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लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में वैक्सीन तक पहुंच दूभर

अफ़्रीका के बाद लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई ही वह क्षेत्र है, जहां सबसे कम लोगों का टीकाकरण हुआ है। वैसे तो टीकाकरण को लेकर दुनिया भर में ग़ैर-बराबरी देखी जा रही है, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों, राजनीतिक अस्थिरता, आदि जैसे दूसरे कारणों से यह क्षेत्र अतिरिक्त असमानता का सामना कर रहा है।
लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में वैक्सीन तक पहुंच दूभर
एकतरफ़ा दमनकारी उपायों के क्रूर अभियान के बावजूद क्यूबा कोविड-19 के ख़िलाफ़ कई टीके विकसित करने में सक्षम रहा है और अपनी आबादी का टीकाकरण करने में अहम प्रगति की है। क्यूबा ने इस क्षेत्र के देशों को अपने टीके का निर्यात भी किया है। फ़ोटो: ग्रैनमा

वैश्विक स्तर पर कोविड-19 वैक्सीन को लेकर ग़ैर-बराबरी की खाई बहुत बड़ी है और यह लगातार बढ़ती ही जा रही है। उच्च आय वाले देशों के मुक़ाबले निम्न आय और निम्न मध्यम आय वाले देश अपनी आबादी को टीका लगाने के लिहाज़ से बहुत पीछे हैं। वैक्सीन का औचित्य न सिर्फ़ जीवन बचाने और सभी के लिए महामारी से तेज़ी से उबरने और ज़रूरी स्वास्थ्य लाभ के लिए अहम है, बल्कि यह दुनिया पर महामारी के ख़ौफ़ानक़ सामाजिक-आर्थिक असर को कम करने के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की कई रिपोर्टों में टीकों के निर्माण और आपूर्ति को बढ़ावा देने और सभी देशों तक इसकी समान पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए तत्काल उपाय करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है।  इन रिपोर्टों में संकेत दिया गया है कि वैक्सीन की यह असमानता न सिर्फ़ निम्न-आय वाले देशों की सामाजिक-आर्थिक सुधार को प्रभावित करेगी, बल्कि वैश्विक आर्थिक सुधार को भी प्रभावित करेगी।

अफ़्रीका के बाद लैटिन अमेरिका और कैरिबाई क्षेत्र ही वह क्षेत्र है, जहां लोगों का सबसे कम टीकाकरण हो पाया है। 23 अगस्त तक 33 देशों वाले इस क्षेत्र में  660 मिलियन से ज़्यादा लोगों में कोरोनोवायरस के 42,835,000 से अधिक पुष्ट मामले दर्ज किये गये हैं और बीमारी से हुईं 1,424,000 से ज़्यादा मौतें दर्ज हुई हैं। हालांकि, क्षेत्रीय आबादी के महज़ 20% को ही कोविड-19 के ख़िलाफ़ पूरी तरह से टीका लग पाया है।

पिछले हफ्ते 18 अगस्त को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पैन अमेरिकन हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (PAHO) के निदेशक, डॉ कैरिसा एटियेने ने बताया कि लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में पांच में से महज़ एक व्यक्ति को पूरी तरह से टीका लगाया जा सका है। डॉ. एटियेने ने आगे बताया कि कुछ देशों में तो 5% से भी कम आबादी को पूरी तरह से टीका लगाया जा सका है।

आवर वर्ल्ड इन डेटा की ओऱ से एकत्र किये गये आंकड़ों से टीकाकरण की दर की यह असमानता साफ़-साफ़ नज़र आती है। आर्थिक स्थिरता के उच्च स्तर वाले उरुग्वे और चिली जैसे देशों ने तक़रीबन 70% आबादी को पूरी तरह से टीका लगा दिया है और लगभग 75% आबादी का आंशिक रूप से टीकाकरण कर लिया है। दूसरी ओर, इस क्षेत्र का सबसे ग़रीब देश हैती तो अपनी आबादी के 0.2% लोगों का पूर्ण टीकाकरण और 0.02% लोगों का आंशिक टीकाकरण कर पाने में सक्षम हो पाया है। इस तरह की ज़बरदस्त ग़ैर-बराबरी के बीच उरुग्वे और चिली ने तीसरी बूस्टर खुराक भी देना भी शुरू कर दिया है।

