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क्या यूपी सरकार गेहूं खरीद की तरह धान खरीद में भी लक्ष्य से बहुत दूर रह जाएगी?

यूपी सरकार ने इस साल 55 लाख टन गेहूं का खरीद का लक्ष्य रखा था लेकिन 6797 क्रय केद्रों के बावजूद तय लक्ष्य से 18 लाख टन कम गेहूं खरीद पाई। अब धान के लिए 50 लाख टन का लक्ष्य रखा गया है लेकिन क्रय केंद्रों में की संख्या घटाकर 3 हजार कर दी गई है।
wheat and rice

हाल ही में अपनी सरकार के ढाई साल पूरे होने के मौके पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनकी सरकार में किसान प्राथमिकता में है। लेकिन अगर हम आंकड़ों पर जाएं तो यह बात वास्तविकता से दूर लगती है।

 उत्तर प्रदेश सरकार ने 2018-19 में गेहूं की खरीद के लिए 55 लाख टन का लक्ष्य निर्धारित किया था लेकिन गेहूं की खरीद के लिए 6797 क्रय केंद्रों की स्थापना के बावजूद तय लक्ष्य से 18 लाख टन कम की खरीद हुई। इसी तरह अब धान की सरकारी खरीद के लिए 50 लाख टन का लक्ष्य तय किया है इस लक्ष्य को पाने के लिए प्रदेश सरकार ने विभिन्न एजेंसियों के 3 हजार क्रय केंद्रों स्थापना निर्णय लिया है।

जानकारों का कहना है कि इतने कम खरीद केंद्र होने से सरकार का यह लक्ष्य हासिल कर पाना नामुमकिन है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश गेहूं उत्पादन में पहला तथा धान उत्पादन में दूसरा स्थान रखता हैं।

ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2018-19 के रबी में उत्तर प्रदेश ने देश के कुल उत्पादन का 32 प्रतिशत अकेले पैदा किया। देश में प्रदेश का पहला स्थान रहा। वहीं, राज्य में धान का उत्पादन देश के कुल धान का 13 प्रतिशत है।

कुल उत्पादन का 11 प्रतिशत सरकारी खरीद

जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के किसान बेहतर उत्पादन कर रहे हैं। साल दर साल उत्पादन बढ़ भी रहा है लेकिन उत्पादन के लिहाज से सरकारी खरीद बहुत मामूली हो रही है। इस साल यानी 2019-20 में सरकार ने गेहूं खरीद के लिए पहले 50 लाख टन का लक्ष्य तय किया था जोकि पिछले वर्ष की सरकारी खरीद से करीब 2 लाख टन कम था, बाद में तय लक्ष्य को संशोधित करते हुए 55 लाख टन का कार्यकारी लक्ष्य तय किया गया और लक्ष्य के सापेक्ष केवल 37 लाख टन की खरीद हुई है। यह खरीद लक्ष्य से 18 लाख टन कम है। जबकि कुल गेहूं का उत्पादन 327 लाख टन हुआ था। यानी करीब 11.3 प्रतिशत सरकारी खरीद हुई है।

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स्रोत: खाद्यान्न बुलेटिन अगस्त, 2019, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग,एवं रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया

 कृषि मामलों के जानकार इस बात के लिए हमेशा ही सवाल उठाते रहते हैं। उनका कहना होता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित होने के बावजूद किसानों को उनकी फसलों का सही दाम नहीं मिलता है। क्योंकि ज्यादातर किसान सरकारी खरीद का हिस्सा ही नहीं बन पाते हैं।

लक्ष्य से कम खरीद होने की बात पर न्यूज़क्लिक ने उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही से बात की। उन्होंने कहा, 'खरीद में कमी का मुख्य कारण लोकसभा चुनाव 2019 रहे हैं। खरीद के दौरान राज्य में किसान और अधिकारी चुनाव में व्यस्त रहे जिसके कारण गेहूं खरीद प्रभावित हुई है।'

हालांकि जानकार कृषि मंत्री के दावे को झूठा बताते हैं। उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव देश के सभी राज्यों में थे। लेकिन ज्यादातर राज्यों में तय लक्ष्य से अधिक की सरकारी खरीद हुई है। इसमें पंजाब व हरियाणा जैसे गेहूं उत्पादन में बड़े राज्य हैं। इन राज्यों में तय लक्ष्य से अधिक की गेहूं की सरकारी खरीद हुई है।

