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'जनता के जज' हैं जस्टिस लोकुरः इंदिरा जयसिंह

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट में जजों की पदोन्नति, कॉलेजियम व्यवस्था, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के मुद्दों पर सवालों के जवाब दिए।
जस्टिस मदन बी लोकुर
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर

दि लिफलेट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई के साथ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर ने 23 जनवरी 2019 को चर्चा की। भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने न्यायमूर्ति लोकुर को "जनता का जज" के रूप में पेश करते हुए चर्चा की शुरुआत की। जस्टिस लोकुर ने कई मामलों में सिविल सोसायटी के साथ निकटता से काम किया और अदालत में निर्णय निर्धारण में सिविल सोसायटी को न्यायपूर्ण वैधता दी। जयसिंह ने कहा कि उन्होंने एनजीओ को विश्लेषण के लिए अदालत में रिपोर्ट प्रस्तुत करने और उनके आधार पर आदेशों को पारित करने के लिए अक्सर बुलाया है। जयसिंह के अनुसार इस पहल ने न्याय को "वास्तव में सहभागी" बना दिया।

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेंद्र मेनन को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत करने की सिफारिश की थी। हालांकि शीतकालीन अवकाश के चलते अदालत बंद होने के कारण इस फैसले को लागू नहीं किया जा सका। जब अदालत की कार्यवाही फिर से शुरु हुई तो जस्टिस लोकुर सेवानिवृत्त हो गए और जस्टिस अरुण मिश्रा को कॉलेजियम में शामिल कर लिया गया। 10 जनवरी को नए कॉलेजियम ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस माहेश्वरी और दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस खन्ना को पदोन्नत करने का निर्णय लिया। अब नए कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) और चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस अरुण मिश्रा शामिल हैं।

सरदेसाई ने "जांच के दायरे में न्यायपालिका जो अब अदालत के दरवाजे तक सीमित नहीं" और विवादित समाचार तथा "सुर्खियों के लिए मार्ग प्रशस्त करने" के बारे में राय जानने को लेकर न्यायमूर्ति लोकुर से सवाल किया। जस्टिस लोकुर ने जवाब दिया कि "प्रत्येक संस्थान को समान माइक्रोस्कोप के नीचे होना चाहिए।" इस प्रतिक्रिया पर सरदेसाई दो न्यायाधीशों के पदोन्नति पर कॉलेजियम के फैसले में बदलाव को लेकर सीधे सवाल कर दिया। उन्होंने पूछा कि क्या जस्टिस लोकुर को निराशा हुई है कि कॉलेजियम द्वारा लिए गए निर्णय को न केवल सार्वजनिक किया गया था (सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इस प्रस्ताव को डालने की प्रथा के अनुसार) बल्कि कुछ एडिशनल मैटेरियल के साथ भी पलट दिया गया था जिसके बारे में जस्टिस लोकुर को कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि एडिशनल जानकारी क्या है और उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें निराशा हुई कि दिसंबर में लिए गए निर्णय को सार्वजनिक नहीं किया गया था। उन्होंने आगे कहा "लेकिन क्यों यह नहीं डाला गया, उसे मैं नहीं जानता"। उन्होंने आगे कहा "मैंने किसी मकसद पर सवाल नहीं उठाया और न ही मैंने कोई स्पष्टीकरण मांगा। यह मेरा काम नहीं है।"

जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण पर सवाल

सरदेसाई ने कोलेजियम प्रणाली की अपारदर्शिता पर सवाल उठाया जिस पर न्यायमूर्ति लोकुर ने जवाब दिया कि "कॉलेजियम में जो कुछ भी होता है वह गुप्त रुप से किया जाता है और हम किसी के भरोसे का विश्वासघात नहीं कर सकते और जो चर्चा की गई उसके विवरणों पर चर्चा नहीं कर सकते। यह भरोसे की बात है। इसलिए हम कुछ निर्णय लेते हैं और फिर इसे अपलोड करते हैं।”

