदि आम आदमी पार्टी के हाथ से निकल जाती हैतो लोकसभा में पार्टी की उपस्थिति शून्य हो जाएगी। मुख्यमंत्री बनने से पहले भगवंत मान लोकसभा में पार्टी के एकमात्र सांसद थे। मान ने 2014 और 2019 में संगरूर संसदीय सीट से जीत हासिल की थी। पंजाब में सरकार बनने के बाद उपचुनाव आप की पहली बड़ी चुनावी लड़ाई होगी।

लोकसभा उपचुनावों के अलावा चार राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर मतदान हुए, जिसमें त्रिपुरा की अगरतला, टाउन बोरडोवली, सूरमा और जुबाराजनगर विधानसभा सीट शामिल है, इसके अलावा आंध्रप्रदेश की अतमाकुर विधानसभा सीट, दिल्ली की राजेंद्र नगर विधानसभा सीट और झारखंड की मांडर विधानसभा सीट विधानसभा सीट शामिल है।

दिल्ली राजेंद्र नगर विधानसभा

दिल्ली के राजेंद्र नगर विधानसभा उपचुनाव में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगाआम आदमी पार्टी ने दुर्गेश पाठकतो भारतीय जनता पार्टी  ने राजेश भाटिया को मैदान में उतारा है। कांग्रेस की ओर से प्रेमलता चुनाव लड़ रही हैं। दिल्ली में राजेंद्र नगर सीट सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के साथ ही भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई है। राजेंद्र नगर सीट पर उपचुनाव के बाद आगामी कुछ महीनों में दिल्ली नगर निगम चुनाव भी होने वाले हैं। ऐसे में राजेंद्र नगर सीट पर जो भी राजनीतिक दल जीतेगा उसे इसका मनोवैज्ञानिक लाभ जरूर मिलेगा। ऐसे में हर राजनीतिक दल इस चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करना चाह रहा है।

आपको बता दें कि पंजाब से राज्यसभा के लिए चुने जाने के बाद आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने दिल्ली विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद यह सीट खाली हो गई। ऐसे में यहां उपचुनाव कराना पड़ रहा है। पिछले 27 सालों में इस विधानसभा में हुए चुनावों का परिणाम बताता है कि इस सीट पर कभी भाजपा का दबदबा हुआ करता था। साल 2008 के बाद इस सीट का परिसीमन हुआ। इसके बाद पूर्वांचलियों की संख्या बढ़ने के बाद भाजपा का दबदबा कम हुआ है। पिछले दो बार से इस सीट से आम आदमी पार्टी ही जीत रही है। 2020 के चुनाव में राघव चड्ढा ने यहां से जीत हासिल की थी।

इस सीट पर 40% वोटर पंजाबी और सिख समुदाय से हैं। वहींपूर्वांचल के वोटरों की संख्या भी करीब 25 प्रतिशत है। ऐसे में सिर्फ इन दोनों को मिलाने से ही वोटरों का आंकड़ा 65 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। ऐसे में जिस पार्टी को इन दो समुदायों का साथ मिलेगा उसकी जीत की राह बिल्कुल आसान हो जाएगी। चूंकि बीजेपी ने यहां से पंजाबी समुदाय के राजेश भाटिया को उम्मीदवार बनाया है ऐसे में बीजेपी ने यहां बढ़त लेने की कोशिश की है।

झारखंड की मांडर विधानसभा सीट

झारखंड की इस विधानसभा सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय होता दिखाई दे रहा है। भ्रष्टाचार के मामले में विधायक बंधु तिर्की को दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है। कांग्रेस ने बंधु की बेटी शिल्पा नेहा तिर्की को झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन के साझा उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है। जबकिभारतीय जनता पार्टी  ने पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर को इस सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। निर्दलीय उम्मीदवार देव कुमार धन को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन का समर्थन मिला है।

लोकसभा उपचुनावों में शाम पांच बजे तक कितने प्रतिशत वोटिंग

आज़मगढ़(उत्तर प्रदेश) 45.97%

रामपुर(उत्तर प्रदेश)    37.01%

संगरूर(पंजाब)   36.40%

विधानसभा उपचुनावों में शाम पांच बजे तक कितना प्रतिशत वोटिंग

राजिंदर नगर (दिल्ली)  40.65%

मांडर (झारखंड)  60.05%

अत्माकुर (आंध्रप्रदेश)  61.70%

अगरतला (त्रिपुरा)   76.72%

बोरदोवाली टाउन (त्रिपुरा) 69.54%

सूरमा (त्रिपुरा)  80.00%

जुबाराजनगर (त्रिपुरा) 80.41%

इन उपचुनाव में सबसे ज्यादा नज़रें उत्तर प्रदेश की आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर रहेंगी। क्योंकि यहां के नतीजे तय करेंगे कि समाजवादी पार्टी के लिए उनके ही गढ़ में क्या बचा है। इसके अलावा ये सीटें सपा के अलावा भाजपा के लिए भी साख की बात है, क्योंकि तमाम जोड़-तोड़ के बाद भी भाजपा हमेशा इन सीटों से हार ही जाती है। इसके अलावा पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट आम आदमी पार्टी के लिए काफी मायने रखती है, क्योंकि विधानसभा चुनावों जिस तरह की जीत आम आदमी पार्टी ने दर्ज की, उसके बाद ये सीट जीतना बेहद ज़रूरी हो जाता है।

फिलहाल कौन जीतता है कौन हारता है इसका फैसला 26 जून यानी रविवार को हो जाएगा।

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