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इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IOT) का केरल मॉडल अन्य राज्यों के लिए एक सीख है

एलडीएफ़ के नेतृत्व वाली सरकार ने इस अभियान को मंज़ूरी दे दी है, जिससे क़रीब 20 लाख से अधिक ग़रीबी की रेखा से नीचे गुज़र बसर कर रहे परिवारों को हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा मिलने जा रही है।
Kerala Model of Internet

देश भर के शहर और राज्य सरकारें यदि चाहें तो बुनियादी ढांचे में बेहद मामूली से निवेश के ज़रिये अपने नागरिकों के लिए सस्ती डाटा सेवाएं उपलब्ध कराने के रास्ते पर चल सकती हैं, जो राह केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चे की सरकार ने दिखाई है। सरकार ने राज्य में 1,548 करोड़ रुपये की मुफ़्त ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क (KFON) परियोजना को मंज़ूरी दे दी है। इस परियोजना के माध्यम से ग़रीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों को 20 लाख से अधिक हाई स्पीड इंटरनेट सेवा प्रदान होने जा रही है। यह ख़बर केरल के कई शहरों के लिए भी अच्छी साबित होने वाली है क्योंकि इस नेटवर्क के आधार पर, 'स्मार्ट सिटी' की नींव रखी जा सकती है। इस तरह का आधारभूत ढांचा अगर राज्य सरकार के हाथों निर्मित किया जाता है तो इसके ज़रिये वह अपने नागरिकों को ढेर सारे लाभ पहुँचाने में सक्षम हो सकता है।

स्मार्ट शहरों का सारा बुनियादी ढांचा ही फ़ाइबर नेटवर्क के इस जाल को बिछाने पर आधारित है, जो कि शहरों में स्मार्ट प्रशासन की विभिन्न परतों के निर्माण के लिए आवश्यक है। बड़े बहुराष्ट्रीय निगमों की निगाह इस प्रकार के आधारभूत ढाँचे के निर्माण पर है और उनकी मंशा यह है कि उन्हें यह सुविधा भारतीय शहरों में ये आधारभूत ढांचे निर्मित करने की अनुमति मिल जाए, जिससे कि वे इन शहरों से बड़े पैमाने पर धन की उगाही कर सकें।

केरल मॉडल से, जिन कंपनियों के पास इंटरनेट सेवा प्रदाता का लाइसेंस है, वे राज्य में अपनी सेवाएं प्रदान करने के लिए ऑप्टिकल फ़ाइबर नेटवर्क का उपयोग कर सकती हैं। यह परियोजना केरल राज्य विद्युत बोर्ड और केरल आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के माध्यम से लागू की जाएगी। इंटरनेट की सेवाओं में लाभ पर पर्याप्त अंकुश के ज़रिये यह राज्य के लोगों और सेवा प्रदाताओं, दोनों के लिए इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IOT) के ज़रिये लाभ ही लाभ वाली स्थिति होगी।

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को देश भर में लागू करने के बारे में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार भी इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स और स्मार्ट कंट्रोल सेंटर के ज़रिये स्मार्ट सिटी नेटवर्क पर ज़ोर दे रही है, जिससे शहरों पर नज़र रखी जा सके और यह सुनिश्चित हो कि इसके ज़रिये उपयोगिता और उनकी निगरानी में पर्याप्त दक्षता प्राप्त हुई है। यहाँ पर बीजेपी मॉडल से सबसे बड़ा फ़र्क़ यही है कि वहाँ बुनियादी ढाँचे को खड़ा करने की ज़िम्मेदारी निजी कंपनियों के हाथों में है, और इस प्रकार, इस विशाल क्षेत्र में होने वाले लाभ पर पैंतरेबाज़ी कर भारी मात्रा में लाभ कमाने का खुला रास्ता उनके (निजी ऑपरेटरों) हाथ में रहेगा। 

यहाँ इस बात का उल्लेख करना आवश्यक होगा कि डिजिटल क्षेत्र में लगातार होने वाली खोजों का बाज़ार, बेहद विशाल है और बड़ी कम्पनियों की निगाह में शहर एक ऐसे संभावित स्थान हैं, जिसपर अपने हस्तक्षेप के ज़रिये अधिकाधिक लाभ कमाया जा सकता है। इसे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स, स्मार्ट कण्ट्रोल कमांड सेंटर, या शहरों को स्मार्ट कैमरों के माध्यम से पूरी तरह से निगरानी में रखने के ज़रिये किया जा सकता है, इत्यादि। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IOT) का बाज़ार क़रीब 19 ट्रिलियन का है।

फोर्ब्स के मुताबिक़ 2020 तक स्मार्ट सिटी इंडस्ट्री का बाज़ार क़रीब 1.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जायेगा। यह नया उद्योग सार्वजनिक सेवा के प्रावधानों का अधिकाधिक निजीकरण और वित्तीयकरण होते जाने का संकेत दे रहा है, और संपूर्णता में आम नागरिकों की क़ीमत पर कुछ चुनिंदा धनिकों को बेहतर सुविधा और सेवाएं प्रदान करने के काम में तेज़ी लाएगा, जिससे हमारे समाज में ग़ैर-बराबरी की रफ़्तार और तेज़ होगी।