इन दो देशों के बाद डोमिनिकन गणराज्य, सेंट किट्स एंड नेविस, इक्वाडोर, अल सल्वाडोर, एंटीगुआ और बारबुडा, बारबाडोस, पनामा, कोलंबिया, क्यूबा, डोमिनिका, अर्जेंटीना, ब्राजील, त्रिनिदाद और टोबैगो, मैक्सिको, पेरू, पराग्वे, बोलीविया, गुयाना , कोस्टा रिका, सूरीनाम और बेलीज ऐसे देश हैं, जिन्होंने अपनी आबादी के 16% से 42% के बीच पूर्ण टीकाकरण कर लिया है, और आंशिक रूप से 26% से 63% तक की आबादी का टीकाकरण हो गया है।

इसके बाद ग्रेनाडा, सेंट लूसिया, बहामास, होंडुरास, सेंट विंसेंट और ग्रेनाडाइन्स, ग्वाटेमाला, निकारागुआ, वेनेजुएला, जमैका और हैती हैं, जहां के लोगों का 0.02% और 15% के बीच पूरी तरह से टीकाकरण किया गया है, और 0.2% और 23% के बीच आंशिक रूप से टीकाकरण हुआ है। इन देशों में टीकाकरण की मौजूदा रफ़्तार अगर यही रहती है,तो डब्ल्यूएचओ, विश्व व्यापार संगठन (WTO), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक की ओर से 2021 के अंत तक 40% कवरेज और 2022 के मध्य तक 60% के वैश्विक वैक्सीन के निर्धारित लक्ष्यों को पूरा कर पाना संभव नहीं हो पायेगा।

प्रेस कांफ़्रेंस में पीएएचओ के प्रमुख डॉ. एटियेने ने यह भी बताया कि मध्य अमेरिका और कैरिबियाई देशों में संक्रमण और मौतों के मामले बढ़ रहे हैं, जबकि दक्षिण अमेरिका में हाल के हफ़्तों में मामूली गिरावट आयी है। टीकाकरण के ये आंकड़े इस बात का संकेत देते हैं कि संक्रमण के उच्च स्तर के कारणों में से एक कारण इन क्षेत्रों में टीकाकरण की दर का कम होना हो सकता है।

हालांकि, इस क्षेत्र में वैक्सीन की इस असमानता के पीछे के कारण निश्चित रूप से सिर्फ़ आर्थिक कारणों तक ही सीमित नहीं हैं। हैती के मामले में आर्थिक कठिनाई के अलावा इसके कारणों में उच्च स्तर की खाद्य असुरक्षा, ईंधन की कमी, सामूहिक हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता भी है,जिन्होंने सरकार की कोविड-19 टीकों की खरीद को लेकर कार्रवाई किये जाने की इच्छाशक्ति में आयी कमी पर असर डाला है। हैती 2018 से ही एक नाज़ुक राजनीतिक और आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इस साल की शुरुआत में ही दिवंगत राष्ट्रपति जोवेनेल मोसे के पद छोड़ने से इनकार करने और बाद में उनकी हत्या हो जाने के चलते इस देश में सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल और बढ़ गयी है।। अंतरिम सरकार इस समय देश में हाल ही में आये विनाशकारी भूकंप से प्रभावित लोगों के सहायता कार्य में लगी हुई है। बुनियादी चीज़ों को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैती के दीन-हीन लोगों के लिए टीके तो एक दूर की कौड़ी लगते हैं।

