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कुलभूषण जाधव मामलाः फ़ैसले को लेकर उलझन

भारत और पाकिस्तान के बड़े अख़बारों में कुलभूषण जाधव मामले को लेकर जीत का दावा करने वाले हेडलाइन को ध्यान से पढ़ने से पता चलता है कि सच्चाई इनके बीच कहीं फँसी है।
कुलभूषण जाधव

गुरुवार के किसी भी बड़े भारतीय दैनिक अख़बार को उठा लें तो आप पाएंगे कि कुलभूषण जाधव मामले में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा बुधवार को दिए गए फ़ैसले को लेकर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए रिपोर्ट लिखी गई है। इस मामले को अख़बारों में भारत की राजनयिक जीत और पाकिस्तान के लिए हार बताया गया है। जब आप ऑनलाइन सर्च करेंगे और पाकिस्तान के अख़बारों को देखेंगे तो पाएंगे कि वहां के अख़बारों ने भी इस मामले को अपने देश के लिए बड़ी जीत बताया है और भारत के लिए हार बताया है। तो आख़िर सच कौन बता रहा है?

जाधव मामले की सुनवाई के एक दिन बाद 18 जुलाई को प्रकाशित अख़बार के पहले पन्ने पर लीड स्टोरी के रूप में पाकिस्तानी अख़बार Dawn ने लिखा है "आईसीजे रिजेक्ट्स इंडियन प्ली फ़ॉर जाधव अक्विटल, रिलीज़ (आईसीजे ने जाधव की दोषमुक्ति, रिहाई के लिए भारत की याचिका को ख़ारिज कर दिया)"।

डॉन में प्रकाशित स्टोरी की शुरुआत इस दावे के साथ होती है कि आईसीजे ने "कुलभूषण जाधव को बरी करने, रिहा करने और वापसी के लिए भारत के अनुरोध को ख़ारिज कर दिया है, लेकिन इस्लामाबाद से वियना कन्वेंशन के तहत उन्हें काउंसलर प्रदान करने के लिए कहा है। कुलभूषण भारतीय सेवारत नौसेना कमांडर हैं जिन्हें पाकिस्तान ने जासूसी और आतंकवाद के आरोप में सज़ा सुनाई थी।"

ऊपर के पैराग्राफ़ में शामिल किया गया आईसीजे का फ़ैसला किसी भी तरह ऐसा नहीं लगता है कि यह भारत या पाकिस्तान के लिए जीत है।

अगर आपको लगता है कि यह रिपोर्ट एक अपवाद है तो फिर से सोचिए। सिर्फ डॉन या पाकिस्तान के अन्य अख़बार ही नहीं, भारतीय अख़बारों ने भी आईसीजे के फ़ैसले को भारत के लिए 'जीत’ और इस्लामाबाद के लिए 'शर्मिंदगी’ बताया है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पहले पन्ने पर लीड स्टोरी का हेड लाइन था: "रिव्यू डेथ सेंटेंस टू जाधव, इंटरनेशनल कोर्ट टेल्स पाक (जाधव की मौत की सज़ा पर विचार करे, अंतरराष्ट्रीय अदालत ने पाक से कहा।)" भारत के अन्य अख़बारों की तरह इस अख़बार ने एक हेडलाइन चुना जो आईसीजे के आदेश के उन पहलुओं पर ज़ोर देता है जो यह महसूस करता है कि ये भारत के पक्ष में सबसे ज़्यादा गया है। ऐसा करते हुए इसने आईसीजे के फ़ैसले के उन पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जो भारत के पक्ष में नहीं हैं।

इसके बाद, उदाहरण के लिए, टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पहले पेज की स्टोरी में एक लीड है जो इस फ़ैसले को "भारत के लिए प्रमुख क़ानूनी और राजनयिक जीत (मेजर लीगल एंड डिप्लोमेटिक विक्ट्री फ़ॉर इंडिया)" के रूप में बताता है। इस कमेंट के आधार की सच्चाई यह है कि आईसीजे ने मामले की समीक्षा और पुनर्विचारकरने तथा जाधव के दोषी ठहराने और सजा देने के मामले में पाकिस्तान से कहा है। इसका अखबार कहता है कि पाकिस्तान में सुनाई गई मौत की सजा पर रोक अब तक भारत के लिए एक और महत्वपूर्ण जीत थी।

