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कोयला खनन से उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए मोदी सरकार ने पेश किया संशोधन विधेयक 

केंद्र सरकार ने एक विधेयक तैयार किया है जिसमें कॉरपोरेट्स को वाणिज्यिक कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण में एलएआरआर अधिनियम, 2013 से मुक्त रखा जाएगा।
कोयला खनन से उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए मोदी सरकार ने पेश किया संशोधन विधेयक 
प्रतीकात्मक तस्वीर। चित्र साभार: ब्लूमबर्ग 

क्या मोदी सरकार अस्पष्टता में गुंथे हुए कोयला खनन सुधारों के एक सेट के जरिये निजी निगमों को लोगों के अधिकारों की कीमत पर भूमि हथियाने में मदद करने के प्रयास में जुटी है? केंद्र सरकार एक ऐसे संशोधन विधेयक के साथ तैयार है, जिसके मुताबिक इस क्षेत्र को पिछले साल निजी खिलाड़ियों के लिए वाणिज्यिक खनन के लिए खोले जाने के बाद जिन कॉर्पोरेट दिग्गजों ने कोयला खदानों के लिए सफलतापूर्वक बोली लगाई थी, वे उन नियमों को दरकिनार कर सकते हैं जिसमें जब कभी भी खनन या औद्योगिकीकरण के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जाता है, तो स्थानीय आबादी के लिए उचित मुआवजे को सुनिश्चित किया गया था।

विधेयक–कोयला संभावित क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) संशोधन विधेयक, 2021-22 जिसे संसद के जारी मानसून सत्र के दौरान पेश किया जाना तय है, जब पारित हो जायेगा, तो निजी कंपनियों को सामाजिक प्रभाव आकलन करने, बहुसंख्य आबादी से मंजूरी प्राप्त करने और कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण करने से पहले प्रभावित लोगों को पर्याप्त मुआवजा देने से छूट मिल जाएगी। वर्ष 2013-14 में लागू किये गए ऐतिहासिक भूमि अधिग्रहण विधेयक के प्रावधान जिन्हें प्रचलित रूप में एलएआरआर अधिनियम, 2013 के नाम से जाना जाता है, अब इन कॉरपोरेट्स बड़े लोगों के ऊपर लागू नहीं होंगे, जब वे नीलामी के जरिये जीते गये भूखंडों से कोयला निकालने के लिए भूमि लेते हैं।

इससे पूर्व, कोयला खनन के उद्देश्य के लिए 2013 भूमि अधिग्रहण अधिनियम में यह छूट सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए उपलब्ध थी। लेकिन नवीनतम विधेयक में इस छूट को निजी कंपनियों तक विस्तारित करने के अलावा, अधिग्रहित भूमि से सभी खनिजों को निकालने के बाद भी अन्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करने की मांग का भी प्रयास करता है।

तीन संशोधनों के समूह में से एक प्रावधान में कहा गया है कि “अधिनियम के तहत अधिग्रहित की गई भूमि के प्रावधानों को विशिष्ट रूप से कोयला खनन कार्यों एवं सम्बद्ध या सहायक गतिविधियों में उपयोग किया जायेगा जैसा कि केंद्र सरकार के द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है और अधिग्रहित की गई भूमि को उपयोग के लिए प्रदान करने के लिए, जहाँ कोयले का खनन पूरा हो गया हो/खनिज कोयला मुक्त या वह भूमि जो कोयला विकास संबंधी गतिविधियों और अन्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य या व्यावहारिक रूप से अनुपयुक्त हैं, इत्यादि शामिल हैं।” 

विशेषज्ञों के मुताबिक, संशोधनों के इस सेट में “संबद्ध या सहायक गतिविधियों” का अर्थ कोयला परिवहन एवं भंडारण के नेटवर्क हो सकता है। किन्तु कोयला संभावित अधिनियम, 1957 सड़कों, रेलवे या यहाँ तक कि कोयला भण्डारण सुविधाओं के निर्माण तक के लिए भूमि के अधिग्रहण की इजाजत नहीं देता है। इन संशोधनों में उन आधारों पर कोई स्पष्टता नहीं है जिन पर कोयला खनन के लिए अधिग्रहित भूमि को कोयला खनन गतिविधियों के लिए “आर्थिक तौर पर व्यवहार्य नहीं” या “व्यावहारिक रूप से अनुपयुक्त” माना जायेगा। और फिर “सार्वजनिक उद्देश्य” की अवधारणा, जिसके लिए कोयला निकासी के बाद भूमि का इस्तेमाल किया जाने वाला है, जो कि भारत में लंबे अरसे से अस्पष्ट बनी हुई है, जिसमें अनेकों अदालती मामलों में सरकारों पर इस शब्द की संकीर्ण व्याख्याओं से चिपके रहने के आरोप लगते रहते हैं, ताकि समूची जनता के बजाय निहित स्वार्थों को मदद पहुंचे।

उल्लेखनीय रूप से, विभिन्न श्रेणियों वाली कोयला संभावित भूमि की अवधारणाएं – जिनमें “आर्थिक रूप से अव्यवहारिक” या कोयला विकास गतिविधियों के लिए “अनुपयुक्त” भूमि शामिल हैं, जैसा कि सरकार द्वारा इस संशोधन विधेयक के जरिये पृथक करने की कोशिश की गई है, में – कोल बेअरिंग एक्ट, 1957 शामिल नहीं है। “सार्वजनिक उद्देश्य” की अवधारणा भी पूर्व के अधिनियम में नजर नहीं आती है।

सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील संजय पारिख का इस बारे में कहना था कि “कोयला खनन गतिविधियों के लिए जिस भूमि को अनुपयुक्त माना गया है, ऐसा प्रतीत होता है कि वह वनों की श्रेणी या किसी अन्य श्रेणियों से संबंधित हो सकता है। इन जमीनों पर रहने वाले लोगों के विस्थापन का मुद्दा बना हुआ है। आदिवासी समुदायों को अपनी आजीविका के स्रोत के रूप में वनों तक अपनी पहुँच के अधिकार को खोना पड़ सकता है, जैसा कि वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्हें आश्वासन मिला हुआ है।”

क़ानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, द कोल बेअरिंग एक्ट, प्रख्यात अधिकार क्षेत्र के सिद्धांत पर आधारित है, जिसके तहत सरकार के पास यह शक्ति है कि वह निजी भूमि को अपने कब्जे में लेने और इसके इस्तेमाल को सार्वजनिक उपयोग के लिए परिवर्तित कर सकती है। इस अधिनियम को इस बिना पर तैयार किया गया था कि सारे देश की उर्जा सुरक्षा के लिए कोयले की आवश्यकता है। इसी सिद्धांत के आधार पर कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम,1973 द्वारा देश में कोयले का राष्ट्रीयकरण किया गया था। हालाँकि, इसके विपरीत, कॉर्पोरेट क्षेत्र को आवंटित कोयला भू-खंड को अंतिम-उपयोग प्रतिबंधों के बिना ही आवंटित कर दिया गया है, जिसका आशय है कि सफल बोली लगाने वालों को निकाले गए खनिज संसाधनों को किसी को भी बेचने की आजादी है, जो कोई भी उन्हें इसके सबसे बढ़िया दाम देता हो। जहाँ एक तरफ कॉर्पोरेट क्षेत्र को कोयले की वाणिज्यिक बिक्री के माध्यम से मुनाफा कमाने का आश्वासन दिया जाएगा, वहीँ दूसरी तरफ एलएआरआर अधिनियम के प्रवधानों में हेराफेरी कर भूमि के मालिकों को वांछित वित्तीय मुआवजे से वंचित किये जाने की संभावना है, जो उन्हें अधिग्रहित भूमि के बाजार मूल्य से कम से कम चार गुना की दर से चुकाने का आश्वासन देता है।

बहरहाल, केंद्र सरकार तो भूमि संबंधी छूट के दायरे को और अधिक क्षेत्रों में भी विस्तारित किये जाने की गुंजाइश को तलाश रही है जिसमें इस सेट के माध्यम से कोल बेअरिंग एक्ट, 1957 के तहत लिग्नाइट संभावित क्षेत्रों को इसमें शामिल करना चाहती है, जिसे संसद के जारी सत्र में चर्चा के लिए उठाया जायेगा।

पारिख के अनुसार “आम तौर पर केंद्र सरकार का कोयले के उपर नियंत्रण हुआ करता था। भले ही भूमि को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी द्वारा कोयला खनन के लिए लीज पर दिया गया हो, लेकिन लीजहोल्ड का अधिकार राज्य सरकार के पास ही बना रहता है। केंद्र सरकार इस दौरान राज्य सरकार की पट्टेदार बन जाती थी। लेकिन इस प्रकिया में, जिसे शुरू किया जा रहा है, अंततः एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होने जा रही है जिसमें सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहने जा रहा है। स्वाभाविक तौर पर, जैसा कि हमारे सामने पिछले अनुभवों से स्पष्ट है, समाज के कमजोर तबकों को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना होगा।”

वास्तव में, इस प्रकिया को केंद्र सरकार ने शुरू किया था, जिसका उल्लेख पारिख ने किया है, जब पिछले साल के अंत में छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थानीय लोगों और कार्यकर्ताओं की बेहद नाराजगी के बावजूद 700 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण को अधिसूचित करने के लिए कोल बेअरिंग एक्ट का इस्तेमाल किया गया था। इस बारे में सरकार की ओर से कोई स्पष्टता नहीं थी कि क्या इस अधिग्रहण से पहले ग्राम सभाओं से मंजूरी ली जाएगी या नहीं, क्योंकि आदिवासी आबादी की बहुलता के चलते यह क्षेत्र अनुसूची V के रूप में नामित किया गया है। छत्तीसगढ़ के वकील और कार्यकर्त्ता सुदीप श्रीवास्तव ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कोरबा में स्थानीय लोग आज भी इस मुद्दे को लेकर आंदोलन कर रहे हैं क्योंकि ग्राम सभाओं से सहमति कभी भी नहीं ली गई। 

पूर्व नौकरशाह ईएएस सरमा के कहा कि “कोल बेअरिंग एक्ट में संशोधन के इस सेट में, न तो पेसा अधिनियम (अनुसचित क्षेत्रों के लिए पंचायत विस्तार अधिनियम, 1996) या वन अधिकार अधिनियम, 2006 का ही कोई सन्दर्भ लिया गया है, जो कि निर्णय लेने के लिए अनुसूचित V क्षेत्रों में ग्राम सभाओं के लिए प्राथमिकता की आवश्यकता को प्रधानता देता है। उन्होंने आगे कहा “वैसे भी अब वास्तव में कोयला खनन व्यवहार्य नहीं रहा क्योंकि थर्मल पॉवर संयंत्रों की उत्पादन क्षमता उपयोग में असंतुलित उत्पादन मिश्रण के कारण कमी आई है।”

भारत में, अधिकांश कोयला भू-खंड उन क्षेत्रों में स्थित हैं, जहाँ पर आदिवासियों (अनुसूचित जनजाति) एवं अन्य पारंपरिक वनवासी समुदाय सहित आबादी के सबसे अधिक हाशिये पर रह रहे लोग और वंचित वर्ग आबाद हैं। अधिकांश कोयला संपन्न क्षेत्र निकटवर्ती जंगलों की श्रृंखलाओं से आच्छादित क्षेत्र भी हैं, जैसे कि छत्तीसगढ़ में हसदेव अरंड जहाँ कोरबा जिला पड़ता है।

रांची स्थित वकील रश्मि कात्यायन का इस बारे में कहना है, “अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल करने के लिए एक मानदंड यह है कि उनके पास एक निरंतर क्षेत्र होना चाहिए। इस तरीके से भूमि से आबादी को हटाने का नतीजा यह होगा कि समुदायों का अपने क्षेत्रों से अधिकार छिन जायेगा और परिणामस्वरूप उन्हें अनुसूचित जनजाति के दर्जे से वंचित हो जाना पड़ेगा। इससे एक ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है, जहाँ ये क्षेत्र अपनी अनुसूची V के दर्जे और संवैधानिक संरक्षण से मरहूम हो सकते हैं। एलएआरआर अधिनियम, 2013 अनुसूचित जनजाति समुदायों की इस प्रकार के नुकसान से रक्षा करता है। इस परिस्थिति में, भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत गठित जनजाति सलाहकार परिषदों का यह दायित्व है कि वे अनुसूचित जनजाति के समुदायों को उनके कल्याण और उन्नति से संबंधित मुद्दों पर उचित सलाह मशविरा दें।” 

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Modi Government Introduces Amendment Bill to Help Corporates Profit from Coal Mining

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