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दिल्ली में ऑनलाइन शिक्षा और फ़ीस बढ़ोत्तरी को लेकर शिक्षक और छात्रों ने आवाज बुलंद की

मंगलवार को दिल्ली में  शिक्षकों  और छात्रों ने एक वर्चुल प्रेस वार्ता की। जिसमें उन्होंने माहमारी के समय छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा की तरफ धकेलने की सरकार की नीति की आलोचना की और इसे शिक्षा के लिए खतरनाक बताया।  
दिल्ली में ऑनलाइन शिक्षा और फ़ीस बढ़ोत्तरी को लेकर शिक्षक और छात्रों ने आवाज बुलंद की

कोरोना महामारी के समय ऑनलइन शिक्षा के बढ़ते दबाव और लगातार बढ़ती फीस के साथ अपने कई अन्य मांगों को लेकर शिक्षक और छात्रों ने अपनी आवज़ बुलंद की। मंगलवार को  शिक्षक और छात्रों ने एक वर्चुल प्रेस वार्ता की। जिसमें उन्होंने माहमारी के समय छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा की तरफ धकेलने की सरकार की निति की आलोचना की और इसे शिक्षा के लिए खतरानाक बताया।  
 
इस वार्ता  में मुख्य रूप से दिल्ली के छात्रों और शिक्षकों ने भाग लिया। 

इस वर्चुअल प्रेस वार्ता का आयोजन जूम मीट पर हुआ और इसका सीधा प्रसारण SFI दिल्ली राज्य कमेटी के फेसबुक पेज पर भी  किया गया। इस वार्ता को डूटा कोषाध्यक्ष  प्रोफेसर आभा देव हबीब, डटीएफ अध्यक्ष और पूर्व  डूटा अध्यक्ष प्रोफेसर नंदिता नारायण, जेएनयूएसयू अध्यक्ष आईषी घोष
अंबेडकर विश्वविद्यालय कश्मीरी गेट छात्र परिषद के कोषाध्यक्ष शुभोजीत डे, लेडी श्रीराम कॉलेज छात्रसंघ की महासचिव उन्नीमाया, गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के कार्तिक राय ,और कई अन्य विश्वविद्यालय के छात्र प्रतिनिधियों ने भी संबोधित किया ।

सभी वक्ताओं ने ऑनलाइन कक्षाओं  और वर्तमान समय में प्रतियोगी परीक्षाओं के आयोजन की खामियों को उजागर किया । इसके साथ ही  कॉलेजों द्वारा हाल में की गई फीस बढ़ोतरी की भी निंदा की।  दोनों समुदायों यानी शिक्षक और छात्रों ने जो अपने अनुभव साझा किए, वो देश में शिक्षा की बदहाली की ओर इशारा करते हैं। ये अनुभव देश की राजधानी के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों के हैं, जो उच्च शिक्षा का एक केंद्र है। जहां देशभर के छात्र आने का प्रयास करते हैं.

छात्रों और शिक्षकों ने कहा कि कोरोनोवायरस-प्रेरित लॉकडाउन के मद्देनजर, जिसने इस साल मध्य मार्च से विश्वविद्यालयों को बंद करने पर मजबूर किया , इसके पूरक उपाय के रूप में  डिजिटल  शिक्षण को कॉलेज प्रशासन द्वारा लागू किया गया । जो अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे की वजह से   पूरी तरह नाकाम है ।

उन्होंने कहा कि इसने हाशिए के छात्रों और आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों को शिक्षा से बाहर किया है ।

6 जुलाई को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विश्वविद्यालयों के लिए परीक्षा और शैक्षणिक कैलेंडर पर अपने दिशानिर्देशों को संशोधित किया , अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को अनिवार्य बना दिया और सितंबर के अंत तक परीक्षा की अवधि बढ़ा दी। इस कदम का शिक्षकों और छात्रों दोनों ने इसका विरोध किया   हालाँकि, यूजीसी  परीक्षा आयोजित कराने की जिद पर अड़ी हुई है, जबकि दूसरी तरफ देश में कोरोना के मामलों में भी वृद्धि जारी है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा इस कोरोना काल में जिस तरह प्रशासन द्वारा एग्जाम कराए गए और लॉकडाउन में छात्रों को जिस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, इसको लेकर जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष अशी घोष ने कहा कि“छात्र कश्मीर से जेएनयू आते हैं, जहां इंटरनेट ही बन्द है, इसके अलावा छात्र बिहार, असम जैसे  राज्यो से है,  जहां अभी बाढ़ का कहर है। इसके साथ ही कई छात्रों को कोरोन  सेन्टर में रहना पड़ा रहा या उनके परिवार में कोई संक्रमित है। उन्होंने कहा किये वास्तविकता है, हालांकि, जेएनयू प्रशासन के लिए चिंता का कारण नहीं है और वो ऑनलाईन व्यवस्था की ओर  बढ़ रहा है ।

