पंजाब में आम आदमी पार्टी का प्रचंड बहुमत तय, केवल मुहर लगना बाक़ी
पंजाब की अवाम ने आम आदमी पार्टी को अपना अगुआ चुन लिया है। केवल आधिकारिक मुहर लगनी बाकी है। पंजाब में विधानसभा की कुल 117 सीटें हैं। बहुमत हासिल करने के लिए 59 का आंकड़ा पार करना होता है। खबर लिखने तक आम आदमी पार्टी 90 सीटों पर आगे चल रही हैं। कांग्रेस 15 सीटों पर आगे चल रही हैं। शिरोमणि अकाली दल 8 सीटों पर आगे चल रही है। भाजपा का गठबंधन 4 सीटों पर आगे चल रहा है। कुल मिलाजुकर कहा जाए तो आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अपना झंडा गाड़ दिया है। पार्टी बहुमत के आंकड़े से पार कर चुकी है। दूसरे नंबर के लिए कांग्रेस और अकाली दल के बीच टक्कर चल रही है।
2017 के चुनाव में कुल 117 सीटों में से कांग्रेस ने कब्ज़ाईं थीं 77, जबकि आम आदमी पार्टी के हिस्से आईं थीं 20, शिरोमणि अकाली दल 15 सीटों पर विजय हुई, जबकि पंजाब में उसकी जूनियर पार्टनर भाजपा सिर्फ़ तीन सीटें ही जीत पाई। लोक इंसाफ़ पार्टी यानी एलआईपी के खाते में आईं दो सीटें। एलआईपी, आम आदमी पार्टी से मिलकर चुनाव लड़ी थी।
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से आया था 38.5 फीसद वोट शेयर, जबकि आप ने हासिल किया 23.72 फीसद और उसकी सहयोगी लोक इंसाफ़ पार्टी ने पाया 1.23 फीसद वोट।
जबकि शिरोमणि अकाली दल को मिला 25.24 फीसद और उसकी सहयोगी भाजपा को 5.39 फीसद वोट। इन चुनाव में इन दोनों पार्टियों की राह अलग है।
चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि किसान आंदोलन की वजह से पंजाब में भाजपा और उसके सहयोगी दलों का जीतना असंभव था। पंजाब में जिस तरह की शासन प्रणाली चलाई गईं उससे पंजाब की पूरी जनता सरकार को लेकर निराश में जा चुकी थी।
वहां पर जाकर नई पार्टी के तौर पर आम आदमी पार्टी ने माहौल बनाया और लोगों का भरोसा जीत लिया। आम आदमी पार्टी को लेकर वहां शुरू से माहौल बन रहा था। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली मॉडल का प्रचार डोर टू डोर कैपेन कर किया। उनका यह सिक्का बहुत अच्छे तरीके से चलने में कामयाब रहा। सबसे बड़ी बात उन्होंने खुद को पंजाब की परंपरागत पार्टियों से अलग करने में कामयाब हासिल की और लोगों को बीच पंजाब को लेकर अपना सपना बेचने में कामयाब रहे।
हालांकि इसी पार्टी ने साल 2017 में 20 सीटें जीती थीं। इसमें से केवल 10 रह गए और 10 इधर उधर भटक गए। यानी पार्टी को एकजुट रखने में आम आदमी पार्टी कामयाब नही हो पाई थी। लेकिन इस बार इतना बड़ा बहुमत है जिसकी वजह से उम्मीद बन रही है कि आम आदमी करती धूमधाम से सरकार चलाने में सफल रह पायेगी।
कांग्रेस को लेकर दिल्ली की मीडिया में हो हल्ला था लेकिन क्षेत्रीय मीडिया में कांग्रेस के अंदरूनी कलह की चर्चा थी। साथ में कांग्रेस के कामकाज का हाल इतना बेकार था कि चन्नी दलित चेहरा और काबिल नेता दिखते हुए वोट बटोरने में नाकामयाब रहे। लोगों ने उनपर भरोसा नहीं किया।
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