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गाज़ा में इज़रायल की विध्वंसक जीत के मायने

फिलिस्तीनियों के साथ हिंसा से इज़रायल के भीतर राष्ट्रवादी उन्माद उमड़ा है। इस उन्माद की वज़ह से उस विपक्षी गठबंधन का रास्ता बंद हो गया है, जो नेतन्याहू को पद से हटाने की कोशिश कर रहा था। नेतन्याहू को अब भ्रष्टाचार के मामलों में भी सुरक्षा मिल गई है।
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एक बार फिर इज़रायल और हमास के बीच शांति स्थापित करने की कोशिशों में मिस्र सबसे आगे है। राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सीसी ने सोमवार को कहा कि दोनों पक्षों के बीच अब भी संघर्ष विराम पर सहमति बनाई जा सकती है।उन्होंने कहा, "इज़रायली और फिलिस्तीनियों में संघर्ष विराम स्थापित करने की मिस्र पूरी कोशिश कर रहा है। अब भी उम्मीद बाकी है।" दक्षिणपंथी यहूदी अख़बार अल्जेमिनर में छपी रिपोर्ट में भी इसी तरीके के विचार व्यक्त किए गए हैं।

अख़बार में लिखा गया कि "इज़रायल पर बाइडेन प्रशासन से "दबाव बढ़ता" जा रहा है और इज़रायल संघर्ष विराम समझौते की शर्तों पर विचार कर रहा है.... अब जब IDF (सशस्त्र सेना) और इज़रायल की सुरक्षा कैबिनेट अपने कई उद्देश्यों, जिनमें हमास के सुरंग तंत्र को तबाह करना और संगठन के वरिष्ठ नेताओं को मारना शामिल था, उन्हें पूरा कर चुका है, तब निकट भविष्य में संघर्ष विराम पर सहमति बन सकती है।"

जो बाइडेन द्वारा इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और फिलिस्तीनी प्रशासन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास को शनिवार को किए गए फोन से भी संकेत मिलता है कि अमेरिका इस विवाद का तेजी से समाधान करवाना चाहता है।नेतन्याहू से फोन पर बाइडेन ने वही पुराना राग अलापते हुए कहा कि "इज़रायल को खुद की सुरक्षा करने का अधिकार है।" बातचीत का खात्मा नेतन्याहू की तरफ से यह कहकर हुआ कि "फिलिस्तीनी लोगों को सम्मान, सुरक्षा, आज़ादी और आर्थिक मौकों को सुनिश्चित करने के लिए इज़रायल मदद करेगा और इज़रायल दो-राष्ट्र के समाधान का समर्थन करता है।"

अब्बास के साथ बातचीत में बाइडेन ने "अमेरिका द्वारा वेस्ट बैंक और गाज़ा में फिलिस्तीनियों को लाभ पहुंचाने के लिए उठाए गए आर्थिक और मानवीय कदमों के बारे में बताया। राष्ट्रपति बाइडेन ने इज़रायल-फिलिस्तीन विवाद के न्यायपूर्ण हल के लिए दो राष्ट्रों वाले समाधान पर अपनी मजबूत प्रतिबद्धता भी दिखाई।"
यह शांति पहुंचाने वाले शब्द थे। लेकिन यहां अहम इज़रायल, वेस्ट बैंक और गाज़ा की स्थिति के बारे में यूएन में अमेरिकी प्रतिनिधि लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड के शब्द हैं, जो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बोले।

राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड कैबिनेट स्तर के पद पर हैं और वे जीवनपर्यंत कूटनीतिज्ञ रही हैं। उनके कहे शब्द व्हाइट हॉउस की भावनाएं दर्शाते हैं। इस वक्तव्य की अहम बात यह रही कि इसमें इज़रायल का एकतरफा समर्थन नहीं किया गया है। इतना कहा जा सकता है कि वक्तव्य में मौजूदा टकराव के दौरान इज़रायल के व्यवहार को नकारा गया है।

वक्तव्य में इज़रायल से "निकासी (जिसमें पूर्वी जेरूसलम में जबरदस्ती निकासी भी शामिल है), विध्वंस और 1967 की सीमा के पार जाकर किए जा रहे निर्माण कार्य को रोकने के लिए कहा गया है। वक्तव्य में कहा गया कि सभी पक्षों को इतिहास में जैसी स्थिति चली आ रही है, धार्मिक जगहों के संबंध में उसका सम्मान करना चाहिेए।"

