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उत्तर प्रदेश में अपराध पर लगाम का दावा हक़ीक़त से कोसों दूर है?

पिछले कुछ दिनों में ही उत्तर प्रदेश की राजधानी 13 गोलीकांडों से दहली है। सोनभद्र और बुलंदशहर जैसे मामलों को बीते हुए अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं लेकिन पुलिस मुखिया दावा कर रहे हैं कि अपराध में कमी आई है।
UP police
Image courtesy:hindustantimes.com

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पिछले सोमवार को एपीसेन रोड पर बाइक सवार बदमाशों ने एक रेलकर्मी मोहम्मद शाहनवाज को 3 गोलियां मार दी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन 24 सितंबर को उनकी मौत हो गई। इस घटना के एक दिन पहले ही कैंट क्षेत्र में कोतवाली के निकट एक पूड़ी-सब्जी बेचने वाले दीपू की हत्या बदमाशों ने अधांधुंध गोलियां बरसाकर कर दी।

ये सिर्फ कुछ चंद उदाहरण थे। पिछले कुछ दिनों में प्रदेश की राजधानी 13 गोलीकांडों से दहली हुई है। इसके उलट प्रदेश के पुलिस मुखिया यह दावा करते हैं कि पिछले वर्षों के मुकाबले अपराधों में कमी आ रही हैं।

वैसे भी यह राजधानी का हाल है। प्रदेश के अन्य भागों में हो रहे अपराध के आंकड़ों को देखे तो मुख्यमंत्री का भी यह दावा बेबुनियाद नजर आता है कि 2022 के विधान सभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश का एक ऐसा राज्य होगा जहां अपराध पूरी तरह नियंत्रण में होगा।

हेट क्राइम सबसे अधिक  

उत्तर प्रदेश में हेट क्राइम (किसी से जाति, धर्म अथवा लिंग भेद आदि के आधार पर नफरत करना) भी बहुत अधिक हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार कमीशन की रिपोर्ट से मालूम होता है कि उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यकों और दलितों के लिए असुरक्षित स्थान नहीं है।

कमीशन ने 2016 और 2019 (जून 15 तक) के बीच 2008 हेट क्राइम के मामले दर्ज किए हैं। जिनमे से 869 केवल उत्तर प्रदेश से हैं। जिससे यह साफ अर्थ निकलता है कि भारत में होने वाले हेट क्राइम में 43 प्रतिशत सिर्फ उत्तर प्रदेश में हुए हैं। एमनेस्टी इंडिया की मार्च 2019 की रिपोर्ट के अनुसार लगातार तीन वर्षो से हेट क्राइम, उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा हो रहे हैं। 'हाल्ट द हेट' वेबसाइट पर एमनेस्टी इंडिया ने प्रकशित आंकड़ों में कहा है कि उत्तर प्रदेश में 2018 में 57, 2017 में 50 और 2016 में 60 हेट क्राइम दर्ज किये गए हैं, जिनमे हाशिये पर ज़िन्दगी गुज़ार रहे लोगों खासकर दलितों को निशाना बनाया गया है।  

पुलिस की बर्बरता और पुलिस पर हमले

राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर क्षेत्र में सितम्बर 29, 2018 को बहुराष्ट्रीय कंपनी के कर्मचारी विवेक तिवारी पुलिस की गोली के शिकार हो गए थे। पुलिस पर आरोप लगा कि तिवारी को पुलिस ने सिर्फ इसलिए गोली मार दी क्योकि उन्होंने पुलिस के इशारे पर अपनी कार नहीं रोकी थी।

इस घटना के बाद इस बात पर चर्चा शुरू हो गई थी कि पुलिस को किसी भी आम नागरिक को गोली मार देने का अधिकार किसने दिया है? इसके अलावा पुलिस पर भी उत्तर प्रदेश में हमले की खबरें भी सामने आई है।

बुलंदशहर ज़िले में एक पुलिस इंस्पेक्टर की भीड़ ने हत्या कर दी थी। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या उस वक़्त हुई जब उन पर करीब 400 लोगों की भीड़ ने हमला कर दिया। वह अपने क्षेत्र में दिसम्बर 03, 2018 गौवंश मिलने की खबर के बाद फैले तनाव को नियंत्रित करने गए थे। उल्लेखनीय हैं कि प्रदेश के विभिन ज़िलों से पुलिस पर हमले की खबरें आती रहती हैं और पुलिस पर भी अनेक फ़र्ज़ी एनकाउंटर के आरोप भी लगे हैं।

