त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफ़े की वजह क्या हैं? मोदी-शाह को देना चाहिए जनता को जवाब
शिक्षा-स्वास्थ्य का बुरा हाल, पलायन की मार, सिकुड़ती खेती, बढ़ते बेरोज़गार, राज्य पर बढ़ता आर्थिक दबाव और कर्ज़, छोटे से राज्य उत्तराखंड का बीस साल का राजनीतिक सफ़र मूलभूत मुद्दों को सुलझाने से ज्यादा सत्ता और कुर्सी के ईर्द-गिर्द घूमता रहा। राज्य बनने के बाद से अब तक 8 मुख्यमंत्री बन चुके हैं।
18 मार्च को उत्तराखंड की वर्तमान सरकार के कार्यकाल के चार वर्ष पूरे होने वाले हैं। आयोजन की तैयारियां चल रही हैं। उससे 9 दिन पहले मुख्यमंत्री बदल दिया गया। अब क्या चार साल का जश्न मनेगा? मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत 8 मार्च की रात करीब साढ़े 10 बजे दिल्ली दरबार से लौटे। अटकलें-अफवाहें तेज़ थीं। 9 मार्च को उन्होंने देहरादून में राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया।
“उत्तराखंड की नहीं पार्टी की चिंता”
भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने चुनावी वर्ष के बजट सत्र के दौरान और गैरसैंण विधानसभा में बजट पेश करने के ठीक एक दिन बाद सभी विधायकों को दिल्ली बुला लिया। सत्र अपने तय समय से पहले ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। जनता के हित से जुड़े बहुत सारे सवाल स्थगित हो गए। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को राज्य की तीसरी कमिश्नरी बनाने की घोषणा कर दी थी। उनके इस फ़ैसले पर भी सदन में सवाल-जवाब नहीं हो सके।
राजनीतिक विश्लेषक योगेश भट्ट कहते हैं “बजट सत्र के दौरान उत्तराखंड भाजपा के विधायकों को दिल्ली में बुला लिया जाता है। यानी आलाकमान के लिए बजट सत्र प्राथमिकता में नहीं है। जनता प्राथमिकता नहीं है, राज्य प्राथमिकता नहीं है, राज्य के भविष्य की चिंता नहीं है। ये जनादेश का अपमान है”।
“ऐसा क्या हुआ कि विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों को दिल्ली बुलाया गया। अगर ये इतना बड़ा मुद्दा है तो जनता को इसके बारे में पता होना चाहिए। ऐसी क्या वजह हुई कि सत्र के दौरान मुख्यमंत्री बदलने की कवायद शुरू हुई? मुख्यमंत्री किसी पार्टी विशेष का नहीं बल्कि जनता का होता है। फिर फॉर द पीपल और बाय द पीपल (लोगों के लिए, लोगों के द्वारा) का क्या मतलब हुआ”।
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्यपाल को इस्तीफ़ा सौंपने के बाद मीडिया से कहा “ये पार्टी का सामूहिक निर्णय है कि अब किसी और को मौका दिया जाए”। योगेश कहते हैं कि पार्टी के नहीं जनता के मुख्यमंत्री थे। सिर्फ राजनीतिक वजहों से या राजनीतिक संतुलन के लिए ऐसे फ़ैसले नहीं लिए जा सकते।
गैरसैंण बजट सत्र के दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत व अन्य विधायक
गैरसैंण को तीसरी कमिश्नरी बनाने का फ़ैसला पड़ गया भारी
वर्ष 2020 के बजट सत्र के दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फ़ैसला कर सबको चौंका दिया था। उनके इस फ़ैसले की ख़बर किसी को नहीं थी। उस समय भी त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाए जाने की अटकलें तेज़ थीं। इसके बाद कोरोना काल ने राजनीतिक उठापठक को विराम दे दिया।
इस वर्ष बजट पेश करने के बाद भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को तीसरी कमिश्नरी बनाने का फ़ैसला कर सबको चौंका दिया। ये उत्तराखंड के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक परिदृश्य को बदलने वाला फ़ैसला था।
देहरादून की संस्था सोशल डेवलपमेंट ऑफ कम्यूनिटीज़ फाउंडेशन के अनूप नौटियाल कहते हैं “ त्रिवेंद्र सिंह रावत की चौंकाने और विस्मय में डालने वाली ये रणनीति इस बार बैकफायर कर गई। 2020 में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन बनाने का फ़ैसला सराहा गया। लेकिन इसे कमिश्नरी बनाने का फ़ैसला उलटा पड़ गया”।
योगेश भट्ट कहते हैं कि गैरसैंण को तीसरी कमिश्नरी बनाने का फ़ैसला ऐतिहासिक छेड़छाड़ थी। इसमें अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली और रुद्रप्रयाग को शामिल करने की बात कही गई। अल्मोड़ा, कुमाऊं का सांस्कृतिक केंद्र है। बल्कि अल्मोड़ा में इस फ़ैसले की बड़ी प्रतिक्रिया है। एक सांस्कृतिक जगह को बिना लोगों की सलाह लिए खत्म कर दिया गया। आप इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर रहे थे।
‘नेतृत्व परिवर्तन चुनावी चाल’
