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चीन-सऊदी संबंधों के नए दौर से ईरान बौखलाया

तेहरान इस बात को अनदेखा नहीं कर सकता है कि शी की सऊदी अरब यात्रा की ऐतिहासिकता 1945 में अलेक्जेंड्रिया से तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट और सऊदी अरब के बादशाह अब्दुल अजीज के बीच गुप्त बैठक के बाद से पश्चिम एशिया में चल रहे इतिहास में निहित है।
New Era of China-Saudi Ties Riles Iran

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सऊदी अरब की हालिया यात्रा का स्वागत धूमधाम और समारोहपूर्वक किया गया जो जुलाई में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन की यात्रा के आसपास के तुच्छ और उदासीन माहौल के मुक़ाबले कहीं महत्वपूर्ण है। हालाँकि, इसका मुख्य अंतर यह है कि सउदी ने शी के लिए तीन अलग-अलग क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन आयोजित किए हैं जिसमें  द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के अलावा, 21 अरब नेताओं के साथ दूसरा शिखर सम्मेलन और जीसीसी देशों के सात शासकों के साथ तीसरा शिखर सम्मेलन शामिल है।

"थ्री-इन-वन" शिक्षर वार्ताओं ने एक बड़ा संकेत दिया है कि सऊदी अरब चीन की अरब विश्व कूटनीति के केंद्र में है। यह ऐतिहासिक यूएस-सऊदी गठजोड़ के लेन-देन संबंधी संबंधों के ठीक विपरीत है।

दरअसल, शी की यात्रा के दौरान होने वाले ऊर्जा और निवेश संबंधित लगभग तीन दर्जन सौदे सऊदी अरब और चीन के रणनीतिक हितों की बुनियाद को संरक्षित रखेंगे। ये सौदे सूचना प्रौद्योगिकी, हरित ऊर्जा, क्लाउड सेवाओं, बुनियादी ढाँचे और स्वास्थ्य जैसे सीमांत क्षेत्रों को शामिल करते हैं और रियाद के आर्थिक विविधीकरण धुरी (जिसे विज़न 2030 के रूप में जाना जाता है) और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के बीच मजबूती की एक बड़ी भावना की तरफ इशारा करते हैं। उद्योगों और उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे, जिसमें डिजिटल बुनियादी ढांचा शामिल है, जिसमें आने वाले दशकों में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को मजबूत करने की क्षमता है शामिल हैं।

जैसा कि एक चीनी टिप्पणी में उल्लेख किया गया है, बीजिंग के हरित हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा निवेश से रियाद की स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलने की उम्मीद की जाती है और साथ ही ये "अरब दुनिया में अनुकूल बुनियादी ढांचे को मजबूत करेंगे।" उदाहरण के लिए, चीनी तकनीकी दिग्गज हुआवेई के साथ हुए ऐतिहासिक समझौते को लें, जो सऊदी शहरों में उच्च तकनीक वाले परिसरों के लिए दरवाजे खोल देगा, जो कि कई खाड़ी देशों (जैसे, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और कतर) में चीन के 5जी विकास सहयोग के साथ जुड़े हुए हैं।

जैसा कि सऊदी अरब ऊर्जा क्षेत्र में अपनी प्राथमिकताओं को पश्चिम एशियाई क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन बढ़ाने पर चीन के साथ मिलाकर देखता है, सऊदी राज्य खुद को चीनी कारखानों के लिए एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में पेश कर रहा है। यह एक "जीत-जीत" जैसी स्थिति है, क्योंकि कई क्षेत्रीय अरब अर्थव्यवस्थाओं के विकास और रिकवरी की संभावनाओं के लिए स्थिर ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला महत्वपूर्ण हैं।

यह कहना काफी होगा कि भले ही नई विकास सहक्रियाएं और प्रस्तावित बहु-क्षेत्रीय सहयोग चीन-सऊदी व्यापक रणनीतिक साझेदारी को एक अलग लीग में रखते हैं, अरब क्षेत्र समग्र रूप से साझेदारी के परिवर्तनकारी प्रभाव से भारी लाभ हासिल करेगा।

शी की यात्रा के बाद जारी संयुक्त बयान सऊदी-चीनी संबंधों को "उनके अंतरराष्ट्रीय ढांचे में विस्तार करने और विकासशील देशों के लिए सहयोग, एकजुटता और पारस्परिक लाभ का उदाहरण स्थापित करने" के महत्व के बारे में रास्ता दिखाता है।

