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नोम चोमस्की : न्रेतत्वकारी/अग्रणी आतंकवादी देश

"अब यह आधिकारिक तौर पर सर्वविदित है: कि अमरीका दुनिया का अग्रणी आतंकवादी देश है और उसे अपनी इस छवि पर गर्व है।”

अक्तूबर 15 के न्यूयॉर्क टाइम्स के अखबार की यही हैडलाइन होनी चाहिए थी, जिसकी जगह कुछ ज्यादा ही हल्की जो हैडलाइन दी गयी कि “सीआईए के अध्ययन के मुताबिक़ सीरियाई विद्रोहियों को दी गयी गुप्त सहायता करने के बारे में संदेह पैदा हुआ है।"

लेख सी.आई.ए की उस समीक्षा पर आधारित है जिसमें अमरीका अपने प्रभाव को जमाने के लिए गुप्त सहायता मुहैया कराता है। वाइट हाउस इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि सफलता इतनी दुर्लभ है कि उसे इस कार्यकर्म को जारी रखने के बारे में पुनर्विचार करना होगा।

“लेख में राष्ट्रपति ओबामा के कथन जिसमे उन्होंने कहा कि मैंने सी.आई.ए से कहा है कि वह इस बात की समीक्षा करे कि जिन देशों में “ बगावत के लिए वित्तीय सहायता दी गयी और हथियार भी पहुंचाए गए, क्या उसमें सही रूप से कामयाबी मिली है”? सी.आई.ए इस सम्बन्ध में कुछ ख़ास नतीजों पर नहीं पहुँच पायी।” इसलिए ओबामा इस तरह के प्रयासों को जारी रखने में थोड़ा अनिच्छुक नज़र आ रहे हैं।

                                                                                                                    

टाइम्स के इस लेख के पहले पैराग्राफ में “गुप्त सहायता” के सम्बन्ध में पहले तीन बड़े उदहारण दिए गए हैं। जिसमें अंगोला, निकारागुआ और क्यूबा शामिल है। तथ्य यह है कि अमरीका ने इन तीनों देशों में बड़ी आतंकवादी मुहीम चलाई थी।

अंगोला पर दक्षिण अफ्रीका द्वारा हमला किया गया था, जिसके बारे में वाशिंगटन ने कहा था कि दक्षिण अफ्रीका अपने आपको दुनिया के सबसे “बदनाम आतंकवादी समूह” से बचा रहा है और वह नेल्सन मंडेला की अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस है। यह 1988 की बात है।

तब तक केवल रीगन प्रशासन ही बचा था जो अकेले नस्लवादी निजाम को समर्थन का रहा था, यहाँ तक उसने कांग्रेस के द्वारा नस्लवादी निजाम पर लगाए गए प्रतिबंधों की भी परवाह नहीं की और वह दक्षिण अफ्रीका के साथ अपना गठजोड़ बढाता रहा।

इस दौरान वाशिंगटन ने दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर अंगोला में जोनास साविम्बी के आतंकवादी गुट उनीता को महत्त्वपूर्ण सहायता दी। वाशिंगटन ऐसा तब भी करता रहा जबकि अंगोला में हुए मुक्त चुनावों में साविम्बी बुरी तरह हार गई और दक्षिण अफ्रीका ने उससे अपना समर्थन वापस ले लिया था। साविम्बी एक “दानव था जिसने सत्ता के लालच में अपने ही लोगो को दुखों और परेशानियों के दलदल में झोंक दिया था।

नतीजे बहुत ही भयानक थे। संयुक राष्ट्र द्वारा 1989 में की गयी एक जांच में पाया कि दक्षिण अफ्रीका के विनाश ने पड़ोसी मुल्कों में करीब 15 लाख लोगों को मौत के घाट उतारा, और यह जो दक्षिण अफ्रीका में घट रहा था उससे भिन्न है। क्यूबा की सेना ने अंततः दक्षिण अफ्रीका के हमलों का डट कर मुकाबला किया और उन्हें मजबूर किया कि वे गैर-कानूनी ढंग से कब्ज़ा किये गए नामीबिया को आज़ाद कर दे। अमरीका अकेले ही दानव साविम्बी को समर्थन करता रहा।

क्यूबा में 1961 में बे ऑफ़ पिग्स में अमरीकी हमले के बाद राष्ट्रपति जॉन.ऍफ़.केनेडी ने क्यूबा के खिलाफ एक जानलेवा और विनाशकारी अभियान की शुरुवात की जिसके तहत उसने “धरती के सबसे खतरनाक आतंक” को क्यूबा लाने की कोशिश की – केनेडी के करीबी सहयोगी इतिहासकार आर्थर अच्लेसिंगेर ने अपनी अर्ध-सरकारी आत्मकथा में जिसे कि आतंकवादी युद्ध की जिम्मेदारी दी गयी थी, ने यह कहा।

क्यूबा के खिलाफ अत्याचार काफी संगीन थे। उनकी योजना थी कि अक्तूबर 1962 में आतंकवादी अभियान एक बड़े बदलाव में प्रकट हो जिससे कि अमरिका को क्यूबा में घुसपैठ का मौका मिल सके। अब तक सभी महानुभावों को पता चल चुका था कि रूसी प्रधानमंत्री निकिता ख्रुश्चेव ने क्यूबा में मिसाइलों को क्यों रखा था। एक ऐसे संकट को न्योता देना जिसकी वजह से परमाणु युद्ध के लिए खतरा पैदा हो सकता था। रोबर्ट म्च्नामारा ने बाद में माना कि अगर वह क्यूबा के नेता होता तो वह “अमरीकी घुसपैठ/हमले होने की संभावना जरूर रखता।”

