Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

लखनऊ: साढ़ामऊ अस्पताल को बना दिया कोविड अस्पताल, इलाज के लिए भटकते सामान्य मरीज़

लखनऊ के साढ़ामऊ में स्थित सरकारी अस्पताल को पूरी तरह कोविड डेडिकेटेड कर दिया गया है। इसके चलते आसपास के सामान्य मरीज़ों, ख़ासकर गरीब ग्रामीणों को इलाज के लिए भटकना पड़ रहा है। साथ ही इसी अस्पताल के सहारे छोटा-मोटा काम-धंधा करने वाले भी मुश्किल में आ गए हैं।
Hospital
इस अस्पताल को बना दिया गया है कोविड डेडिकेटेड

साठ साल के रविन्द्र लखनऊ के बक्शी का तलाब (बीकेटी) स्थित अल्लाईपुर गांव के रहने वाले हैं। बीकेटी के साढ़ामऊ स्थित राम सागर मिश्र (100 शैय्या) सरकारी अस्पताल के सामने वे कई सालों से चाय-नाश्ते का छोटा सा ढाबा चलाते हैं। लेकिन अब रविन्द्र अपने चाय-नाश्ते के ढाबे को बन्द करने की तैयारी में हैं। पिछले एक सप्ताह से उनके ढाबे पर कोई ग्राहक नहीं आया। अलबत्ता अगल-बगल काम करने वाले कुछ तीन चार मजदूर दिनभर में चाय नाश्ते के लिए आ जाते हैं। पर उनका भी क्या आसरा कब यहां से दूसरी जगह काम के लिए चल दें। तब बची खुची आमदनी का क्या होगा, यह चिंता  रविन्द्र को दिन रात परेशान कर रही है। यही हाल खाने पीने के समान की छोटी सी गुमटी चलाने वाले सनी यादव का भी है। सनी दसवीं कक्षा के छात्र हैं। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं इसलिए अक्सर अपने पिता की अनुपस्थिति में गुमटी चलाने का काम भी करता हैं। सनी की गुमटी रविन्द्र के छोटे से ढाबे के सामने ही है। रविन्द्र और सनी की चिंता का कारण है राम सागर मिश्र (100 शैय्या) सरकारी अस्पताल को पूरी तरह से कोविड अस्पताल बना देना।

(60 साल के रविंद्र का ढाबा बंद होने की कगार पर है) 
अब चूंकि सामान्य अस्पताल को कोविड अस्पताल में तब्दील कर दिया गया है तो अन्य बीमारियों के मरीजों की भर्ती बंद कर दी गई जिसके चलते करोना के अलावा अन्य रोगों से ग्रसित रोगियों और उनके तीमारदारों का आना बन्द हो गया है। रविन्द्र कहते हैं जब मरीजों का आना ही नहीं हो रहा तो उनका ढाबा आख़िर चलेगा कैसे। वे कहते हैं पहले ही दो साल से करोना के कारण ढाबे के काम में मंदी आ गई थी, आर्थिक हालात बद से बदतर होते चले गए,  लेकिन इधर कुछ महीनों से हालात सुधर गए थे, हर रोज मरीजों और उनके तीमारदारों के आने के कारण दिनभर में अच्छी कमाई होने लगी थी, घर के आर्थिक हालात भी सुधरने लगे थे लेकिन दोबारा उसी हालात में पहुंच गए हैं। जब हमने रविन्द्र से यह पूछा कि अब क्या कीजिएगा तो ठंडी सांस भरते हुए वे कहते हैं अब ढाबा बन्द करने के अलावा और कोई चारा नहीं। तो वहीं अपनी गुमटी बन्द करने की बात सनी भी कहते हैं। 


(गुमटी चलाने वाला सनी)
सनी कहते हैं इस सरकारी अस्पताल में न केवल लखनऊ शहर और ग्रामीण क्षेत्र के मरीज आते थे बल्कि अन्य जिलों जैसे सीतापुर, लखीमपुर, हरदोई आदि जिलों से भी मरीज और उनके तीमारदार आते थे जिसके चलते दुकानदारी अच्छी खासी चल रही थी। लेकिन अब अस्पताल के पूरी तरह से कोविड डेडिकेटेड बन जाने के कारण पिछले सात आठ दिनों से धंधा चौपट हो गया। सनी और रविन्द्र कहते हैं सरकार को पूरी तरह से कोविड अस्पताल नहीं बनाना चाहिए था कुछ वार्ड कोविड के बना कर बाकी अन्य मरीजों का इलाज भी चलता रहता तो आज उन्हें अपना व्यवसाय बन्द करने की नौबत नहीं आती।

बीकेटी के बरगदी गांव की रहने वाली कमला कहती हैं उन्हें कई दिनों से हाथ में दर्द की शिकायत है और पेट की भी समस्या बनी हुई है, इलाज के लिए  राम सागर मिश्र सरकारी अस्पताल गईं तो पता चला कि अब यहां करोना के अलावा अन्य मरीजों को देखना और भर्ती करना बंद कर दिया है। वे कहती हैं हमारे पास इतना पैसा नहीं कि प्राईवेट अस्पताल या प्राईवेट डॉक्टर को दिखाया जा सके। तो मजबूरी में अब वे आयुर्वेद दवा ले रही हैं क्योंकि वे सस्ती होती हैं। कमला को प्रशासन के इस निर्णय में गुस्सा भी आता है। वे कहती हैं एक तरफ हमारे देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कोरोना के चलते अन्य रोगों के मरीजों के इलाज में रुकावट न आए, उनका भी इलाज अस्पतालों में चलता रहे और दूसरी तरफ गरीबों को बिना इलाज मारने का काम हो रहा है।