बयान में कहा गया है कि, “सऊदी पक्ष ने किंगडम में क्षेत्रीय मुख्यालय खोलने के लिए अंतरराष्ट्रीय चीनी कंपनियों को आकर्षित करने के महत्व पर भी जोर दिया है और इस संबंध में कई कंपनियों की रुचि की सराहना की क्योंकि वे किंगडम में अपना क्षेत्रीय मुख्यालय स्थापित करने के लिए लाइसेंस हासिल कर रहे हैं। अंततः दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लाभ के लिए असाधारण चीनी अनुभवों और क्षमताओं से लाभान्वित होंगे।स्पष्ट रूप से, विजन 2030 और बीआरआई के बीच एक "सामंजस्य योजना" पर हस्ताक्षर एक बड़ा गेम चेंजर है।

पहली बार चीन-जीसीसी शिखर सम्मेलन और चीन-अरब लीग शिखर सम्मेलन वर्तमान अंतरराष्ट्रीय माहौल में एक अलग ही घटना हैं और ये चीन और अरब देशों के बीच "सामूहिक सहयोग" की संभावनाएं पैदा करते हैं। वे सऊदी अरब और चीन द्वारा जीसीसी राष्ट्रों और चीन के बीच रणनीतिक साझेदारी संबंधों को मजबूत करने, जीसीसी और चीन के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते को समाप्त करने और अर्थव्यवस्था और व्यापार के मंत्रियों की जीसीसी-चीन बैठक को संस्थागत रूप देने के लिए संयुक्त कार्रवाई पर आंकी गई हैं जो  जीसीसी और चीन के बीच “6+1” का प्रारूप है।

समान रूप से, राजनयिक पक्ष पर, संयुक्त बयान में कहा गया है कि, "चीनी पक्ष ने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए किंगडम के सकारात्मक योगदान और उत्कृष्ट समर्थन की सराहना की है।"

विशेष रूप से उल्लेखनीय यह है कि यमन पर सऊदी रुख का चीन का मजबूत समर्थन यमन के राष्ट्रपति नेतृत्व परिषद का समर्थन करने के महत्व पर बल देता है।

अप्रत्याशित रूप से, शी की सऊदी यात्रा ने तेहरान में बेचैनी पैदा कर दी है। चीन की भागीदारी के लिए रियाद ने जो क्षेत्रीय गठबंधनों का जाल बुना है, वह विशेष रूप से अरब देशों का है। और तेहरान को जो बात सबसे ज्यादा खटकती है वह यह है कि सऊदी अरब और अरब गठबंधन पश्चिम एशियाई और अफ्रीकी क्षेत्रों में चीन की क्षेत्रीय रणनीतियों का सबसे महत्वपूर्ण खाका होगा।

ईरान संभवतः प्रतिद्वंद्वी शक्ति केंद्र के रूप में इस घटना का सामना नहीं कर सकता है। और यह ऐसे समय में हो रहा है जब ईरान आगे बढ़ रहा है क्योंकि खाड़ी क्षेत्र के उच्चस्तरीय और अमेरिका के साथ सऊदी अरब का निर्णायक गठबंधन निराशाजनक स्थिति में आ गया है।

सबसे निर्दयी बात तो यह है कि यद्यपि चीन जेसीपीओए वार्ता में एक भागीदार है, लेकिन संयुक्त बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने "ईरान को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ सहयोग करने, अप्रसार व्यवस्था को बनाए रखने और सम्मान पर जोर देने के लिए कहा है साथ ही अच्छा-पड़ोसी बने और देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत को अपनाने की सीख दी है।

कहीं और, संयुक्त बयान में ईरान के एक परोक्ष संदर्भ में कहा गया है, "चीनी पक्ष ने सऊदी की सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने में देश के प्रति समर्थन व्यक्त किया है और सऊदी अरब के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाली किसी भी कार्रवाई के विरोध की पुष्टि की है, साथ ही नागरिकों, नागरिक सुविधाओं, क्षेत्रों और सऊदी हितों को लक्षित करने वाले किसी भी हमले को खारिज किया है। 

हालाँकि, तेहरान ने इस सब को नज़रअंदाज़ करने का विकल्प चुना है और इसके बजाय चीन-जीसीसी संयुक्त बयान में अपनी नाराजगी को दूर करने के लिए एक विशेष मार्ग पर ध्यान केंद्रित किया है। इस वास्ते जारी प्रासंगिक सूत्रीकरण में कहा गया है कि: नेताओं ने तीन द्वीपों के मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान तक पहुंचने के लिए संयुक्त अरब अमीरात की पहल और प्रयासों सहित सभी शांतिपूर्ण प्रयासों के लिए अपने समर्थन की पुष्टि की है; ग्रेटर टुनब, लेसर टुनब और अबू मूसा, अंतरराष्ट्रीय कानून के नियमों के अनुसार द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से, और अंतरराष्ट्रीय वैधता के अनुसार इस मुद्दे को हल करने का आहवान किया है। 