निकारागुआ और वेनेज़ुएला के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका की तरफ़ से इन देशों के ख़िलाफ़ लगाये गये एकतरफ़ा ज़बरदस्ती के उपायों ने टीके ख़रीदने की इन देशों की क्षमता को गंभीर रूप से बाधित किया है। हालांकि, वाणिज्यिक, आर्थिक और वित्तीय नाकेबंदी के बावजूद, ये दोनों समाजवादी देश इस महामारी से कामयाबी के साथ लड़ रहे हैं।

सैंडिनिस्टा नेशनल लिबरेशन फ़्रंट (FSLN) की अगुवाई वाली निकारागुआई सरकार ने समय पर प्रभावी उपायों को लागू किया था। इसने अस्पतालों को आरक्षित कर दिया था और कोविड के रोगियों के लिए विशेष वार्ड तैयार किये थे, अनिवार्य क्वारंटाइन के साथ-साथ देश में दाखिल होने वाली जगहों पर सख़्त नियंत्रण और स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था की गयी थी और सोशल मीडिया पर एक सूचना अभियान चलाया गया था और साथ ही लोगों को सूचित करने के लिए घर-घर जाकर परामर्श देने का भी अभियान चलाया गया था। इन उपायों का नतीजा यह हुआ कि शुरुआत में निकारागुआ में एक ही बार कोविड अपने शिखर पर रहा और बाद में कोविड के मामले और उससे होने वाली मौतों के ऊपर उठते ग्राफ़ एकदम से सपाट हो गये। यहां की सरकार ने रूस और भारत से अनुदान में मिले स्पुतनिक वी और कोविशील्ड टीकों की 2 मिलियन खुराक के साथ टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत भी कर दी है। यह देश डब्ल्यूएचओ की कोवैक्स पहल के ज़रिये ऑस्ट्राज़ेनिका को हासिल करने का भी लक्ष्य बना रहा है।

राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की वेनेजुएलाई सरकार देश के सभी कोविड-19 रोगियों के पूरे इलाज की गारंटी के साथ-साथ कोविड-19 टीकों को हासिल करने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है। इस देश ने 18 फ़रवरी को रूस के स्पुतनिक वी वैक्सीन के साथ अपने स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में टीकाकरण को भी शुरू कर दिया था। बोलिवेरियाई सरकार ने फ़रवरी में स्पुतनिक वी वैक्सीन की 10 मिलियन खुराकें खरीदी थीं। इसने बाक़ी आबादी के लिए स्पुतनिक वी टीकों और चीन से अनुदान में मिले साइनोफ़ार्म टीकों की 100,000 खुराक के साथ एक सामूहिक टीकाकरण अभियान 1 जून से शुरू किया हुआ है। 5 जून को सरकार ने रूस के एपिवाकोरोना वैक्सीन की 10 मिलियन खुराक ख़रीदने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। सरकार ने 24 जून को क्यूबा के अब्दाला वैक्सीन की 1.2 करोड़ खुराक ख़रीदने के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये। इस सरकार ने कोवैक्स के ज़रिये वैक्सीन की 11 मिलियन खुराकें भी ख़रीदीं। हालांकि, देश पर लगाये गये अवैध प्रतिबंधों के कारण उन टीकों की डिलीवरी रोक दी गयी थी। वेनेज़ुएला के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़,वेनेज़ुएला की तक़रीबन 11% आबादी को टीके की कम से कम एक खुराक मिल गयी है।

