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राजस्थान : कांग्रेस के लिए किसान आंदोलन ने खोले विधानसभा के दरवाज़े

सभी मुद्दों में सबसे बड़ा मुद्दा कृषि संकट रहा और बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह भी लाल झंडे के तले चल रहा किसान आंदोलन बताया जा रहा है।
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राजस्थान चुनावों में वही हुआ जिसका अंदाज़ा लगाया जा रहा था। राजस्थान में बीजेपी की बड़ी हार हुई है और कांग्रेस सरकार बना रही है। अब तक आए रुझान और नतीजों के हिसाब से राजस्थान की 200 सीटों जिनमें 199 पर चुनाव हुए उनमें काँग्रेस 101, बीजेपी 71, सीपीएम 2, बीएसपी 6, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी 3, भारतीय ट्रायबल पार्टी 2 और निर्दलीय 12 सीटों पर जीत दर्ज कर रही हैं।

राज्य की राजनीति पर नज़र रखने वाले भी इसी प्रकार के नतीजों की उम्मीद कर रहे थे। अगर वोट प्रतिशत पर नज़र डालें तो काँग्रेस को करीब 39॰3 % और बीजेपी को 38॰5 % वोट मिले हैं। 2013 में हुए चुनावों में बीजेपी को 45॰17 % और काँग्रेस को 33.07% वोट मिले थे। यह साफ दिखाता है कि बीजेपी के वोट प्रतिशत में काफी कमी आई है।

2013 में बीजेपी मोदी लहर के चलते 163 सीटों पर जीती थी वहीं काँग्रेस 21 सीटों पर जीती थी। जहां एक तरफ काँग्रेस पिछली बार से 80 सीटें ज़्यादा जीतती दिख रही है, वहीं दूसरी दफा बीजेपी की सीटों में करीब 90 सीटों की गिरावट हुई है। यह भारी गिरावट है। खासकर उस समय जब मीडिया देश भर में बीजेपी को अजय घोषित कर चुकी थी। यह इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज बीजेपी देश की सबसे अमीर पार्टी है, धनबल और बाहुबल में भी यह पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है। जानकार बताते हैं कि बीजेपी संगठनिक तौर पर भी काँग्रेस से ज़्यादा ताकतवर है।

इन बातों के अलावा राजस्थान लोकसभा सीटों के हिसाब से भी एक बहुत महत्वपूर्ण राज्य है। 2014 के लोक सभा चुनावों में बीजेपी सभी 25 लोक सभा सीटों पर जीती थी। लेकिन इन नतीजों से यह माना जा सकता है कि 2019 के लोक सभा चुनावों में राज्य से बीजेपी की सीटों में भी भारी कमी आएगी।

राजनीति के जानकार बीजेपी की हार की भविष्यवाणी इसीलिए कर रही थे क्योंकि राज्य के लोगों में ज़मीनी स्तर पर बहुत गुस्सा था। लोग जिन मुद्दों की वजह से नाराज़ हैं वह हैं किसानों की बेहाली, बेरोज़गारी, दलितों का दमन, शिक्षा का बाज़ारीकरण और गाय के नाम पर राज्य में बढ़ती हिंसा।

इन सभी मुद्दों में सबसे बड़ा मुद्दा कृषि संकट रहा और बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह भी लाल झंडे के तले चल रहा किसान आंदोलन बताया जा रहा है।

देश भर की तरह राज्य में भी कृषि संकट बहुत बड़ा मुद्दा है। यहाँ भी किसानों को फसल का सही दाम नहीं मिल रहा है और यहाँ भी किसान कर्ज़ों के तले दब रहे हैं। राज्य में उपज के सही दाम न मिलने की वजह से लहसुन के किसानों ने अत्महत्या तक की है, यह राज्य के इतिहास में पहले नहीं हुआ था।

मई में न्यूज़क्लिक कि रिपोर्ट के हिसाब से पिछले साल जहाँ एक क्विंटल लहसुन की कीमत 2850 रुपये थी वहीँ आज लहसुन की कीमत 200 से 700 रुपये क्विंटल हो गयी थीI ये समस्या और भी भयावह रूप इसीलिए ले रही है क्योंकि इस साल लहसुन की बम्पर फसल हुई थीI हालात ये हैं कि किसानों को लागत के आधे दाम भी नहीं मिल पा रहे हैंI किसान नेताओं का कहना है कि सरकार ने एक क्विंटल लहसुन का दाम 3400 रुपये तय किया था लेकिन वह इस दाम पर लहसुन खरीद नहीं रही है I

