राजस्थान : वसुंधरा शुरू करेंगी 'सुराज गौरव यात्रा',किसान नेता अमरा राम ने कहा 'गुमराह करने की कोशिश'
राजस्थान विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुनाव प्रचार के लिए 'सुराज गौरव यात्रा' शुरू करने का ऐलान किया है। राज्य बीजेपी अध्यक्ष मदन लाल सैनी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि ये यात्रा एक अगस्त से शुरू होगी। बताया जा रहा कि यात्रा के दौरान मुख्य मंत्री वसुंधरा राजे सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगी और अपनी तथाकथित उपलब्धियों को लोगों तक लेकर जाएँगी। इस सिलसिले में पार्टी की 16 जुलाई को जयपुर में बैठक होगी, जिसके बाद 21 जुलाई अध्यक्ष अमित शाह जयपुर आकर राज्य कार्य समिति की बैठक में हिस्सा लेंगे।
इस तथाकथित गौरव यात्रा के खिलाफ राजस्थान के किसान आंदोलन के नेता और पूर्व माकपा विधायक अमरा राम ने एक स्टेटमेंट जारी किया है। अमरा राम ने कहा है कि "वसुंधरा राजे सरकार पिछले चार साल से तो जनता से मिली नहीं और अब 'सुराज यात्रा' के नाम पर जनता को गुमराह करना चाहती है। लेकिन जनता सब जान चुकी है वह सरकार से नहीं मिलेगी। इनके कार्यकाल में भष्टाचार बढ़ा है और आम आदमी को सिर्फ परेशानियाँ मिली हैं। युवा, किसान, मज़दूर सभी इनकी नीतियों से त्रस्त हैं।"
अगर हम राजे सरकार के आने के बाद किसानों की स्थिति पर एक नज़र डालें तो इस बयान की सच्चाई साफ़ नज़र आएगी। पिछले साल सितम्बर में अखिल भारतीय किसान सभा के झंडे तले राजस्थान के किसानों ने एक बड़ा जन आंदोलन किया। 1 सितम्बर को शुरू हुए इस आंदोलन का असर सीकर इलाके के 20 ज़िलों में देखने को मिला जहाँ 1 लाख किसानों के चक्का जाम कर दिया और ज़िला कार्यालयों को घेर लिया। किसानों ने इस पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह रोक दिया सिर्फ एम्बुलेंस और कुछ ज़रूरी सेवाओं को चलने दिया गया। 13 दिन चले इस आंदोलन के सामने राजस्थान सरकार को घुटने टेकने पड़े और उन्होंने किसानों की सारी माँगे मान ली।
इस आंदोलन की वजह यह थी कि देश के बाकी इलाकों की तरह राजस्थान के किसान भी सरकार की नीति की वजह से त्रस्त थे। किसान नेताओं से बात करके के पता चलता है कि किसान भारी कर्ज़ की मार झेल रहे थे, उपज के लाभकारी मूल्य न मिलने से परेशान थे और राजे सरकार द्वारा मवेशियों की खरीद-फ़रोख्त पर रोक से भारी नुक्सान झेल रहे थे। अखिल भारतीय किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष पेमा राम के अनुसार राजे सरकार ने सत्ता में ही बिजली के दाम बढ़ा दिए जिससे किसानों को भारी नुक्सान झेलना पड़ा। दरअसल बिजली के दाम बढ़ाये जाने से खेती की लागत बढ़ी लेकिन किसानों की आय न बढ़ने से उन्हें नुक्सान झेलना पड़ा।