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आर्थिक मंदी के बीच भारतीय रेलवे धीमी लेन पर रेंग रही है

मासिक वित्तीय समीक्षा के अनुसार इस वर्ष अप्रैल से अगस्त के बीच, रेलवे को अपनी आय में क़रीब 11,852 करोड़ की कमी का सामना करना पड़ा है जबकि इसके ख़र्चों में बढ़ोत्तरी हुई है।
indian railway

आर्थिक मंदी के चलते भारतीय रेलवे की कार्य कुशलता पर प्रभाव पड़ा है। रेलवे वैगन की माँग में तीव्र गिरावट के साथ माल और यात्री भाड़े से होने वाली आय में भी गिरावट दर्ज हुई है।

राष्ट्रीय परिवहन ने पूर्व में 10,500 वैगन की ख़रीद का लक्ष्य रखा था, जिसे हावी स्थितियों की समीक्षा को देखते हुए घटाकर 5,000 कर दिया गया और अब वर्तमान में मांग की अनुपस्थिति के चलते इसे एक बार फिर से संशोधित कर 1,860 वैगन तक कर दिया गया है।

चूँकि रेलवे को उसके वैगन के लिए बाज़ार की माँग पर निर्भर रहना पड़ता है, जिसके चलते इसकी ख़रीद में होने वाली भारी गिरावट से इस बाज़ार में 4,000 करोड़ से अधिक की कमी आई है।

मासिक वित्तीय समीक्षा के अनुसार, इस साल अप्रैल से लेकर अगस्त तक, भारतीय रेलवे को आय में कमी का सामना करना पड़ा है, जबकि इसके ख़र्चों में बढ़ोत्तरी हुई है। यात्री भाड़े में बजट में रखे गए लक्ष्य से क़रीब 11,852 करोड़ की कमी दर्ज हुई। जहाँ राज्य संचालित परिवहन यातायात संख्या में क़रीब 1।8% की वृद्धि दर्ज हुई, वहीं कुल मिलाकर 1।3% की गिरावट देखने को मिली है।

यात्री भाड़े से होने वाले 23,584।88 करोड़ रुपये आय के लक्ष्य के विपरीत मात्र 22,384।97 करोड़ रुपये अर्जित हुए, जिससे अनुमानित आय में अगस्त के अंत तक 1,199।91 करोड़ रुपये का अंतर पैदा हो गया है। माल भाड़े की ढुलाई के क्षेत्र में भी, बजट में अनुमानित 55,034।13 करोड़ की तुलना में मात्र 46,433।37 करोड़ रुपये ही अर्जित हुए, जो अनुमानित लक्ष्य में 8,600।76 करोड़ रुपये के कम राजस्व का अंतर दर्शाता है। जहाँ सामान्य कार्य के व्यय में 66,952।35 करोड़ का बजटीय प्रावधान किया गया था, उसकी तुलना में यह ख़र्च बढ़कर 68,779।06 करोड़ हो गया, जो 100% संचालन प्रतिशत के निशान से काफ़ी ऊपर है, और ख़राब होती आर्थिक हालत का सूचक है। 

माल भाड़े की ढुलाई के कार्य को देखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार ढुलाई में आई गिरावट एक चिंता का विषय है क्योंकि इसे ही रेलवे में मुख्य कमाई को स्रोत माना जाता है। हालाँकि उनके अनुसार, “कोयला खदानों में पानी भर जाने से कोयले की ढुलाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। मंदी के चलते स्टील और सीमेंट क्षेत्र में भी प्रभाव पड़ा है।”

आय में वृद्धि की रफ़्तार के संकेत नहीं मिलने के कारण, रेलवे ने हाल ही में अपने “व्यस्ततम सीज़न” के अधिभार को माफ़ कर दिया है, जिसे माल भाड़े के ग्राहकों से अक्टूबर से जून तक वसूला जाता था, और उसे उम्मीद है कि इसके ज़रिये सड़क क्षेत्र से यातायात को अपनी ओर खींचने में मदद मिलेगी।

जहाँ तक रेल यात्रियों से होने वाली आय का सवाल है, उसमें पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में गिरावट दर्ज हुई है। पिछले वर्ष 1 अप्रैल से लेकर 20 सितम्बर 2019 तक जहाँ 399 करोड़ 97 लाख यात्री टिकटों की बिक्री हुई थी, उसी अवधि की तुलना में इस साल 394 करोड़ 88 लाख यात्री टिकटों की ही बिक्री हुई, जो बिक्री में 1।27% गिरावट को दर्शाता है।

आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में इस दौरान उपनगरीय यात्रियों ने कम संख्या में लोकल ट्रेन की सेवाएं लीं। जहाँ पिछले वर्ष 1 अप्रैल से लेकर सितम्बर 2018 तक 224 करोड़ 1 लाख 90 हज़ार यात्रियों ने उपनगरीय ट्रेन सेवाओं का इस्तेमाल किया था; वहीं इसी अवधि के दौरान इस साल यह संख्या घटकर 221 करोड़ 48 लाख 30 हज़ार रह गई है, जो कि 1।13% की नकारात्मक वृद्धि है।

इस गिरावट को और आगे बढ़ने से रोकने के लिए रेलवे ने कुछ उपायों को लागू करने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें रेल और स्टेशन की सफ़ाई कॉर्पोरेट सोशल रिस्पोंसिबिलिटी (CSR) के ज़रिये करने, 50% से कम सीट भरने वाली ट्रेन के संचालन पर समीक्षा करने, उनकी फ़्रीक्वेंसी में कमी या उन्हें अन्य ट्रेन के साथ विलय करने, रेलवे की ज़मीन के व्यावसायिकीकरण द्वारा स्टाफ़ क्वार्टरों की मरम्मत का काम, तेल बचाने के लिए उन डीज़ल इंजनों की छुट्टी करना जो 30 साल पुराने हो चुके हैं, जिससे तेल की खपत में कमी आये, बेहतर कार्य संचालन के ज़रिये तेल की बचत और बेहतर कमाई के लिए मेंटेनेंस के तरीक़ों और दोबारा सुधार वाले कार्यों को आदर्श स्तर पर संचालित कर हासिल किया जा सकता है।

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