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सरकार की वादाख़िलाफ़ी के खिलाफ एक बार फिर किसान लॉन्ग मार्च

AIKS ने चेतावनी दी है कि सरकार के ऐसे दमनकारी प्रयास लॉन्ग मार्च को रोकने में सफल नहीं होंगे। सरकार को यह महसूस करना चाहिए कि किसानों की समस्याओं को उनकी उचित मांगों को स्वीकार करके और उन्हें लागू करके ही हल किया जा सकता है।

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महाराष्ट्र में हुए ऐतिहासिक किसान लॉन्ग मार्च के लगभग एक साल होने के बाद अखिल भारतीय किसान सभा ने एक बार फिर बुधवार 20 फरवरी से एक लाख से अधिक किसान को लेकर सरकार की वादाखिलाफी के खिलाफ नासिक से मुंबई तक लॉन्ग मार्च' शुरू किया है। इस मार्च से पहले रविवार को सरकार और किसान नेताओं के बीच बातचीत असफल रही।

इसके बाद से सरकार इस मार्च को रोकने का प्रयास कर रही है। इसके लिए सोमवार शाम से ही कई जगहों पर किसान नेताओं को हिरासत में लिया जा रहा है, ताकि वे मार्च में शामिल न हो सकें। पुलिस का कहना है कि किसानों को इस मार्च के लिए जरूरी परमिशन नहीं दी गई है, इसलिए हम इन्हें रोक रहे हैं। लेकिन किसान नेताओं ने इसे तानाशाही करार देते हुए कहा कि हमने पिछली बार यात्रा की तो किसी को भी किसी प्रकार कि कोई दिक्कत नहीं हुई थी, बल्कि लोगों ने हमारा साथ दिया था लेकिन पता नही यह सरकार एक शांतिपूर्ण मार्च को क्यों रोकना चाहती है। किसान सभा नेताओं कहना है कि वो हर हाल में मार्च करेंगे।

सान सभा का कहना है कि ये मार्च 20 फरवरी से शुरू हो रहा है इस दिन लेखक और कामगार नेता गोविंद पानसरे कि हत्या हुई थी और यह मार्च 27 फरवरी को चंद्रशेखर आज़ाद के शहादत दिवस के दिन मुंबई में खत्म होगा। इसके साथ जब यह मार्च मुंबई पहुंचेगा और विधानसभा का घेराव करेगा तब विधानसभा का बजट सत्र जारी होगा। किसानों का कहना है की अब हमें वादा नहीं चाहिए सरकार इसी सत्र में हमारी मांगों का समाधान करे।

पिछले साल के लॉन्ग मार्च के दौरान, दूसरे दिन तक राज्य सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई, जब मार्च मुंबई में प्रवेश किया, और मार्च के समर्थन में जबरदस्त सार्वजनिक दबाव बनाया गया तब सरकार जागी। इस बार, सरकार पहले से घबरा गई थी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने एआईकेएस के प्रतिनिधिमंडल को पहले से अच्छी तरह से मिलने के लिए आमंत्रित किया था। AIKS प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्यमंत्री द्वारा दो बैठकें आयोजित की गईं - पहली प्रारंभिक बैठक 11 फरवरी को और दूसरी पूर्ण बैठक 17 फरवरी को जिसमें अन्य संबंधित मंत्री और अधिकारी भी उपस्थित थे। हालांकि, वार्ता में कोई फैसला नहीं हो सका और एआईकेएस ने लॉन्ग मार्च के साथ आगे बढ़ने के लिए अपने दृढ़ संकल्प को सार्वजनिक किया।

पिछले साल की तुलना में इस मार्च कि दोगुना होने की उम्मीद है।  पिछले साल के मार्च 50,000 किसान शामिल हुए थे। इस मार्च में नासिक जिले के किसानों के साथ, इस बार ठाणे-पालघर जिले से किसानो का एक बड़ा दल इस में शमिल होगा, इसके आलावा अहमदनगर मराठवाड़ा, विदर्भ, पश्चिमी महाराष्ट्र, उत्तरी महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्रों में कई अन्य जिलों के भी किसान इस मार्च में शामिल होंगे।