इस तरह की ख़बरें निस्संदेह जाधव और भारत के लिए राहत की बात है लेकिन सीमा के इस तरफ के अख़बारों ने जो अनदेखी की है वह यह है कि पाकिस्तान की मीडिया और राजनेता भी अपने पक्ष की जीत का दावा करते हुए उसी तरह की बातें कर रहे हैं जो भारत कर रहा है। मिसाल के तौर पर वे जाधव पर फिर से मुकदमा चलाने के सीजेआई के आदेश को नज़रअंदाज करके जाधव का भाग्य पाकिस्तान के हाथ में होने की बात कर रहे हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया से ही एक और उदाहरण लें। अखबार का कहना है कि आईसीजे ने "पाकिस्तान द्वारा पेश किए गए सभी बड़े विवादों" को ख़ारिज कर दिया था। ये कथन इस तथ्य से पुष्टि करता है कि आईसीजे ने आदेश दिया है कि जाधव मामले में वियना कन्वेंशन लागू था। अब विचार कीजिए कि डॉन ने कैसे इस फैसले के इस हिस्से को घूमा दिया। इसने कहा है कि जाधव की सजा को वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 का उल्लंघन नहीं माना गया था और पाकिस्तान की सैन्य अदालत द्वारा जाधव की सज़ा को रद्द करने के भारत के अनुरोध को बरकरार नहीं रखा गया था। स्वाभाविक रूप से इसका मतलब है कि भारत द्वारा दिए गए "सभी बड़े विवादों को" आईसीजे ने स्वीकार नहीं किया था।

मिसाल के तौर पर डॉन की रिपोर्ट में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का हवाला देते हुए उनके ट्विटर पर लिखे बयान को लिखा गया है कि आईसीजे का फैसला पाकिस्तान की 'जीत' थी। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि आईसीजे का फैसला "जासूसी और आतंकवाद" में जाधव के शामिल होने के संबंध में पाकिस्तान के रुख का निर्विवाद सम्मान और स्वीकृति था। क्या इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान के रुख को कोई निर्विवाद समर्थन नहीं है?डॉन इसकी व्याख्या नहीं करता है। इसके बजाय यह कुरैशी के कथन को बताता है कि मामले का चुनाव करना पाकिस्तान के पास ही है। जाधव पर कैसे दूसरी बार मुकदमा चलाया जाएगा।

आईसीजे के फैसले का दूसरा विवादास्पद पहलू यह है कि आईसीजे स्वीकार कर रहा है कि जाधव एक भारतीय नागरिक है जिसके पास भारतीय पासपोर्ट है। पाकिस्तानी मीडिया ने इसे अपने देश की जीत के रूप में पेश किया है। तो भारतीय मीडिया ने भी किया है। यह केवल इस तथ्य को लेकर कहा जा रहा है कि आईसीजे के न्यायाधीशों ने पाया कि पाकिस्तान ने जो दस्तावेज प्रस्तुत किया था उसमें उसने जाधव को भारतीय बताया था।

पाकिस्तान के एक अन्य प्रमुख अख़बार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने अपने प्रिंट संस्करण में ऐसी हेडलाइन लगाई हैः "पाकिस्तान विंडिकेटेड (पाकिस्तान दोषमुक्त)"। इसका सब-हेडिंग भी जिसमें लिखा गया है कि अंतरराष्ट्रीय न्यायलय ने पाकिस्तान की सेना के अदालत के फैसले को रद्द करने की भारत की याचिका को खारिज कर दिया है हालांकि काउंसलर की सुविधा देने की अनुमति दी गई है।

पाकिस्तान टुडे की हेडलाइन भी इसी तरह है कि "पीएम ने जाधव को रिहा और बरी न करने को लेकर आईसीजे के फैसले को सराहा'।

जबकि डॉन कहता है कि आईसीजे ने उल्लेख किया है कि दोषसिद्धि को प्रभावी ढंग से समीक्षा और पुनर्विचार करने के लिए फांसी पर लगातार रोक जरूरी थी, यह केवल इत्तेफाक से उल्लेख करता है कि पाकिस्तान ने आईसीजे के समक्ष तर्क दिया था कि जासूसी के मामले में विएना कन्वेंशन का अनुच्छेद 36 बिल्कुल लागू नहीं था।

दि एक्सप्रेस ट्रिब्यून के पहले पन्ने पर इस प्रमुख रिपोर्ट के साथ एक छोटी सी रिपोर्ट पत्रकार वकास असगर की है जिसमें पाकिस्तान में खेद व्यक्त करते हुए आवाज उठाई गई है। रिपोर्ट में पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश तसद्दुक हुसैन जिलानी की राय है, जिन्होंने आईसीजे मुकदमा के दौरान विशेष न्यायाधीश के रूप में असहमतिपूर्ण राय लिखा था। रिपोर्ट के अनुसार: "न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जिलानी ने माना कि अदालत को इस मामले में भारत के आचरण के आलोक में इसके के आवेदन को अस्वीकार्य किया जाना चाहिए, यह देखते हुए कि विएना कन्वेंशन एक समझौता है जो 'राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के विकास की इच्छा रखने" की स्थिति है।