घोष ने अगले सेमेस्टर के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की घोषणा करते हुए हाल ही में अधिसूचना के लिए प्रशासन की आलोचना की और कहा कि छात्रावास शुल्क और रखरखाव शुल्क सहित बकाया राशि को हटाया जाना चाहिए ।

उन्नीमाया Unnimaya, महासचिव, लेडी श्री राम कॉलेज  स्टूडेंट्स यूनियन, ने ऑनलाइन शिक्षा  की गड़बड़ियों के बारे में बात करते हुए उन छात्रों  की ओर इशारा किया जिनकी शिकायत है कि वो स्क्रीन समय बढ़ने के कारण स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं ।

दूसरा, खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी अभी भी एक मुद्दा बना हुआ है ।

विश्वविद्यालयों को बंद करने से न केवल छात्रों को कठिनाई हुई, बल्कि कॉलेज प्रशासन द्वारा नियोजित कई कर्मचारियों को भी कठिनाई हो रही है ।

उनमें से कई मामले अलग-अलग कॉलेजों में ये कर्मचारी  सेवानिवृत्त होने या वेतन कटौती का सामना कर रहे हैं। इस संबंध में एक मामला दिल्ली विश्वविद्यालय के अंबेडकर गांगुली छात्रावास का है, जहां 19 सफाई कर्मचारियों को बिना किसी पूर्व सूचना के कथित तौर पर निकाल दिया गया था।

डीयू में लॉ फैकल्टी की छात्रा अमिषा नंदा, जो कि छात्रावास में रहती हैं, ने आज मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि छात्रों की    फ़ीस माफ नहीं किए गई हैं परन्तु कर्मचारियों को धन की कमी के कारण बाहर किया जा रहा है ।

गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय है, जो एक दिल्ली का  राज्य विश्वविद्यालय है और राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (निफ्ट) है, जो कपड़ा मंत्रालय के तहत काम करता है । यहां के छात्रों ने यहां वसूली  जाने वाली मोटी फिस को लेकर अपनी शिकायत की जो की न केवल छात्रों बल्कि उनके परिवार के लिए भी चिंता का कारण बनी हुई है ।

दिल्ली टीचर्स फेडरेशन (DTF) की अध्यक्ष नंदिता नारायण ने ऑनलाइन टीचिंग की ओर धकेलने को एक "व्यावसायिक निर्णय" बताया, जिसका उद्देश्य इस संक्रमण से बड़े व्यावसायिक समूहों को लाभ पहुंचाना है ।

उन्होंने कहा ये हमारे समाज में पहले से मौजूद आर्थिक भेदभावों को और बढ़ाएगा ।

दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (DUTA) की  कोषाध्यक्ष आभा देव हबीब ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा का औपचारिक रूप से हाल ही में अनुमोदित राष्ट्रीय शिक्षा नीति के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

उन्होंने कहा, " यह सार्वजनिक वित्त पोषित शिक्षा के विचार और सार्वजनिक विश्वविद्यालयों पर हमला", उन्होंने कहा कि यह सब शिक्षकों और छात्रों की चिंताओं पर ध्यान दिए बिना "अलोकतांत्रिक" तरीके से किया जा रहा है।

एसफाआई के राज्य अध्यक्ष सुमित कटारिया और सचिव प्रीतीश मेनन ने विज्ञप्ति जारी करते हुए । प्रेसवार्ता के मुख्य बिंदु को बताया  जो इस प्रकार है:-

1. महामारी के दौरान विभिन्न मोर्चों पर सरकार विफल रही है। ऑनलाइन एग्जाम ना कराने की मांग की अनदेखी करने के बाद सरकार द्वारा प्रवेश परीक्षाओं की अचानक घोषणा ने एक नई अव्यवस्था को जन्म दे दिया है। नई शिक्षा नीति(NEP) ऑनलाइन शिक्षा की बहिष्करण के मॉडल पर केंद्रित है। सरकार ने छात्रों के हितों को ध्यान में रखने की बजाय डिजिटल शिक्षा उद्योग के मुनाफे को बढ़ावा देने के लिए नई शिक्षा नीति की घोषणा की है।
2. गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, ए यू डी, निफ्ट और जेएनयू के एमबीए और इंजीनियरिंग छात्रों से मुनाफाखोरी और लूट की जा रही है, तथा विरोध करने पर छात्रों को धमकियां दी जा रही हैं।
3. जेएनयू , एयूडी , दिल्ली विश्वविद्यालय और इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में ऑनलाइन शिक्षण, पंजीकरण और परीक्षाओं ने आपदा का माहौल पैदा कर दिया है।
4. सरकार और विश्वविद्यालयों को सभी हित धारकों जैसे शिक्षक छात्र को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनानी चाहिए और फैसले लेने चाहिए। जिन विश्वविद्यालयों में ऐसे निकाय मौजूद नहीं हैं वहां सरकार को इन आतिआवश्यक लोकतांत्रिक परिक्रमा ओं को मजबूत करने के लिए प्रक्रिया को तेज करना चाहिए।

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