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#MeToo आंदोलन मर्दाना पशुता से लड़ने की कोशिश

औरतों के साथ उनके काम के दौरान होने वाले यौनिक दुर्व्यवहार का नहीं बल्कि उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का नाम है मीटू (#MeToo) यानी मैं भी...सिर्फ एक भुक्तभोगी नहीं बल्कि इस लड़ाई की एक यौद्धा।
प्रतीकात्मक तस्वीर।
Image Courtesy: InUth

पिछले  साल नवम्बर का महीना! फेसबुक की वर्चुअल वॉल को मैं अपने फ़ोन पर देख ही रहा था कि मेरी नज़र एक स्टेटस पर आकर जम गई। पोस्ट मेरे साथ आईआईएमसी में पढ़ी एक लड़की ने लिखी थी। पोस्ट अपने आप में एक आपबीती थी कि किस तरह उसके बगल में रहने वाले 'दादू' ने मात्र सात साल की उम्र में उसके प्राइवेट अंगों के साथ बर्बरता की थी। एक ऐसा ही वाकया दस साल की उम्र में दोहराया गया जब उसके ट्यूटर ने पेंटिंग सिखाने के बहाने फ्रॉक के नीचे हाथ डाला। पोस्ट जितना अंदर तक हिलाने वाली थी, उतनी ही हिम्मत बंधाने वाली भी। वो अपने अंदर की सालों की घुटन को निकाल पा रही थी। दरअसल, उसको ये हिम्मत पूरी दुनिया मे चल रहे #MeToo आंदोलन की वजह से मिल रही थी। इस जैसी कितनी ही कहानियां इंटरनेट पर न सिर्फ कहीं और शेयर की जा रही थी बल्कि उनका प्रभाव भी अप्रत्याशित था।

इस आंदोलन की  शुरुआत हुए तकरीबन साल भर हो गया है। हॉलीवुड की दुनिया से जन्मा यह आंदोलन अब भारतीय मनः स्थिति को भी झकझोर रहा है। इस आंदोलन से पनपी हिम्मत की वजह से वे महिलाएं जो अपने काम के क्षेत्र में कामयाब रहीं है लेकिन महिला होने की वजह से अपने निजी जिंदगी में पुरुषों की तरफ से किसी भी तरह के यौन उत्पीड़न का शिकार हुईं हैं, वह अपने निजी जीवन के अनुभवों को खुलकर साझा कर रही हैं। यह मुखरता  बहुतों को अखर रही है तो  बहुत इसका स्वागत भी कर रहे हैं।

व्यापक अर्थों में समझें तो औरतों के साथ उनके काम के दौरान होने वाले यौनिक दुर्व्यवहार का नहीं बल्कि उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का नाम है मीटू (#MeToo) यानी मैं भी...सिर्फ एक भुक्तभोगी नहीं बल्कि इस लड़ाई की एक यौद्धा।

कैसे हुई शुरुआत?

अक्टूबर की एक शाम हॉलीवुड अदाकारा एलीसा मिलानो को सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर एक मैसेज मिला। मैसेज में लिखा था कि अगर आपके साथ यौन उत्पीड़न की घटना या उसकी कोशिश हुई है तो आप इसके जवाब में #MeToo ट्वीट करें। मिलानो 15 अक्टूबर की रात को ऐसा ही ट्वीट करने के बाद सो गईं। वह जब सुबह उठीं तो उन्होंने पाया कि उनका ट्वीट तीस हजार लोगों ने रिट्वीट किया था। यह लम्हा उनके लिए कई तरह के एहसास से भरा हुआ था। दुनिया भर की कई औरतों ने उनके साथ अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी।

MeToo शब्द का प्रयोग पहली बार सामाजिक कार्यकर्ता तराना ब्रुक ने एक दशक पहले किया था। वे अब इस शब्द का इस्तेमाल यौन उत्पीड़न का शिकार हुई औरतों को एक साथ लाने के लिए कर रही हैं।