क्यूबा के विरुद्ध अमरीका का हमला 30 सालों तक जारी रहा। क्यूबा को लागत महंगी पड़ी थी। पीड़ितों के बयान अमरीका में कभी सुने नहीं गए, उन्हें पहली बार विस्तार से कनाडा के विद्वान् किएथ बोलेंदर की “दूसरी तरफ की आवाज़: क्यूबा के खिलाफ आतंकवाद का एक मौखिक इतिहास” 2010 में जगह दी गयी।

लंबे समय से आतंकवादी युद्ध के भयानक नतीजों और एक कुचलने वाले प्रतिबंध, जोकि आज पूरी दुनिया के विरोध के बावजूद भी क्यूबा पर आमादा है। अक्तूबर 28 को संयुक राष्ट्र ने २३वी बार “क्यूबा के ऊपर लगे अमरीका द्वारा आर्थिक, वाणिज्यिक, वित्तीय प्रतिबंधों को हटाने की जरूरत” पर जोर दिया। क्यूबा के पक्ष में 188 देशों और विरोध में 2 देशों (खुद अमरीका और इजराइल) ने मतदान किया इसके अलावा अमरिका पर निर्भर तीन प्रशांत सागर के द्वीपों ने तटस्थ की भूमिका अदा की।

ए.बी.सी.न्यूज के अनुसार अब अमेरिका में भी कुछ उच्च स्थानों में प्रतिबंध के खिलाफ आवाज़ उठ रही है, क्योंकि अब यह कोई “फायदे का सौदा” नहीं है (जिसका हवाला हिल्लेरी क्लिंटन की नयी किताब “हार्ड चोइसेस” में दिया गया है)। फ्रांस के विद्वान् सलीम लमरानी अपनी 2013 की पुस्तक “क्यूबा के विरुद्ध आर्थिक युद्ध” में क्यूबा द्वारा अदा की गई कड़वी कीमत के बारे में समीक्षा की है।

निकारागुआ के बारे में कुछ ख़ास बताने की जरूरत नहीं है। राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन द्वारा निकारागुआ पर आतंकी हमले की विश्व अदालत ने जमकर भर्त्सना की है, जिसने अपने आदेश में अमरीका से “गैरकानूनी ढंग से सेना के इस्तेमाल” पर रोक लगाने के लिए कहा।

वाशिंटन ने 1986 के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर वीटो कर दिया और युद्ध को बढ़ा दिया जिस प्रस्ताव में संयुक राष्ट्र ने हर देश से अंतर्राष्ट्रीय कानून को ओबजर्व करने के लिए कहा था।

आतंकवाद का एक और उदहारण जिसकी 25वी सालगिरह 16 नवम्बर को मनाई जायेगी,है। इस दिन सैन सल्वाडोर में 6 जेसुइट पादरियों को सल्वाडोरन सेना की आतंकवादी इकाई ने मार दिया था, यहाँ तक कि उनकी आया और उसकी बेटी को भी मार दिया गया था।

इस घटना के साथ, 1980 के दशक में मध्य अमेरिका में अमेरिका के आतंकवादी युद्धों समापन हुआ, हालांकि अभी “गैरकानूनी शरणार्थी” के नामपर इसकी रिपोर्ट्स पहले पन्नों पर नज़र आती है, उस घटना के परिणामों से भागना कोई समाधान नहीं है और न ही अमरीका से जीवित रहने के लिए उनका निर्वासन। अब केवल एक ही रास्ता बचा है और वह है अपने देश में बचे हुए खंडहरों में रहना।  

वाशिंगटन आतंकवाद को पैदा करने वाला सबसे बड़ा खिलाड़ी है। सी.आई.ए के पूर्व विश्लेषक पॉल पिलर चेतावनी देते हैं कि सिरिया में “अमरीकी हमलों के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है”, और वह जिहादी संगठन जब्हत अल-नुसरा और इस्लामिक स्टेट को नयी मुहीम तय करने के लिए मजबूर कर सकता है जिसमें वे इसे “"इस्लाम के खिलाफ युद्ध मानेंगें और अमेरिका के हस्तक्षेप के खिलाफ मिलकर लड़ाई की तैयारी करेंगें।"

अमरीकी हमलों और कार्यवाहियों की वजह से अमरीका ने अफगानिस्तान से लेकर दुनिया के बड़े हिस्से में जिहाद को फैला दिया है। इस जिहाद की सबसे खतरनाक पैदाईश इस्लामिक स्टेट या आई.एस.आई.एस. है, जिसने अपने आपको इरान और इराक में जानलेवा खलीफा साबित कर दिया है।

“मेरी समझ में संयुक राज्य इस संगठन को पैदा करने में मुख्य है, पूर्व सी.आई.एके विश्लेषक ग्राहम फुलर जोकि क्षेत्र पर मुख्य टीकाकार है कहते हैं कि “अमरीका ने आई.एस.आई.एस. के गठन की योजना नहीं बनायी,” फिर आगे कहते हैं “लेकिन मध्य पूर्व में विनाशकारी दखल और इराक के खिलाफ युद्ध आई.एस.आई.एस. की उपज के पीछे मुख्य कारण रहे हैं।”

इसे हम दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी अभियान कह सकते हैं: ओबामा का “आतंकवाद” को खत्म करने की वैश्विक परियोजना। ड्रोन और विशेष सेना के द्वारा हमला से "असंतोष पैदा करने वाला प्रभाव" के चलते ये काफी जानी-पहचानी हो जायेंगी जिसके बारे में आगे और कुछ कहने की जरूरत नहीं होगी।

यह कुछ श्रद्धा के साथ विचार किया जाने वाला रिकार्ड है। जिसे केवल अमरीका ही बना सकता है।

(अनुवाद: महेश कुमार)

साभार: truth-out.org

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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