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निजी संचालकों के परिचालन वाली पहली ट्रेन होगी दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस

अभी तक परिवहन के क्षेत्र में केवल रेलवे ही ऐसा क्षेत्र था, जहां पर निजीकरण बहुत कम हुआ था।अन्यथा सड़क, बंदरगाह, विमानन ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर निजीकरण अधिक हो चुका है।लेकिन अब रेलवे में भी निजीकरण शुरू हो गया।
tejas express
image courtesy- hindustan

दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस पहली ऐसी ट्रेन होगी जिसका परिचालन निजी संचालक करेंगे। रेलवे बोर्ड दिल्ली-लखनऊ रुट के अलावा 500 किमी दूरी के दूसरे मार्ग के चयन में जुटी है, जहां दूसरी प्राइवेट ट्रेन चलाई जा सके। यह संकेत है कि रेलवे परिचालन के लिए अपनी दो ट्रेनें निजी क्षेत्र को सौंपने के अपने 100 दिन के एजेंडे पर आगे बढ़ रहा है। 

अभी तक परिवहन के क्षेत्र में केवल रेलवे ही ऐसा क्षेत्र था, जहां पर निजीकरण बहुत कम हुआ था।  अन्यथा सड़क, बंदरगाह, विमानन ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर निजीकरण अधिक हो चुका है।  लेकिन अब रेलवे में भी निजीकरण शुरू हो गया।  रेलवे में निजीकरण का विरोध इसलिए होता है क्योंकि इसका सबसे  अधिक उपयोग आम जनता करती है। और निजीकरण से किराया बढ़ेगा जिसका सबसे अधिक भार आम जनता पर पड़ेगा। 

 देबरॉय कमिटी की अनुसंशाओं  के मुताबिक रेलवे को दो विभाग में बाँट देना चाहिए।  पहला रेलवे की ढांचागत संरचना और दूसरे रेलवे का परिचालन।  रेलवे का ढांचागत संरचना से जुड़े हर मसला जैसे रेलवे ट्रैक आदि पर पूरी तरह से सरकार का एकाधिकार होना चाहिए।  बाकि परिचालन से सम्बंधित मसलों जैसे कि कोच , रेलवे की साफ -सफाई आदि को धीरे धीरे निजी क्षेत्र के हवाले किया जाना  चाहिए।  

इन्हीं अनुसंशाओं को अपनाते हुए  केंद्र सरकार ने तमाम विरोध के बीच आखिरकार रेलवे के प्राइवेटाइजेशन की ओर कदम बढ़ा ही दिया है। रेलवे बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा,“एक महीने में इस पर फैसला लिया जाएगा। आईआरसीटीसी इसके स्वरूप पर काम कर रहा है। इसके लिए रेलवे को यूनियन का विरोध भी झेलना पड़ रहा है। लेकिन रेलवे यूनियन के विरोध को नजरअंदाज कर रही है। वहीं यूनियन की ओर से बड़े पैमाने पर आंदोलन की धमकी दी जा रही है। 

दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस की घोषणा 2016 में की गयी थी लेकिन हाल में जारी नयी समय सारिणी में इसे जगह मिली है। मार्ग पर बहुप्रतीक्षित ट्रेनों में शामिल यह ट्रेन फिलहाल उत्तर प्रदेश के आनंदनगर रेलवे स्टेशन पर लगी हुई है और परिचालन के लिए ओपन टेंडर प्रोसेस के बाद इसे निजी संचालकों के हवाले किया जाएगा। दिल्ली-लखनऊ रूट पर फिलहाल 53 ट्रेनें हैं। इस रूट पर सबसे ज्यादा स्वर्ण शताब्दी की मांग है और इसे यात्रा में साढ़े छह घंटे लगते हैं। 

तेजस एक्सप्रेस ट्रेन की कस्टडी इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन (IRCTC) के पास रहेगी, जिसके लिए उसे रेलवे बोर्ड को भुगतान करना होगा। इसमें लीज चार्ज और इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉरपोरेशन (IRFC) की अन्य मदें शामिल हैं।

(भाषा से इनपुट के साथ)

 

 

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