लेकिन जब संयुक्त राष्ट्रसंघ में ऐन मौका आया, तो एक बार फिर अमेरिका ने पलटी मारते हुए, संघर्ष विराम की अपील वाले वक्तव्य को तक रोक दिया। दूसरी तरफ नेतन्याहू ने रविवार को एक टेलीविजन भाषण में विद्रोही रुख अपनाते हुए कहा, "आतंकी संगठनों के खिलाफ़ हमारा अभियान पूरी ताकत से चल रहा है। हम अभी अपनी कार्रवाई कर रहे हैं और जब तक इज़रायली नागरिकों की शांति के लिए जरूरी होगी, यह कार्रवाई जारी रखेंगे। इसमें वक़्त लगेगा।" 

बल्कि रविवार का दिन गाज़ा में सबसे ज़्यादा खून-खराबे वाला रहा। रविवार के दिन, इस विवाद की शुरुआत से अब तक, किसी एक दिन में सबसे ज़्यादा लोगों ने जान गंवाई। गाज़ा में अब तक 218 फिलिस्तीनी नागरिक जान गंवा चुके हैं, जिनमें 58 अव्यस्क, 34 महिलाएं शामिल हैं। वहीं 1230 लोग घायल हुए हैं। वहीं वेस्ट बैंक में 21 फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्या हुई है। साफ़ है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक से कोई लाभ नहीं हुआ।

स्पष्ट है कि नेतन्याहू को विश्वास है कि इज़रायल के पास अब भी अमेरिका का कूटनीतिक समर्थन मौजूद है, जो गुजरे कई दशकों से मौजूद रहा है। इसी समर्थन की दम पर इज़रायल ने फिलिस्तीन की ज़मीन हथियाने और दमन करने की नीति जारी रखी। अब भी इज़रायल फिलिस्तीन ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहा है और वहां इज़रायली बस्तियां बसा रहा है, जिससे सिर्फ़ "एक यहूदी राष्ट्र" की संकल्पना पास आती नज़र आ रही है।

विदेशी संबंधों की परिषद के अध्यक्ष और स्टेट डिपार्टमेंट में नीतिगत योजना के पूर्व निदेशक रिचर्ड हास ने सोमवार को कहा, "नेतन्याहू को लगता है कि वो बाइडेन को नज़रंदाज कर सकते हैं, वो किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को नज़रंदाज कर सकते हैं, क्योंकि उनके पास अंत में कांग्रेस, रूढ़िवादी यहूदी, मानवतावादी ईसाईयों का समर्थन मौजूद है। उन्हें लगता है कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति को अलग-थलग कर सकते हैं।"

लेकिन यह यूरोप में भी लागू होता है। ब्रिटिश इतिहासकार और पूर्व राजदूत क्रेग मुरे ने कुछ यूं इस आयाम को बताया है, "पश्चिमी राजनेताओं का स्वाभाविक तौर पर मानना है कि फिलिस्तीनियों को रंगभेद को चुपचाप मान लेना चाहिए। यह बिल्कुल साफ़ है कि फिलिस्तीनी लोगों के दुख को दूर करने के लिए किसी तरह की राजनीतिक प्रक्रिया नहीं चल रही है। बल्कि वो 'उदारवादी' जिन्होंने दो राष्ट्रों के समाधान को पेश किया है, उन्होंने भी रंगभेद के आधार पर इसे मान्यता दी है। बिल्कुल बांटुस्तान (दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों के लिए बनाया गया क्षेत्र) की तरह।"

फिर भी सभी संकेतों से पता चलता है कि यह इज़रायल या हमास द्वारा पहले से सुनियोजित विवाद नहीं था। कोई भी पक्ष पूरी ताकत से जंग नहीं चाहता। फिर बाइडेन प्रशासन भी अंत में नहीं चाहेगा कि यह विवाद आगे भी जारी रहे, क्योंकि ऐसा होने से इस क्षेत्र में अमेरिकी हितों, खासकर ईरान के साथ परमाणु समझौत पर गंभीर असर पड़ेगा। 

यहां यह पता चलता है कि इज़रायल, हमास और इस्लामी जिहाद को कमज़ोर करने के अपने लक्ष्य में आगे बढ़ रहा है। लेकिन हमास दिखा रहा है कि उसके पास अब भी जवाब देने की क्षमता मौजूद है। हमास ने घोषणा की है कि इज़रायली हमलों के जवाब में अब इज़रायल के शहरों और सैनिक अड्डों पर नए सिरे से भयंकर रॉकेट बमबारी की जाएगी। पिछले 8 दिन में गाज़ा से 3200 रॉकेट इज़रायल पर दागे गए हैं।

अगर इज़रायली सेना के उद्देश्य पूरे भी हो जाते हैं, तो भी यह विध्वंसकारी जीत ही होगी। क्योंकि इस घटनाक्रम से ईरान के नेतृत्व वाला प्रतिरोधी आंदोलन मजबूत होगा। हमास के प्रमुख इस्माइल हानियेह ने अब ईरान के इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल एस्माइल कानी और राष्ट्राध्यक्ष अली खुमैनी के सलाहकार अली अकबर वेलयाती की तरफ मदद के लिए रुख किया है।

