एनडीए के असल सहयोगी सीबीआई, ईडी और आईटी हैं : करात
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की वरिष्ठ नेता बृंदा करात ने मंगलवार को कहा कि विपक्षी दलों को लोगों को यह यकीन दिलाना चाहिए कि वे भाजपा और आरएसएस के ‘हमले’ से देश और संविधान को बचाने के लिए एक साथ आए हैं।
यहां एक प्रेस वार्ता में करात ने यह भी दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के असल सहयोगी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग (आईटी) हैं।
पूछा गया कि 2024 के चुनाव में भाजपा का मुकाबला करने के लिए विपक्ष की एकता पर्याप्त है, क्योंकि स्थानीय राजनीति भी एक मुद्दा है, तो करात ने कहा कि “"धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत को विनाश से बचाने के लिए" न केवल विपक्षी दल, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक लाइन से परे सामाजिक ताकतों और सामाजिक आंदोलनों को एकजुट होने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, “चूंकि प्रत्येक राज्य में अलग-अलग राजनीतिक स्थितियां हैं, इसलिए यह कवायद मुख्य रूप से राज्य के स्तर पर की जानी चाहिए...राष्ट्रीय स्तर पर, हमें यह विश्वास दिलाना चाहिए कि भाजपा-आरएसएस के हमले से भारत और संविधान को बचाने का हमारा साझा लक्ष्य है।”
करात ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस कटाक्ष पर भी पलटवार किया कि ‘‘विपक्ष के लिए पहले परिवार आता है और राष्ट्र दूसरे स्थान पर आता है’’। माकपा नेता ने कहा कि मोदी और भाजपा के लिए पहले सत्ता आती है और सिद्धांत तथा जनता दूसरे स्थान पर आती है।
उन्होंने आरोप लगाया, ''राजग के सहयोगियों की बैठक में शामिल होने वाले आधे लोग दलबदलू हैं और “उन्होंने ईडी, सीबीआई और आईटी विभाग के सौजन्य से दल बदला है।''
करात ने यह भी पूछा कि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर में जारी हिंसा पर 'चुप' क्यों हैं?
महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति पर माकपा नेता ने कहा कि जिन लोगों के खिलाफ भाजपा ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, वे अब पार्टी के सबसे करीबी सहयोगी हैं, जो उसके पाखंड को उजागर करता है। उनका संदर्भ हाल में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अजित पवार और कुछ अन्य पार्टी विधायकों के महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना सरकार में शामिल होने से था।
समान नागरिक संहिता पर उन्होंने कहा कि यह वास्तव में भाजपा के चुनावी एजेंडे की "समान सांप्रदायिक संहिता" है।
करात ने कहा कि 21वें विधि आयोग ने समुदाय के नेताओं के साथ चर्चा के बाद पर्सनल कानूनों में संशोधन का सुझाव दिया था, लेकिन सरकार अपने सांप्रदायिक एजेंडे के कारण इन सुझावों पर कार्रवाई नहीं करना चाहती है।
उनके मुताबिक, विधि आयोग ने कहा है कि वर्तमान समय में यूसीसी न तो वांछनीय है और न ही आवश्यक है।
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