सरदेसाई ने "न्यायाधीशों की नियुक्ति के तरीके में पारदर्शिता की कमी" पर सवाल किया जो "भविष्य में इसी तरह के विवाद को भड़का सकता है।" नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमिशन (एनजेएसी) के फैसले से उद्धृत करते हुए जस्टिस लोकुर ने कहा कि न्यायाधीशों के चयन में पात्रता मानदंड होना चाहिए। उन्होंने कहा कि एनजेएसी फैसले को लागू करने के लिए हर तरफ से सुझाव मांगे गए थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि पब्लिक डोमेन से बड़ी संख्या में सुझाव प्राप्त हुए और विश्लेषण के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं को सौंप दिए गए। उन्होंने कहा कि "हमें अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि सरकार और कानून तथा न्याय मंत्रालय को मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) को सार्वजनिक करना चाहिए।"

कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल

सरदेसाई ने पूछा कि "क्या कॉलेजियम प्रणाली विफल हो गई है और न्यायाधीशों के तबादले और नियुक्ति के तरीक़ों की जांच करने के लिए हमें एक नई प्रणाली की आवश्यकता है?" इस पर न्यायमूर्ति लोकुर ने जवाब दिया कि "मैं नहीं कहूंगा कि कॉलेजियम प्रणाली विफल हो गई है क्योंकि 'विफल' बहुत ही कठोर शब्द है। मौजूदा प्रणाली के भीतर वर्तमान प्रणाली सबसे बेहतर थी लेकिन हर प्रणाली की तरह इसमें भी सुधार करने की आवश्यकता है।"

न्यायपालिका में भाई-भतीजावाद के आरोप से संबंधित सवालों पर जस्टिस लोकुर ने स्पष्ट किया कि “मुझे नहीं लगता कि भाई-भतीजावाद या ‘सिफारिश’ या नगण्य प्रभाव है। उदाहरण के लिए यदि मुख्य न्यायाधीश द्वारा कोई सुझाव दिया जाता है तो चर्चा होती है और यहां तक कि अगर सीजेआई देखते हैं कि कोई इससे सहमत या असहमत हो सकता है तो यह सब एक सार्थक चर्चा के बाद होता है।"

सीजेआई की शक्ति पर सवाल

कॉलेजियम में अन्य सदस्यों पर सीजेआई की अधिक श्रेष्ठता को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में जस्टिस लोकुर ने कहा "मुख्य न्यायाधीश उनमें प्रथम होते हैं इसलिए मुख्य न्यायाधीश द्वारा चर्चा शुरू की जाती है और जैसा कि उनमें से कोई हो सकते हैं जो मुख्य न्यायाधीश से सहमत या सहमत नहीं हो सकते हैं।”

सरदेसाई ने पूछा कि जिन जजों के नाम कॉलेजियम द्वारा खारिज कर दिए गए वे सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत होने के लिए बेहतर नहीं थे लेकिन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करते रहने के लिए ठीक थे। इस पर न्यायमूर्ति लोकुर ने स्पष्ट किया कि "कोई व्यक्ति मुख्य न्यायाधीश के रूप में बेहतर हो सकता है लेकिन ये जरूरी नहीं कि वह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बेहतर हो।" "एडिशनल मैटेरियल" के बारे में बोलते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें किसी भी "एडिशनल मैटेरियल" के बारे में जानकारी नहीं थी। कॉलेजियम के फैसले को बदलने वाली एडिशनल मैटेरियल को सार्वजनिक करने की चर्चा के बारे में उन्होंने कहा कि “हमें नहीं पता कि 10 जनवरी 2019 को कॉलेजियम के सामने किस तरह के एडिशलन मैटेरियल थे। इसलिए यदि मैटेरियल बदनाम करने वाले या गलत हैं तो क्या हमें उनसे बदनामी या गलत होने के बावजूद इसे सार्वजनिक करने की उम्मीद करनी चाहिए?"