मिलानो के ट्वीट से दस दिन पहले दूसरी हॉलीवुड अदाकारा एसली जूड ने न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में मशहूर प्रोड्यूसर और मीरामैक्स स्टूडियो के चीफ हार्वी विन्स्टीन के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। उनके इंटरव्यू ने पूरी फिल्मी दुनिया में सनसनी मचा दी। महिला कलाकार अपने साथ हुई घटनाओं के बारे में दबी जुबान में बोलती तो रहीं थी लेकिन किसी अभिनेत्री ने पहली बार खुलेआम किसी आरोपी का नाम लिया था।

भारतीय पक्ष 

हमारे समाज  में मर्द और औरत केवल दो जेंडर का नाम ही नहीं है, बल्कि दो तरह के कामों और भूमिकाओं का भी नाम है। इन्हें आप थोपे गए काम या भूमिका कह सकते हैं। ज़्यादातर मर्द बचपन से मिले अपने “मर्दाना संस्कार” के सामने औरतों के खुलेपन के साथ सही से ताल-मेल नहीं बिठा पाते, वहीं ऐसा भी होता है कि कुछ मर्द अपनी समझ और माहौल की स्वछंदता में औरत द्वारा खुद के  लिए खींची गयी सीमा को भी पार कर जाते हैं। इस तरह से भारतीय परिप्रेक्ष्य में औरतों के साथ उनके काम के दौरान होने वाली यौनिक बदसलुकियों  के लिए जिम्मेदार कारक के रूप में  मर्दों में बचपन से ताकत के तौर पर जम रहे घिनौने मर्दाना संस्कार, औरतों को अपने से कमतर समझने की समझ से लेकर कई तरह की नासमझी तक काम करती है। इसी के बीच बहुत मर्द और औरत दोनों नहीं जानते हैं कि उनकी एक-दूसरे के प्रति आजादी और सीमाएं कहाँ से शुरू और कहाँ पर खत्म होती हैं। 

यहाँ भारत में पिछले शुक्रवार #MeToo आन्दोलन पर खुलकर बोला गया। अपने जीवन में ख़ास मुकाम पर पहुँच चुकी महिलाओं ने पत्रकारों, कॉमेडियन, लेखको से लेकर फिल्म निर्देशकों के खिलाफ अपने साथ बदसलूकी के आरोप लगाए। 

हफ़िंगटन पोस्ट इंडिया को दिए इंटरव्यू में फ़ैंटम प्रोडक्शन हाउस की पूर्व महिलाकर्मी ने फिल्मकार  विकास बहल पर मई 2015 में गोवा के एक होटल में यौन हमले का आरोप लगाया है।

उस महिला ने कहा है कि यौन हमले की शिकायत उन्होंने फैंटम प्रोडक्शन के सहसंस्थापक  अनुराग कश्यप से की थी, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। उस महिला ने 2017 में फ़ैंटम को छोड़ दिया था।  इस शिकायत की पुष्टि करते हुए अनुराग कश्यप ने हफ़िंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में कहा है कि जो भी हुआ वो ग़लत था। 

उन्होंने कहा है, ''हमलोगों ने इस मामले को ठीक से हैंडल नहीं किया। हम पूरी तरह से नाकाम रहे। मैं ख़ुद के सिवाय किसी और पर आरोप नहीं लगा सकता हूं। लेकिन मैं अब इसे ठीक से हैंडल करने को लेकर प्रतिबद्ध हूं। मुझे उस महिला पर पूरा भरोसा है। उस महिला को मेरा पूरा समर्थन है। बहल ने जो भी किया वो डराने वाला है। हमलोग पहले से ही चीज़ों को ठीक करने में लगे हैं। हम इस मामले में जितना कुछ कर सकते हैं, ज़रूर करेंगे।''

अब अनुराग कश्यप ने फ़ैंटम प्रोडक्शन हाउस को ख़त्म करने की घोषणा ट्विटर पर कर दी है।

नेशनल अवार्ड  फिल्म के निर्देशक हंसल मेहता ने कहा है कि वो एक पिता होने के नाते इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उनकी बेटी को फ़िल्म इंडस्ट्री में आना चाहिए या नहीं। 

