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लगातार गर्मा रहा है रविदास मंदिर गिराने का मामला, सुप्रीम कोर्ट सख़्त

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली की सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इस मुद्दे पर राजनीतिक रूप से या प्रदर्शनों के दौरान कानून व्यवस्था संबंधी कोई स्थिति उत्पन्न न हो।
ravidas temple issue
Image Courtesy: TOI

दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की ओर से तुगलकाबाद स्थित गुरु रविदास मंदिर गिराने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इसका असर दिल्ली से लेकर पंजाब और उत्तर प्रदेश तक देखने को मिल रहा है। मंदिर गिराए जाने के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली की सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इस मुद्दे पर राजनीतिक रूप से या प्रदर्शनों के दौरान कानून व्यवस्था संबंधी कोई स्थिति उत्पन्न न हो।

उच्चतम न्यायालय ने आज, सोमवार को कहा कि दिल्ली के तुगलकाबाद वनक्षेत्र में स्थित गुरु रविदास मंदिर को गिराने के उसके आदेश को ‘‘राजनीतिक रंग’’ नहीं दिया जा सकता।

'पीटीआई-भाषा' की ओर से जारी ख़बर के अनुसार न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा, ‘‘हर चीज राजनीतिक नहीं हो सकती। धरती पर किसी के भी द्वारा हमारे आदेश को राजनीतिक रंग नहीं दिया जा सकता।’’

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए दिल्ली विकास प्राधिकरण यानी डीडीए ने 9 अगस्त को तुगलकाबाद स्थित गुरु रविदास मंदिर ढाह दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 8अप्रैल 2019 को इस जमीन के संबंध में एक आदेश दिया था, जिसमें कहा था हम दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सही मानते हुए याचिकाकर्ता की अपील को ख़ारिज करते हैं। साथ ही यह आदेश दिया था कि प्राधिकरण यह सुनिश्चित करे कि अगले दो महीने में इस जमीन को खाली करा लिया जाए। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करार दिया जाएगा।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई पर नजर डालें तो दो अगस्त 2019 को 'गुरु रविदास जयंती समारोह समिति' ने कोर्ट को यह सूचना दी थी कि मंदिर परिसर को खाली कर दिया गया है। लेकिन जब इस पर डीडीए से रिपोर्ट मांगी गई तो पाया गया कि 'गुरु रविदास जयंती समारोह समिति' ने कोर्ट में गलत सूचना दी। 9 अगस्त 2019 के अपने फ़ैसले में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एम आर शाह ने 'गुरु रविदास जयंती समारोह समिति' को फटकार लगाते हुए यह पूछा था कि क्यों न समिति के पदाधिकारियों के खिलाफ कोर्ट की अवमानना पर सुनवाई की जाए। कोर्ट ने कहा था कि वनक्षेत्र को खाली करने के उसके पूर्व आदेश पर अमल न कर गुरु रविदास जयंती समारोह समिति ने बड़ी गलती की है।

उधर, मंदिर गिराए जाने के विरोध में गुरु रविदास समाज के लोगों ने 13 अगस्त को पंजाब बंद बुलाया था। दिल्ली और सहारनपुर में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए थे साथ ही आगामी दिनों में भी कई जगह संत रविदास समाज और भीम आर्मी के लोगों द्वारा प्रदर्शन प्रस्तावित हैं। 21 अगस्त को दिल्ली में इसी को लेकर दलित संगठनों ने प्रदर्शन का ऐलान किया है।

इस मामले में राजनीति भी तेज़ है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने केंद्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि ''डीडीए दुनिया भर में जमीन बांट रहा है अपने नेताओं को जमीन दे रहा है, लेकिन डीडीए को गुरु रविदास जी के लिए 100 गज जमीन देनी भी मुश्किल हो रही है। तो वहीं बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने कहा कि वह इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से बात करेंगे। पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल ने भी मंदिर गिराने की घटना को गलत बताया था। वहीं, केंद्रीय राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने कहा था कि मंदिर के लिए दोबारा जमीन अलॉट करवाने का प्रयास करेंगे।

क्या है मंदिर का इतिहास?

गुरु रविदास मंदिर ट्रस्ट के अनुसार, ये मंदिर गुरु रविदास की याद में बनवाया गया था। जब गुरु रविदास बनारस से पंजाब की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने 1509 में इस स्थान पर आराम किया था। एक जाति विशेष के नाम पर यहां पर एक बावड़ी भी बनवाई गई थी जो आज भी मौजूद है। कहा जाता है कि स्वयं सिकंदर लोदी ने गुरु रविदास से नामदान लेने के बाद उन्हें यहां जमीन दान की थी जिस पर यह मंदिर बना था। आजाद भारत में 1954 में इस जगह पर एक मंदिर का निर्माण हुआ था। इस मंदिर से सिखों की आस्था भी जुड़ी हुई है क्योंकि सिखों का मानना है कि गुरु रविदास की उच्चारण की हुई वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में मौजूद है।

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