अदालत में भ्रष्टाचार को लेकर सवाल

अदालत में भ्रष्टाचार पर उनकी राय पूछे जाने पर न्यायमूर्ति लोकुर ने सरदेसाई से मजाक में कहा कि वे भ्रष्टाचारी न्यायाधीशों के नाम बताएं। उन्होंने इसके जवाब में कहा कि वह अदालत की अवमानना का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने तत्कालीन सेजेआई दीपक मिश्रा द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री नारायण शुक्ला के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की सिफारिश और न्यायिक कार्य वापस लेने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को की गई सिफारिश पर सवाल उठाया। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उनकी जानकारी में एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे थे वास्तव में उन्हें पदोन्नत के लिए विचार किया गया था।

जस्टिस लोकुर ने एक न्यायाधीश के ख़िलाफ़ जांच समिति का हिस्सा होने पर खुद का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने पाया कि आरोपी जज भ्रष्ट थे। हालांकि उन्हें सीजेआई के अंतिम निर्णय के बारे में पता नहीं था। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उनका मानना है कि सीजेआई सहित हर न्यायाधीश से आवश्यकता पड़ने पर पूछताछ और जांच की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली को तेज़ करने की आवश्यकता है ताकि किसी न्यायाधीश के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों के मामलों में न्याय सुनिश्चित किया जा सके।

सरदेसाई ने न्यायमूर्ति लोकुर से न्यायाधीशों की शासनात्मक सत्ता से निकटता पर सवाल किया जिस पर उन्होंने तर्क दिया कि न्यायाधीश "संत" नहीं हो सकते हैं और इसे "विडंबनापूर्ण पाया कि एक ओर जहां न्यायाधीशों को मानवीय और मिलनसार होना बताया जाता है वहीं दूसरी ओर उन्हें वास्तविक दुनिया से दूर रखा जाता है।"

शक्ति या सीमा पार करने की ग़लतफ़हमी

सरदेसाई ने पूछा कि क्या अदालतों को उन मुख्य मामलों में शामिल होना चाहिए जिसकी न्यायिक जांच की आवश्यकता न हो। विशेष रूप से किसी भी मामले पर चर्चा किए बिना न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा "हां ऐसे मामले हैं जहां सीमा के बाहर आदेश दिए गए जिसकी शुरू में आवश्यक थी और कुछ मामलों में कुछ कदम वापस लेने की अदालतों की आवश्यकता है।"

हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र के हर एक अंग जिसमें कार्यपालिका और विधायिका भी शामिल है, उनके लिए यही सही है और इसलिए "ओवररीच" शब्द के इस्तेमाल से असहमत हैं। उन्होंने कहा "किसी के शक्ति की गलतफहमी सीमा पार करने के बराबर नहीं है।" उनके अनुसार "हम दुर्भाग्य से शीघ्र निर्णय के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण कुछ मुद्दों और न्याय देने की प्रक्रियाओं और इसे अधिक सुलभ बनाने पर चर्चा नहीं कर रहे हैं।" उन्होंने कहा "चर्चा करने के लिए कई बड़े मुद्दे हैं और हमें इस काम पर लग जाना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों को कार्यभार सौंपने पर सवाल

आख़िरकार न्यायमूर्ति लोकुर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद सौंपे जाने वाले कार्यों के विचार का समर्थन करने को लेकर सावधान थे और वे कहते हैं कि कई व्यवस्था विधान को स्पष्ट रूप से कुछ न्यायाधिकरणों और वैधानिक निकायों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अध्यक्षता करने की आवश्यकता होती है। उन्होंने तर्क दिया कि यदि आवश्यक हो तो कानूनों को बदल दिया जाना चाहिए लेकिन "सेवानिवृत्ति के बाद की सभी न्यायाधीशों द्वारा नियुक्तियों को अस्वीकार करने के निर्णय से गतिरोध की स्थिति पैदा होगी।" हालांकि उन्होंने जोर दिया कि सेवानिवृत्ति के बाद जजों को कार्य स्वीकार करने को लेकर एक रेखा खींचनी होगी।

सरदेसाई ने जस्टिस लोकुर से एक सवाल किया कि "सरकारी बंगला आपका इंतज़ार कर रहा है।" इस पर उन्होंने जवाब दिया कि "मैं राज्यसभा के लिए नामांकन या राज्यपाल का पद स्वीकार नहीं करुंगा।"

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