हालाँकि, स्मार्ट हस्तक्षेप का केरल मॉडल आम लोगों के बड़े काम का साबित हो सकता है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि शहरों और राज्यों से अधिकतम मुनाफ़े की बोली लगाये जाने पर अंकुश लग सके। चूंकि राज्य के पैरास्टैटल (एक प्रकार से ऐसे संगठन जो राज्य की अप्रत्यक्ष रूप से मदद करते हैं) फाइबर बिछाने का काम करेंगे, इसलिये राज्य सरकार और इस सम्बन्ध में शहरों के लिए कहीं आसान होगा कि इससे जो अतिरिक्त उपार्जन होगा उसे सस्ते इंटरनेट और सहायक सेवाओं के रूप में लोकतांत्रिक रूप से लोगों के बीच साझा किया जा सके। जैसा कि उल्लेख किया गया है, ये सेवाएं स्मार्ट पब्लिक यूटिलिटीज़ के रूप में होंगी और शहरों में ये बिलिंग या स्मार्ट परिवहन के रूप में हो सकती हैं। ये सारी चीज़ें नागरिकों को अपेक्षाकृत सस्ती क़ीमत पर मिल सकती हैं, क्योंकि यहाँ पर राज्य परस्ताटल के रूप में सबसे बड़ा जोखिम वहन करने की भूमिका में खड़ा रहेगा।

बार्सिलोना का अनुभव

बार्सिलोना की नगर परिषद ने सफलतापूर्वक सार्वजनिक डाटा के एकीकृत प्रबंधन के लिए एक कार्यालय के संचालन की शुरुआत की। समूचे तकनीकी ढांचे और शहर में चारों तरफ़ फैले सेन्सर्स के ज़रिये यह बेहद क़ीमती आंतरिक मूल्य वाले ढेर सारे डाटा पैदा करने, इकट्ठा करने, प्राप्त करने, सूचीबद्ध करने, प्रोसेस और साझा करने में सक्षम बन गया। नगर परिषद के अनुसार, ये डाटा सर्वजन हिताय के एक साझा स्रोत के रूप में जनता के हितों के एक बुनियादी ढांचे के रूप में विकसित हो गया है। यह शहर के लिए अब एक ऐसी चाभी के समान है जिसके उपयोग से कहीं अधिक तत्परता और लोकतांत्रिक तरीक़े से सार्वजनिक सेवाओं में सुधार लाने और लोगों को सशक्त बनाने के लिए नवीनतम खोजों को बढ़ावा देने का काम संभव हो सका है।

भारतीय शहरों के लिए

जैसा कि स्पष्ट है, भारतीय शहर भी स्मार्ट सिटी की सवारी के प्रति आकर्षित हैं। लेकिन शायद ही कुछ लोगों को मालूम हो कि इस बदलाव के पीछे मुख्य ड्राइवरी का इरादा वे बड़ी बड़ी कम्पनियाँ करना चाहती हैं जो अपने औज़ारों और समाधान के साथ शहरों में काम करने का इरादा रखती हैं, ताकि इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (आईओटी) के माध्यम से अधिक से अधिक लाभ बटोरा जा सके। शहर और राज्य सरकारें स्मार्ट समाधान देने के नाम पर इनके हुक्म के आगे मिमियाते हुए आत्मसमर्पण करने पर मजबूर हैं। दरअसल, इन स्मार्ट समाधानों की आड़ में, वे शहरों के कमांड सेंटर पर नियंत्रण रखते हैं और फिर डाटा के भारी प्रवाह के ज़रिये ख़ूब सारा माल कमाते हैं, जिसके बारे में शहर की स्थानीय सरकारों को भनक तक नहीं लगती।

हालांकि, शहर की सरकारें चाहें तो स्मार्ट शहरों के नेटवर्क में उचित हिस्सेदारी के लिए अपने अधिकार का दावा कर सकती हैं। शिमला में, जब लेखक को (शिमला नगर निगम के उप महापौर होने के नाते) एक सेवा प्रदाता द्वारा फ़ाइबर केबल बिछाने के लिए शहर को खोदने के लिए संपर्क किया गया था, तो ठेकेदार को खुदाई करने की अनुमति नहीं दी गई। इसके बजाय, उसे यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि यदि उसे शहर में डक्ट बिछाना है तो उसे इसकी अनुमति तभी मिलेगी जब वह स्थानीय प्रशासन के लिए भी दो डक्ट साथ में बिछाने का काम करे।

शुरू शुरू में तो इस ऑपरेटर ने इस अनुरोध पर अपनी रजामंदी नहीं दिखाई, लेकिन जब डक्ट और फ़ाइबर के लिए गड्ढा खोदने की इजाज़त नहीं मिली तो मजबूर होकर उसे इस प्रस्ताव पर राज़ी होना पड़ा। कई शहरों में, किस तरह से चीज़ें होंगी का अधिकार शहरी स्थानीय सरकारों के अधिकार क्षेत्र में निहित है। शहर की स्थानीय सरकार चाहे तो, वे सेवा प्रदाताओं पर दबाव डालकर अपने नागरिकों के हितों के लिए इसे एक बेहतर सौदेबाज़ी के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं।

सच्चाई यह है कि यदि शिमला शहर में शहरी प्रशासन अब स्मार्ट समाधान कमांड सेंटर चलाना चाहती है, तो उसे सिर्फ़ सेवा प्रदाता के सामने उचित सौदेबाज़ी के लिए खुली बोली रखनी होगी और उसके ज़रिये उसे जो लाभांश अर्जित होगा, उसे वह लोकतांत्रिक पद्धति से डाटा शेयरिंग और IOT के संदर्भ में आम लोगों को वापस दे सकती है, ताकि सस्ते और स्मार्ट समाधान पेश किए जा सकें। इस तरीक़े से, शहरों को बड़े बड़े बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेशन के चंगुल से बचाया जा सकता है जो अंततः शहर के डाटा नेटवर्क को न सिर्फ़ चलाते हैं बल्कि पूरी तरह से प्रतिनिधि के तौर पर शहर को चलाते हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आपने नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Kerala Model of Internet of Things: Lesson for Other States

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