महिलाओं के साथ अपराध

महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को लेकर सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाज़ा उन्नाव रेप कांड और चिन्मयानंद प्रकरण से लगाया जा सकता है। "बेटी बचाओ और बेटी बढ़ाओ" का नारा लगा कर सत्ता हासिल करने वाली बीजेपी सरकार पर रेप के अभियुक्तों को संरक्षण देने का गंभीर आरोप लगा है। सत्तारूढ़ दल के विधायक कुलदीप सेंगर और पूर्व केंद्रीय मंत्री पर रेप के आरोप होने के बावजूद उत्तर प्रदेश पुलिस उसको  गिरफ्ता रकरने की हिम्मत तक नहीं कर सकी थी। सत्तारूढ़ दल से सम्बन्ध रखने वाले दोनों नेताओ की गिरफ्तारी केवल अदालत के सख्त होने के बाद हो सकी है।

सोनभद्र नरसंहार

सोनभद्र के उम्भा गांव में 17 जुलाई को जमीनी विवाद में 10 लोगों की हत्या कर दी गई थी। जबकि बाद में वाराणसी के ट्रामा सेंटर में एक महिला की मौत हो गई। अब तक इस नरसंहार में 11 लोगों की मौत हो चुकी है। इस घटना में करीब 29 लोग घायल हो गए थे। उल्लेखनीय है की 17 जुलाई 2019 को जमीनी विवाद में हुए खूनी संघर्ष में जमकर असलहे, लाठी डंडे और गोलियां चली थीं। इस हमले में गोंड समुदाय की तीन महिलाओं समेत दस लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना से उत्तर प्रदेश में दशहत का माहौल पैदा हो गया था और कानून—व्यवस्था की धज्जियां उड़ गई थी।  

मीडिया में आये कुछ आंकड़े

मीडिया में पुलिस सूत्रों से आये आकड़ों के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में इस बर्ष सितम्बर के प्रथम सप्ताह तक  डकैती 73, लूट 1,473, हत्या 2,355, दंगा 3637, घरेलू विवाद 5308, फिरौती/अपहरण-23, दहेज मृत्यु 1,536 और रेप 1,833 के मामले मिलाकर कुल 2,18,096 आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं। महिला उत्पीड़न 29,563, एससी/एसटी के खिलाफ अपराध कुल अपराध 7342 और विभिन्न कृत्यों में अपराध 30,93,966 दर्ज किए गए हैं।

उत्तर प्रदेश पुलिस में काम कर चुके पुलिस के आला अधिकारी भी मानते हैं कि योगी सरकार अपराधों को रोकने में नाकाम रही है। एसआर दारापुरी (आईपीएस सेवानिवृत)कहते हैं कि योगी  सरकार एनकाउंटर के ज़रिए अपराध रोकना चाहती है, जो कि सम्भव नहीं है।

दारापुरी का आरोप है कि उत्तर प्रदेश सरकार एनकाउंटर के नाम पर अल्पसंख्यकों और दलित समुदाय को निशाना बना रही है। आईजी के पद से सेवानिवृत होने वाले दारापुरी कहते हैं कि वर्तमान समय में सबसे बड़ी समस्या यह है कि आम नागरिकों के विरुद्ध हो रहे अपराधों की एफ़आईआर नहीं लिखी जा रही है।

वरिष्ठ पत्रकार भी मानते हैं कि पिछले ढाई साल में प्रदेश में कोई बदलाव नहीं आया है। वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्रा कहते हैं कि प्रदेश में अपराधों की एफ़आईआर नहीं लिखी जा रही है, इसके  अलावा अपराधों की जांच भी वक़्त पर पूरी नहीं हो रही हैं।

अतुल चंद्रा कहते हैं कि न हीं हत्याओं में कमी हुई है और न ही महिलाओं के विरुद्ध अपराध काम हुए हैं, बल्कि चैन स्नैंचिंग जैसे अपराध बढ़ गए हैं। केवल सर्वे आ रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में पुलिसिंग में सुधार आया है, लेकिन ज़मीन की हक़ीक़त कुछ और है। उन्होंने कहा कि पुलिस स्वयं शिकायतकर्ताओं को इतना परेशान करती है कि वह मुक़दमा दर्ज कराए बिना लौट जाते हैं।

पत्रकारों पर निशाना

इस सबके बावजूद मौजूदा वक़्त में उत्तर प्रदेश में खबर लिखने वाले पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है। मिर्ज़ापुर का ताज़ा उदहारण है। जहां "मिड डे मील" में नमक के साथ रोटी की खबर दिखने वाले पत्रकार पर ही मुक़दमा लिख दिया गया है।

अपराध में कमी संबंधी पुलिस के दावों पर अधिक जानकारी के लिए पुलिस महानिदेशक के जन संपर्क अधिकारी से कई बार मोबाइल पर संपर्क किया गया लेकिन उन्होंने बात नहीं की।

(लेख के इस्तेमाल आकड़ों को विभिन सूत्रों और मीडिया से हासिल किया गया है।) 

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