सीपीआई के प्रदेश सचिव समर भंडारी कहते हैं “4 साल में त्रिवेंद्र सिंह रावत घोषणाओं का अंबार लगा रहे थे। घोषणाओं को ही उपलब्धि के तौर पर बड़े पैमाने पर प्रचारित कर रहे थे। उनकी कार्यशैली पर पूरा विधायक दल प्रश्न उठा रहा है। लेकिन सवाल भाजपा सरकार के काम करने के तरीके पर है। नेतृत्व परिवर्तन से नीतियां तो नहीं बदलेंगी। चुनाव को देखते हुए जब भी इस तरह की अदला-बदली की गई है तो उनको मुंह की खानी पड़ी है। इससे पहले विजय बहुगुणा और हरीश रावत की अदला बदली हुई थी और फिर कांग्रेस चुनाव हारी। ऐसे ही कोश्यारी और निशंक का मामला हुआ था। जनता में जो असंतोष है वो भाजपा की नीतियों के ख़िलाफ़ है”।
‘57 सीटें मोदी-शाह के कहने पर दी थीं’
प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना कहते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के कहने पर उत्तराखंड की जनता ने 57 सीटें नहीं दी थी। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के कहने पर वोट दिया था। आज चार साल बाद आपको याद आ रहा है कि प्रदेश में काम नहीं हुआ है। बेरोजगारी में प्रदेश पहले पायदान पर है। स्वास्थ्य सेवाएं ध्वस्त हैं। आपदा प्रबंधन बिलकुल ठप है। विकास का पहिया जाम है। ऐसे में चेहरा बदलने से क्या होगा? वह पूरी भारतीय जनता पार्टी पर उत्तराखंड की जनता के साथ धोखे का आरोप लगाते हैं।
डबल इंजन का एक इंजन फेल
सीपीआई-एमएल के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी कहते हैं “उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से त्रिवेंद्र रावत की बेदखली भाजपा के चार के कुशासन की तस्दीक है। भाजपा ने त्रिवेंद्र रावत को सत्ता से हटा कर स्वीकार कर लिया कि उसके वायदे के डबल इंजन में से एक इंजन पूरी तरह फेल रहा है। त्रिवेंद्र रावत का शासन काल एक महिला शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा से अभद्रता और महिला शिक्षिका की गिरफ्तारी से शुरू हुआ तथा उसका पटाक्षेप दिवालिखाल में घाट की आंदोलनकारी महिलाओं और स्थानीय ग्रामीणों पर लाठीचार्ज से हुआ।
हाल ही में आई जोशीमठ आपदा में भी त्रिवेंद्र रावत ने केवल खबरें मैनेज करने पर ही जोर लगाया और नतीजे के तौर पर खोज अभियान विफल रहा।
उत्तराखंड के बेरोजगारों के भविष्य के साथ त्रिवेंद्र रावत ने खिलवाड़ किया। बीते चार साल में एक पी.सी.एस. की परीक्षा तक आयोजित नहीं हो सकी। फॉरेस्ट गार्ड की परीक्षा का पेपर लीक हुआ और उसका पेपर तक त्रिवेंद्र रावत ने दोबारा परीक्षा तक करवाने से इंकार कर दिया।
पहाड़ की ज़मीनें नीलाम करने वाला कानून त्रिवेंद्र रावत ने पास करवाया। स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली और पहाड़ की तबाही ही त्रिवेंद्र रावत के चार साल की विशेषता है। उत्तराखंड को मुख्यमंत्री बदलाव की नहीं राजनीतिक धारा के बदलाव की जरूरत है।”
‘इतनी भी क्या जल्दी थी, 9 दिन और रहने देते’
उत्तरकाशी के नौगांव ब्लॉक के देशवाड़ी प्राइमरी विद्यालय में शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा पति की मृत्यु के बाद ट्रांसफर की मांग को लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार में गुहार लगाने आई थीं। गहमागहमी में त्रिवेंद्र सिंह उन पर नाराज़ हो उठे और कार्रवाई की चेतावनी दे डाली। उत्तरा अब भी इसी स्कूल में पढ़ा रही हैं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे पर वह कहती हैं “उनके चार साल का कार्यकाल पूरा होने में 9 दिन बाकी रह गए थे। केंद्रीय नेतृत्व उन्हें 9 दिन और रह लेने देती। ऐसी भी क्या जल्दी थी।”
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस्तीफ़े के बाद मीडिया से बातचीत में इन 9 दिनों का ज़िक्र किया था।
मीडिया से क्या बोले त्रिवेंद्र
राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफ़ा सौंपने के बाद मीडिया को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा “दिल्ली में हुई बैठक में भारतीय जनता पार्टी ने विचार किया और सामूहिक रूप से ये निर्णय लिया गया कि मुझे अब किसी और को मुख्यमंत्री बनने का मौका देना चाहिए।”
उन्होंने बताया कि उनके कार्यकाल के 4 वर्ष पूरे होने में आज 9 दिन कम रह गए हैं। गांव के एक व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उन्होंने पार्टी का धन्यवाद भी दिया। साथ ही प्रदेशवासियों का भी शुक्रिया अदा किया।
अपने कार्यकाल के बारे में बताते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हमने स्वरजोगार के क्षेत्र में महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण, बच्चों की शिक्षा और किसानों के लिए नए कार्यक्रम दिए। पति की पैतृक संपत्ति में महिलाओं की सह-खातेदार के रूप में हिस्सेदार बनाना और मुख्यमंत्री घसियारी योजना का ख़ासतौर पर ज़िक्र किया।
(देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह)
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