मंत्री के बयान के उलट तमाम मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश में गेहूं  खरीद के समय बारदाने व तौल से संबंधित सामान की क्रय केंद्रों पर कमी थी जिसके कारण भी खरीद प्रभावित हुई है।

आपको बता दें कि यूपी सरकार ने अपने पहले व दूसरे कार्यकाल में हुई गेहूं की खरीद में बढ़ोत्तरी को लेकर अपनी पीठ खूब थपथपाई थी लेकिन जब राज्य सरकार ने 2019-20 के लिए पिछले की वास्तविक खरीद से भी कम की खरीद का लक्ष्य तय किया तो एक बार भी बात करने की जरूरत नहीं समझी।

आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में गेहूं की सरकारी खरीद कुल उत्पादन का 12 प्रतिशत थी जो अगले 2018-19 में बढ़कर 17 प्रतिशत हो गयी थी और अब इस साल 2019-20 में यह गिरकर 11 प्रतिशत हो गयी है। 

धान की खरीद के लिए 3 हजार क्रय केंद्र बहुत कम

अब सवाल है कि गेहूं की सरकारी खरीद के लिए इतनी बड़ी मात्रा में क्रय केंद्र स्थापित किए गए उसके बावजूद भी लक्ष्य को नहीं पाया गया और पिछले साल की सरकारी खरीद से 16 लाख टन कम है अब ऐसे में धान के लिए 50 लाख टन का लक्ष्य रखा गया है (जोकि गेहूं के लक्ष्य के लगभग बराबर ही है) उसकी सरकारी खरीद कैसे हो पाएगी। 

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स्रोत: खाद्यान्न बुलेटिन अगस्त, 2019, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग,एवं रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया

क्या मात्र 3 हजार क्रय केंद्र काफी होंगे यह अपने आप में एक सवाल हैं। जबकि उत्तर प्रदेश की मंत्रिपरिषद की बैठक में धान क्रय नीति का निर्धारण करते हुए कहा गया है कि क्रय केंद्रों का निर्धारण एवं चयन जिलाधिकारी द्वारा इस प्रकार किया जाएगा कि किसान को अपना धान बेचने के लिए 08 किमी से अधिक की दूरी न तय करनी पड़े।

हालांकि यह बात जरूर है कि उत्तर प्रदेश में गेहूं की अपेक्षा धान का उत्पादन कम होता है लेकिन फिर भी राज्य के लगभग सभी जिलों में धान की पैदावार होती है। ऐसे में मजबूरन किसान को अपना अनाज निजी व्यापारियों को बेचना पड़ेगा।

भारतीय किसान यूनियन के नेता धमेंद्र मलिक कहते हैं,' 08 किलोमीटर के दायरे में धान की खरीद के लिए तीन हजार क्रय केंद्र नाकाफी है। होना यह चाहिए कि धान की बहुल पैदावार वाले जिलों में प्रत्येक ग्राम सभा में क्रय केंद्र स्थापित किये जाए ताकि कोई किसान धान बेचने से रह ना जाए। साथ ही धान की उन्नत श्रेणी की भी खरीद सरकार सुनिश्चित करे और क्रय मूल्य भी बढ़ाये।

उन्होंने आगे कहा,' धान की क्रय नीति के निर्धारण में राज्य सरकार को गेहूं की खरीद से सबक लेने की जरूरत थी लेकिन सरकारी खरीद की प्रक्रिया को दुरुस्त करने के बजाय सरकारी खरीद की प्रक्रिया में ढुलमुल रवैया अपनाया जा रहा है। प्रदेश में 1 अक्टूबर से धान की खरीद का निर्णय लिया गया है, राज्य सरकार को विभिन्न एजेंसियों के क्रय केंद्रों की संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि किसान बिचौलियों को कौड़ियों के भाव धान की फसल बेचने को मजबूर न हो और इसके साथ ही धान खरीद के लिए अनिवार्य क्रय पंजीयन की प्रक्रिया से मुक्त किया जाए क्योकि पंजीयन के कारण काफी किसान अपनी फसल नहीं बेच पाते है। अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो गेहूं की तरह धान खरीद भी लक्ष्य से पीछे रह जाएगा और इसका नुकसान सिर्फ किसानों को होगा।'

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