इसी तरह, 1980 के दशक में अमेरिकी प्रतिबंध के बावजूद राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कमांडर फिदेल कास्त्रो के दृष्टिकोण के हिस्से के रूप में जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा विज्ञान में निवेश शुरू करने वाले क्यूबा ने भी अपने ख़ुद के बनाये टीकों-अब्दाला और सोबराना के साथ अपनी आबादी के 28% का पूर्ण टीकारण और 43% आंशिक टीकाकरण कर लिया है। क्यूबा जुलाई से डेल्टा वैरियंट के चलते कोरोनावायरस के मामलों में हो रही बढ़ोत्तरी से जूझ रहा है और भोजन और दवाओं की कमी का सामना कर रहा है। हालांकि, राष्ट्रपति मिगुएल डियाज़-कैनेल की समाजवादी सरकार ने तेज़ी से बढ़ते अमेरिकी प्रतिबंधों का विरोध करना जारी रखा रखे हुआ है और इसके लिए उन्हें दुनिया भर के देशों और संगठनों का समर्थन भी मिल रहा है।

इनके अलावा, इन क्षेत्रों में होने वाले चुनावों ने भी इस पूरे क्षेत्र में टीकाकरण अभियान में हुई देरी के साथ-साथ उसमें आयी तेज़ी में भी अहम भूमिका निभायी है। इक्वाडोर, पेरू और सेंट लूसिया में क्रमशः राष्ट्रपति लेनिन मोरेनो, राष्ट्रपति फ़्रांसिस्को सगास्ती और प्रधान मंत्री एलन चेस्टानेट की निवर्तमान सरकारों ने टीकों को ख़रीदने में या तो बहुत कम या फिर कोई रूचि ही नहीं दिखायी। नयी सरकारों के सत्ता संभालने के बाद इन देशों में टीकाकरण कार्यक्रमों ने रफ़्तार पकड़ ली है। इसी तरह, चिली, जहां 21 नवंबर को राष्ट्रपति और विधायी चुनाव होने हैं, वहां के सत्ताधारी गठबंधन सफल टीकाकरण अभियान के आधार पर चुनावों में बड़े पैमाने पर बढ़त की उम्मीद कर रहा है।

पैन अमेरिकन हेल्थ आर्गेनाइजेशन (PAHO) भी इस क्षेत्र में वैक्सीन असमानता के ख़िलाफ़ लड़ने के लिहाज़ से सक्रिय रूप से काम कर रहा है। इस महीने की शुरुआत में डॉ. एटियेने ने बताया कि पीएएचओ अपने रिवॉल्विंग फंड का इस्तेमाल लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों को पर्याप्त टीके खरीदने में मदद करने के लिए करेगा। ग़ौतरलब है कि रिवॉल्विंग फंड एक ऐसी निधि या खाता है, जो बिना किसी वित्तीय वर्ष की सीमा के किसी संगठन के निरंतर संचालन के वित्तपोषण के लिए उपलब्ध रहता है, क्योंकि वह संगठन खाते से इस्तेमाल किये गये धन को चुकाकर उस पैसे की भरपाई करता है। डॉ. एटियेने ने कहा, "हमें टीकों की एक बड़ी आमद और उन्हें वितरित करने के लिए एक कहीं ज़्यादा न्यायसंगत प्रक्रिया की ज़रूरत है। इसे ध्यान में रखते हुए ही पैन अमेरिकन हेल्थ आर्गेनाइजेशन(PAHO) हमारे सदस्य देशों को कोविड-19 के टीकों तक पहुंच बनाने का एक नया मौक़ा उपलब्ध करा रहा है।” उन्होंने बताया कि यह रिवॉल्विंग फंड पहल टीके खरीदने के लिए कोवैक्स प्रणाली की ओर से निर्धारित 20% की सीमा से भी आगे जायेगी। यह उन देशों की मदद करेगा, जिनके पास टीके, सीरिंज, कोल्ड-चेन उपकरण और अन्य आपूर्ति को थोक में हासिल करने के लिए संसाधनों और मोल-तोल कर पाने की क्षमता में कमी है। हालांकि, डॉ. एटियेने ने कहा कि इस क्षेत्र को टीकों की तत्काल ज़रूरत है, लेकिन उन्हें पाने में महीनों लगेंगे।

साभार: पीपल्स डिस्पैच

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Vaccine Access Gap Widens in Latin America and the Caribbean

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