कमला के मुताबिक उन्हें उनके गांव के कुछ लोगों और आस पास के ग्रामीणों से पता चला कि जो मरीज अस्पताल में भर्ती थे, उन्हें इलाज के बीच में ही छुट्टी दे दी गई, क्योंकि अस्पताल को कोविड अस्पताल बनाने की तैयारी करनी थी, उनमें से कुछ लोग तो अपने मरीज को मजबूरी में निजी अस्पताल ले गए। कमला कहती है अब निजी अस्पताल गरीबों का कितना खून चूस लेगा इससे सरकार को क्या। बरगदी गांव की ही रहने वाली लक्ष्मी को चिंता इस बात की है कि कभी अचानक ठंड में उसके छोटे बच्चों की तबीयत खराब हो गई तो आखिर वे आपातकाल में कहां ले जाएगी। इतनी आमदनी भी नहीं कि निजी डॉक्टर से इलाज करा सके और शहर का अस्पताल बहुत दूर है। लक्ष्मी के पति भी अभी काम के सिलसिले में दिल्ली में हैं। वे कहती हैं कम से कम ग्रामीण क्षेत्र के अस्पताल को पूरी तरह से कोविड अस्पताल नहीं बनाना चाहिए था। लक्ष्मी ने बताया कि यदि करोना की शुरुआत का साल यानी 2020 को छोड़ दें तो पिछले साल 2021 में भी इसे पूरी तरह से कोविड अस्पताल बना दिया गया तब भी आस पास के ग्रामीणों को खासा परेशानियों का सामना करना पड़ा था।

देरवां गांव के रहने वाले करन की गर्भवती पत्नी भी राम सागर मिश्र अस्पताल में भर्ती थी लेकिन बच्चा होने से पहले ही उसे छुट्टी दे दी गई। अब चूंकि एकदम डिलीवरी का समय था तो करन आनन-फानन में पत्नी को कुछ ही दूर स्थित एक निजी अस्पताल में ले गया। आर्थिक हालत बेहद खराब होने के चलते निजी अस्पताल में डिलीवरी करवाने के लिए करन को बीस हजार में अपना खेत गिरवी रखना पड़ा। अब आखिर खेत जैसे छुड़वाया जाएगा, इस सवाल के जवाब में करन कहते हैं "मजदूरी करके, और यदि न छुड़वा पाया तो फिर खेत बेच ही देना पड़ेगा"। 

(करन की आर्थिक हालत बेहद ख़राब है) 

करन बेहद गरीब परिवार से हैं मेहनत मजदूरी करके किसी तरह परिवार चलाते हैं। मां का कुछ साल पहले देहांत हो चुका है और पिता भी अभी बेरोजगार हैं। ग़रीबी के चलते अपने से दो छोटे भाईयों को रिश्तेदारों के घर में पलने के लिए भेज दिया। करन कहते हैं पिछले दो साल से करोना के चलते वैसे ही आमदनी पर बुरा असर पड़ा है, पिताजी पहले किराए पर गाड़ी चलाने का काम करते थे लेकिन करोना के चलते जो रोजगार खत्म हुआ तो अभी तक बेरोजगार हैं। ऐसे में खेत भी नहीं रहा अब इससे बड़ी विपदा और क्या हो सकती है। करन कहते हैं चूंकि सरकारी अस्पतालों में गरीब ही इलाज के लिए आता है तो उन्हें जैसे-तैसे मर्जी कुछ भी बोलकर बरगला दिया जाता है। बीच में ही पत्नी को डिस्चार्ज कर दिया गया यह कह कर कि अस्पताल को कोविड अस्पताल बनाया जा रहा है अच्छा तो यह होता कि अस्पताल इमरजेंसी में खुद ही मरीजों को दूसरे सरकारी अस्पताल में रेफर कर देता, कम से कम डिलीवरी के केसों को तो अन्य सरकारी अस्पताल में रेफर कर देना चाहिए था लेकिन गरीबों के साथ जैसा मर्जी व्यवहार किया जाता है। वे कहते हैं वैसे ही परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है उस पर कर्ज का बोझ।

अस्पताल को पूरी तरह से कोविड अस्पताल बनाए जाने के ख़िलाफ़ पिछले दिनों ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन भी किया था और उपजिलाधिकारी को ज्ञापन भी दिया था लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ग्रामीणों की मांग थी कि ग्रामीण क्षेत्र के अस्पताल को कोविड अस्पताल न बनाया जाए और सामान्य दिनों की तरह यहां मरीजों को देखने और उन्हें भर्ती लेने का काम चलता रहे।

इस बात से कतई इंकार नहीं कि एक बार फिर ऑमिक्रॉन के चलते पूरे देश में जो हालात बन रहे हैं या बनने की ओर हैं उसे देखते हुए चिकित्सा के क्षेत्र में सौ प्रतिशत तैयारियां बेहद जरूरी हैं लेकिन एक संकट के समाधान में कहीं हम दूसरे संकट तो पैदा नहीं कर रहे, आख़िर इस ओर भी सचेतन तरीके से सोचना और देखना हमारे शासन, प्रशासन की ही जिम्मेदारी है। सोचिए यदि करन की गर्भवती पत्नी की डिलीवरी उसी सरकारी अस्पताल में ही हो जाती, यदि उसे कोविड के नाम पर डिस्चार्ज न कर दिया गया होता तो क्या उसे आनन फानन में निजी अस्पताल के चंगुल में फसना पड़ता, क्या उसे अपना खेत गिरवी रखना पड़ता? 
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

ये भी पढ़ें: जानिए: अस्पताल छोड़कर सड़कों पर क्यों उतर आए भारतीय डॉक्टर्स?

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest