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नीला एक जटिल रंग है!

किसी भी वर्णक को नीला दिखाई देने के लिए उसे लाल प्रकाश को अवशोषित करने की आवश्यकता होती है जिसे निकटवर्ती ऊर्जा स्तर की आवश्यकता होती है जो केवल अणुओं में पाया जाता है। यह तैयार करना बहुत जटिल और कठोर होता है।
नीला रंग

पूरा आकाश नीला दिखाई देता है, महासागर नीले दिखाई देते हैं लेकिन नीले रंग का वर्णक तैयार करना पूरे इतिहास में एक कठिन काम रहा है। और न केवल मानव-निर्मित नीला वर्णक दुर्लभ है बल्कि ये नीला प्रकृति में भी दुर्लभ है। मानव ने लाल और पीला-गेरूआ से कम से कम 1,00,000 साल पहले वर्णक बनाना शुरू किया था लेकिन नीला वर्णक प्राप्त नहीं कर सका। चमकदार नीले रंग की कायांतरित चट्टान लापीस लाज़ुली का उपयोग प्राचीन काल से एक अल्प मूल्यवान पत्थर के रूप में किया गया है। बेबीलोन और मिस्र के लोग सामग्री रंगने के लिए अपनी मूर्तियों और भित्तिचित्रों में लापीस लाज़ुली के टुकड़ों का इस्तेमाल किया करते थे। हालांकि इससे वर्णक बनाना एक कठिन कार्य था; गहरा नीला रंग प्राप्त करने के लिए लापीस लाज़ुली को पाउडर बनाने के लिए पीसा जाता था तब पेंटिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता थ। नीला वर्णक प्राप्त करने की यह विधि छठी शताब्दी ई.पू. में खोजी गई।

तुर्की में कैटल ह्यूक के समाधि स्थल से हाल में मिले सबूतों से पता चला है कि लोग लगभग 9,000 साल पहले बारीक पाउडर के लिए नीले खनिज अज़ूराइट पीसते थे। निष्कर्षों से पता चलता है कि अज़ूराइट उन दिनों सौंदर्य प्रसाधनों में भी इस्तेमाल किया जाता था।

कृत्रिम नीले रंग की तलाश प्राचीन काल से अब तक जारी है

पहली बार कृत्रिम नीला रंग मिस्रवासियों ने ईजाद किया था जिसे 'मिस्र का नीला रंग' कहते हैं। उन्होंने लगभग 5,000 साल पहले इसे बनाने के लिए रेत, पौधे की राख और तांबे को मिलाया था। विज्ञान में इस रंग का विकासक्रम निम्नलिखित है जो नीले रंग की खोज को समझने में निश्चित रूप से मदद करेगा:

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उन्नीसवीं शताब्दी तक केमिस्टों ने कृत्रिम गहरा नीला रंग बनाने में तेज़ी दिखाई। कृत्रिम नीला के लिए काफ़ी प्रयास किए गए। ये गहरा नीला रंग पौधों से निकाला गया। जर्मनी में स्थित रासायनिक विशाल समूह बीएएसएफ़ ने नीले रंग के संश्लेषण के लिए लगभग 18 मिलियन गोल्ड मार्क्स का निवेश किया। यह राशि उस समय कंपनी की लागत से कहीं अधिक थी। ये नीला रंग उभरते हुए रासायनिक उद्योग के व्यापक खोज की एक वस्तु बन गई।

नील रंग का भारत में एक लंबा इतिहास रहा है, नीली क्रांति देश में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के ख़िलाफ़ पहले संगठित संघर्षों में से एक है।

 

भारत में नीली क्रांति

1859-60 में बंगाल में नील विद्रोह हुआ था जो ब्रिटिश बागान मालिकों के ख़िलाफ़ नील किसानों द्वारा किया गया विद्रोह था। रंग के रूप में नील उन दिनों यूरोप में बहुत लोकप्रिय हुआ करता था और अंग्रेज़ों ने नील की खेती के लिए एक नीति तैयार की जो किसानों से अधिक ब्रिटिश व्यापारियों का पक्ष लेती थी। किसानों को ग़ैर-लाभकारी दर पर नील बेचने के लिए मजबूर किया गया था ताकि ब्रिटिश बागान मालिकों के लाभ को बढ़ाया जा सके।

नील किसानों ने बंगाल के नादिया ज़िले में विद्रोह कर दिया जहाँ उन्होंने और अधिक नील उगाने से इनकार कर दिया। पुलिस ने इस विद्रोह को लेकर क्रूरता दिखाई। आख़िरकार 1860 के अंत तक नील की खेती बंगाल से पूरी तरह समाप्त हो गई थी।

 

नीले रंग के फूल और अकार्बनिक नीला की अकस्मात खोज

21वीं सदी में भी वैज्ञानिक नए नीले रंग के लिए पुरानी अनुसंधान को जारी रखे हुए हैं। 2004 में जापान के शोधकर्ताओं द्वारा विश्व का पहला नीला गुलाब विकसित करने का मामला सामने आया। लेकिन इसके ठीक बाद यह चिंता जताई गई कि यह उतना नीला नहीं था। इस अनुसंधान में प्रमुख वैज्ञानिक योशीकाज़ू तनाका ने भी इस बात पर सहमति जताई कि यह और नीला हो सकता है। लेकिन तनाका 15 साल के अथक प्रयास के बाद भी गुलदाउदी, गहरे लाल रंग या ट्यूलिप जैसे ताजे फूलों में नीले रंग को खोजने में अपना हाथ आज़मा रहे हैं। इनमें से कोई भी स्वाभाविक रूप से नीले रंग में नहीं होता है। पीले, गुलाबी और लाल रंग के विभिन्न रंगों में कई दशकों से गुलाब उगाया जाता है लेकिन कभी नीला रंग का नहीं होता है।

वर्ष 2009 में ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के मास सुब्रमण्यन मल्टीफ़िरोइक (एक ऐसी सामग्री जो चुंबकीय और इलेक्ट्रॉनिक गुणों का एक संयोजन है) को विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। सुब्रमण्यन की प्रयोगशाला में काम करने के दौरान एक छात्र ने कुछ अकार्बनिक रसायन मिलाया और यह पता चला कि यह मिश्रण गहरे नीले रंग में बदल गया। यह अकार्बनिक यौगिकों के मिश्रण की एक आकस्मिक खोज थी जो गहरे नीले रंग की सामग्री तैयार कर सकती है। YInMn नीला रंग के नाम से इस सामग्री ने अमेरिका के समाचार पत्रों में सुर्खियां बटोरीं। ये पदार्थ नीला है और अभी भी इसे बनाना बहुत मुश्किल है।

 

नीला इतना जटिल रंग क्यों है?

कोई भी वर्णक प्रकाश तरंग के अवशोषण और विकिरण के सिद्धांत के आधार पर अपना रंग दिखाता है। डाई या वर्णक नीला दिखाई दे इसके लिए लाल प्रकाश को अवशोषित करने की आवश्यकता होती है। ऐसा करने में फ़ोटॉन एक ऊर्जा स्तर से अगले ऊर्जा स्तर तक वर्णक में इलेक्ट्रॉनों को प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन लाल प्रकाश वह है जिसकी दृश्य तरंग में सबसे कम ऊर्जा होती है। इसलिए लाल प्रकाश द्वारा एक ऊर्जा स्तर से अगले ऊर्जा स्तर तक इलेक्ट्रॉन को प्रोत्साहित करने के लिए ऊर्जा स्तरों को एक साथ बहुत क़रीब होना चाहिए। इस प्रकार के निकटवर्ती ऊर्जा स्तर केवल अणुओं में पाए जाते हैं जो जीवों के लिए बहुत जटिल और कठोर होते हैं।

पौधों में भी हम हरे (क्लोरोफ़िल), नारंगी (कैरोटीनॉयड्स), लाल, पीले आदि विभिन्न वर्णक देख सकते हैं। लेकिन इस मामले में भी नीला दुर्लभ है। नीले रंग का उत्पादन करने वाला एकमात्र पौधा वर्णक एंथोसायनिन है।

मास सुब्रमण्यन की प्रयोगशाला में पाया गया आकस्मिक नीला रंग भी मिश्रण के जटिल रसायन विज्ञान के कारण हुआ था। नीला रंग पाँच ऑक्सीज़न परमाणुओं से घिरे मैंगनीज़ आयन द्वारा निर्मित होता है और यह संरचना दो पिरामिडों से मिलती-जुलती है जो अपने मूल रंग (एक दुर्लभ भूमिति जो प्राकृतिक खनिज में दिखाई देता है) में एक साथ चिपके होते हैं।

नीला अभी भी एक जटिल रंग बना हुआ है।

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