AIKS ने किसानों और कृषि श्रमिकों को दिए गए सरकार के आश्वासनों पूरा न करने व उनसे विश्वासघात करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य और केंद्र सरकारों की निंदा करते हुए यह मार्च कर रही  है। इस विश्वासघात ने गंभीर कृषि संकट को और बढ़ाया है। इस मार्च में किसानों की ओर से 15 बिंदु का मांग पत्र जारी किया गया है| लेकिन इस मार्च के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं-

पहला उद्देश्य- भाजपा की सरकार ने पिछले साल मार्च में किसानों से लिखित में समझौता किया था लेकिन बार-बार याद दिलाने के बाद भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। यहाँ तक कि सरकार ने जितनी कर्ज माफी का वादा किया था उसकी आधी ही धन राशि जारी की इसके आलावा वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) का कार्यान्वयन भी नहीं किया। किसानों की सरकार से मांग है कि सरकार अपने किये गए समझौतों को पूरा करे।

सरा उद्देश्य- इस साल आधे महाराष्ट्र ने भयानक सूखे का सामना किया। बहुत बड़ी आबादी सूखे की मार झेल रही है। इन लोगों की दुर्दशा पर राज्य सरकार की प्रतिक्रिया बहुत ही निंदनीय है। एआईकेएस ने अपनी मांगों में चार्टर में दो प्रकार की माँगों पर प्रकाश डाला है - वे हैं जो तत्काल राहत के लिए हैं जैसे कि पेयजल, भोजन, मनरेगा के तहत रोजगार, मवेशियों के लिए चारा, किसानों को उनकी फसल के नुकसान का मुआवजा, किसानों को मदद करने के लिए एक व्यापक फसल बीमा योजना और न कि कॉर्पोरेट बीमा कंपनियां के लिए।

तीसरा उद्देश्य- नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा की केंद्र सरकार की वादाखिलाफी का पर्दाफाश। इस सरकार ने किसानों और कृषि श्रमिकों के प्रति उदासीनता बरती है और धोखा दिया है। 2014 के चुनाव से पूर्व हर सभा में मोदी और भाजपा ने किसानों से पूर्ण कर्ज माफी और उत्पादन की लागत से डेढ़ गुना एमएसपी घोषित करने की स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू करने का वादा किया था लेकिन यह सब आज जुमला लग रहा है। किसान सभा के नेताओं का कहना है कि सरकार एक तरफ को पूंजीपतियों के लाखों करोड़ के कर्ज माफ कर रही है लेकिन किसानों को राहत के नाम पर 5 एकड़ से कम ज़मीन वाले किसानों को 6 हज़ार रुपये सालाना दे रही है। यह राहत नहीं बल्कि किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। भाजपा सरकार मनरेगा, जो कृषि श्रमिकों के लिए जीवन यापन का सहारा है, उसको लगातर घटा रही है। इसके आलावा जबरन भूमि अधिग्रहण की नीतियां किसान विरोधी रही हैं।

इस मार्च का मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) महाराष्ट्र राज्य समिति, सीटू महाराष्ट्र राज्य समिति और किसान और कामगार पार्टी (पीडब्ल्यूपी) और अन्य सभी जन मोर्चों के नेता और कार्यकर्ता - सीटू, AIAWU, AIDWA, DYFI और SFI  भी समर्थन कर रहे हैं।

AIKS के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक धावले ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर सरकार के इस कृत्य की एक लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण सत्याग्रह संघर्ष को कुचलने की कोशिश के रूप में निंदा करते है। AIKS ने चेतावनी दी है कि सरकार के ऐसे दमनकारी प्रयास लॉन्ग मार्च को रोकने में सफल नहीं होंगे। सरकार को यह महसूस करना चाहिए कि किसानों की समस्याओं को उनकी उचित मांगों को स्वीकार करके और उन्हें लागू करके ही हल किया जा सकता है।

आगे वो कहते है कि मार्च बुधवार शाम नासिक से शुरू होगा। एआईकेएस के महासचिव हन्नान मोल्लाह इसका नेतृत्व करने के लिए पहले दिन नासिक में होंगे। यह देखना बाकी है कि सरकार क्या करती है।  लेकिन एक बात साफ है कि महाराष्ट्र में किसान तब तक आराम नहीं करेंगे जब तक की इस दूसरे लॉन्ग मार्च में उठाए जाने वाले प्रमुख मुद्दों को हल नहीं किया जाता है।

 

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