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा के राजस्थान महासचिव छगन लाल चौधरी ने कहा कि "सबसे बड़ी दिक्कत प्रदेश में फसलों के दाम की है। पाँच साल पहले जिन दामों पर हम फसलें बेचते थे उनसे आधे दाम पर आज बेच रहे हैं। इसका उदहारण है कि पहले जहाँ हम सरसों की फसल को हम 5,000 से 6,000 रुपये प्रति क्विंटल बेचते थे वह भी 3,000 रुपये क्विन्टल बिक रही है। सरकार चने पर सिर्फ 40 क्विंटल और मूंगफली 25 क्विंटल की खरीद करती है बाकी फसल को बहुत ही काम दामों पर बेचना पड़ता है। इसके आलावा बहुत सी फसलों पर कोई भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं किया गया। " उदहारण देते हुए उन्होंने बताया कि उनके खेत में पिछले साल मूंगफली की 200 क्विंटल फसल हुई जिसमें सिर्फ 25 क्विंटल सरकार ने खरीदी। सरकार ने एक क्विंटल का 4400 रुपये दिया जबकि खुले बाज़ार में 1 क्विंटल का उन्हें 3400 रुपये मिले। इसका अर्थ है उन्हें पर क्विंटल पर 1 हज़ार का नुक्सान हुआ और उनके हिसाब से उन्हें कुल एक लाख पिछत्तर हज़ार रुपयों को नुक्सान हुआ।
इसका अर्थ है कि कई फसलों पर कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता ही नहीं और जहाँ मिलता भी है वहाँ फसल के एक बहुत छोटे से हिस्से पर ही मिलता है। यही वजह है कि किसान भारी क़र्ज़ के तले दबे हुए हैं।
पिछले साल सितम्बर के आंदोलन के बाद राजस्थान सरकार ने किसानों की ग्यारह सूत्री माँगो को मान लिया था। इन माँगो में किसानों को 5000 रुपये की पेंशन देने , मनरेगा को ठीक तरीक से लागू किये जाने , हर किसान की 50000 रुपये की क़र्ज़ माफ़ी, स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को लागू कराने, मूंगफली, मूंग और उड़द पर सही दाम दिए जाने जैसी माँगे शामिल थीं। लेकिन बाद में सरकार इससे पीछे हट गयी थी। जिसके बाद अखिल भारतीय किसान सभा ने जयपुर में विधान सभा का घेराव करने के आंदोलन का आवाहन किया। इस आंदोलन के दौरान हज़ारों किसानों को जयपुर पहुँचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। बाद में किसान नेताओं को छोड़ दिया गया, लेकिन उनकी लड़ाई अब भी जारी है।
इस साल राजस्थान में लहसुन के 5 किसानों ने आत्महत्या कीI इसकी भी वजह न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलना था। पिछले साल जहाँ एक क्विंटल लहसुन की कीमत 2850 रुपये थी वहीँ आज लहसुन की कीमत 200 से 700 रुपये क्विंटल हो गयी हैI ये समस्या और भी भयावह रूप इसीलिए ले रही है क्योंकि इस साल लहसुन की बम्पर फसल हुई हैI हालात यह है कि किसानों को लागत के आधे दाम भी नहीं मिल पा रहे हैंI किसान नेताओं का कहना है कि सरकार ने एक क्विंटल लहसुन का दाम 3400 रुपये तय किया था लेकिन वह इस दाम पर लहसुन खरीद नहीं रही हैI मीडिया में कुछ रिपोर्टों के मुताबिक 12 मई तक RAJFED (Rajasthan State Co-operative Marketing Federation Limited ) ने सिर्फ 1,482 मेट्रिक टन लहसुन ही किसानों से खरीदा जो कि उनके लक्ष्य का सिर्फ 1% हैI वहीँ दूसरी लहसुन की उपज पिछले साल 3.77 लाख मेट्रिक टन से इस साल 7.7 लाख मेट्रिक टन तक बढ़ गयी हैI
किसानों की इतनी ख़राब स्तिथि के बावजूद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 'सुराज गौरव यात्रा ' निकाल रही हैं। उनसे सवाल करने की ज़रुरत है कि क्या किसानों की ये हालत उनका 'सुराज' है ? या आम किसान इस हालत उनके लिए 'गौरव ' की बात है ? अगर ऐसा है तो यह बिलकुल संभव है कि इस बार चुनावों में किसान वसुंधरा जी को करारा जवाब दें।
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