पाकिस्तान की न्यूज़ रिपोर्ट में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ट्विटर कमेंट को महत्व दिया गया है। खान ने कल ट्वीट किया था कि "भारतीय जासूस को बरी न करने, रिहा न करने और वापस न करने के आईसीजे के फैसले को वे और पाकिस्तान के सभी लोग संभवतः "सराहते" हैं।" ट्वीट में लिखा है: "वह [जाधव] पाकिस्तान के लोगों के ख़िलाफ़ अपराधों का दोषी है। पाकिस्तान कानून के अनुसार आगे बढ़ेगा।"

इसलिए वह इस मुद्दे को पाकिस्तान की पूरी आबादी के साथ शामिल करते हैं, न कि सीमा के दोनों ओर की व्यवस्थाओं के साथ।

अब इस बात पर विचार करें कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईसीजे का फैसला सार्वजनिक होने के तुरंत बाद बुधवार रात ट्विटर पर कैसी प्रतिक्रिया दी: "हम आईसीजे में आज के फैसले का स्वागत करते हैं। सत्य और न्याय की जीत हुई है। तथ्य के व्यापक अध्ययन के आधार पर फैसले के लिए आईसीजे को बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि कुलभूषण जाधव को न्याय मिलेगा। हमारी सरकार हमेशा हर भारतीय की सुरक्षा और कल्याण के लिए काम करेगी।"

इसलिए भारत भी इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कानूनी विवाद के बजाय गौरव, गरिमा और राष्ट्रवाद का मुद्दा बना रहा है भले ही मामला कितना भी संवेदनशील, गंभीर या सनसनीखेज क्यों न हो।

दि इंडियन एक्सप्रेस ने हेडलाइन में लिखा "जस्टिस इन इंटरनेशनल कोर्ट" और इसकी स्टोरी भी पहले पन्ने पर लीड स्टोरी है। इसमें लिखा है कि नई दिल्ली ने "इस्लामाबाद से क़ानूनी और राजनयिक जीत हासिल कर लिया है"। फिर मेन स्टोरी में यह लिखता है कि आईसीजे ने हालांकि पाकिस्तान की सैन्य अदालत के फैसले को रद्द करने और जाधव को रिहा करने और भारत को सुरक्षित सौंपने के भारत की मांग को खारिज कर दिया। यह ये भी लिखता है कि "उनके भाग्य का फैसला करने के लिए गेंद पाकिस्तान के पाले में है।" इस अख़बार ने यह भी लिखा है कि जाधव को कांसुलर की सुविधा मिलेगी लेकिन फिर भीनागरिक अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है।

अलग अलग अखबारों में छपी रिपोर्टों को संतुलन करने की जिम्मेदारी इस मामले में भारत के कानूनी सलाहकार हरीश साल्वे के कंधों पर पड़ा था। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में साल्वे का हवाला दिया गया था जहांउन्होंने फैसले के ठीक बाद लंदन में कहा है कि यदि जाधव का मामला "सैन्य अदालत(पाकिस्तान में) उसी नियम के तहत वापस आ जाता है जहां बाहरी वकीलों को अनुमति नहीं दी जाती है,हमें अनुमति नहीं दी जाती है, सुविधा नहीं दीजाती है और सबूत नहीं दिए जाते हैं, तो यह मानकों को पूरा नहीं करेगा।" उन्होंने कथित तौर पर यह भी कहा है कि वियना कन्वेंशन का पालन न करने और एक भारतीय के लिए कांसुलर सुविधा न देने की अनुमति को लेकर पाकिस्तान के बर्ताव को भारत ने चुनौती दी थी।

भारत और पाकिस्तान दोनों के अखबारों की खबरों का मुख्य विषय ब्रिटिश लेखक और टिप्पणीकार जॉर्ज ऑरवेल के प्रसिद्ध निबंध 'नोट्स ऑन नेशनलिज्म' के एक अंश की याद दिलाता है। ये अंश है, "प्रत्येक राष्ट्रवादी का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा शक्ति और ज्यादा से ज्यादा गरिमा को सुरक्षित करना है। ये अपने लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र या अन्य इकाई के लिए जिसमें उसने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए चुना है।"

तो, कौन सच कह रहा है? दोनों ही हो सकते हैं, नहीं भी हो सकते हैं- यह भारत और पाकिस्तान दोनों के प्रमुख दैनिक अख़बारों में रिपोर्ट की गई स्टोरी से पता चलता है। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों और राजनयिक मामलों पर रिपोर्टिंग करते समय दोनों देशों के पत्रकारों को एक ही समस्या का सामना करना पड़ता है: ऐसा होता है कि इन ख़बरों में यह परेशानी है कि सरकार की बातों को मानना पड़ता है।

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