इस बीच, एक महिला ने अंग्रेजी लोकप्रिय लेखक चेतन भगत से हुई बातचीत के स्क्रीनशॉट्स को सोशल मीडिया पर साझा किया है।  महिला के साथ बातचीत में चेतन अपने प्रेम को जाहिर कर रहे हैं और अपनी शादी को भूल बता रहे हैं।  इसके तुरंत बाद चेतन भगत ने फ़ेसबुक एक पोस्ट लिखकर माफ़ी मांगी।  चेतना ने कहा है, ''मुझे मज़बूत जुड़ाव महसूस हो रहा था।  शायद मैं मित्रतापूर्ण संबंध को समझ नहीं पाया। मैंने इसे लेकर अपनी पत्नी से भी माफ़ी मांगी है।'' डीएनए के प्रधान सम्पादक  गौतम अधिकारी पर एक महिला ने  बिना अनुमति के किस करने का आरोप लगाया है। गौतम अधिकारी का कहना है कि उन्हें उस वाक़ये के बारे में याद नहीं है।  टाइम्स ऑफ इंडिया के हैदराबाद के रेजिडेंट एडिटर केआर श्रीनिवास पर भी कई महिलाओं ने दुर्व्यवहार के आरोप लगाए हैं। 

इस मामले में शनिवार को टाइम्स ऑफ इंडिया के पब्लिशर बीसीसीएल ने एक बयान जारी कर कहा है कि वो इसकी जांच कर रहा है और अगर ऐसा हुआ है तो बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

हिन्दुस्तान टाइम्स की एक पूर्व कर्मी ने ट्विटर पर अख़बार के राष्ट्रीय राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ़ प्रशांत झा के व्यवहार को असहज करने वाला बताया है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने प्रशांत को प्रबंधकीय जिम्मेदारी से मुक्त करते हुए कहा है कि इसकी जांच शुरू की जा रही है।

सबसे ज्यादा सुर्खियों में अभिनेत्री तनुश्री दत्ता और अभिनेता नाना पाटेकर का मामला है। तनुश्री ने नाना पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। यह वाकया साल 2008 का है। अभनेत्री तनुश्री दत्ता अपने साथ हुई इस घटना की शिकायत पहले भी कर चुकी  हैं।  कुछ नहीं होने पर उन्होंने इस घटना को सार्वजनिक किया। 

इन सभी मामलों में यह बात उभर कर सामने आती है कि काम करने वाली जगहों पर यौनिक  दुर्व्यवहारों की घटनाओं से कैसे निपटा जाए। एक संगठन अपने भीतर उठने वाले  यौनिक दुर्व्यवहारों से जुड़े घटनाओं के लिए भंवरी देवी मामले से बने कानून कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने से सम्बंधित अधिनियम का पालन करता है या नहीं। इस कानून के तहत  यौन उत्पीड़न रोकने के लिए  संगठन के भीतर अनिवार्य तौर पर इंटरनल कमेटी को बनाया जाता है या नहीं। और यहाँ पर मामलों का किस  तरह से  और कितनी देर में निपटान होता है। 

इस कानून के होते हुए भी #MeToo आंदोलन  मर्द और औरत के बीच बनने वाले हमारे समाज के रोजाना के रिश्तों पर कई तरह के सवालिया निशान लगाता है। बताता है कि मर्द और औरत के बीच के रिश्तों में बहुत कुछ ऐसा भी दबा  होता है जिनके उजागर होने पर किसी औरत को लांछित किया जा सकता है तो किसी मर्द को बदनाम किया जा सकता है। आज के समय में जब  सोशल मीडिया अभिव्यक्ति के जरिये सशक्ति का मजबूत माध्यम बन गया है तब औरतों की तरफ से उठी ऐसी आवाजे संबल देती हैं कि हमारे समाज में चुपचाप सड़ रहा, बहुत कुछ साफ़ होगा। वहीं पर यह डर भी लगा रहता है कि  सार्वजनिक तौर पर इस तरह से की गयी बातें किसी की छवि को बदनाम करने के काम भी आ सकती है। इसलिए इन मामलों का उजागर होना इस तरफ इशारा करता है कि हमारी सामज की संरचनाओं  में मर्द और औरत के बीच संवाद की बहुत कमी है। एक उम्र के बाद संवाद के तौर पर एक दूसरे के साथ होने पर खुद संभाल नहीं पाती है और कब आपसी आजादी और सीमाओं को लांघकर  मर्दाना पशुता में बदल जाती है, इसका पता नहीं चल पाता। 

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