साफ़ है कि आगे हमास अपनी भयादोहन की क्षमताओं में वृद्धि करेगा। राजनीतिक तौर पर भी हमास काफ़ी सफ़ल हो रहा है। संगठन की अपील अब जेरूसलम, वेस्ट बैंक और इज़रायल के भीतर रहने वाले फिलिस्तीनियों में बढ़ रही है। अब वह पल आ रहा है जब हमास सिर्फ़ गाज़ा में ही नहीं, बल्कि सभी जगह के फिलिस्तीनियों की आवाज़ बनकर उभर सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस परिदृश्य से आखिरकार निपटना ही होगा।

दूसरी तरफ़ इज़रायल के नजरिए से देखें, तो मौजूदा टकराव ने दिखा दिया है कि वहां ना तो शांति आने वाली है और ना ही "नया मध्यपूर्व" उभरने वाला है। अब सऊदी अरब निकट भविष्य में इज़रायल के साथ अपने संबंध सामान्य नहीं कर सकता। फिर अब्राहम समझौते ने यमन, सीरिया, लीबिया, वेस्ट बैंक या गाज़ा पट्टी में अंदरूनी विवादों को सुलझाने के लिए कुछ नहीं किया। जैसा वाशिंगटन पोस्ट के स्तंभकार मैक्स बूट कहते हैं, "यह क्षेत्र अब भी, हमेशा की तरह ही खून में डूबा हुआ है।"

इन सबके ऊपर, अब दुनिया की सहानुभूति फिलिस्तीनियों के पक्ष में है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि हमास को फिलिस्तीनियों के रक्षक के तौर पर पेश किया जा रहा है, जबकि गाज़ा में नागरिक क्षेत्रों पर मिसाइल हमले करने वाले इज़रायल को आक्रमणकारी के तौर पर देखा जा रहा है।

ऊपर से अमेरिका में भी जनता की राय फिलिस्तीनियों के पक्ष में बनती नज़र आ रही है। मार्च में प्रकाशित हुए एक गैलप पोल में 30 फ़ीसदी अमेरिकी नागरिक फिलिस्तीन के पक्ष में नज़र आए। जबकि 2018 में यह आंकड़ा 21 फ़ीसदी था। डेमोक्रेट्स के भीतर 53 फ़ीसदी लोग चाहते हैं कि अमेरिका इज़रायल पर और ज़्यादा दबाव बनाए। पहली बार बहुमत ने इस तरह की राय बनाई है। बाइडेन प्रशासन पर प्रगतिशील डेमोक्रेट्स की तरफ से भी दबाव आ रहा है, यह लोग फिलिस्तीन के समर्थन को मुख्यधारा में लाना चाहते हैं।

लेकिन भले ही अमेरिकी लोगों के मन में फिलिस्तीनियों के लिए गर्माहट आ रही हो, लेकिन अब भी बड़े पैमाने पर वे इज़रायल का समर्थन करते हैं। साफ़ है कि बाइडेन एक पतली डगर पर चल रहे हैं। इस विवाद को बढ़ावा ना देने का श्रेय बाइडेन को जाता है, जबकि डोनाल्ड ट्रंप विवाद को तूल दे सकते थे। चाहे इसे आप बाइडेन प्रशासन की सहनशीलता कहिए या बिना दिखावे वाली रणनीति, मौजूदा संकट ने बताया है कि अमेरिका अब मध्यपूर्व में एक अप्रभावी शक्ति है और उसका प्रभाव लगातार कम हो रहा है। इसके गंभीर नतीज़े होंगे।

यहां नेतन्याहू विजेता साबित हुए हैं। फिलिस्तीनियों के साथ हिंसा में इज़ाफा करने से इज़रायल के भीतर राष्ट्रवादी उन्माद उमड़ा है, जिसके चलते उस विपक्षी गठबंधन का रास्ता बंद हो गया है, जो नेतन्याहू को पद से हटाने की कोशिश कर रहा था। नेतन्याहू जब तक प्रधानमंत्री रहेंगे, अब तब तक उनको भ्रष्टाचार की धाराओं से भी सुरक्षा मिल गई है।

दक्षिणपंथी नेता, यमीना पार्टी के प्रमुख और विपक्षी धड़ों के बीच वार्ता में अहम भूमिका निभाने वाले नाफटाली बेनेट अब अगली गठबंधन सरकार बनाने के लिए नेतन्याहू के साथ चर्चा शुरू करने की दिशा में बढ़ रहे हैं।

साभार: इंडियन पंचलाइन

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करिए।

Israel’s Pyrrhic Victory in Gaza

 

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