इसके अलावा किसी और फसल की भी सही कीमत नहीं मिली थी । यही वजह थी कि राज्य में सीपीएम और अखिल भारतीय किसान सभा के लाल झंडे तले किसान आंदोलन कर रहे हैं।

किसान अखिल भारतीय किसान सभा कर्ज़ माफ़ी, लागत के डेढ़ गुना दाम की माँग, बिजली की बढ़ती कीमतें के खिलाफ, किसानों की पेंशन और स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को लागू कराने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैंI सरकार ने किसानों के 50,000 रुपये की कर्ज़ माफी की माँग को मान लिया था, लेकिन यह भी सिर्फ सहकारी बैंकों के लिए था। लेकिन लागत के डेढ़ गुना दाम अब तक नहीं मिल रहा ।

इसके साथ राज्य में बेरोज़गारी कि स्थिति भयावह है। सरकार ने दावा किया था कि उसने कौशल विकास योजना के अंतर्गत 2014 से 2017 के बीच 1 लाख 27 हज़ार 817 लोगों को प्रशिक्षित किया और उनमें से 42,758 लोगों को रोज़गार मिला। लेकिन सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 9904 लोगों को रोज़गार मिला, जो इस योजना की पूर्ण विफलता की ओर इशारा करता है। सीएजी ने सरकार को सलाह देते हुए यह भी कहा कि 'राज्य में कौशल विकास के ज़रिये बेरोजगारी की समस्या को तुरंत दूर किए जाने की आवश्यकता है।'

इसी तरह नेशन करियर सर्विस के हिसाब से राजस्थान में 8,80,144 लोगों ने खुद को बेरोज़गार पंजीकृत कराया था। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गयी इस योजना के तहत सिर्फ 19,605 रिक्तियां निकाली गयीं। इसका अर्थ है कि बेरोज़गारी के हिसाब से सिर्फ 2.2 % वेकेंसियां थीं। हमें यह भी समझना होगा कि बहुत से बेरोज़गार खुद को पंजीकृत नहीं कराते।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के अमित ने बताया कि सेंटर फॉर मॉनीटरी इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के हिसाब से 2012 में राजस्थान की बेरोज़गारी दर 3.2% थी , जो 2015 में बढ़कर 7.1% हुई। 2018 में यह दर बढ़कर अब 7.7% हो गयी है। जबकि राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर फिलहाल 5.6 %  है।

सीएमआईई के महेश व्यास ने कहा कि जिन लोगों के पास काम है या जो काम ढूँढ रहे हैं उनकी दर लेबर पूल में नोटबंदी से पहले जहाँ 47% थी वह नोटबंदी के बाद 41 से 42% हो गयी है यानी काम तलाश करने वालों में भी कमी आई है।

वसुंधरा राजे ने 15 लाख रोज़गार देने का वादा किया था लेकिन यह ज़मीन पर दूर दूर तक होता नहीं दिख रहा है।

राज्य में तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा था स्कूलों का बंद किया जाना। राज्यभर में 17000 स्कूलों को एकीकरण के नाम पर बंद कर दिया गया जिस वजह से 5 लाख बच्चों पर असर पड़ा ।

इसके साथ ही राज्य में एक और बड़ा मुद्दा रहा गाय के नाम पर मौब लिंचिंग कि घटनाएँ। 2017 में इस तरह कि 23 घटनाएँ सामने आयीं। राज्य सरकार पर इन मामलों में आरोपियों से साथ खड़े रहने का आरोप लगता रहा है। साथ ही बीजेपी पर राजस्थान को हिन्दुत्व की राजनीति कि प्रयोगशाला बनाए जाने का भी आरोप लगा है। यह भी जनता के गुस्से का एक कारण बताया जा रहा है ।

लेकिन अगर ध्यान से देखा जाये तो यह बीजेपी की हार तो है लेकिन काँग्रेस की भी जीत नहीं है। पूरे किसान आंदोलन के दौरान काँग्रेस एक बार भी ज़मीन पर दिखाई नहीं पड़ी। जानकार कहते हैं कि किसान सभा के किसान आंदोलन ने काँग्रेस के लिए विधानसभा के दरवाज़े खोल दिये हैं। यह इसीलिए भी हुआ क्योंकि शेखवाटी इलाके के अलावा वामपंथ राज्य में और कहीं भी मौजूद नहीं है । 

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