प्रथम दृष्टया, यहां कुछ भी विस्फोटक नहीं है, लेकिन तेहरान ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि बीजिंग ने ईरानी रुख को नजरअंदाज किया कि यह मुद्दा "गैर-सम्झौतापरस्त" है और देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से संबंधित है।

ईरानी टिप्पणीकारों और अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि "ऐसा लगता है कि चीन विवाद का पक्ष ले रहा है।" ईरानी विदेश मंत्रालय में चीनी राजदूत को तलब किया गया और राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने चीन का जिक्र करते हुए नाराजगी जताई है। (फ़ारस की खाड़ी सहयोग परिषद की सड़ी हुई रस्सी पर चीन की गलत चाल के शीर्षक वाली तेहरान टाइम्स की उग्र टिप्पणी देखें।)

इस तमाशे को कहां तक गंभीरता से लिया जाना चाहिए, इस बिंदु पर बताना मुश्किल है। तेहरान की असली शिकायत दो गुना हो सकती है: एक, कि चीन-सऊदी संबंध गंभीरता हासिल  कर रहा है और यह ईरान को क्षेत्रीय राजनीति में एक दूसरे स्तर पर ले जा सकता है।

बेशक, ईरान की रूस के साथ एक आशाजनक साझेदारी है, लेकिन यह एक भू-राजनीतिक मैट्रिक्स है, जो प्रतिबंधों की शर्तों के तहत पश्चिम के साथ मास्को के टकराव के उतार-चढ़ाव के अधीन है। इस बीच, वियना में परमाणु वार्ता में गतिरोध "सामूहिक पश्चिम" की तुलना में ईरान के सामान्यीकरण में बाधा पेश करता है।

संयुक्त बयान केवल "रक्षा क्षेत्रों में सहयोग और समन्वय विकसित करने के उनके दृढ़ संकल्प" और दोनों देशों के "परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग" पर ध्यान देता है। लेकिन चीन और सऊदी अरब के बीच रक्षा संबंधों और परमाणु सहयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। कोई भी समझदार इस बात को जानता है कि, क्योंकि सउदी और चीनी अधिकारियों को कुछ प्रकार के लेनदेन के लिए स्थानीय मुद्राओं में भुगतान तंत्र के बारे में चर्चा करने के लिए जाना जाता है।

अंतिम विश्लेषण में, ईरान केवल स्वयं को दोष दे सकता है। इसने चीनी निवेश के लिए अपने 25 साल के 400 अरब डॉलर के रोड मैप के साथ सउदी अरब पर शुरुआती बढ़त हासिल की थी, लेकिन वह इसे खो चुका है, और चीन ने शायद यह अंदाज़ा लगा लिया होगा कि सऊदी अरब के पास निकट और मध्यम अवधि में ईरान की तुलना में आर्थिक भागीदार के रूप में पेश करने के लिए ईरान से कहीं अधिक है। 

सउदी जानते हैं कि जहां मुंह है वहां पैसा कैसे लगाया जाता है; वे हठधर्मी नहीं हैं; और, विजन 2030 मेगा परियोजनाओं का छत्ता है। और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के रूप में उनके पास एक निर्णायक नेतृत्व है। जहां तक चीन का सवाल है, उसकी अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है और निर्यात को बढ़ावा देने की सख्त जरूरत है।

दरअसल, द्विवार्षिक चीनी-सऊदी शिखर सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि प्रबंधन के शीर्ष-नीचे दृष्टिकोण, जो दोनों देशों की विशेषता है, की बारीकी से निगरानी की जाती है और जरूरतों के अनुसार उन्हे समायोजित किया जाता है। दूसरी ओर, ईरान, इसके कई निर्णय लेने के स्तरों और विरोधाभासी निरंकुश नीतियों को देखते हुए, एक तकलीफदेह भागीदार हो सकता है।

सबसे निश्चित रूप से, चीन अरब दुनिया में सऊदी अरब के दबदबे से भी आकर्षित है, क्योंकि महामारी के बाद के माहौल में बीआरआई के क्षेत्रीय स्वरूप से आगे बढ़ाने में मदद करने की क्षमता है।


तेहरान के पास चिंतित महसूस करने का कारण है कि क्षेत्रीय संतुलन सऊदी अरब के पक्ष में बदल सकता है। तेहरान इसे अनदेखा नहीं कर सकता है कि शी की सऊदी अरब यात्रा की ऐतिहासिकता 1945 में अलेक्जेंड्रिया से तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट और सऊदी अरब के बादशाह अब्दुल अजीज के बीच गुप्त बैठक के बाद से पश्चिम एशिया में चल रहे इतिहास के मनोरंजन में निहित है।

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