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मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचे नीतीश के ख़िलाफ़ फूटा लोगों का गुस्सा, दिल्ली में भी प्रदर्शन

मंगलवार को हालात का जायजा लेने मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश के ख़िलाफ पीड़ित लोगों ने ‘वापस जाओ’ के नारे लगाए। विरोध और प्रदर्शन करने वालों का आरोप है कि मुख्यमंत्री की नींद बीमारी के महामारी बनने के 15 दिन बाद खुली है।
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फोटो साभार: India Today

बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (दिमागी बुखार) या चमकी बुखार से अभी तक लगभग 130 से ज्यादा बच्चों की मौत की ख़बर है। ऐसी स्थिति में हालात का जायजा लेने मंगलवार को मुजफ्फरपुर श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज (एसकेएमसीएच) पहुंचे राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। पीड़ित लोगों ने उनके खिलाफ जमकर नारेबाजी की।

जिला प्रशासन के अनुसारसरकारी एसकेएमसीएच और निजी केजरीवाल अस्पताल में अभी तक दिमागी बुखार से 105 बच्चों की मौत हुई है। एक बच्चे की मौत देर रात हुई है। 
दिल्ली समेत देश कई अन्य हिस्सों में भी इस घटना को लेकर गहरी चिंता जताई जा रही है। इसी कड़ी में मंगलवार को दिल्ली स्थति बिहार भवन पर वाम समर्थक कई जन संगठनों डीवाईएफआई, एसएफआई और महिला समिति सहित कई अन्य संगठनों ने प्रदर्शन किया। सोमवार को कुछ लोगों ने बिहार भवन पर प्रदर्शन किया था।

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दिल्ली में स्थित बिहार भवन पर विरोद प्रदर्शन करते लोग 

गर्मी बढ़ने से सुबह से गंभीर हाल में बच्चों को अस्पतालों में लाए जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। इसकी रोकथाम को लेकर अब तक जो भी प्रयास किए जा रहे हैं वो स्थिति को देखते हुए नाकाम साबित हो रही है। चमकी से मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएचकेजरीवाल अस्पताल के वार्ड-आईसीयू फुल है, हालत ये हो गई है कि इन अस्पतालों में एक-एक बेड पर दो दो मरीज़ है।

इसी बीच आज, मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी कुछ होश आया और वे बीमारी का जायजा लेने मुजफ्फरपुर पहुंचे। मुख्यमंत्री शनिवार से ही नयी दिल्ली में थे और सोमवार की शाम पटना लौटे। लौटने के बाद उन्होंने दिमागी बुखार के कारण पैदा हालात पर अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक भी की।

बैठक के बाद सरकारी महकमा कुछ हरकत में आया और प्रदेश सरकार ने कहा कि चमकी बुखार से पीड़ित सभी बच्चों के इलाज का खर्च बिहार सरकार उठाएगीफिर चाहे इलाज सरकारी अस्पताल में हो या निजी अस्पताल में।

लेकिन नीतीश मंगलवार को हालात का जायजा लेने के बाद वहां मौजूद लोगों से मिले बगैर चले गए। इससे पहले से नाराज वहां मौजूद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने “नीतीश कुमार वापस जाओ” के नारे लगाने शुरू कर दिए। लोगों ने उनके विरोध में जमकर प्रदर्शन किया।

गौरतलब है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री पहले ही एसकेएमसीएच का दौरा कर चुके हैं। फरियाद करने आए लोगों में एक ने कहा कि हमने मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल में शामिल स्थानीय विधायक सुरेश शर्मा से मुलाकात कर अपनी बात रखने का प्रयास किया पर अधिकारियों ने उनसे मिलने नहीं दिया। हम उनकी गाड़ी के सामने भी गए लेकिन उनका काफिला तेजी से वहां से निकल गया।

विरोध और प्रदर्शन करने वालों का आरोप है कि मुख्यमंत्री की नींद बीमारी के महामारी बनने के 15 दिन बाद खुली है। उन्होंने अस्पताल में दवा और चिकित्सकों सहित अन्य आवश्यक संसाधनों की कमी का आरोप लगाते हुए कहा कि राजनीतिक तबका आ रहा हैअस्पताल का दौरा कर रहा है और वादे करके लौट जा रहा है। लेकिन बच्चों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है।

प्रदर्शनकारियों का कहना हैउन्हें बड़ी उम्मीद थी मुख्यमंत्री उनसे मुकालत करेंगे और उनकी बात सुनने के साथ उनका ज्ञापन ग्रहण करेंगे और कोई बड़ी घोषणा करेंगेलेकिन वह चुपके से निकल गए।

'अस्पतालों में संसाधन और डॉक्टर की कमीसरकार गंभीर नहीं'

राजद की नेता राबड़ी देवी ने आरोप लगाया कि राजग सरकार की घोर लापरवाहीकुव्यवस्थामहामारी को लेकर मुख्यमंत्री में उत्तरदायिता की कमीअसंवेदनशीलता और अमानवीय व्यवहार के कारण ग़रीबों के 100 से ज़्यादा मासूम बच्चों की चमकी बुखार के बहाने हत्या की गयी है।

उन्होंने ट्वीट किया है कि 14 बरस से ये लोग बिहार में राज कर रहे हैं। हर साल बीमारी से बच्चे मरते हैं। फिर भी रोकथाम का कोई उपाय नहींसमुचित टीकाकरण नहीं। दवा और इलाज का सारा बजट ईमानदार सुशासनी घोटालों की भेंट चढ़ जाता है। बिहार का बीमार स्वास्थ्य विभाग ख़ुद आईसीयू में है।

चमकी बुखार से हो रही मौत और पीड़ित बच्चों के देखने के लिए लगातार पार्टियों के नेताओं के आने का सिलसिला जारी है। शनिवार को सबसे पहले राष्ट्रीय जनता दल की टीम दोनों अस्पतालों में पहुंची। इसमें राजद के अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वेसाहेबगंज के विधायक पूर्व मंत्री रामविचार रायऔराई विधायक सुरेन्द्र राय पहुंचे। प्रोफेसर पूर्वे ने कहा कि एसकेएमसीएच में संसाधानों की भारी कमी है। इसके अलावा कई अन्य दलो के नेता भी अस्पताल गए और मरीज बच्चों का हाल जाना। सभी ने इस पूरी घटना को सभांलने में सरकर को विफ़ल बताया। सभी ने एक बात कही कि अस्पतालों में संसाधन और डॉक्टरों की भारी कमी है और सरकार गंभीर नहीं है।

ये कोई पहली बार नहीं हुआ है इससे पहले 2014 में भी बच्चों की मौत हुई थी। इसके पहले के सालों में भी ये सिलसिला जारी रहा। सरकार बार-बार जागरूकता और इलाज के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन ये हर बार फेल हो जाते हैं।

(भाषा के इनपुट के साथ)

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